नमस्कार मैं रवीश कुमार, कम से कम अब हम ऐसी स्थिति में नहीं है कि कंप्यूटर का नाम सुनते ही रोज़गार के खत्म होने की आशंका पाल ले। ये दूसरा भारत है जो इंटरनेट की बात आत्मविश्वास से करता है। कंप्यूटर के आने से रोजगार तो बढ़ा लेकिन बेरोज़गारी दुनिया में कहीं भी खत्म नहीं हुई। इंटरनेट के प्लेटफार्म पर होने वाले प्रयोगों से रोज़गार की संभावनाएं पनप रही हैं। सरकार इसका विस्तार करना चाहती है।
अगस्त 2014 में ही मोदी मंत्रिमंडल ने डिजिटल इंडिया का फैसला कर लिया था, करीब एक साल की गहन तैयारी के बाद बुधवार शाम को इसे धूमधाम के साथ लांच किया गया।
अगले चार साल में ढाई लाख पंचायत ब्राड बैंड से जोड़ दिए जाएंगे। गांव गांव में ब्राड बैंड का जाल बिछाया जाएगा। सरकार की सारी सूचना और योजना एप्स के रूप में आपके स्मार्ट फोन पर होगी। जैसे ई-स्कॉलरशिप स्कीम के ज़रिये केंद्र और राज्य की छात्रवृत्ति योजनाओं का एक मंच पर लाया जाएगा। 37 फीसदी पढ़े लिखे नहीं हैं हमारे देश में, 90 करोड़ लोगों की पहुंच इंटरनेट तक नहीं है, इसलिए सरकार डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम चलाएगी। एक और योजना है ई-लाकर का। जैसे बैंक में आप सोना चांदी और दस्तावेज़ रखते हैं उसी तरह से आप अपने दस्तावेज़ों का डिजिटल संस्करण यानी स्कैन कापी रख सकेंगे। इस तरह की सुविधा दुनिया भर में अलग अलग कंपनियां भी देती हैं। आपको यह समझना है कि यह कितना सुरक्षित है और डाका पड़ गया तो आपके अधिकार क्या हैं। सरकार जिन प्रोडक्ट को लेकर आ रही है वो सरकार बनाएगी या प्राइवेट एंजेंसी यह देखना होगा। जैसे अभी पासपोर्ट सेवा का काम प्राइवेट कंपनी देखती है और आप उसके साथ सहज भी हो चुके हैं। क्या यह कार्यक्रम सरकारी संसाधनों के दम पर प्राइवेट कंपनियों के लिए विस्तार का एक मौका होगा या सरकार भी एक दावेदार बनकर उभरेगी। यह देखना और समझना इतना आसान नहीं है।
हमारे देश में 90 करोड़ लोगों के पास फोन हैं जिसमें से 14 करोड़ लोगों के पास ही स्मार्ट फोन है। फोन उपभोक्ताओं को भी आप स्मार्ट फोन और गैर स्मार्ट फोन में अमीर गरीब की तरह बांट सकते हैं। जिनके पास स्मार्ट फोन हैं उनमें से बहुत से लोग साधारण हैं जिसके आधार पर आप उम्मीद कर सकते हैं कि लोगों को इंटरनेट मिलने भर की देर है। डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की सबसे अच्छी बात ये है कि आप इसके ज़रिये इसकी चुनौतियों और संभावनाओं पर बात करने का मौका मिल रहा है।
जैसे मंगलवार को जब हमने एन टी पी ई ल पर कार्यक्रम किया तो पता चला कि इसकी साइट पर कोई 24 करोड़ हिट्स हो चुके हैं। दस साल से इसके तहत आई आई टी के प्रोफेसर कोई 900 कोर्स उपलब्ध करा रहे हैं। ट्वीटर पर फीडबैक से पता चला कि बहुत से इंजीनियर और दूसरे विषयों के छात्र इसका इस्तमाल करते हैं। मतलब साफ है कि अगर कोई अच्छी सुविधा होगी तो लोग इस्तमाल करेंगे। अब सवाल यह भी है कि अब तक इसके बारे में कितने ग़रीब छात्रों को जानकारी थी। एक तरह से देखिये तो सरकार ने अपनी तरफ से तो इन कोर्स के ज़रिये अमीर गरीब और शहर और गांव के बीच की खाई मिटा दी लेकिन असल में क्या हुआ। गांव और गरीब के बच्चे ने ज़्यादा इस्तमाल किया या शहरी बच्चे ने। इंटरनेट पर किसी चीज़ के हो जाने से समाज का अंतर नहीं समाप्त हो जाता है। इंटरनेट खाई मिटाने की चीज़ नहीं है। उसके आंगन में भी कई तरह की खाइयां हैं। जैसे 4 जी बनाम 2 जी।
