शरद यादव का जाना भारतीय राजनीति के लिए बड़ी क्षति मानी जाएगी. आजादी से डेढ़ माह पहले, मध्य प्रदेश में उनका जन्म हुआ था. वे पढ़ने-लिखने में काफी तेज़ थे. साइंस के छात्र रहे और इंजीनियरिंग की. कॉलेज में उनको गोल्ड मेडल मिला था. सियासत की शुरुआत उन्होंने विद्यार्थी जीवन में की और छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. वे 1974 में ही सांसद चुने गए थे. जेपी क्रांति के बाद कई नेता उभरकर सामने आए थे लेकिन जयप्रकाश नारायण ने शरद यादव को पहले टिकट दिया था. छात्र नेता के रूप में उस समय वे जेल में थे. जेल में रहते हुए ही उन्होंने चुनाव लड़ा और इस दौरान उनको 'हलधर किसान' का चुनाव चिन्ह मिला था. 27 साल के कच्ची उम्र में वो संसद में चुनकर पहुंचे थे. वर्ष 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी प्रस्ताव लेकर आई थीं कि लोकसभा के कार्यकाल को 6 साल किया जाए तब दो सांसदों ने इस्तीफा दिया था उसमें शरद यादव शामिल थे. उन्होंने वर्ष 1984 में अमेठी में राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था जबकि शरद यादव की बेटी सुहासनी आज कांग्रेस में हैं और बिहारीगंज सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं.
सियासी करियर की बात करें तो लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और नीतीश कुमार से शरद यादव थोड़ा सीनियर थे. वे एकमात्र ऐसे नेता रहे जो मध्य प्रदेश, बिहार और यूपी से सांसद रहे. तीन राज्यों से वे लोकसभा में चुनकर आए. मंडल आयोग को लागू कराने में शरद यादव का नाम खासतौर पर लिखा जाएगा. शरद यादव ने इसके लिए तत्कालीन पीएम वीपी सिंह पर दबाव डाला था. इस मामले में दूसरे नंबर पर आप राम विलास पासवान को रख सकते हैं. मंडल की राजनीति को तोड़ने के लिए शरद यादव ने वंचितों-पिछड़ों के लिए आवाज़ उठाई, इसके बाद ये लागू किया गया.
जैन हवाला कांड में 5 लाख की घूस लेने का आरोप लगा तो शरद यादव ने इस्तीफा दे दिया था हालांकि बाद में वे बरी हो गए थे. लालू यादव को बिहार का सीएम बनाने में भी उनकी अहम भूमिका रही थी. वीपी सिंह तब पीएम थे, वे राम सुंदर दास को चाहते थे लेकिन शरद यादव ने 'चाणक्य' की भूमिका निभाई, वोटिंग के लिए तैयार किया जिसमें लालू यादव जात गए और सीएम बने. हालांकि मुलायम सिंह कहते हैं कि एचडी देवेगौड़ा के समय में पीएम बनने की बात आई थी. उस समय शरद व लालू यादव एक हो गए थे और मुलायम को पीएम नहीं बनने दिया गया था. देवेगौड़ा और लालू यादव के बीच में तनातनी थी. देवेगौड़ा जब पीएम बने थे तो लालू यादव का भी चांस था और मुलायम सिंह यादव भी इसके लिए दावेदार थे. शरद इनके बीच में रैफरी का काम भी किया करते थे. शरद ने बाद में लालू के पार्टी में अपनी पार्टी का विलय किया. एक वक्त में इन दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ भी चुनाव लड़ा. लालू के खिलाफ वे लड़े और जीते भी.
नेता आते-जाते रहते हैं. शरद यादव को भले ही प्रो मंडल कहें, महिला आरक्षण पर उनके अपने विचार थे. "परकटी महिला" वाला उनका बयान तो काफी चर्चा में रहा था. शरद यादव की दलील थी कि उन महिलाओं की भी केटेगरी बननी चीहिए जो ओबीसी की है. उन्होंने इन महिलाओं के अधिकारों की बात की थी लेकिन इसके बाद उनकी काफी आलोचना हुई थी. बहुत से लोगों ने कहा कि वो एंटी वुमन हैं. आज शरद जी नहीं हैं. मुलायम सिंह यादव और अब शरद यादव के निधन से समाजवादियों की पीढ़ी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है. अब लालू यादव और नीतीश कुमार ही इस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. लोहियावादी विचारधारा राजनीति से विलुप्त होती जा रही है.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
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