विज्ञापन

सामाजिक न्याय और बंधुत्व से सामाजिक एकता सुनिश्चित करते नरेंद्र मोदी

स्वदेश सिंह
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 17, 2025 14:42 pm IST
    • Published On सितंबर 17, 2025 14:39 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 17, 2025 14:42 pm IST
सामाजिक न्याय और बंधुत्व से सामाजिक एकता सुनिश्चित करते नरेंद्र मोदी

भारत एक समाज प्रधान देश है, जिसमें एकता, समरसता और समृध्दि सुनिश्चित करना ही किसी राज्य का लक्ष्य होना चाहिए. इस बात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भलीभांति समझा और सामाजिक एकता सुनिश्चित करने के लिए एक नई रणनीति बनाई. इसमें सामाजिक न्याय का दायरा ही नहीं बढ़ाया बल्कि साथ में हाशिए पर पड़े बंधुत्व के विमर्श को भी कार्यक्रमों और नीतियों में लागू किया.

दरअसल, सामाजिक एकता एक ऐसा अनुभव है, जहां सभी समुदायों में प्रगति, भागीदारी और गरिमा एक साथ होती है. सामाजिक एकता का मतलब सिर्फ 'संघर्ष की अनुपस्थिति' नहीं है. इसका मतलब है नागरिकों के बीच जुड़ाव, एकजुटता और साझा उद्देश्य की भावना को बढ़ावा देना. इसका मतलब यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न समूहों के वास्तविक अनुभव आपस में जुड़े हों और विकास को शून्य-योग खेल न समझा जाए, जहां एक समुदाय या व्यक्ति का लाभ दूसरे का नुकसान हो.

सामाजिक एकता एक व्यापक इकोसिस्टम है, जो लोगों के बीच सहज रूप से सौहार्दपूर्ण संबंध को बढ़ावा देता है. असहमति की जड़ें अक्सर ऐतिहासिक अन्याय, भेदभाव और इस धारणा में होती हैं कि संसाधन या अवसर असमान रूप से वितरित किए जाते हैं. यह विश्वास कि एक व्यक्ति की प्रगति दूसरे की पीड़ा की कीमत पर होनी चाहिए, समूहों के बीच अदृश्य दीवारें बनाता है.

सच्ची सामाजिक एकता स्थापित करने के लिए, इन बाधाओं को जानबूझकर खत्म करना होगा. और ऐसी सामाजिक एकता स्थापित करने के लिए, दो स्तंभ आवश्यक हैं- सामाजिक न्याय और भाईचारा. प्रधानमंत्री मोदी की पिछले 11 सालों की सरकार के कामकाज में ये साफ झलकता है.

सामाजिक न्याय का दायरा बढ़ाया

प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को समझा कि सामाजिक एकता के करीब पहुंचने का एक तरीका सामाजिक न्याय में मौजूद कमियों को दूर करना है. भारत ने लंबे समय तक सामाजिक न्याय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में जाति के आधार पर आरक्षण के नजरिए से देखा है. हालांकि आरक्षण ने निश्चित रूप से लाखों लोगों को ऊपर उठाया है, लेकिन इसकी पहुंच सीमित है.

नरेंद्र मोदी सरकार कोराना काल से ही गरीब लोगों को मुफ्त में आनाज उपलब्ध करा रही है.

नरेंद्र मोदी सरकार कोराना काल से ही गरीब लोगों को मुफ्त में आनाज उपलब्ध करा रही है.

