पुलिस अधिकारी के पास कहवा पीने के दौरान फ़ोन आया जिसमें और सुरक्षा बलों की मांग की गई ....अधिकारी ने तुरंत क़दम उठाते हुए फ़ोन लगाए और इंतज़ाम किए....बात-बात में कहा कि उनकी भाभी भी यात्रा पर निकली हुई है....पैदल ट्रेक कर रास्ता तय किया है....मेरे कार्यक्रम की जानकारी लेते हुए सुझाया कि किस तरह घाटी में कई फ़िल्मों की शूटिंग हाल में हुई है....ये जगहें अब फ़िल्मों के नाम पर जानी जाने लगी है....बेताब वैली के साथ अब 'हाईवे', 'बजरंगी भाईजान' फ़ेहरिस्त बना चुके हैं....किस तरह 'बजरंगी भाईजान' की 'झोली भर दे ' क़व्वाली की शूटिंग के लिए आशमुकाम में दरगाह वालों से कुछ दिनों की बातचीत के बाद ही बात बन सकी थी... बहरहाल फ़िल्म सुपरहिट हो गई और जगह टूरिस्ट स्पॉट बन गई....यह ख़ूबसूरत इलाक़ा भी है जहां रास्ते के एक तरफ़ बेहद साफ़ पानी की खिलखिलाती नहर चलती है, तो दूसरी तरफ़ कुछ समतल घाटी के साथ हरे-हरे पहाड़ बसते हैं...पहाड़ों पर ऊंचे दरख़्तों के बीच सूरज की किरणें रोशनी बिखेरती चली चलती है।
मैं इस बयान को समझने की कोशिश कर रही थी कि जानकारी मिली कि कई इलाक़ों में युवा ग़ुस्से में सड़कों पर उतर आए हैं...जगह-जगह पथराव हो रहा है...और फिर अचानक एयरटेल की सेवाएं बंद कर दी गई हैं....फ़ोन नहीं किया जा सकता अब....किसी तरह घर में संदेश भिजवाया कि हम ठीक हैं....लेकिन हक़ीक़त कोसों दूर थी....बिजली चली गई थी तो टीवी से भी जानकारी नहीं मिल पा रही थी....सुबह मुझे साढ़े पांच बजे चॉपर की पहली उड़ान के लिए पहुंचना था.....क़रीब 6 बजे की उड़ान थी.....लेकिन पशोपेश में थी कि रवाना होना भी है कि नहीं.....यात्रा रद्द तो नहीं करनी है.....मन में अनेकों सवाल थे कि तभी संदेश आया कि तैयार रहिएगा .....हमें पंजतरनी के लिए उड़ान भरनी थी सुबह.....लेकिन रात भर घनघोर बारिश, गड़गड़ाते बादलों की आवाज़ और तेज़ हवाएं दिन में सुंदर लग रहे कॉटेज की दीवारों पर थपेड़ों की तरह पड़ती रही....रात भर नींद नही आई....सुबह साढ़े तीन बजे अजान सुनाई दी ....परदे को हटाकर देखा तो फैलती रोशनी और एक-दो गाड़ियों की रोशनी से राहत मिली.
समय से पहले तैयार हो गई थी लेकिन कुछ काग़ज़ों की कमी के कारण क़रीब 8 बजे हिमालयन कंपनी के चॉपर से उड़ान भरी ....15 मिनट में अनेकों पहाड़ी चोटियों को पार कर, नीचे चंदनवाड़ी से पैदल यात्रा करने वालों को देखते हुए पंजतरनी पंहुच गए....बताया गया कि अमरनाथ गुफ़ा तक पहुंचने के लिए तीन घंटे जाने और तीन आने में लगेंगे। मौसम ठंडा था....जगह-जगह शिविर लगे थे....लोग पैदल, डोली जिसे चार लोग उठाते है, पिठ्ठू या फिर पोनी से रास्ता तय कर रहे थे.....मैंने पोनी पर रास्ता तय किया ....इस काम में लगे सभी स्थानीय निवासी मुस्लिम थे जिनके पूरे साल की रोज़ी-रोटी इसी यात्रा पर निर्भर है....क़रीब 16 हज़ार यात्री रोज़ पहुंच रहे थे....दो जुलाई से शुरू हुई यात्रा में तब तक एक लाख 16 हज़ार लोग यात्रा कर चुके थे......सुना कि हर रोज़ क़रीब एक करोड़ श्राइन बोर्ड को पहुंच रहे हैं...इन आंकड़ों को समझ रही थी कि बीस साल के पोनी वाले ने कहा 'बुरहान शहीद हो गया!' वो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था....उसके मन के भाव को समझते जब बताया कि वो इतना पढ़ा लिखा नहीं था तो उसने बताया कि वह कैसे मोबाइल पर वीडियो डालता था.....भ्रम के जाल में खोए यहां कमाई इन लोगों का एकमात्र लक्ष्य है....वे यात्रियों की सुरक्षा का पूरा ध्यान आदर के साथ रखते हैं।
बहरहाल पहाड़ियों पर चढ़ते-उतरते, बर्फ़ीली चोटियों को निहारते, प्रकृति की विविधता को मन में समेटते यात्रा तय समय से जल्दी पूरी की....चॉपर से वापसी कर जब शाम को पहलगाम पहुंची तो तनाव, हिंसा कि ख़बरें मिली.....सुबह से चाय के अलावा कुछ खाया नहीं था तो पाया कि पूरा बाज़ार बंद था.....ख़ाली था....सड़कें ख़ाली थीं....बस छोटे-छोटे ग्रुप में स्थानीय युवा नज़र आ रहे थे बात करते हुए.....हक़ीक़त समझ आ रही थी तो सीधे अपने ठहरने की जगह पहुंचे......ब्रेड और चाय ही मिल सकती थी उस समय.....ठंड के मौसम में बिजली का अभाव इसलिए खल रहा था क्योंकि टीवी से जानकारी भी नहीं मिल पा रही थी.
