भारत माता की गोद में पलने वाली विशाल जनजातीय परंपरा इस देश की प्राचीनता का प्रमाण है. जनजातीय समाज की प्रकृति केंद्रित जीवन व्यवस्था सनातन चरित्र की जीवंत अभिव्यक्ति भी है. इस सनातन चरित्र पर जब भी अतिक्रमण का प्रयास हुआ, तो जनजातीय समाज स्वधर्म, संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा के लिए खड़ा हो गया. इसी जनजातीय सभ्यता के ध्रुव तारे (धरती आबा) भगवान बिरसा मुंडा का जन्म उलीहातू गांव में 15 नवंबर, 1875 को हुआ था. इस दिन को भारत में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 10 नवंबर, 2021 की कैबिनेट बैठक में भगवान बिरसा मुंडा की जन्म जयंती को 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की. भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर केंद्र सरकार जनजातीय नायकों के पराक्रम, दूरदर्शिता और योगदान को याद करने के लिए 1-15 नवंबर तक जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा मना रही है. भगवान बिरसा मुंडा की जयंती मनाते हुए भारतीय समाज धरती आबा के स्वतंत्रता संघर्ष को याद करता है. समाज अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना को नमन करता है. इसी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना की रक्षा के लिए भगवान बिरसा मुंडा ने 25 साल की आयु में अपने प्राणों को भारत माता और सनातन की बलिवेदी पर समर्पित कर दिया था. भगवान बिरसा मुंडा अंग्रेजी हुकूमत और मिशनरियों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करने वाले अग्रणी नायकों में से हैं.
भगवान बिरसा मुंडा जब जर्मन मिशनरी विद्यालय में अध्ययन कर रहे थे, तब अंग्रेजी शिक्षक डॉक्टर नोटरॉट ने मुंडा जनजाति को अपशब्द कहा. इसका विरोध करने पर भगवान बिरसा मुंडा को विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया था. भगवान बिरसा मुंडा ने जनजातीय गौरव और स्वाभिमान को क्षणिक लाभ से ऊपर रखा. विद्यालय से निष्कासन ने भगवान बिरसा मुंडा के सामने अंग्रेजी मिशनरियों के वास्तविक चरित्र को स्पष्ट कर दिया. अंग्रेजों द्वारा लाई गई जमींदारी व्यवस्था ने जनजातीय समाज को जल, जंगल और जमीन से वंचित करने का प्रयास किया. इसके परिणामस्वरूप भगवान बिरसा मुंडा ने जनजातीय समाज को एकत्र करके अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह कर दिया.
स्वधर्म की रक्षा,आध्यात्मिक प्रतिरोध
भगवान बिरसा मुंडा का संघर्ष सिर्फ जमीन का संघर्ष नहीं था, अपितु यह स्वधर्म की रक्षा और सनातन चेतना की रक्षा का युद्ध था. जब भारत में मतांतरण की शक्तियां मजबूत थीं और जनजातीय समाज को मतांतरित कर रही थीं, तो भगवान बिरसा मुंडा ने अपनी सनातन जड़ों को मजबूत करने की जिम्मेदारी उठाई. उन्होंने मतांतरण के विरोध में 'बिरसैत' पंथ की स्थापना की, जिसका मूल आधार शुचिता और 'सिंगबोंगा' (सूर्य देव) की उपासना में निहित था.
बिरसा मुंडा ने जनजातीय समाज को अपनी परंपराओं की ओर लौटने का संदेश देते हुए जनजातीय समाज में पुनः सांस्कृतिक चेतना का प्रवाह किया. उनका यह प्रयास जनजातीय समाज की राष्ट्रीय अस्मिता को सुरक्षित रखने में एक मील का पत्थर साबित हुआ. यह निडर, निर्भीक, ऊर्जावान नेतृत्व राजनीतिक और सांस्कृतिक आक्रमण के विरुद्ध खड़े होने की ऊर्जा का दीर्घकालीन प्रेरणास्रोत बना.
