सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिक संबंधों को अपराध ठहराने वाली आईपीसी की धारा 377 को समाप्त कर दिया. इस फैसले का जमकर स्वागत हो रहा है. लेकिन इस पर सियासत भी शुरू हो गई है. कांग्रेस ने जहां इस फैसले का स्वागत किया वहीं बीजेपी पर हमला भी बोल दिया. कांग्रेस ने ट्विटर पर एक वीडियो जारी कर बीजेपी नेताओं के पुराने बयान सुनवाए जिसमें वे समलैंगिक संबंधों का विरोध कर रहे हैं.
कांग्रेस ने दावा किया है कि उसने इन रिश्तों को मान्यता दिलवाने की दिशा में कदम उठाए जबकि बीजेपी ने रोड़े अटकाए. उदहारण के तौर पर कांग्रेस गिनवा रही है कि उसके नेता शशि थरूर प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आए थे लेकिन बीजेपी ने तब इसका विरोध किया था. बीजेपी का कहना है कि तब विरोध इसी बात पर किया गया था कि मामला अदालत के सामने विचाराधीन है. बीजेपी पूछ रही है कि अगर कांग्रेस इतनी ही गंभीर थी तो वो अपनी सरकार के समय इस पर बिल लेकर क्यों नहीं आई?
जाहिर है कांग्रेस की नजरें समलैंगिकों के वोट पर तो है ही, वो अपने को बदले ज़माने के हिसाब से चलने वाली पार्टी के रूप में भी दिखाना चाहती है ताकि युवाओं को लुभा सके. उधर, बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस चाहे जितनी सियासत कर ले मगर हकीकत यह है कि दिल्ली हाईकोर्ट में यूपीए सरकार ने समलैंगिकता को अपराध बनाए रखने की ही बात की थी. जब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तब यूपीए सरकार ने इसका फैसला कोर्ट पर ही छोड़ दिया था. यही एनडीए ने भी किया. बीजेपी का रुख यही रहा कि इस मसले पर कोर्ट जो भी तय करेगी वह माना जाएगा.
वित्त मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली भी इस मुद्दे पर सरकार के रुख में नरमी का संकेत दे चुके थे. नवंबर 2015 को जेटली ने कहा था कि "जब दुनिया भर में लाखों लोग वैकल्पिक यौन प्राथमिकताएं अपना रहे हैं, यह कहना जायज नहीं है कि उन्हें इसके लिए जेल में डाल दिया जाए. इस बारे में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला ज्यादा सही था."
सिर्फ इतना ही नहीं, ऐसे मुद्दों पर पारंपरिक सोच रखने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने के खिलाफ रहा. इसमें एक बड़ा बदलाव वरिष्ठ संघ नेता दत्तात्रेय होसबोले के मार्च 2016 में दिए गए बयान से दिखा था जिसमें उन्होंने समलैंगिकता को अपराध मानने से इनकार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संघ के प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने एक बयान में कहा कि "सुप्रीम कोर्ट की तरह हम भी इसे अपराध नहीं मानते. समलैंगिक शादियां प्राकृतिक नियमों के अनुरूप नहीं हैं, इसलिए हम ऐसे रिश्तों का समर्थन नहीं करते. भारतीय समाज में भी ऐसे रिश्तों को मान्यता देने की परंपरा नहीं है. इंसान आमतौर पर अनुभवों से सीखते हैं, इसीलिए इस मुद्दे को समाज और मनोविज्ञान के स्तर पर हल किया जाना चाहिए."
वैसे जानकारों को लगता है कि अब समलैंगिकता को अपराध मानने की बात तो खत्म हो गई लेकिन आने वाले दिनों में समलैंगिक विवाह, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मुद्दे उठेंगे. राजनीतिक दलों की कथनी और करनी की तब परख होगी क्योंकि चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही दलों ने संसद में कानून बनाने के बजाए सुप्रीम कोर्ट पर फैसला छोड़ कर एक तरह से अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश ही की है.
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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This Article is From Sep 06, 2018
समलैंगिकता पर सियासत...
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 06, 2018 21:44 pm IST
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Published On सितंबर 06, 2018 21:44 pm IST
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Last Updated On सितंबर 06, 2018 21:44 pm IST
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