कुछ ही देर में अनंतनाग में मिले एक अधिकारी की भाभी मिली जो अकेली थीं....हम सब को राहत मिली कि समय गुज़ारने में किसी का तो साथ मिला....घर वापसी के सवालों पर जवाब मिला कि अभी वहीं रहना होगा क्योंकि रास्ते पर हिंसा है....बुरहान के हुए जनाज़े में क़रीब 17 हज़ार लोगों ने शिरकत की....बीस आतंकी हथियारों के साथ शामिल हुए थे....सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों के मारे जाने की ख़बरों के बीच घर और आफ़िस में रुक-रुक कर चल रहे वाट्सएप के ज़रिए सूचना दी कि हम ठीक हैं।
शाम को जानकारी मिली कि रात में ही निकलना होगा। हम रात 12 : 30 बजे निकले ....पुलिस ,सेना अन्य सुरक्षा एजेंसियों के पहरे और संरक्षण के बीच क़रीब 20 हज़ार सैलानियों को निकाला गया। इनमें दूसरी तरफ़ बालटाल में दो दिन से फंसे यात्री भी थे......रास्ते भर सड़कों पर बड़े-छोटे पत्थर पड़े मिले....लोहे के खंभे तो बड़े-बड़े दरख़्त पड़े मिले....गाड़ियों को कभी दाएं तो कभी बाएं ले जाते हुए प्रभावित कानाबल, बिजबहेरा,अनंनतनाग, संगम, पामपुर अवनतिपुरा होते हुए.....रास्ते में सीआरपीएफ़ के एसएसपी को ख़ुद रास्ते में खड़े देख सुरक्षा बलों की चुनौतियों की हक़ीक़त दिखाई पड़ी .....पुलिस की 'रक्षक' की अगुवाई में सेना की जगह-जगह कैस्पर के साथ बढ़ते चले..........बीच में त्राल को जाती वो रोड भी दिखाई गई जहां का बुरहान था। सुबह ढाई बजे हम श्रीनगर में थे....कुछ घंटों में दिल्ली के लिए फ़्लाइट थी.... मंगलवार सुबह तक क़रीब तीस हज़ार यात्री और सैलानियों को निकाला गया।
लेकिन सवाल अब यह हैं कि कश्मीर में हालात क्यों ऐसे होने दिए गए.....पहले क़दम क्यों नहीं उठाए गए.....कश्मीर मैं अक्सर जाती रही हूं। हाल में विधानसभा चुनावों के दौरान पूरी आज़ादी से घूमी...अलगाववादी नेताओं समेत मीर वाइज़ उमर फ़ारूख से इंटरव्यू किया। सोनावारी में महबूबा मुफ़्ती से मिली तो श्रीनगर में उमर अब्दुल्ला से भी। सब राजनीतिक वायदे दोहराते सुनाई दिए थे, लेकिन वो पूरे नहीं हुए....रोज़गार के न अवसर बढ़े न ही उनसे संपर्क.....अलगाव की राजनीति करने वालों के बच्चे विदेशों में पढ़ते बताए गए तो ग़रीबों के हथियार उठाते....पहलगाम में एक ने बताया कि मैं अपनी बेटी को बीएससी से ज़्यादा पढ़ाना चाहता था....लेकिन यहां न एमबीए हो सकता है और न ही आईआईटी!....क्यों .....मेरा जवाब सवाल बन कर रह गया...
(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)
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