मैं कहां से शुरू करूं? साल की शुरुआत इस 'खौफनाक' खबर के साथ हुई कि हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के जिस जॉब के बारे में मैंने सोचा था कि वह मुझे मिल गया है, वास्तव में नहीं था. सात माह पहले, मैंने NDTV में अपनी नौकरी यह सोचते हुए छोड़ दी थी कि यह भारी दबाव वाले टेलीविजन के नॉन स्टाप 'न्यूज साइकल' से ब्रेक लेकर कुछ नया करने का अवसर है. जब मुझे पता चला कि जनवरी की उस सर्दी वाली रात में क्या हुआ है, तो मैं बेहद गुस्से, निराश और सदमे में थी. मैं इतने 'बड़े घोटाले' का शिकार आखिर कैसे बन सकती हूं? मुझे कैसे इसके बारे में पता नहीं चला? मैं एक साल तक उनके साथ संपर्क में थी जिनके बारे में मैं सोचती थी कि वे वास्तविक (Real) लोग हैं. उन्होंने मुझे डॉक्यूमेंट्स, लेटर्स, कांट्रैक्ट भेजे थे, उन्होंने मेरे बॉस को लिंक्स के साथ सिफारिश देने के लिए लिखा था (उन्हें भी नहीं लगा कि कुछ गड़बड़ है ). उस समय मैंने यह ब्लॉग NDTV के लिए यह बताने को लिखा था कि क्या हुआ था?
जब मुझे पता चला कि वास्तव में क्या हुआ है तो मैंने तुरंत इसे सार्वजनिक कर दिया. ऑनलाइन उपहास और मजाक को देखते हुए यह फैसला आसान नहीं था लेकिन मैं सच्चाई का सामना करना चाहती थी. मैंने सोशल मीडिया ट्रोल्स से कुछ ज्यादा उम्मीद नहीं की थी लेकिन कुछ लोग जिन्हें मैं दोस्त मानती थी, ने भी मेरी स्थिति का मजाक उड़ाया. हालांकि कुछ समर्थन और प्यार भी मिला जो मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी.
यह साल न्यूयॉर्क टाइम्स की इस विस्फोटक जांच के साथ खत्म हुआ है जिसमें उन्होंने बताया है कि केवल मैं नहीं बल्कि मीडिया की कई महिलाएं और राजनीतिक पार्टी की एक सदस्य, को इन्हीं व्यक्तियों/ग्रुप ने टारगेट किया. न्यूयॉर्क टाइम्स की जांच ने यह बताया है कि यह पूरा ऑपरेशन कितना बड़ा था और कितनी चतुराई से साजिश रचने वालों ने अपने ट्रैक को कवर किया और उस रहस्य को पीछे छोड़ दिया जो अब तक अनसुलझा है.
अस्तित्व में नहीं होने वाले एक जॉब के बारे में खुलासे के कुछ दिनों बाद दिल्ली पुलिस ने मेरी शिकायत पर संज्ञान लिया और FIR दर्ज की. उनकी जांच अभी जारी है. इसके तुरंत बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि वे मेरे अनुभव के बारे में खोजी लेख (investigative piece) लिखना चाहते हैं. इसके बाद NYT के जेफ्री जेटलमेन, कैट कानगेर और सुहासिनी राज ने ईमेल्स, दर्जनों ट्वीट्स, ट्विटर हैंडल्स और अन्य चीजों को 'एक्जामिन' करके स्टोरी तैयार करने में पूरे एक साल का वक्त लगाया. उन्होंने साइबर सिक्युरिटी एक्सपर्ट् जितेन जैन, जिन्होंने मेरे डिवाइसेस की जांच की कि कहीं इन्हें हैक तो नहीं किया है, के अलावा स्टेनफोर्ड और यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के शोधकर्ताओं की भी मदद ली.
अब जो निष्कर्ष सामने आया है वह यह है...
