बुलंदशहर मामले और प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था पर सीएम अखिलेश यादव से कुछ सवाल?

बुलंदशहर मामले और प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था पर सीएम अखिलेश यादव से कुछ सवाल?

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में हुई गैंगरेप की घटना ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी पुलिस पर एक और कलंक लगा दिया है. बीते शुक्रवार की रात नोएडा से शाहजहांपुर जा रहे एक परिवार को बुलंदशहर में एंट्री करते ही कुछ बदमाशों ने उनकी कार को लोहे की रॉड से पीटना शुरू कर दिया. जैसे ही चालक ने गाड़ी रोकी, वैसे ही बंदूक की नोक पर हमलावर उन्हें बंधक बनाकर ले गए और कार में मौजूद मां और बेटी के साथ गैंगरेप किया. यह घटना करीब रात डेढ़ बजे की थी जबकि पुलिस मौके पर करीब पांच बजे पहुंची. पीड़ित महिला के पति का कहना है कि उन्होंने कई बार 100 नंबर पर फ़ोन किया लेकिन उधर से कोई जवाब नहीं आया. पुलिस की लचरता का इससे बड़ा उदहारण क्या होगा कि वारदात पुलिस पोस्ट से महज़ 100 मीटर दूरी पर हुई लेकिन पुलिस को घटनास्थल पहुंचने में करीब साढ़े तीन घंटे लग गए.
 
इस घटना से सहमा और बुरी तरह टूट चुका परिवार जब पास के सरकारी अस्पताल पहुंचा, तो वहां मौजूद महिला डॉक्टर के संवेदनहीन रवैये से उनका आघात और गहरा हो गया. 35 साल की रेप पीड़िता ने एनडीटीवी को बताया था कि 'मेरा पूरा शरीर कट-छिल गया था और मेरी बेटी का खून निकल रहा था लेकिन डॉक्टर को हम पर यकीन नहीं हुआ, उसने कहा कि हम उसकी ऐसी हालत के बारे में झूठ बोल रहे हैं.' यही नहीं जब किशोरी ने अपनी आप बीती सुनाई तब भी डॉक्टरों ने उसे डांटकर कोने में बैठने को बोल दिया था. मीडिया के ज़रिये इस घटना की जानकारी जिसे भी हुई वह पीड़ित परिवार के साथ हुई बर्बरता के बारे में सुनकर सहमा हुआ है . इस मामले में प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बीजेपी और दूसरी पार्टियों पर निशाना साधते हुए कहा कि वह बुलंदशहर में हुई घटना पर राजनीति करना बंद करे. लेकिन मुख्यमंत्री जी इस घटना के बाद ज़िले के वरिष्ठ अफसरों को हटाने के अलावा आपने क्या कार्यवाही की और क्यूं गैंगरेप की इन दोनों पीड़ित महिलाओं को रेप के बाद भी इस तरह की यातनाएं झेलनी पड़ी?
 
इस घटना को बीते हुए करीब एक हफ्ता होने वाला है लेकिन सीएम साहब ने अभी तक पीड़ित परिवार से मिलने की ज़हमत तक नहीं उठायी. यह पहला मामला नहीं है जब प्रदेश में कोई बड़ी घटना हुई है और अखिलेश लखनऊ में ही बैठकर कार्यवाही और बयानबाज़ी करते नज़र आये हैं.  मुज़फ्फरनगर दंगों के दौरान भी अखिलेश कई महीनों तक वहां नहीं गए थे. सीएम अपने पिता व सपा मुखिया मुलायम सिंह के साथ 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के कुछ दिन पहले वहां गए थे और तब भी वह दंगों से पीड़ित लोगों से मिलने नहीं गए थे जबकि चुनाव के लिए वोट मांगने गए थे. ग्रेटर नोएडा में हुई अख़लाक़ की हत्या के दौरान भी सीएम वहां नहीं गए और घटना के कुछ दिनों बाद परिवार को लखनऊ बुलाकर मिले. कहा जाता है कि मायावती छोड़कर यूपी का कोई भी सीएम नोएडा नहीं जाता है और अगर वह नोएडा आया तो दोबारा कभी सत्ता में नहीं आता है. अखिलेश भी इसी वहम का शिकार हैं और इसलिये मुख्यमंत्री बनने के बाद से वह‎ नोएडा जाने से बचते रहे हैं.