भगवान बिरसा मुंडा का विद्रोह 'बुआ दिशुम, अबुआ राज' (हमारा देश, हमारा राज) के नारे पर केंद्रित था. यह नारा भगवान बिरसा मुंडा के दर्शन को भी प्रदर्शित करता है. उनके इस नारे ने घोषणा की कि इस राष्ट्र की अस्मिता में जनजातीय संस्कृति का योगदान सर्वोपरि है. समाज को संगठित होकर सशस्त्र विद्रोह के आह्वान ने यह स्पष्ट कर दिया कि जल, जंगल, जमीन (ट्राइबल त्रयी) पर जनजातीय समाज का प्राकृतिक अधिकार है. यह भूमि राष्ट्रीय धरोहर है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार-पुंज में यह मान्यता सदैव रही है कि जनजातीय समाज इस राष्ट्र की मूल पहचान और संस्कृति की रक्षक है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जनजातीय समाज का जीवन सुगम बनाने और मुख्यधारा में लाने के साथ-साथ जनजातीय समाज के आत्मनिर्णय के अधिकार "Right to self-determination" का सदैव रक्षक रहा है. संघ एक लाख एकल विद्यालयों के माध्यम से जनजातीय समाज को शिक्षित करता है और उनकी चेतना और अस्मिता को सुनिश्चित करता है, जो कि भगवान बिरसा मुंडा का ध्येय था. भगवान बिरसा मुंडा का संघर्ष राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा का संघर्ष था, जहां वे जनजातीय संस्कृति की विशिष्टता को बनाए रखते हुए समग्र राष्ट्र के लिए लड़ रहे थे.
मिशनरी षड्यंत्र और जनजातीय स्वधर्म पर संकट
ईसाई मिशनरियां जनजातीय समाज की गरीबी का दोहन कर उन्हें धर्मांतरित कर रही हैं. विशेषकर छोटा नागपुर पठार, केरल, नगालैंड, झारखंड और गुजरात के जनजातीय समाज को ईसाइयत की ओर धकेला जा रहा है. छोटे राजनीतिक लाभ के लिए भारत के दक्षिणी भाग में मिशनरियों को प्राप्त राजनीतिक संरक्षण इसे और विषाक्त बनाता है. जनजातीय समाज प्रकृति केंद्रित समाज है, उसे ईसाइयत (एकेश्वरवादी विचार जो सत्य की अन्य संभावनाओं को नकार देता है) की ओर धकेलना मानवता के लिए एक संकट उत्पन्न करता है. भगवान बिरसा मुंडा का जीवन जनजातीय समाज के ईसाइयत की ओर धकेले जाने के विरोध में रहा. ईसाई मिशनरियां जनजातीय समाज को एक संख्या के रूप में देखती हैं, जिन्हें अंग्रेजी शिक्षा और स्वास्थ्य सहायता के माध्यम से सहजता से ईसाई बनाया जा सकता है. मतांतरण की शक्तियां जनजातीय समाज को उनकी अस्मिता, स्वधर्म और संस्कृति से वंचित करने का कलुषित प्रयास कर रही हैं, जिसका प्रतिकार राष्ट्रीय चेतना को सुरक्षित रखने के लिए अहम है.
जनजातीय समाज और राष्ट्र-निर्माण
जब भारत अपने अमृत काल की ओर अग्रसर है, उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में 'जनजातीय गौरव दिवस' और 'जनजातीय गौरव वर्ष पखवाड़ा' मनाया जाना यह प्रदर्शित करता है कि सरकार धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के स्वप्न को साकार करने के लिए प्रतिबद्ध है. वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में भी जनजातीय कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जा रही है. माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के प्रयास से जनजातीय परंपरा को सुरक्षित रखने के लिए, उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में थारू जनजातीय म्यूजियम का निर्माण कराया गया और बिजनौर, मिर्जापुर, सोनभद्र में जनजातीय म्यूजियम का निर्माण प्रस्तावित है. मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार के साथ एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय के निर्माण को प्रदेश में गति प्रदान कर रही है. अंतरराष्ट्रीय जनजाति भागीदारी उत्सव को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री जी ने 'एक भारत-श्रेष्ठ भारत' के निर्माण में भगवान बिरसा मुंडा जी के विचारों को प्रेरणा स्रोत के रूप में स्वीकार किया था. जनजातीय समाज के शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सशक्तिकरण के मार्ग में पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करना हमारे स्वधर्म, संस्कृति और स्वाभिमान के लिए आवश्यक है. धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के जन्मजयंती पखवाड़े में हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम उनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग पर चलकर ऐसे भारत का निर्माण करेंगे, जहां सभी को अपने गौरवशाली अतीत पर गर्व हो और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में अपना योगदान दे सकें.
डिस्क्लेमर: लेखक उत्तर प्रदेश सरकार में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और समाज कल्याण विभाग के राज्य मंत्री हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार, उनके निजी हैं,उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.