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This Article is From Jul 18, 2019

कुलभूषण जाधव पर भारत के पक्ष में आया इंटरनेशनल कोर्ट का फ़ैसला

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 18, 2019 00:46 am IST
    • Published On जुलाई 18, 2019 00:46 am IST
    • Last Updated On जुलाई 18, 2019 00:46 am IST

नीदरलैंड के हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी है. पाकिस्तान को अब काउंसलर एक्सेस भी देना होगा. पाकिस्तान से कहा गया है कि वह अपने फैसले की समीक्षा करे और पुनर्विचार करे. 8 बिन्दुओं पर दोनों देशों के बीच मतभेद था. एक बिन्दु पर सभी 16 जजों ने वोट किया जिसमें पाकिस्तान के भी जज शामिल थे. बाकी सात बिन्दुओं पर 16 में 15 जजों ने भारत के पक्ष में फैसला दिया है. पाकिस्तान के जज ने खिलाफ में मत दिया. दोनों पक्षों के लगाए गए आरोपों को सुनने के बाद कोर्ट ने सिलसिलेवार तरीके से आदेश दिया है. सिर्फ फांसी की सज़ा पर रोक नहीं लगी है बल्कि कई बिन्दुओं पर पाकिस्तान को गलत पाया गया है. जैसे कोर्ट ने पाकिस्तान के इस आरोप को खारिज कर दिया कि भारत कुलभूषण जाधव के भारतीय होने का प्रमाण नहीं दे रहा है. कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तान और भारत दोनों ही कुलभूषण जाधव को भारतीय मानते हैं इसलिए सबूत की कोई ज़रूरत नहीं है. कोर्ट ने भारत के भी चार में से तीन आग्रहों को ठुकरा दिया.

भारत ने कोर्ट से मांग की थी कि पाकिस्तान की मिलिट्री कोर्ट के फैसले को रद्द किया जाए. पाकिस्तान को आदेश दिया जाए कि वह मिलिट्री कोर्ट के फैसले को रद्द करे और जाधव को सुरक्षित भारत भेजे. कोर्ट ने इसे नहीं माना. लेकिन कई बिन्दुओं पर कोर्ट ने पाकिस्तान के रवैयों और दलीलों को ठुकराया है. कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तान का यह आरोप कि भारत ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में लाकर प्रक्रियाओं का दुरुपयोग किया है. इसलिए कोर्ट भारत के इस आग्रह को खारिज करे. कोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया. कोर्ट ने यह भी कहा कि पाकिस्तान ने जाधव की गिरफ्तारी के बाद उनके अधिकारों की जानकारी नहीं दी जो उसे करना चाहिए था. यही नहीं जाधव की गिरफ्तारी के तीन हफ्ते के भीतर भारत को सूचना देनी चाहिए थी. पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया. पाकिस्तान ने काउंसलर एक्सेस नहीं देकर अधिकारों का उल्लंघन किया है.

इस तरह कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तान का दायित्व बनता है कि वह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार जो गलत काम करता आ रहा है वो न करे और जाधव को उसके अधिकारों के बारे में जानकारी दे. इसमें देरी नहीं होनी चाहिए. भारत के काउंसलर अधिकारी को जाधव से मिलने दिया जाए ताकि वे जाधव को कानूनी सहायता उपलब्ध करा सकें.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि हम इस फैसले का स्वागत करते हैं. सत्य और न्याय की जीत हुई है. तथ्यों के आधार पर फैसला देने के लिए आईसीजे को बधाई. मुझे भरोसा है कि जाधव को न्याय मिलेगा. हमारी सरकार सभी भारतीयों की सुरक्षा और कल्याण के लिए हमेशा काम करती रहेगी. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने स्वागत किया है और प्रधानमंत्री को भी बधाई दी है. भारत की तरफ से वकील हरीश साल्वे एक रुपये की फीस पर यह केस लड़ रहे थे. 8 मई 2017 को भारत ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में यह मुकदमा दायर किया था. 18 मई 2017 को कोर्ट ने अंतिम फैसला आने तक फांसी की सज़ा पर रोक लगा दी थी. पाकिस्तान ने आदेश को माना और फांसी की सज़ा पर रोक लगा दी थी. पाकिस्तान की सबसे बड़ी दलील थी कि जो व्यक्ति जासूसी करते हुए पकड़ा जाएगा उस पर वियना कंवेंशन का आर्टिकल 36 लागू नहीं होगा. भारत की दलील थी कि वियना कंवेशन में किसी प्रकार की छूट नहीं है. कोर्ट ने कहा कि भारत ने 1969 के वियना कंवेंशन के लॉ ऑफ ट्रीटी का पार्टी नहीं है. पाकिस्तान ने 1970 में हस्ताक्षर किया था मगर इसे लागू नहीं किया था. कोर्ट ने अपने हिसाब से मतलब निकाला और पाकिस्तान की दलील को खारिज कर दिया. भारत ने इस फैसले को बड़ी जीत बताया है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे भारत की बड़ी जीत बताया है. पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी कई ट्वीट किए. प्रधानमंत्री मोदी को बधाई दी और इसे भारत की बड़ी जीत बताई. इस केस के लिए सुषमा स्वराज ने वकील हरीश साल्वे को भी बधाई दी. साल्वे मात्र एक रुपये की फीस पर यह केस लड़ रहे थे.

