बेंगलुरू बस डिपो में उपद्रवियों ने एक साथ कई बसों में आग लगा दी. देखते ही देखते कई बसें धू-धू करके जलने लगीं. और ये इससे पहले दिन में बेंगलुरू के मैसूर रोड सैटलाइट बस स्टैंड में तमिलनाडु की नंबर प्लेट वाली जितनी भी गाड़ियां थीं उन सभी में उपद्रवियों ने या तो आग लगा दी या फिर तोड़फोड़ की. तमिलनाडु परिवहन विभाग के दफ़्तरों में भी वो घुस गए और तोड़फोड़ पर उतर आए. रैपिड एक्शन फोर्स के जवानों को उन्हें भगाने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी. शहर के कई और इलाकों में ऐसी ही आगज़नी और तोड़फोड़ देखने को मिली जिसे देखते हुए रैपिड एक्शन फोर्स और सीआरपीएफ़ की दस कंपनियां पूरे शहर में लगानी पड़ीं. हालात को देखते हुए बेंगलुरू में स्कूल-कॉलेज बंद कर दिए गए और मेट्रो की सेवाओं को ऐहतियातन कुछ देर रोकना पड़ा.
उधर मैसूर में भी तोड़फोड़ और आगज़नी की ख़बरें आईं. कन्नड़ संघों ने 15 सितंबर को रेल रोकने का एलान किया है. कर्नाटक के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने बताया कि राज्य में 27 गाड़ियों को नुकसान पहुंचा है. जिसके बाद पूरे बेंगलुरू में ऐहतियातन धारा 144 लगा दी गई है. 200 से ज़्यादा लोगों को हिरासत में लिया गया है. कर्नाटक स्पेशल रिज़र्व पुलिस की 182 कंपनियों को भी राज्य भर में अलग-अलग जगह तैनात किया गया है.
दरअसल ये पूरा हंगामा कावेरी नदी के जल बंटवारे को लेकर है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का कर्नाटक के कई इलाकों में विरोध हो रहा है. कर्नाटक में हो रही हिंसा की प्रतिक्रिया तमिलनाडु में भी दिख रही है. चेन्नई में सोमवार सुबह कुछ लोग न्यू वुडलैंड्स नाम के होटल में घुस गए और तोड़फोड़ की. ये होटल कर्नाटक की एक कंपनी का है. आरोप है कि तोड़फोड़ करने वालों ने यहां पेट्रोल बम भी फेंका और कई पर्चे भी, जिनमें लिखा गया था कि अगर कर्नाटक में तमिलनाडु के लोगों को निशाना बनाया गया तो इसका बदला लिया जाएगा.
उधर तमिलनाडु के रामेश्वरम में भी कर्नाटक से आए चार यात्री वाहनों में तोड़फोड़ हुई. इनमें दो बसें शामिल हैं. एक ड्राइवर के साथ भी मारपीट की गई. इस सबको देखते हुए कर्नाटक ने तमिलनाडु के लिए अपनी बस सेवाएं रोक दी हैं.
इस हिंसा का असर टीवी चैनलों पर भी दिखने लगा है. कर्नाटक में कई जगह तमिल भाषा के चैनलों पर रोक लगा दी गई है तो तमिलनाडु के कई शहरों में कन्नड़ भाषा के चैनलों पर रोक लगा दी गई है. एक ओर कर्नाटक और तमिलनाडु में ये हंगामा चल रहा था उधर दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट में ईद की छुट्टी के दिन भी कर्नाटक की याचिका पर विशेष सुनवाई चल रही थी. कर्नाटक की दलील रही कि पानी के मुद्दे पर क़ानून व्यवस्था बिगड़ रही है जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख़्ती से कहा कि क़ानून व्यवस्था संभालना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने पांच सितंबर के आदेश में कुछ बदलाव किया. पांच सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कर्नाटक अगले दस दिन तक तमिलनाडु के लिए हर रोज़ कावेरी नदी का 15 हज़ार क्यूसेक पानी जारी करे. लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट ने पानी की मात्रा कम कर दी और दिन बढ़ा दिए. कोर्ट ने कहा कि कर्नाटक अब 15 हज़ार की जगह हर रोज़ 12 हज़ार क्यूसेक पानी दे लेकिन 16 तारीख के बजाय 20 तारीख़ तक ये पानी दिया जाए.
