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This Article is From Sep 28, 2018

सुप्रीम कोर्ट है 'सुप्रीम'

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 28, 2018 16:31 pm IST
    • Published On सितंबर 28, 2018 16:31 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 28, 2018 16:31 pm IST
सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसलों ने इतिहास रच दिया खासकर आम आदमी की निजी स्वतंत्रता को लेकर. सबसे पहले जो फैसला आया वह सबसे ऐतिहासिक था जिसमें कहा गया कि समलैंगिकता गैरकानूनी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शन 377 अतार्किक, मनमाना और समझ से परे है और सामाजिक नैतिकता व्यक्ति के अधिकार में बाधा नहीं है. इस फैसले ने समाज में एक ऐसी बेड़ी को तोड़ा जो अभी तक चहारदीवारों या घरों के अंदर तक सीमित था.

समलैंगिक लोग अभी तक समाज में जिल्लत और तिरस्कार की जिंदगी झेलते थे. परिवार भी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं  होता था कि उनके घर में कोई समलैंगिक है. इस फैसले ने समाज के एक तबके को आवाज दी और उन्हें समाज में सम्मान से जीने का हक दिया. एक और महत्वपूर्ण फैसला था अनुसूचित जाति, जनजाति समुदाय को प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में. पांच जजों का फैसला था. इसमें सब कुछ सरकार पर छोड़ दिया क्योंकि कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है, अदालत उसकी व्याख्या ही कर सकता है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि सरकार को कहा गया कि प्रशासनिक कुशलता का मामला वही देखे और क्रीमी लेयर का मामला संसद पर छोड़ दिया.

फिर एक बड़ा फैसला आया आधार कार्ड का जिसमें किसी भी निजी कंपनी को आधार मांगने पर रोक लगा दी गई. बैंक खातों से आधार जोड़ना जरूरी नहीं कर दिया गया लेकिन पैन नंबर के लिए आधार जरूरी रहेगा. कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार जरूरी रहेगा मगर उसके चलते किसी का हक नहीं मारा जा सकता है. राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल पर आधार मांग सकते हैं लेकिन उसके लिए पूर्व जज या सचिव स्तर के अफसर की अनुमति जरूरी होगी. लेकिन इस फैसले में एक असहमति भी थी. वह जस्टिस चंद्रचूड की तरफ से आई जिसमें उन्होंने इसे निजता के अधिकार से कहा और सरकार द्वारा आधार बिल को मनी बिल बनाने और राज्यसभा न जाने पर भी टिप्पणी की.

फिर एक और महत्वपूर्ण फैसला आया अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद पर, जिसमें नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद का होना जरूरी नहीं माना गया और 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ा. इस फैसले को बड़ी बेंच को नहीं भेजा गया. अदालत ने कहा कि सभी धर्म, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च एक समान हैं और किसी का भी अधिग्रहण किया जा सकता है. मगर इस फैसले में एक असहमति थी जो जस्टिस अब्दुल नजीर की तरफ से आई जिसमें उन्होंने कहा कि नमाज के लिए मस्जिद के जरूरी न होने पर फैसला देने से पहले विस्तृत परीक्षण नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि 1994 का फैसला सवालों के घेरे में है लिहाजा मामला संविधान पीठ को भेजा जाए.

फिर एक और बड़ा फैसला आया जिसमें एडल्ट्री यानि व्याभिचार को अपराध नहीं माना गया. लोगों के लिए यह बड़ा अटपटा फैसला था. मगर यह कई लिहाज से महत्वपूर्ण है जिसमें कहा गया कि पति-पत्नी का मालिक नहीं है. साथ ही अदालत ने कहा कि कानून लैंगिक समानता के अधिकार के खिलाफ है संविधान की खूबसूरती है आई,यू और मी... मगर एक बात साफ कर दूं कि इस कानून का मतलब यह नहीं है कि अब आप किसी भी महिला से संबंध बना सकते हैं और बच जाएं, उस महिला का पति अभी भी आप पर केस कर सकता है..

सबसे ताजा फैसला है कि केरल के सबरीमाला मंदिर के दरवाजे महिलाओं के लिए भी खोल दिए गए. यह महिला अधिकार और समानता के लिए एक बहुत बड़ा कदम है. यह समाज में पितृसत्तात्मक नियम के खिलाफ है, परंपरा धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं हो सकता और पूजा से इनकार करना महिला की गरिमा को इनकार करना माना जाएगा.

तो ये सब कुछ ऐसे फैसले रहे जो समाज सुधार की तरह से देखे जा सकते हैं. इसमें कुछ ऐसे कानून थे जो अंग्रेजों के जमाने के थे यानि विक्टोरियन काल के जिन्हें बदला ही जाना चाहिए था. इन फैसलों ने यह तय कर दिया है कि समाज में जब भी समानता, सुरक्षा, स्वतंत्रता की बात होगी सुप्रीम कोर्ट सबसे आगे रहेगा यही वजह है कि गांव-गांव में लोग कहते हैं कि अरे सुप्रीम कोर्ट तक लड़ेंगे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ही है 'सुप्रीम.'


मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...

 
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