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This Article is From Jul 08, 2021

मंत्रि‍मंडल फेरबदल : परदे के पीछे की कहानी

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 08, 2021 19:18 pm IST
    • Published On जुलाई 08, 2021 19:17 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 08, 2021 19:18 pm IST

केन्द्रीय मंत्रि‍मंडल में हुए फेरबदल के वक्त किसी को यह अंदाजा नहीं था कि इतने बड़े स्तर पर फेरबदल होगा. जब स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन का नाम आया तो लगा चलिए उन्होंने कोरोना की दूसरे लहर को ठीक से हैंडल नहीं किया. स्वास्‍थ्‍य मंत्री खुद एक पेशेवर डॉक्टर रहे मगर सरकार तैयारी में बुरी तरह विफल रही. लोग आक्सीजन, बेड, दवाईंयों की कमी से अपनी जान दे रहे थे. ऐसे में हर्षवर्द्धन का जाना समझ में आता है मगर रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर जैसे हेवीवेट मंत्री की कुर्सी जा सकती है यह किसी को अंदाजा नहीं था क्योंकि यही दोनों मोदी सरकार का चेहरा थे. सरकार के तरफ से होने वाले या फिर पार्टी के तरफ से राहुल गांधी को भी निशाना बनाना हो तो इन्हीं दोनों को आगे लाया जाता था. इन्हीं दोनों को प्रेस कांफ्रेस करने के लिए कहा जाता था. तो फिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों को मंत्रिमंडल से जाना पड़ा.

रविशंकर प्रसाद के बारे में तर्क दिया जा रहा है कि वो ट्‌वि‍टर के साथ जो पंगा लिया उसी का खामियाजा भुगतना पड़ा. भारत सरकार अमेरिका को नाराज नहीं कर सकती है, यह आज के वैश्विक माहौल के लिहाज से ठीक नहीं रहेगा, खास कर वैसे हालात में जहां चीन के साथ आपकी ठना ठनी बनी हुई है. एक तरफ जब रविशंकर प्रसाद ट्‌वि‍टर को धमका रहे थे तो दूसरी तरफ प्रधानमंत्री लगातार ट्‌वि‍टर पर बने हुए थे और उनके ट्‌वीट आ रहे थे. एक ऐसा प्रधानमंत्री जो सोशल मीडिया पर सक्रिय रहता हो वो कभी यह पसंद नहीं करेगें कि उनका एक मंत्री उसी सोशल मीडिया के एक अंग को धमका रहा हो. रविशंकर प्रसाद के पास कानून मंत्रालय भी था. कहा जा रहा है कि उसके काम काज से भी प्रधानमंत्री खुश नहीं थे. मगर क्या यही सच है. 

जानकार यह भी मानते हैं कि रविशंकर प्रसाद में एक तरह का गुरूर भी आ गया था. उनकी भाषा, उनका लहजा, उनके तेवर बहुतों को पंसद नहीं आ रहे थे, हालांकि पहला बार पटना से लोकसभा का चुनाव भी जीते मगर मंत्रीमंडल में अपनी जगह खो बैठे. अब बारी है प्रकाश जावड़ेकर की. उनके पास सूचना प्रसारण और पर्यावरण मंत्रालय था. कहा जा रहा है कोविड की दूसरी लहर के बाद जिस ढंग से सरकार का बचाव सूचना मंत्रालय को करना था उसमें जावड़ेकर विफल रहे, खास कर विदेशी मीडिया में भारत की जो इमेज बनी वह प्रधानमंत्री की इमेज के लिए ठीक नहीं थी. विदेशी मीडिया को तो छोड़ि‍ए, देशी मीडिया ने भी सरकार की पोल खोल दी. गोदी मीडिया को छोड़ कर अखबारों, कुछ टीवी चैनलों और सोशल मीडिया ने सरकार की पोल खोल कर रख दी. यह सिलसिला उस वक्त शुरू हुआ था जब लॉकडाउन में मजदूर पैदल ही सड़कों और रेल की पटरियों पर पैदल ही निकल पड़े थे अपने घरों के लिए. हालांकि सूचना और प्रसारण मंत्रालय का इससे कोई लेना देना नहीं था मगर ठीकरा जावड़ेकर पर ही फूटा. दूसरी वजह रही ओटीटी और डीजिटल न्यूज पोटर्ल के लिए नई गाईडलाइन को लेकर उठे विवाद को लेकर इसमें जावड़ेकर के साझेदार रविशंकर प्रसाद रहे क्योंकि वही आईटी मंत्री थे. प्रकाश जावड़ेकर के खिलाफ पर्यावरण से जुड़ा कानून का एक ड्राफ्ट भी रहा. इस पर देश भर से 17 लाख आपत्तियां और सुझाव आ गए. जावड़ेकर का यह निर्णय भी विवादों में घिर गया और उनकी कुर्सी चली गई. 

यहां पर एक और नेता की चर्चा करना चाहूंगा, वो हैं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह. नीतीश कुमार ने उन्हें दिल्ली भेजा कि जाइए और जदयू के लिए दो कैबिनेट और दो राज्यमंत्री की बात कर आइए. मगर नीतीश कुमार को क्या पता था कि आरसीपी सिंह खुद मंत्री पद की शपथ ले लेगें. यह एक नए रिश्ते की शुरूआत है नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के बीच में जिनकी जाति एक है और इलाका भी एक है. दोनों कुर्मी हैं और दोनों नालंदा से आते हैं. 

एक और नेता बचे हैं जिन पर बात होनी चाहिए, वो हैं सुशील मोदी जिनके मंत्री बनने की चर्चा तो थी मगर हो न सका. वजह कई है जैसे एक सरकार में एक ही मोदी रहेगा. नहीं यह सही नहीं है, असली वजह है सुशील मोदी का वह बयान जब उन्होंने 2014 से पहले नरेंद्र मोदी के बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने के पहले यह कहना कि नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री का चेहरा हो सकते हैं. सुशील मोदी को नीतीश कुमार की निकटता ने मंत्री बनने नहीं दिया. भाजपा के कई नेता मानते हैं कि जब तक सुशील मोदी बिहार में रहे बीजेपी नंबर दो पर ही रही. तो ये हैं कुछ घटनाएं जो परदे के पीछे हुई हैं और जिससे वो कुछ हुआ जिसका बहुतों को अंदाजा नहीं था.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

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