इस फ़ैसले से कर्नाटक और ठगा महसूस कर रहा है. पहले के आदेश के मुताबिक उसे दस दिन में डेढ़ लाख क्यूसेक पानी देना था लेकिन अब उसे एक लाख 86 हज़ार क्यूसेक पानी देना पड़ेगा. अब कर्नाटक सरकार के सामने इस फ़ैसले को लागू करने के अलावा कोई चारा नहीं है. दूसरी तरफ़ उसे अपनी जनता के गुस्से से निपटने की भी तैयारी करनी होगी.
दरअसल ये पूरा मामला इतना पेचीदा है कि शायद ही कोई फ़ैसला आसानी से तमिलनाडु और कर्नाटक की जनता के गले उतरे. आइए पहले इस विवाद को समझने की कोशिश करें. देश की बड़ी नदियों में से एक कावेरी नदी चार राज्यों से होकर बहती है. कर्नाटक जहां उसका उद्गम है, फिर तमिलनाडु जहां वो सबसे लंबी दूरी तक बहती है, फिर केरल और अंत में पांडीचेरी. इसके बाद नदी समुद्र में यानी बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है.
इस नदी के पानी को लेकर इन राज्यों के बीच हमेशा विवाद रहा. सबसे ज़्यादा कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच. इसी को हल करने के लिए 1990 में कावेरी नदी जल ट्राइब्यूनल बनाया गया. 1991 में ट्राइब्यूनल ने एक अंतरिम अवॉर्ड दिया. इसके तहत तमिलनाडु को 205 टीएमसी फीट पानी दिया गया. 2007 में अंतिम फ़ैसला आया. इसमें तमिलनाडु को फाइनल अवॉर्ड में 419 टीएमसी फीट पानी देने का फ़ैसला किया गया लेकिन कर्नाटक ने इस पर लगातार एतराज़ किया है और कहा है कि वो तमिलनाडू के लिए इतना पानी नहीं छोड़ सकता.
कावेरी नदी जल ट्राइब्यूनल के सामने पहली चुनौती ये देखना थी कि कावेरी में पानी है कितना और कहां-कहां से आता है. जानकारों ने लंबी गणनाओं के बाद ये निष्कर्ष निकाला कि मॉनसून पर आधी निर्भरता के लिहाज़ से कावेरी का 740 टीएमसी फीट पानी इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगा. ट्राइब्यूनल के सामने अगली चुनौती थी इस 740 टीएमसी फीट पानी को चार राज्यों के बीच बांटना. कई साल की दलीलों और विशेषज्ञों के विचारों को जानने के बाद ट्राइब्यूनल ने 419 टीएमसी फीट पानी तमिलनाडु को देने का फ़ैसला किया, 270 टीएमसी फीट पानी कर्नाटक को, 30 टीएमसी फीट पानी केरल को और 7 टीएमसी फीट पानी पॉन्डीचेरी को देने का फ़ैसला किया. 14 टीएमसी फीट पानी को पर्यावरण के लिहाज़ से खाली छोड़ दिया गया.
इस फ़ैसले के बाद ट्राइब्यूनल ने कर्नाटक को निर्देश दिया कि वो ये सुनिश्चित करे कि 192 टीएमसी फीट पानी सालाना तमिलनाडु को मिले. यहीं पर सारा कन्फ़्यूज़न शुरू हुआ.
इसी इस तरह समझें. दरअसल कावेरी नदी में कर्नाटक के अंदर के कैचमेंट इलाके में 462 टीएमसी फीट पानी आता है, ये सहायक नदियों से भरता है. क्योंकि कर्नाटक को 270 टीएमसी पानी ही दिया गया तो बाकी बचा 192 टीएमसी फीट उसे तमिलनाडु के लिए छोड़ना होगा. कर्नाटक इसके लिए तैयार नहीं है.
