प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेलीविजन पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में आज सुबह नाटकीय घटनाक्रम के तहत तीनों कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया. किसान करीब एक साल से इन तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत थे. मोदी ने हमेशा अपने आपको ऐसे मजबूत नेता के तौर पर पेश किया है, जो कभी भी दबाव के आगे नहीं झुकता है. ऐसे में यह स्पष्ट यू-टर्न, जिसके साथ ही उनकी हैरत भरी क्षमायाचना भी सामने आई, उसने इस पूरी घोषणा को पूरी तरह अलग दिखाया है.
तो किस बात ने मोदी को झुकने के लिए मजबूर किया ?
वजह चुनावी समीकरण है और किसानों की वह गंभीर रणनीतिक धार, जो उन्होंने यूपी और पंजाब में दिखाई है, ऐसे दो राज्य जो चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं. यूपी में बीजेपी के लिए बेहतरीन जीत बेहद अहम है, जो 2024 में दिल्ली की सत्ता में रिकॉर्ड तीसरे कार्यकाल की योजना का हिस्सा है. गृह मंत्री अमित शाह ने भी खुले तौर पर यह स्वीकार करते हुए कहा है कि अगर आप 2024 में मोदी को लाना चाहते हैं तो 2022 में योगी को दोबारा लाना होगा.
लेकिन पहले पंजाब में कृषि कानूनों के खिलाफ गुस्से से पड़ने वाले असर की बात करें. विपक्ष द्वारा विस्तृत चर्चा की मांग के बावजूद कृषि कानूनों को संसद से पारित करा लिया गया, इस कारण अकाली दल ने सितंबर 2020 में बीजेपी सरकार से समर्थन वापसले लिया. इससे दोनों दलों के बीच कई दशकों पुराना गठबंधन टूट गया. इसका नतीजा ये हुआ कि पीएम मोदी की पार्टी पंजाब में अकेले चुनाव लड़ रहे हैं, जहां बीजेपी के पास शहरी हिन्दू इलाकों में ही कुछ समर्थन है. आक्रोशित किसानों ने उन्हें राज्य के ज्यादातर हिस्सों में प्रचार ही नहीं करने दिया.
अब जब कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान हो गया है, तो बीजेपी कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ गठबंधन कर सकती है, जिन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के महीने भर बाद पार्टी छोड़ दी थी. अभी तक अमरिंदर सिंह ने नई पार्टी बनाने का ऐलान किया है, जो अभी भी पंजीकृत होना बाकी है. लेकिन उन्होंने संकेत दिया है कि बीजेपी के साथ किसी तरह की साझेदारी से उन्हें इनकार नहीं है. हालांकि कृषि कानूनों ने आधिकारिक तौर पर गठबंधन से उन्हें रोके रखा था. इनकी वापसी होते ही अमरिंदर सिंह के लिए राजनीतिक तौर पर बीजेपी के साथ आना अनुकूल हो सकता है. वो पहली शख्सियतों में से हैं, जिन्होंने पीएम मोदी को इसके लिए धन्यवाद दिया. उन्होने विशेष तौर पर पीएम मोदी की किसानों से क्षमा याचना का भी उल्लेख किया, जो बीजेपी के साथ उनके गठबंधन के द्वार खोलता है.
इन कृषि कानूनों ने पंजाब में बीजेपी के लिए बहुत ज्यादा मुश्किलें खड़ी कर दी थीं, जहां जाट सिखों का बाहुल्य है और निर्णायक स्थिति में हैं. अमरिंदर सिंह की जगह कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री नियुक्त किया था, लेकिन वो अभी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की ओर से असंतोष की लहरों को लेकर अभी भी परेशानी झेल रही है. सिद्धू को लगता है कि वो मुख्यमंत्री पद पर उनका अधिकार बनता है और वो लगातार चन्नी या अन्य जो भी उनकी राह में रोड़ा बनेगा, उसके खिलाफ काम करते रहेंगे.
आम आदमी पार्टी पंजाब में अच्छे प्रदर्शन की ओर है, लेकिन वो अभी तक पंजाब में मुख्यमंत्री पद का चेहरा तय नहीं कर पाई है. यही कारण है कि उसका प्रचार धीरे-धीरे मजबूती खो रहा है. अकाली दल को कृषि कानूनों के पारित होने के वक्त बीजेपी के साथ का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. लेकिन पीएम मोदी के इस कदम के साथ बीजेपी यह भरोसा कर रही है कि उसे पंजाब चुनाव में पूरी तरह सफाये का सामना नहीं करना पड़ेगा.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश जाट बाहुल्य इलाका है, जहां दो चुनावों- (2014 में जहां मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बीजेपी के पक्ष में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण देखा गया) और 2019 के लोकसभा चुनाव में जहांजाट एकतरफा तौर पर बीजेपी की झोली में गिरा. लोकनीति सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार, 91 फीसदी जाट वोट बीजेपी के खाते में गिरा. किसानों के नए कृषि कानूनों पर आक्रोश का असर जाटों का बीजेपी के प्रति रुख पर भी असर पड़ा. लेकिन आज का रोलबैक उन्हें वापस अपने पाले में लाने की कवायद की ओर बड़ा कदम है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव जाटों के बीच पकड़ रखने वाली रालोद के साथ गठबंधन करने के साथ समुदाय के लोगों का गुस्सा भुनाने का प्रयास कर रहे थे. दोनों ही लंबे समय से कृषि कानूनों को हथियार बनाकर बीजेपी पर हमले कर रहे थे. बीजेपी के एक नेता ने कहा, पार्टी अखिलेश यादव की रैलियों में उमड़ रही भीड़ को लेकर भी भौंचक थी. इससे पहले अक्टूबर में लखीमपुर खीरी में मंत्री अजय मिश्रा की गाड़ी से चार किसानों के कुचले जाने की घटना से किसान आंदोलन फिर सुर्खियां बनने लगा था. योगी आदित्यनाथ ने इस घटना के बाद हालात को संभालने की भरपूर कोशिश की, लेकिन मिश्रा को केंद्रीय मंत्री बने रहने की इजाजत के साथ बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं.
मोदी अब अगले तीन दिन यूपी में बिताएंगे और वो चुनाव तक वहां तीन हफ्ते में वहां का दौरा करेंगे. यूपी के चुनाव में चार महीने से कम वक्त बचा है. बीजेपी के एक रणनीतिकार ने कहा, हम उम्मीद करते हैं कि मोदी और योगी हमारे पाले में वोटरों के रुख को मजबूत करेंगे. मोदी पश्चिमी यूपी और महाराज पूर्वी यूपी में. कृषि कानूनों की वापसी ने यह रेखांकित किया है कि आंतरिक सर्वे के बावजूद यूपी चुनाव में जीत उसके लिए मुश्किल होगी. यह सात साल में दूसरा मौका है, जब मोदी सरकार ने अपनी किसी बड़ी महात्वाकांक्षी नीति को वापस लिया हो. पहला वर्ष 2015 का भूमि अधिग्रहण कानून था. इसके जरिये कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर सूट बूट की सरकार का नारा देकर हमला बोला था.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं…)
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