भारत के कमजोर, वंचित, गरीब लोगों का एक बड़ा हिस्सा उच्च शिक्षा नहीं लेता या सरकारी नौकरी में नहीं जाता. उनकी जरूरतें अलग हैं- स्वच्छ जल, स्वास्थ्य सेवा, आवास, आजीविका के अवसर और रोजमर्रा की जिंदगी में गरिमा. इसलिए, मोदी सरकार ने उज्ज्वला (स्वच्छ खाना पकाने का ईंधन), स्वच्छ भारत (स्वच्छता), प्रधानमंत्री आवास (आवास), आयुष्मान भारत (स्वास्थ्य सेवा), जन धन (वित्तीय समावेशन), डिजिटल इंडिया (डिजिटल कनेक्टिविटी), गरीब कल्याण अन्न योजना (खाद्य सुरक्षा) ने सामाजिक न्याय का दायरा व्यापक किया. साल 2014 के बाद से, ध्यान मापने योग्य समावेश पर केंद्रित हो गया है. टुकड़ों में की जाने वाली कल्याणकारी योजनाओं के बजाय, सरकार ने बुनियादी बातों पर ध्यान दिया- लंबित रिक्तियों को भरना, छात्रवृत्ति बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना कि योजनाओं को डेटा और परिणामों के आधार पर ट्रैक किया जाए. ध्यान सशक्तिकरण पर है, जिसे स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा और उद्यमिता में मापा जा सकता है.

पहुंच के माध्यम से सशक्तिकरण

सामाजिक न्याय का विस्तार प्रमुख कल्याणकारी योजनाओं में सबसे अधिक दिखाई देता है. उज्ज्वला ने 10 करोड़ से अधिक महिलाओं को स्वच्छ खाना पकाने का ईंधन उपलब्ध कराया, जिससे उनके स्वास्थ्य और सम्मान में सुधार हुआ. स्वच्छ भारत ने 13 करोड़ से अधिक घरों में शौचालय सुनिश्चित किए, जिससे महिलाओं को बेइज्जती और खतरे से मुक्ति मिली. पीएम आवास ने परिवारों के सिर पर सुरक्षित छतें दीं, जबकि आयुष्मान भारत ने सबसे गरीब लोगों को स्वास्थ्य कवरेज दिया. इसी तरह, जन धन ने 54 करोड़ लोगों को बैंकिंग सिस्टम में शामिल किया, जबकि जल जीवन मिशन ने ग्रामीण घरों में नल से पानी पहुंचाया. डिजिटल इंडिया ने कनेक्टिविटी का विस्तार किया, जिससे ग्रामीण परिवारों को वे सेवाएं मिल सकीं जो पहले केवल शहरों तक सीमित थीं. पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना ने यह सुनिश्चित किया कि महामारी के दौरान कोई भी परिवार भूखा न रहे. इन सभी योजनाओं ने जाति और धर्म की सीमाओं को पार किया और नागरिकों को सम्मान के साझा अनुभव में एकजुट किया.

पीएम आवास योजना की एक लाभार्थी को घर की चाबी देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

पीएम आवास योजना की एक लाभार्थी को घर की चाबी देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

पहचान से परे सामाजिक न्याय

पारंपरिक रूप से, कल्याणकारी योजनाएं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग जैसी वर्टिकल श्रेणियों को लक्षित करती थीं. मोदी युग ने इसे हॉरिजॉन्टल श्रेणियों तक विस्तारित किया है- किसान, महिलाएं, युवा, गरीब- यानी वे समूह जो जाति और समुदाय की सीमाओं से परे हैं. आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10 फीसदी आरक्षण या नारी शक्ति वंदन अधिनियम जैसी पहलें, जो महिलाओं के लिए संसदीय सीटों का एक-तिहाई हिस्सा आरक्षित करती हैं, इस नए दृष्टिकोण को दर्शाती हैं. इसका उद्देश्य भेदभाव को दूर करना है, चाहें वह कहीं भी हों, न कि केवल जहां इतिहास ने उसे चिह्नित किया हो.

आकांक्षी जिला कार्यक्रम (और आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम) पिछड़े क्षेत्रों को लक्षित करता है (किसी विशेष समुदाय के बजाय), यह सुनिश्चित करता है कि भूगोल ही भाग्य न बन जाए. इसका तर्क सरल है- एक पिछड़ा क्षेत्र केवल एक जाति या समुदाय को ही नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि उसमें मौजूद हर समूह को समान रूप से हाशिए पर धकेल देता है. इसी तरह, वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम उपेक्षित सीमावर्ती गांवों में बुनियादी ढांचा और अवसर लाता है. ऐसे कार्यक्रम यह मानते हैं कि हाशिए पर धकेलना केवल पहचान से संबंधित नहीं है, बल्कि संरचनात्मक और क्षेत्रीय नुकसान से भी संबंधित है.

