22 जनवरी को अयोध्या में जब भव्य राम मंदिर का उद्घाटन हुआ तो उसके इर्दगिर्द मुंबई और आसपास के शहरों में सांप्रदायिक टकराव की भी खबरें आयीं. मीरा रोड में 21 जनवरी की रात और 22 जनवरी को हुआ विवाद इतना बढ़ गया कि दो अलग-अलग समुदाय के लोग आपस में भिड़ गये. मुंबई के करीब पनवेल में भी ऐसी ही वारदात हुई. मुंबई शहर में भी पांच ठिकानों पर टकराव की खबरें आयीं. मुंबई में कौमों के बीच रिश्ते इतने नाजुक क्यों हैं और देश-दुनिया में कहीं कुछ होने पर मुंबई क्यों सुलग उठती है? इन सवालों का जवाब मुंबई शहर के चरित्र और इसके इतिहास में छुपा हुआ है.
1989 में सलमान रुश्दी अपनी विवादित किताब 'द सैटेनिक वर्सेस' लिखते हैं ब्रिटेन में, उनके खिलाफ फतवा जारी होता है ईरान से, लेकिन दंगा हो जाता है मुंबई के मोहम्मद अली रोड पर, जिसमें 12 लोग मारे जाते हैं. 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिरायी जाती है. देश के अलग-अलग ठिकानों पर सांप्रदायिक हिंसा होती है, लेकिन सबसे भीषण दंगे अयोध्या से 1500 किलोमीटर के फासले पर मुंबई में होते हैं. ये दंगे दो चरणों में होते हैं जिनमें 900 लोगों की जान जाती है. दंगों के बाद मार्च 1993 में सिलसिलेवार बम धमाके होते हैं जिनमें ढाई सौ से ज्यादा लोग मारे जाते हैं. रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार होता है म्यांमार में... लेकिन अगस्त 2012 में दंगा भड़क उठता है मुंबई के आजाद मैदान में, जिनमें कई पुलिसकर्मी घायल होते हैं और मीडिया की गाड़ियां फूंक दी जाती हैं. इस जैसी अनेक मिसालें हैं जिनसे पता चलता है कि देश और दुनिया में घटित होने वाली कई घटनाओं पर मुंबई में भीषण प्रतिक्रिया दिखती है.
मुंबई के इतिहास पर गौर करें तो 1893 से लेकर 1993 के बीच शहर में 7 बार भीषण दंगे हो चुके हैं. इनमें से कई बार सरकार को हिंसा पर काबू करने की खातिर सेना को बुलाना पड़ा और सेना को शहर में गोली भी चलानी पडी.
मुंबई में सबसे पहला बड़ा दंगा 11 अगस्त 1893 में गोहत्या के मुद्दे को लेकर हुआ था. तीन दिनों तक चले उस दंगे में 80 लोग घायल हुए थे और फौज को ग्रांट रोड इलाके में गोली चलानी पड़ी थी. 1929 में एक अफवाह की वजह से मिल मजदूरों ने एक समुदाय विशेष को निशाना बनाया. अफवाह ये उड़ी कि उस समुदाय के लोग बच्चों को अगवा कर रहे थे. उन दंगों में 149 लोग मारे गये थे. 1932 में मुंबई के सीपी टैंक इलाके में उस वक्त दंगा शुरू हो गया जब एक धार्मिक स्थल को तोड़ा गया. पांच दिनों तक चले दंगे में 96 लोग मारे गये. चार साल बाद 1936 में भायखला इलाके में दंगा भड़क गया. एक समुदाय ने आरोप लगाया कि दूसरे समुदाय ने उसके धर्मस्थल पर अतिक्रमण किया है. 66 लोग उस दंगे में मारे गये. हिंसा को काबू में करने के लिये फिर एक बार फौज बुलायी गयी. अगले ही साल 1937 में जब बैंडबाजे के साथ एक बारात जब किसी धर्मस्थल के सामने से गुजर रही थी तब फिर एक बार दंगा शुरू हो गया. 1938 में दो समुदाय के लोगों के बीच जुआ खेलने को लेकर हुए एक छोटे से झगड़े ने भीषण दंगे का रूप ले लिया. उस हिंसा में 80 लोग मारे गये. 1941 में भी छोटी से बात को लेकर हुई हिंसा में 24 लोग बलि चढ़ गये.
हिंदू-मुस्लिम दंगों के अलावा मुंबई में मुस्लिम-पारसी और शिया-सुन्नी दंगों का भी इतिहास रहा है. तीन बार पारसी और मुस्लिम समुदायों के बीच भी दंगे हो चुके हैं. मुंबई में धर्म के आधार पर होने वाले ये दंगे शहर की आधुनिक और प्रगतिशील शहर की छवि की विरोधाभासी तस्वीर पेश करते हैं.
मुंबई शहर के अलावा पड़ोस के भिवंडी और कल्याण में भी सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास रहा है. 1984 में भिवंडी में भीषण दंगे हुए थे. उन दंगों में शिव सेना ने अहम भूमिका निभायी थी. मुंबई से बड़े पैमाने पर ट्रकों में भरकर शिवसैनिक भिवंडी पहुंचे थे. इन्हीं दंगों के बाद से शिव सेना की एक कट्टर हिंदुत्ववादी संगठन की छवि बनी थी. कल्याण में भी हाजी मलंग बनाम मलंगगड विवाद बीते चार दशकों से चल रहा है जिसकी वजह से यहां अक्सर सांप्रदायिक तनाव पैदा हो जाता है. कल्याण शहर के पास एक पहाड़ी पर 900 साल पुराना एक धर्मस्थल है. मुसलमानों का मानना है कि ये सूफी संत मलंग बाबा की दरगाह है, जबकि हिंदू संगठन इसके संत मच्छिंद्रनाथ की समाधि होने का दावा करते हैं.
सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिये मोहल्ला एकता कमिटी का सिस्टम 1992-93 के दंगों के बाद मुंबई में शुरू किया गया था. कालांतर में ये सिस्टम कमजोर हो गया. मौजूदा हालातों को देखते हुए इस सिस्टम में नयी जान फूंकने की जरूरत नजर आती है.
(जीतेंद्र दीक्षित मुंबई में बसे एक लेखक और पत्रकार हैं)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.