फांसी की सज़ा पर रोक लगी. कुलभूषण को काउंसलर एक्सेस मिलेगा और उसे कानूनी सहायता भी मिलेगी. लेकिन इस फैसले का स्वागत पाकिस्तान में भी हो रहा है. पाकिस्तान की मीडिया का कहना है कि इंटरनेशनल कोर्ट ने मिलिट्री कोर्ट के फैसले को रद्द नहीं किया. फैसले के पेज नंबर 37 पर पैराग्राफ 137 पढ़ना चाहिए. भारत ने कोर्ट से कहा कि मिलिट्री कोर्ट के फैसले को रद्द कर दे. इसे सिविल कोर्ट में हस्तांतरित करे. कोर्ट ने नहीं माना है. सिर्फ इतना कहा है कि फांसी के फैसले की समीक्षा की जाए. कोर्ट ने कहा है कि वियना कंवेंशन का उल्लंघन हुआ है इसके लिए एक मात्र रास्ता है कि फैसले को रद्द कर दिया जाए. आशिंक रूप से या पूर्ण रूप से. मतलब यह हुआ कि अगर वियना कंवेशन का उल्लंघन हुआ है तो उसकी समीक्षा होगी. इसे भी राहत माना जाना चाहिए.

फैसले के 145वें पैराग्राफ में जजों ने लिखा है कि पाकिस्तान के वकील ने आश्वासन दिया है कि जाधव को फ्री एंड फेयर ट्रायल मिलेगा. यह पाकिस्तान के संविधान की बुनियाद है. न्यायिक फैसले की समीक्षा होती है. इसके लिए पाकिस्तान ने 2018 के पेशावर हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया कि कई बुनियादी मामलों में मिलिट्री कोर्ट के फैसले में दखल दिया जा सकता है. पहला जब कोई प्रमाण न हो, दूसरा, सबूत पर्याप्त न हो, तीसरा मिलिट्री कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर गया हो और चौथा कानून और तथ्यों की गलत व्याख्या. इन चार मामलों में हाईकोर्ट मिलिट्री कोर्ट के फैसले को पलट सकता है. इंटरनेशनल कोर्ट ने ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी फैसले की समीक्षा या पुनर्विचार के मामले में फ्री एंड फेयर ट्रायल के सिद्धांतों का आदर करना पड़ता है. कोर्ट मानता है कि पुनिर्विचार और समीक्षा के दौरान जाधव के अधिकारों के उल्लंघन के मामलों पर विचार होगा और उसे दूर किया जाएगा.

पेज नंबर 39 के पैराग्राम 146 में यह भी लिखा है कि यह पाकिस्तान पर निर्भर करेगा कि फैसले की समीक्षा और पुनर्विचार का वह कौन सा तरीका अपनाता है. समीक्षा और पुनर्विचार कई तरीके से किया जा सकता है. ऐसा भी नहीं है कि तरीका चुनने के विकल्प की आज़ादी मनमाने तरीके से मिली हुई है. कुलभूषण यादव को मार्च 2016 में पाकिस्तान ने जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया था. भारत ने इसे कभी स्वीकार नहीं किया. एक साल बाद पाकिस्तान की सैनिक अदालत ने फांसी की सज़ा सुना दी. पाकिस्तान का कहना था कि उसकी सेना ने जाधव को बलूचिस्तान से गिरफ्तार किया था. जाधव ईरान से पाकिस्तान में घुसने की कोशिश कर रहा था. भारत का कहना है कि ईरान से जाधव को अगवा किया गया था. जाधव नौसेना से रिटायर होने के बाद अपने बिजनेस के लिए गए थे. फरवरी में भी पुलवामा आतंकी हमले के आस-पास इस मामले में सुनवाई हुई थी. भारत ने आरोप लगाया था कि जाधव को मोहरा बनाया जा रहा है ताकि वह आतंक के समर्थन के आरोप से बच सके.