- साजिशकर्ताओं ने मुझसे पहले कई अन्य महिलाओं को निशाना बनाया. जिन्हें, उन लोगों ने टारगेट किया उनमें सीनियर जर्नलिस्ट रोहिणी सिंह, कॉलमिस्ट जैनब सिकंदर, बीजेपी की नेता निघत अब्बास और एक प्रमुख अखबार में काम करने वाली अनाम महिला शामिल है. न्यूयॉर्क टाइम्स का मानना है कि जब हैकर्स ने मुझसे संपर्क किया तब तक वो पूरी तरह से ऐसे मामलों के लिए 'अभ्यस्त' हो चुके थे.
-हार्वर्ड ने निघत अब्बास से मिली जानकारी के बारे में कुछ भी नहीं किया, जिसने हार्वर्ड को कई ईमेल्स, हार्वर्ड के 'फर्जी' डॉक्यूमेंट्स के स्क्रीनशॉट्स और अन्य चीजें (जो उसे भेजी गई थीं) भेजी थीं.
-यूनिवर्सिटी ने न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT)को इस जांच के बारे में कमेंट करने तक से इनकार कर दिया.
- घोटाला करने वालों (scammers) ने असली हार्वर्ड की तरह दिखने के लिए इसके नाम की एक वेबसाइट खरीदी और इसमें एक सर्वर सेटअप किया जिससे उन्हें हार्वर्ड के नाम से संदेश देने की इजाजत मिली.
उन्होंने हार्वर्ड की आधिकारिक वेबसाइट से उनके एम्पलायमेंट डॉक्यूमेंट भी कॉपी कर लिए.
लेकिन जब मैंने सार्वजनिक तौर पर घोषणा की कि मैं यूनिवर्सिटी के लिए NDTV छोड़ रही हूं तो हार्वर्ड से किसी ने भी प्रतिक्रिया नहीं दी. यहां तक कि मैंने, उन्हें अपने ट्वीट में टैग करते हुए कहा कि मैं जर्नलिज्म पढ़ाने के लिए हार्वर्ड ज्वॉइन कर रही हूं.
कई महीनों बाद, यह मैं थी जिसने उन्हें इस बारे में चेताया कि कुछ 'बहुत गलत' है. जितेन जैन, जिनकी कंपनी Voyager Infosec ने संकट के शुरुआती दिनों में मेरी मदद की, ने मेरे डिवाइसेस की जांच की और पाया कि शायद मेरा ईमेल अकाउंट हैक कर लिया गया है और संभवत: मेरे लैपटॉप में malware है. उनका मानना है कि विदेशी सरकार इसमें शामिल हो सकती हैं.
ईमानदारी से कहूं तो मैं नहीं जानती कि यह किसने और क्यों किया लेकिन मैं इतना जरूर जानती हूं कि यह मेरे लिए बड़ा सबक रहा. यह कठिन वर्ष रहा है लेकिन मुझे गर्व है कि मैंने इसके बारे में बात की. कई लोगों ने मुझे अपने साइबर दुस्वप्नों के बारे में बात की और बताया कि वे मजाक बनाए जाने के डर से इस बारे में बात करने में कितनी शर्मिदगी महसूस करते थे. मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि जब आप एक अपराध के शिकार हैं इसमें शर्मिंदगी जैसी कोई बात नहीं है. जो यह सोचते हैं कि वे कभी गलती नहीं कर सकते, मैं उन्हें शुभकामनाएं देती हूं. जब कोई पहले से ही मानसिक रूप से परेशानी में हो तो उसे और परेशान नहीं करना चाहिए. आप इंसान हैं और आप भी गलतियां कर सकते हैं. इस पूरे प्रकरण ने आत्मविश्वास को हिला दिया और मैं बार-बारअपने फैसले और निर्णय लेने की क्षमता पर सवाल उठाती रही.
लेकिन यह समय आगे बढ़ने का है. मैं दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देख रही हूं क्योंकि अभी सर्वश्रेष्ठ आने बाकी है इसलिए बने रहिए...
(निधि राजदान NDTV की पूर्व एक्जीक्यूटिव एडिटर हैं)
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