सामाजिक न्याय की दिशा में सरकार की एक और नई पहल उद्यमिता को बढ़ावा देना है. मुद्रा लोन, स्टैंड-अप इंडिया और दलित वेंचर कैपिटल फंड जैसी योजनाएं पहली बार व्यवसाय शुरू करने वालों को बिना किसी गारंटी के वित्त प्रदान करती हैं. अब तक 11 करोड़ से अधिक लोगों ने सूक्ष्म व्यवसाय शुरू किए हैं.

ये किसी खास श्रेणी तक सीमित नहीं हैं बल्कि समावेशी विकास का लक्ष्य रखते हैं. सभी समुदायों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करके, सरकार अंतर को कम करने और एकता की नींव रखने की कोशिश कर रही है. मोदी सरकार का ये नवाचार सामाजिक न्याय की एक व्यापक अवधारणा की जरूरत बताता है, जो सिर्फ जाति पहचान के बजाय, कई तरह के भेदभाव को भी पहचानता है. गरीबी, लिंग, क्षेत्र, विकलांगता और डिजिटल भेदभाव को भी इसके दायरे में लाना होगा. तभी सामाजिक न्याय सामाजिक एकता की सच्ची सीढ़ी बन सकता है.

स्वच्छता के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जनजागरूकता अभियान चलाते लोग.

स्वच्छता के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जनजागरूकता अभियान चलाते लोग.

नीतियों में आता बंधुत्व का भाव

नरेंद्र मोदी की सरकार ने पहली बार बंधुत्व के भाव पर पुनर्विचार किया और उसे कार्यक्रमों और नीतियों में लाने की कोशिश की. जहां सामाजिक न्याय असमानता को दूर करता है, वहीं सामाजिक एकता का दूसरा जरूरी स्तंभ बंधुत्व है. संविधान ने स्वतंत्रता और समानता के साथ भाईचारे को भी रखा, लेकिन व्यवहार में, इस पर सबसे कम ध्यान दिया गया है. भाईचारा नागरिकों के बीच सम्मान, विश्वास और भावनात्मक एकजुटता को बढ़ावा देने के बारे में है. पिछले दशक में, मोदी सरकार ने इस भावना को मजबूत करने के लिए कई प्रयास किए हैं, जैसे 'जनजातीय गौरव दिवस' और खास दिनों का स्मरण, जिससे अलग-अलग समूह खुद को पहचाना और गौरवान्वित महसूस कर सकें. इस तरह की पहलें भावनात्मक रूप से महत्वपूर्ण हैं. ये नागरिकों को साझा पहचान की याद दिलाती हैं.

भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और विशाल समाज में, राज्य भाईचारे के लिए माहौल बनाने में एक मुख्य भूमिका निभाता है. 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' जैसी पहलें, जो राज्यों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देती हैं या 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' का निर्माण, सामूहिक पहचान की याद दिलाते हैं. मोदी सरकार ने इन प्रतीकात्मक उपायों के साथ, योजनाओं, कार्यक्रमों या समुदाय आधारित परियोजनाओं के माध्यम से और भी ज्यादा दिखाई देने वाले और ठोस कदम उठाए हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी में भाईचारे को शामिल कर रहे हैं. भाईचारे और सामाजिक न्याय के इस नए दायरे के साथ सामाजिक एकता का भाव स्थापित करने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुआ है. जिसे भविष्य में और दृढ़ता मिलेगी.

डिस्केलमर: लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र पढ़ाते हैं. इस लेख में दिए गए विचार उनके निजी हैं, उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. 

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com