ज़रूरत है कि हम इसकी संभावनाओं और सुरक्षा के सवालों के बारे में सजग हों। हम कितने आराम से ई कामर्स का इस्तमाल कर रहे हैं, इंकम टैक्स भर रहे हैं। लेकिन अस्पताल में ऑनलाइन भुगतान या समय लेने से ऑपरेशन का डेट कल मिल जाएगा यह तो नहीं होने वाला। यही होगा कि भीड़ अब अस्पताल के बाहर नहीं दिखेगी। उसी तरह से जैसे आनलाइन टिकट की सुविधा से टिकट की खरीद में भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ और टिकटों की उपलब्धता भी बेहतर नहीं हो सकी। एक उदाहरण और। मोबाइल एप्स बना देने से चुनाव में सीमा से ज्यादा खर्च नहीं होगा इसकी गारंटी कौन देगा। हर कोई ई-गर्वनेंस को पारदर्शिता और भ्रष्टाचार मुक्त भारत से जोड़ देता है पर क्या जहां जहां है वहां वहां मुक्ति मिल गई है।
हालांकि पंकजा मुंडे ने अपनी सफाई दे दी है फिर भी उनसे जुड़े मामले के ज़रिये आपके मन में सवाल पैदा करना चाहता हूं कि ई-टेंडर या ई-गर्वनेंस आपकी परेशानी तो खत्म कर सकता है मगर भ्रष्टाचार खत्म कर देगा ये मानने के लिए हमारे पास पर्याप्त प्रमाण नहीं हैं। नियम के हिसाब से 3 लाख से ऊपर की ख़रीद के लिए ई-टेंडर जारी करना होता है, लेकिन आरोप लगा कि बिना टेंडर के ही ठेका दे दिया गया। जैसे सरकार इस वक्त करीब 65000 पंचायतों को ब्रांड बैंड से जोड़ चुकी है। हर जगह अलग अलग सुविधाएं हैं हो सकता है अब एक सी सुविधा हो जाएं लेकिन क्या हम जानते हैं कि जहां ये सुविधा है वहां भ्रष्टाचार नहीं है। मैं नहीं कहता कि भ्रष्टाचार होगा ही लेकिन क्या हम जानते हैं।
हमारे देश में नेटवर्क की इतनी समस्या है कि पहले लोग छत पर एंटिना घुमाने जाते थे ताकि दुरदर्शन का सिग्नल आ जाए आज कल छत पर जाते हैं या बांध पर चले जाते हैं जहां से नेटवर्क पकड़ ले। इतना स्लो है कि भारत का स्थान दुनिया में 115 वां हैं। ज़ाहिर है सरकार एक दिन में इन लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकती मगर सरकार के लक्ष्य से ज्यादा ज़रूरी है कि हम इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जाने। प्राइम टाइम
This Article is From Jul 01, 2015
डिजिटल इंडिया के लाभ और सवाल?
Ravish Kumar
- Blogs,
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Updated:जुलाई 01, 2015 21:15 pm IST
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Published On जुलाई 01, 2015 21:08 pm IST
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Last Updated On जुलाई 01, 2015 21:15 pm IST
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