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This Article is From Jul 13, 2016

उन्हें लिखने दें : सच सिर्फ उतना ही नहीं जितना आप जानते हैं...

Dr Vijay Agrawal
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 13, 2016 15:01 pm IST
    • Published On जुलाई 13, 2016 15:01 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 13, 2016 15:01 pm IST
‘‘तुम मेरा क्षरण नहीं कर सकते, क्योंकि मैं अक्षर हूं। तुम्हारे चंगेजी और नारिदाशाही हुक्म चाहे सैकड़ों लाइब्रेरियों को जलाकर भले ही खाक कर दें, लेकिन मैं मरूंगा नहीं, क्योंकि मैं वहां नहीं, मैं तो लोगों के जेहन में रहता हूं; उस जेहन में, जो तुम्हारी आंखों को दिखाई नहीं देता और तुम्हारी तलवार की नोंक की जहां तक पहुंच ही नहीं है। तुम एक बामियान को नेस्तनाबूद करोगे, मेरी पीढ़ियों की मजबूत इस्पाती भुजाएं और कोमल उंगलियां हजारों बामियानों का सिलसिला बुन देंगी। यह मत भूलो कि तुम्हारी मौजूदगी न तो कल थी, और न ही कल रहेगी। मैं हमेशा रहूंगा, क्योंकि मैं अक्षर हूं, मैं ब्रह्मानंद सहोदर हूं।’’
    
यदि किताब के पास अपनी जुबान होती, तो कोर्ट के कटघरे में खड़ी होकर शायद वह अपनी सच्चाई को कुछ इसी तरह के अल्फाजों और अन्दाजों में बयां कर रही होती। लेकिन उसके पास कुछ तो ऐसा अनोखा है कि यह बेजुबान किताबें लाखों की जुबान बनकर बोलने लगती हैं, कभी खामोशी में तो कभी नारों में तब्दील होकर। और कभी-कभी तो ज़हीन लोगों की कलम की स्याही में भी उतरकर। कुछ ऐसा ही करिश्मा हुआ जस्टिस कौल के साथ कि जब वे चेन्नई की अदालत में बैठे हुए थे, तब उनके कलम ने यह अल्फाज़ बयां किए- ‘‘अगर आपको कोई किताब पसन्द नहीं है, तो उसे फेंक दीजिए। किसी किताब को पढ़ने की कोई मजबूरी नहीं है।’’आखिरी में इन शब्दों के साथ उन्होंने अपने इस फैसले का अंत किया कि ‘‘हम कहेंगे, लेखक को वह करने दें, जो वह अच्छे से करते हैं। उन्हें लिखने दें।’’

गौर कीजिये इन तीन आखिरी अक्षरों पर-
    -उन्हें (लेखक, कलाकार, रचनाकार, विचारक आदि-आदि)
    - लिखने (सोचना, बोलना, बनाना आदि)
    - दें। (स्तवंत्रता, भयमुक्तता, सहयोग, प्रोत्साहन आदि-आदि)
    
सच आता कहां से है? धार्मिक नेताओं से? राजनेताओं से? सच व्यक्त होता है, विचारों से। ये विचारक ही हैं, जो साहित्य और कला के जरिए अपने-अपने तरीके से सच को बताते रहते हैं। इसके बावजूद वे इस बात का दावा कतई नहीं करते कि ‘केवल यही सच है।’ यह दावा तो केवल वे लोग करते हैं, जो सच का ‘स’ और ‘च’ तक नहीं जानते। क्योंकि सच को जानना इस बात को जानना है कि इसे जाना ही नहीं जा सकता। इसीलिए किसी किताब के विरोध में न तो किताब लिखने वाला कभी खड़ा हुआ और न ही किताब पढ़ने वाला। यदि उसे कभी विरोध की जरूरत महसूस भी हुई, तो उसने अपनी लिखकर उसके बरक्स अपनी एक किताब रख दी। और इस तरह इंसानी जेहनियत लगातार आगे बढ़ती रही, एक ही दिशा में नहीं, कई-कई दिशाओं में। जब वह एक ही दिशा में बढ़ती है, तो आईएसआईएस बन जाती है, और जब इसका सफर कई दिशाओं में होता है, तो वह लोकतांत्रित हो जाती है।
    
लेकिन कुछ लोगों को पता नहीं कैसे और क्यूं, यह गलतफहमी हो जाती है कि सच वही है, जो वे जानते हैं। इतिहास में इस तरह के इक्के-दुक्के नहीं, बल्कि हजारों अफसाने दर्ज हैं। आज से लगभग साढ़े चार सौ साल पहले राजा और पोप; दोनों को भ्रम था कि सच का यदि कोई जानकर है, तो सिर्फ हम दोनों। नतीजन उन्होंने यह कहने वाले गैलीलियो को ताउम्र कैद की सजा सुना दी कि ‘‘सूरज स्थिर है। पृथ्वी घूम रही है।’’ गैलीलियो की मजबूरी थी। सच की कोई मजबूरी नहीं होती। सूरज और पृथ्वी दोनों ने इन दोनों अहंकारियों की हुकूमत और हुक्म को लात मारते हुए अपना काम जारी रखा, और आज तक जारी रखे हुए हैं। जब तक यह जारी रहेगा, गैलीलियो भी जीवित रहेंगे, क्योंकि वक्य विचारों को निरस्त तो कर सकता है, स्थगित तो कर सकता है, समायोजित भी कर सकता है, लेकिन मृत्युदंड नहीं दे सकता। वह अपने आगे के विचारों में उपस्थित रहता है, जैसे कि पुत्र में पिता। यही विचारों का डीएनए है।

अंत में एक बात और। लेखक जब विरोध करता है, जब वह विद्रोह करता है, तो उसका यह विरोध और विद्रोह स्वयं के प्रति भी होता है। उसकी नजर में इंसान होता है, इंसानियत होती है, कोई जाति और धर्म नहीं। उसकी तकलीफ केवल इतनी सी होती है कि वह खुद को इसी बृहत्तर इंसानी समाज का एक टुकड़ा मानकर उसकी बेहतरी के लिए कुछ अल्फाज उछाल देता है। तो यहां मेरी अर्ज केवल इतनी है कि ‘‘उसे उछालने दीजिए।’’

डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।


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