तमिलनाडु को अगर ये 192 टीएमसी फीट कर्नाटक से मिलता है तो अवॉर्ड के मुताबिक 419 टीएमसी फीट पानी पूरा कैसे होगा. ये 227 टीएमसी फीट पानी दरअसल तमिलनाडु ख़ुद अपने कैचमेंट एरिया में जनरेट करता है. 227 प्लस 192 मिलकर होता है 419 टीएमसी फीट. इस तरह कावेरी नदी में कर्नाटक और तमिलनाडु के कैचमेंट एरिया से कुल मिलाकर 462 और 227 टीएमसी फीट पानी आता है. कावेरी नदी जब केरल से होकर बहती है तो वहां के कैचमेंट एरिया से उसमें 51 टीएमसी फीट पानी आता है लेकिन केरल इसमें से 30 टीएमसी ही इस्तेमाल कर पाता है. बचे हुए 21 टीएमसी पानी को पांडिचेरी (7) और पर्यावरण के लिहाज़ से (14) रखा गया है.
तो लब्बोलुआब ये है कि कर्नाटक 462 टीएमसी फीट पानी कावेरी में डालता है और उसमें से उसे 270 टीएमसी फीट पानी इस्तेमाल करने की इजाज़त है. तमिलनाडु 227 टीएमसी फीट पानी डालता है और 419 टीएमसी फीट पानी पाता है. केरल 51 टीएमसी फीट पानी डालता है लेकिन उसे 30 टीएमसी फीट पानी ही इस्तेमाल करने को मिलता है.
देखने में लगता है कि कर्नाटक के साथ ये बड़ा अन्याय है. लेकिन ये हुआ कैसे. इसका जवाब इतिहास में है जिसे दोबारा नहीं लिखा जा सकता. हुआ ये कि चोल शासकों ने जो दसवीं शताब्दी में तमिलनाडु पर राज करते थे, उन्होंने ये दूरदर्शिता दिखाई कि अपने राज्य में जलाशय और चेकडैम बनवाए ताकि नदी के पानी को सिंचाई के लिए इस्तेमाल किया जा सके. दूसरी ओर कर्नाटक में पहला बड़ा जलाशय केआर सागर 1934 में बना जब मैसूर के शासकों ने उसे बनवाया.
ऐसे में तमिलनाडु के किसानों को शुरुआती फायदा मिला. 1894 और 1924 के समझौतों पर जब दस्तख़त हुए तो तमिलनाडु के 15 से 20 लाख एकड़ इलाके बल्कि उससे भी ज़्यादा में सिंचाई होती थी.
कर्नाटक में 1924 तक 6.5 लाख एकड़ में सिंचाई होती थी और अब भी 15 लाख एकड़ में ही खेती होती है. इसका मतलब ये है कि 1974 तक कावेरी के पानी का 80% तमिलनाडु के किसान इस्तेमाल कर रहे थे. 1974 में कर्नाटक ने 1924 में हुए समझौते को खारिज कर दिया. तो इस ऐतिहासिक फ़ायदे और दूरदर्शिता की वजह से तमिलनाडु को कावेरी का बड़ा हिस्सा मिलता रहा. 1924 के समझौते के बाद तमिलनाडु का जो हिस्सा पहले 80 फीसदी से ज़्यादा था वो घटकर 57 फीसदी पर आ गया और कर्नाटक का हिस्सा 16 फीसदी से बढ़कर 37 फीसदी हो गया.
तो क्या ये अवॉर्ड कर्नाटक के साथ अन्याय है? हां है. लेकिन ऐतिहासिक वजहों से ज़्यादा. क्या कर्नाटक बिना विरोध के इसे स्वीकार कर ले? नहीं, इस अवॉर्ड के कुछ पहलुओं पर स्पष्टता और बदलाव की ज़रूरत है. कर्नाटक ने इसके लिए 2007 में ही सुप्रीम कोर्ट में एक स्पेशल लीव पिटीशन डाल दी थी. तमिलनाडु और केरल ने भी ऐसी ही याचिकाएं डालीं क्योंकि वो भी अवॉर्ड से खुश नहीं थे. लेकिन अभी तक इन पर फ़ैसला नहीं हुआ है.
कावेरी नदी जल बंटवारे को लेकर गुस्सा तभी सामने आता है जब बारिश कम होती है. अच्छे मॉनसून में कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कोई तनाव नहीं दिखता लेकिन अगर बारिश कम हुई तो दोनों ही राज्यों में राजनीतिक दलों से लेकर आम लोग तक एक दूसरे के सामने आ जाते हैं.
This Article is From Sep 12, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : कावेरी नदी जल बंटवारे का विवाद
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 12, 2016 21:40 pm IST
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Published On सितंबर 12, 2016 21:40 pm IST
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Last Updated On सितंबर 12, 2016 21:40 pm IST
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