यमुना एक्सप्रेस वे समेत कई बड़ी याजोनाओं का उद्घाटन भी सीएम ने लखनऊ से ही किया. बुलंदशहर गैंगरेप में पीड़ित परिवार भी नोएडा का रहने वाला है और ज़ाहिर है कि अखिलेश उनसे मिलने वहां नहीं जायेंगे क्योंकि उन्हें परिवार के दर्द से ज़्यादा अपनी कुर्सी प्यारी है. अखिलेश जी जवाब दें कि क्या नोएडा जाने पर कुर्सी खोने का वहम इस गैंगरेप की घटना से ज़्यादा बढ़कर है? आप दूसरी पार्टियों को इस घटना पर राजनीति न करने कि हिदायत दे रहे हैं लेकिन आप ही की सरकार में वरिष्ठ मंत्री आज़म खान इस भयावह घटना को चुनाव से पहले सरकार को बदनाम करने की साज़िश बताकर पीड़ित परिवार के ज़ख्मों पर मिर्च लगाने का काम कर रहे हैं. अगर आप इस मामले के प्रति इतने संवेदनशील हैं तो क्यूं पुलिस वालों की तरह आज़म खान के ख़िलाफ़ कार्यवाही नहीं कर रहे हैं? आरोप है कि मथुरा के जवाहरबाग में भी पुलिसवालों की बर्बरता से हत्या करने वालों को भी आप ही के चाचा शिवपाल यादव का संरक्षण प्राप्त था लेकिन क्या आपने उन पर कोई कार्यवाही की? आप मथुरा भी घटना के कई दिनों बाद पहुंचे जब मामला थोड़ा ठंडा पड़ गया था.  
 
बुलंदशहर गैंगरेप मामले में पुलिस पर आरोप है कि उन्होंने पकड़े गए तीन आरोपियों में से दो के नाम बदल दिए. दरअसल, पुलिस अधिकारियों ने अपनी गर्दन बचाने के लिए जल्दबाजी में जिन बदमाशों के नामों का खुलासा किया, वे बदमाश पुलिस की गिरफ्त में ही नहीं थे. प्रदेश के डीजीपी ने जिन बदमाशों के नाम लिए, उनकी जगह दो दूसरे बदमाशों की गिरफ्तारी दिखाई गई है. आश्चर्यजनक बात यह भी है कि बाबरिया गैंग का नाम लेने वाली पुलिस ने जो बदमाश गिरफ्तार किए हैं उनमें से दो का कोई भी आपराधिक इतिहास नहीं है. वहीं इस घटना के बाद बुलंदशहर पुलिस कंट्रोल रूम ने बीएसएनएल को खत लिख कर 100 नंबर की चार में से दो ख़राब लाइनों को ठीक करने की बात कही है. सवाल यह उठता है कि पुलिस को गैंगरेप घटना के बाद ही क्यूं याद आया है की कंट्रोल रूम की 4 में से दो लाइनें ख़राब हैं.  इस घटना के अगले दिन ही एक न्यूज़ चैनल ने  बुलंदशहर-कानपुर हाईवे का रिएलिटी चेक किया ‎तो आधे से ज़्यादा चेक पोस्ट व चौकियों में पुलिस सोती हुई व नदारद दिखाई दी. सीएम अखिलेश यादव जवाब दें कि इस विभत्स घटना के खुलासे में भी पुलिस ने क्यूं सही आरोपियों को नहीं पकड़ा और क्यूं घटना के बाद भी पुलिस चौकसी को नहीं बढ़ाया गया?         
 
2012 में यूपी में अखिलेश सरकार बनने के बाद गृह मंत्रालय के मुताबिक़ 50 से ज़्यादा साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं जिनमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई है. एनसीआरबी के मुताबिक़ हर 45 घंटे में प्रदेश के किसी हिस्से में एक पुलिस वाले के साथ मारपीट की जाती है. देश के कुल क्राइम का 12 से 15 प्रतिशत हर साल केवल यूपी में होता है. एनसीआरबी द्वारा 2015 में जारी हुई रिपोर्ट में कहा गया है कि यूपी में बीते तीन सालों से औसतन 3000 रेप के मामले दर्ज हुए हैं. बीते साल देश में करीब 3 लाख 40 हज़ार मामले दर्ज हुए जिनमें यूपी के सबसे अधिक 39 हज़ार मामले हैं. यूपी की जनसंख्या लगभग बीस करोड़ है और यूपी पुलिस की वेबसाइट के मुताबिक प्रदेश में इतनी बड़ी जनसंख्या की सुरक्षा के लिए महज़ 2.5 लाख पुलिसकर्मी हैं. मतलब प्रदेश में दस लाख लोगों के मुकाबले महज़ 125 पुलिसकर्मी हैं. प्रदेश के लगभग 45 फीसदी पुलिस पोस्टों में ताला लगा रहता है. प्रदेश में पुलिस की भारी कमी के चलते अपराध दिनों दिन तेज़ी से बढ़ता जा रहा है. अखिलेश यादव जवाब दें की वह अपने साढ़े चार साल में लॉ और आर्डर को नियंत्रित करने में वह क्यूं विफ़ल साबित हुए हैं और क्यूं पुलिस फ़ोर्स में कमी को ख़त्म करने के लिए ठीक ढंग से भर्तीयां नहीं करायी गईं हैं?

नीलांशु शुक्ला NDTV 24x7 में ओबी कन्ट्रोलर हैं.

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