मराठा नेता मनोज जरंगे पाटिल के नेतृत्व में आरक्षण की मांग कर रहे आंदोलनकारी मुंबई पहुंचने वाले हैं. बड़ी भीड़ की आशंका है.
जब 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का उद्घाटन हुआ तब मुंबई पुलिस के सामने ये चुनौती थी कि शहर में कानून व्यवस्था बनी रहे और कोई हिंसक वारदात न हो. सांप्रदायिक तौर पर मुंबई काफी संवेदनशील रहा है. ऐसे में मुंबई पुलिस के लिये एहतियाती कदम उठाने जरूरी थे. 22 जनवरी को मुंबई में छिटपुट वारदातों पर काबू पा लिया. उस परीक्षा में तो पुलिस सफल रही लेकिन अब उसे सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा से गुजरना है जो कि मराठा आंदोलन की शक्ल में होगी. जालना से मुंबई के लिये निकला मराठाओं का मोर्चा मुंबई पुलिस के लिये हाल के सालों में सबसे बड़ी चुनौती होने वाला है.
आमतौर पर अगर सरकार किसी राजनीतिक विरोधी को आंदोलन करने से रोकना चाहती है तो उसे आंदोलन वाले दिन से पहले ही हिरासत में ले लेती है या फिर उसके घर के बाहर पुलिस लगा देती है और उसे सड़क पर निकलने ही नहीं देती, लेकिन मराठा आंदोलन के मामले में ये फॉर्मूला काम नहीं आ सकता. सरकार को पता है कि इससे लेने के देने पड़ सकते हैं. यही वजह है कि 20 जनवरी को जब मराठा नेता मनोज जरंगे पाटिल ने जालना के अंतरवली-सराटी गांव से मुंबई के लिये कूच किया तो कहीं भी पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की. जरंगे की मांग है कि शिंदे सरकार मराठाओं को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की अधिसूचना जारी करे. उनका इरादा मुंबई पहुंचकर आजाद मैदान या शिवाजी पार्क में अनशन करने का है.
पुलिस के लिए चिंता का विषय ये है कि जरंगे पाटिल जब भी अनशन पर बैठे हैं हिंसक वारदातें शुरू हो जाती हैं. पिछले साल अगस्त में जब वे अनशन पर बैठे थे तब भी यहीं हुआ. उनकी तबीयत बिगड़ने पर जालना पुलिस उनका अनशन खत्म करवाने गई लेकिन मौके पर आंदोलनकारियों और पुलिस टीम के बीच झड़प हो गई. आंदोलनकारियों ने पुलिस पर पथराव कर दिया. इसके बाद पुलिस ने भी लाठीचार्ज किया. दोनों पक्षों के करीब अस्सी लोग घायल हुए. इस घटना के बाद विवाद और बढ़ गया. महाराष्ट्र के दूसरे इलाकों में भी गड़बड़ी शुरू हो गई. शरद पवार और उद्धव ठाकरे आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति जताने जालना पहुंचे. सरकार ने खुद को घिरता देख जालना पुलिस के अधिकारियों का तबादला कर दिया. गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मराठा समुदाय से माफी भी मांगी.
नवंबर में दूसरी बारी जरंगे पाटिल अनशन पर बैठे. पिछली बार से सबक लेते हुए इस बार कोई बल प्रयोग नहीं किया गया. आंदोलनकारियों ने राज्य के कई इलाकों में जमकर उत्पात मचाया. बीड में राजनेताओं के घर पर तोड़फोड़ की गई. वाहन तोड़े गए. कई गांवों में राजनेताओं के प्रवेश पर बंदिश लगा दी गई. सरकार ने ये कहकर पाटिल का अनशन खत्म करवाया कि जिनके पास कुनबी होने के निजामकालीन दस्तावेज होंगे उन्हें ओबीसी कोटे से आरक्षण दिया जायेगा. इस पर जरंगे पाटिल ने अपना अनशन तो खत्म कर दिया लेकिन ऐलान किया कि 20 जनवरी तक अगर सरकार ने आरक्षण की अधिसूचना जारी नहीं की तो फिर वे 20 जनवरी को मुंबई कूच करेंगे.
जरंगे की धमकी के मद्देनजर शिंदे सरकार ने ऐलान किया कि फरवरी में विधानमंडल का मराठा आरक्षण के लिये विशेष सत्र बुलाया जायेगा. राज्य पिछडा आयोग को निर्देश दिया गया कि 31 जनवरी तक वो अपनी सर्वे रिपोर्ट सरकार को सौंप दे ताकि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार अदालत के सामने ये साबित कर सके कि मराठा समुदाय पिछड़ा हुआ है और उसे आरक्षण की जरूरत है. 2019 में फडणवीस सरकार के कार्यकाल में मराठाओं को आरक्षण दे दिया गया था लेकिन उसे अदालत में चुनौती दी गयी. अदालत ने ये कहते हुए आरक्षण खारिज कर दिया कि इससे सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन होता है जिसमें ये तय किया गया था कि आरक्षण पचास फीसदी से ऊपर नहीं दिया जा सकता. अब शिंदे सरकार पिछड़ा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट से इस बिनाह पर इस सीमा में ढील दिये जाने की मांग करेगी कि ऐसे विशेष हालात हैं जिस वजह से मराठाओं को 50 फीसदी की सीमा से बाहर आरक्षण मिलना चाहिये.
सरकार ने अपनी ओर से मराठाओं को आरक्षण दिलाने के लिये किये जा रहे प्रयासों की जानकारी देने के लिये जरंगे पाटिल के पास अपने प्रतिनिधि भी भेजे लेकिन बातचीत असफल रही. आशंका जतायी जा रही है कि 26 जनवरी को जब वे मुंबई पहुंचेंगे तो उनके साथ हजारों कार्यकर्ता भी होंगे जो कि राज्य के अलग-अलग हिस्सों से आ रहे हैं. सवाल ये है कि शहर की ट्रैफिक व्यवस्था पर इसका क्या असर होगा? इतने लोग ठहरेंगे कहां? मुंबई पुलिस के पास मंजूर संख्याबल करीब 41 हजार का है लेकिन हाल ही में आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को जानकारी मिली कि करीब 13 हजार पद खाली हैं. हालांकि, आंदोलन के वक्त राज्य आरक्षित पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स भी तैनात रहेगी. लेकिन कंट्रोल करना आसान नहीं होने वाला है.
महाराष्ट्र में मराठा-कुनबी की आबादी 32-24 फीसदी है और ऐसे में कोई भी राजनीतिक पार्टी उनकी नाराजगी का जोखिम नहीं उठा सकती. उस समय तो बिल्कुल नहीं जब तीन महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हों.
(जीतेंद्र दीक्षित पत्रकार तथा लेखक हैं...)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.