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This Article is From Oct 05, 2018

हाथ में नहीं हाथी...

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 15, 2018 11:56 am IST
    • Published On अक्टूबर 05, 2018 17:47 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 15, 2018 11:56 am IST
मध्य प्रदेश में मायावती ने 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी साथ ही छत्तीसगढ़ में मायावती ने अजित जोगी से हाथ मिलाया है. इस पर कई लोगों को काफी आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे हो गया और लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि विपक्ष का महागठबंधन टूट गया, यह गठबंधन नहीं लठबंधन है. दरअसल दिक्कत ये है कि लोग जल्दबाजी में राय बना लेते हैं बिना हालात का आकलन किए हुए. इस सब के बीच राहुल गांधी का एक बयान आया जिसमें उन्होंने कहा कि बीएसपी नेता मायावती का मध्यप्रदेश में गठबंधन ना करने से कांग्रेस पर कोई असर नहीं पड़ेगा मगर कांग्रेस अध्यक्ष ने ये जरूर कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वो जरूर महागठबंधन का हिस्सा होंगी. राहुल ने कहा कि राज्य और केन्द्र में गठबंधन काफी अलग अलग चीज है. उन्होंने कहा कि राज्यों में गठबंधन के मामले में हम काफी लचीला रुख रखते हैं मगर मायावती ने बातचीत से पहले ही अपने पत्ते खोल दिए. लगता है इस बार राहुल गांधी अपना होमवर्क अच्छी तरह करके आए थे.

मध्यप्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष पहले ही साफ कर चुके हैं कि किन वजहों से मध्यप्रदेश में बीएसपी से गठबंधन नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि हम मायावती को 12 से 15 सीटें देने के लिए तैयार थे मगर वो 50 सीटें मांग रही थीं. अब जरा एक नजर आंकड़ों पर डालते हैं कि आखिरकार मध्यप्रदेश की हालत क्या है.

1998 में बीएसपी को 11 सीटें मिली थीं जो 2003 में घट कर 2 रह गईं. मगर जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तब उन्हें 7 सीटें मिली थीं यानी तब मुख्यमंत्री होने के कारण उनके पास सारे संसाधन मौजूद थे, यानी धन, बल और वो तमाम चीजें जो चुनाव में एक पार्टी को चाहिए होती हैं. मगर फिर 2013 में उनकी सीट घट कर 4 रह गई. ऐसे में यदि वो कांग्रेस से 50 सीटें मांगती हैं तो उन्हें वो सीट मिलना असंभव जैसी बात है. यही वजह है कि राहुल मध्यप्रदेश कांग्रेस के निर्णय को सही करार दे रहे हैं.

वैसे कुछ अन्‍य आंकड़ों पर नजर डालें तो आप को लगेगा कि कहीं कांग्रेस गलती तो नहीं कर रही है. बीजेपी को मध्यप्रदेश में 44.88 फीसदी वोट मिले तो कांग्रेस को 36.38 फीसदी और वहीं बीएसपी को 6.42 फीसदी वोट मिले हैं. अब बात करते हैं राजस्थान की. बीएसपी को 1998 में 2, 2003 में भी 2 सीट मिली मगर जब 2008 में मायावती मुख्यमंत्री थीं तब उसे 6 सीटें मिली थीं. मगर बाद में इन सभी 6 विधायकों ने कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार को सर्मथन दे दिया था और उनका कांग्रेस में विलय हो गया था. जबकि 2013 में बीएसपी को केवल 3 सीटें मिली थी और सबसे मजेदार बात है कि बीएसपी ने कभी भी अपनी सीट दुबारा नहीं जीती, हर बार उसने नई सीट पर जीत दर्ज की, यानी राजस्थान में बीएसपी की सफलता में उसके उम्मीदवार की निजी लोकप्रियता का ज्यादा हाथ रहता है.

VIDEO: राहुल बोले- BSP से गठबंधन न होने पर फर्क नहीं

राजस्‍थान में बीजेपी को 45.17 फीसदी वोट मिले थे जबकि कांग्रेस को 33.07 फीसदी और बीएसपी को 3.37 फीसदी. यही वजह है कि कांग्रेस ने बीएसपी को चारा नहीं डाला. लगे हाथ छत्तीसगढ़ की भी बात कर लेते हैं. यहां हमेशा टक्कर कांटे की होती है. बीजेपी को यहां 49 सीटें मिली हैं और कांग्रेस को 39 सीटें मगर यदि वोटों के प्रतिशत को देखें तो बीजेपी को 41.18 फीसदी वोट मिले तो कांग्रेस को 40.43 फीसदी यानी वोटों का अंतर एक फीसदी के आसपास है जबकि छत्तीसगढ़ में बीएसपी के पास 1 सीट है और उसे 4.29 फीसदी वोट मिले हैं यानी कांग्रेस यदि यहां बीएसपी के साथ जाती तो जीत से कोई नहीं रोक सकता था मगर मायावती ने अजित जोगी को क्यों चुना यह कहना मुशिकल है. खैर आंकड़े जो भी कहें, इन तीनों राज्यों के चुनाव दिलचस्प होने वाले हैं. आंकड़े भी चौंकाने वाले होंगे जो 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए भी एजेंडा तय करेंगे.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...

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