उत्तराखंड के धराली गांव में हाल की आपदा ने यह साफ कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की आशंका नहीं, हम इससे जूझने लगे हैं. इस मुश्किल समय में पीटर स्मेटासेक का भीमताल मॉडल जलवायु परिवर्तन की मुश्किलों से जूझने के लिए एक उदाहरण है. यह मॉडल दिखाता है कि तितलियों और देशी जंगलों की रक्षा करने से कैसे हम हिमालयी पारिस्थितिकी को बचा सकते हैं.
पांच अगस्त 2025 को उत्तराखंड के धराली गांव में आई आपदा से जान-माल की भारी हानि हुई. सड़कें छतिग्रस्त हो गईं. इससे राहत और बचाव कार्य पहुंचाने में भारी मुश्किलें आईं. यह घटना सिर्फ एक प्राकृतिक त्रासदी नहीं थी, बल्कि उन लापरवाहियों का परिणाम थी, जिन्हें हम विकास के नाम पर नजरअंदाज करते हैं.ऐसी ही घटनाओं की पृष्ठभूमि में भीमताल में रह रहे पीटर स्मेटासेक का कार्य एक सकारात्मक उदाहरण बनकर उभरता है. पीटर भारत के प्रमुख तितली विशेषज्ञ हैं. वो बिना किसी प्रचार-प्रसार के तितलियों और देसी जंगलों के संरक्षण का काम कर रहे हैं.
भारत का सबसे बड़ा निजी तितली संग्रह
उत्तराखंड के भीमताल में स्थित तितली अनुसंधान केंद्र भारत का सबसे बड़ा निजी तितली और कीट संग्रह है, जिसने तितली विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इसने भारत की 10 फीसदी से अधिक रेशम पतंग प्रजातियों की खोज की और उनका नामकरण किया. साल 2004 में पीटर ने एक तितली प्रजाति का नामकरण करते हुए उसे Neptis Miah Varshneyi (नेप्टिस मिया वर्ष्नेयी) नाम दिया. साल 2015 में केंद्र ने भारत की तितलियों की सूची तैयार की, जिसे 30,000 से अधिक बार डाउनलोड किया गया. इससे पहले साल 1994 में हिमालयी तितलियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और आवारा कुत्तों का जंगली जानवरों पर असर जैसे विषयों पर शोध किया गया. यह केंद्र 'बायोनोट्स' नामक मुफ्त वैज्ञानिक पत्रिका भी प्रकाशित करता है.
पीटर के पिता फ्रेडरिक स्मेटासेक,चेक गणराज्य देश के थे. उन्होंने एक बार हिटलर को मारने की कोशिश की थी. नाजी, फ्रेडरिक ने यूरोप से भागकर साल 1940 के आसपास भारत में नई जिंदगी शुरू की. वर्ष 1951 में उन्होंने भीमताल में एक बंद पड़ा चाय बागान खरीदा. तब से आज तक स्मेटासेक परिवार ने इस इलाके की प्रकृति को बचाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं.पीटर बताते हैं कि उनके पिता ने कभी 'संरक्षण' शब्द का प्रयोग नहीं किया, उन्हें बस यह पता था कि जंगल को ठीक होने के लिए मानव हस्तक्षेप से मुक्त समय और स्थान चाहिए.

पीटर स्मेटासेक के केंद्र ने 2015 में भारत की तितलियों की सूची तैयार की थी.
जंगल की आग और ओक का महत्व
साल 1984 में बागान के जंगल में लगी आग ने ओक वन को नष्ट कर दिया, जिसके कारण एक गांव का पानी का स्रोत भी सूख गया. इसने पीटर को सिखाया कि ओक के जंगल पानी की व्यवस्था और जैव विविधता के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं. उनकी छतरी मिट्टी को नम रखती है, जो नदियों के बहाव को बनाए रखती है. हिमालय से निकलने वाली गंगा जैसी नदियां जंगलों पर निर्भर हैं और ओक जैसे देशी जंगल 1200 से अधिक पौधों की प्रजातियों को सहारा देते हैं.
पीटर का लक्ष्य केवल तितलियां बचाना ही नहीं है बल्कि हिमालयी पर्यावरण तंत्र को संरक्षित करना है, जो हिमालय से निकलने वाली नदियों को जीवित रखता है. पीटर कहते हैं कि भारत में स्वस्थ जंगल की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है और उसके बिना नदियों को बचाना असंभव है. देशी ओक जंगल पानी और जैव विविधता के लिए जरूरी हैं, जबकि इस क्षेत्र में लगे पाइन के जंगल इस काम में अप्रभावी हैं. तितलियां और पतंगे जंगल की सेहत के संकेतक हैं और उनकी अनुपस्थिति पर्यावरण की खराब स्थिति दर्शाती है.पीटर का मानना है कि तितलियों के अध्ययन से जंगल की पूरी सेहत समझी जा सकती है.
हिमालय की रक्षा का स्थानीय रास्ता
धराली जैसी आपदाएं हमें चेतावनी देती हैं कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हमें स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की गहराई से समझ विकसित करनी होगी. पीटर स्मेटासेक का भीमताल मॉडल दिखाता है कि पारंपरिक ज्ञान, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और धैर्य से हिमालय जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी आशाजनक बदलाव लाए जा सकते हैं. अगर जंगल बचेंगे, तो नदियां बचेंगी और अगर नदियां बचेंगी,तभी जीवन बचेगा.
अस्वीकरण: सोनाली मिश्र एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और पर्यावरण के मामलों पर लिखती हैं. हिमांशु जोशी साहित्य, समाज और पर्यावरण विषयों पर लिखते रहते हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखकों के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.