भारत चीन का नाम बहुत फ्लैश हो रहा है कि चीन के जज ने भी वोट डाला. इससे हम अपनी ही कामयाबी को हल्का कर देते हैं. चीन का नाम अलग से रेखांकित करने से ऐसा लगता है कि जजों ने अपना फैसला अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के आधार पर दिया है. जबकि यह फैसला अंतरराष्ट्रीय कानून और परंपरा के आधार पर दिया गया है. भारत ने यह जीत कोर्ट के भीतर अपनी बेहतरीन कानूनी तैयारियों के दम पर हासिल की है. 16 जजों में भारत और पाकिस्तान के भी जज थे. पाकिस्तान के जज ने अलग मत दिया. गनीमत है कोई चीन की तरह भारत का नाम इस तरह से नहीं ले रहा है कि भारत के जज ने भारत के पक्ष में वोट किया.

चीन के अलावा 16 जजों में सोमालिया, स्लोवाकिया, फ्रांस मोरक्को, ब्राज़ील, अमरीका, इटली, यूगांडा, जमैका, ऑस्ट्रेलिया, रूस, लेबनान, जापान के भी जज शामिल थे. इन सबका नाम भी आदर से लिया जाए. इंसाफ कहीं भी हो, भारत से लेकर दुनिया में कहीं भी, अच्छा ही लगता है. आज की खुशी में यह बात भी शामिल है.

फैसले की कापी एक ही है. वो इंटरनेट के ज़रिए भारत में भी उपलब्ध है और पाकिस्तान में भी. मगर दोनों मुल्कों की खबरों में अलग अलग चीज़ों पर ज़ोर है. जैसे डॉन न्यूज़ ने अपनी हेडलाइन में लिखा है कि आईसीजे ने जाधव को वापस करने की भारत की मांग ठुकरा दी लेकिन काउंसलर एक्सेस दे दिया. मगर खबर के भीतर फांसी की सज़ा पर रोक की बात लिखी गई है. एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा है कि आईसीजे ने जाधव को बरी करने और वापस भेजने की मांग ठुकरा दी. पाकिस्तान में ज़ोर है कि भारत की मांग ठुकरा दी गई है दूसरी तरफ भारत के अखबार हिन्दू की हेडलाइन है कि कोर्ट ने पाकिस्तान से सज़ा की समीक्षा के लिए कहा. इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि कोर्ट ने भारत को काउंसलर एक्ससेस दिया, पाकिस्तान से कहा कि फांसी की समीक्षा करे.

इस फैसले पर पाकिस्तान की आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. आज पाकिस्तान में मुंबई हमले का मास्टर माइंड हाफिज़ सईद गिरफ्तार कर लिया गया. पाकिस्तान के काउंटर टेरर डिपार्टमेंट ने हाफिज सईद को गिरफ्तार किया और उसे एंटी टेररिज़्म कोर्ट में पेश किया गया. जेल भेज दिया गया है. हाफिज़ सईद के संगठन पर आतंकी गतिविधियों में वित्तीय मदद का आरोप है. पाकिस्तान के इस फैसले का अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने स्वागत किया है. अपने ट्विट में कहा है कि 'मुंबई हमले के 10 साल बाद तथाकथित मास्टर माइंड हाफिज़ सईद को पाकिस्तान में अरेस्ट कर लिया गया है। इसे खोजने के लिए दो सालों से दबाव बनाया गया था.'

इसकी व्याख्या कैसे की जाए. ट्रंप पाकिस्तान पर अपने दबाव की बात कर रहे हैं या भारत की जीत बता रहे हैं या फिर पाकिस्तान इन कदमों से फिर से अमरीका के करीब जाना चाहता है. या अमरीका फिर से पाकिस्तान के करीब आना चाहता है. बहुत सी दलीलें हैं. आपको बस ये याद दिला दें कि मार्च 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने हाफिज़ सईद की अपील को रिजेक्ट कर दिया था कि उसका नाम प्रतिबंधित संगठन की सूची से हटाया जाए. लेकिन तब पाकिस्तान ने हाफिज़ सईद का बचाव नहीं किया था. मई 2019 में संयुक्त राष्ट्र ने मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी सूची में डाल दिया था. दिसंबर 2008 में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने मुंबई हमले के बाद हाफिज सईद का नाम अतंरराष्ट्रीय आतंकियों की सूची में डाल दिया था. एक जनवरी 2019 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई थी. जिसमें उन्होंने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र ने जिन संस्थानों को प्रतिबंधित किया है, उनके खिलाफ जांच का अभियान चलेगा.

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