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This Article is From May 19, 2022

नीतीश कुमार का शासन इतना लुंजपुंज क्यों है ?

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 19, 2022 22:06 pm IST
    • Published On मई 19, 2022 20:08 pm IST
    • Last Updated On मई 19, 2022 22:06 pm IST

कहते हैं तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं लेकिन इन दिनों बिहार से जो तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं वो हर समय एक जमाने में “सुशासन बाबू “और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कृपा से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान नीतीश कुमार की शासन व्यवस्था की पोल खोलते हैं.  इसके लिए आपको कुछ विशेष शोध नहीं करना है, बल्कि पिछले दस दिनों के दौरान राज्य जिन-जिन कारणों से सुर्ख़ियों में रहा, उस पर केवल सरसरी निगाह डालना है.

नीतीश कुमार को राजनीतिक फ़्रंट पर आजकल इसलिए वाहवाही मिल रही है कि उन्होंने समाजवादी राजनीति और ख़ासकर अपनी समता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के एक पुराने कर्मठ कार्यकर्ता अनिल हेगड़े को दो साल के लिए  राज्यसभा भेजा. इस फ़ैसले के कारण विरोधी भी उनके मुरीद हो गए हैं. निश्चित रूप से ये स्वागत योग्य फ़ैसला है और अपने कार्यकर्ताओं की कद्र करने की नीतीश की कला का एक उदाहरण है. ये भी सच है कि स्वर्गीय किंग महेंद्र के अपवाद को छोड़कर उन्होंने राज्यसभा की उम्मीदवारी तय करने में राष्ट्रीय जनता दल की तरह  कभी न तो परिवार और न ही धन कुबेरों को प्राथमिकता दी, लेकिन ये भी तथ्य है कि अपने इस कार्यकाल में नीतीश, इसके अलावा कमोबेश हर फ़्रंट ख़ासकर शासन और प्रशासन में पूर्व के कार्यकाल के तुलना में फिसड्डी साबित हो रहे हैं.

इसका एक उदाहरण उनको पिछले शनिवार को अपने गांव कल्याणबीघा में पत्नी की पुण्यतिथि के दिन देखने को मिला जब 11 वर्ष के सोनू नामक बच्चे ने न केवल राज्य के शिक्षा व्यवस्था बल्कि शराबबंदी की ये कहकर पोल खोलकर रख दी कि उसके पिता अधिकांश कमाई शराब के नशे में बर्बाद कर देते हैं. जबसे सोनू का ये वीडियो वायरल हुआ है, उसकी कहानी अलग-अलग माध्यम में पिछले चार दिनों में  पांच करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं जिसमें फ़ेसबुक पर तीन करोड़ से अधिक दर्शक अकेले हैं और इस आंकड़े को बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जा सकता. हालांकि परंपरागत मीडिया मतलब अख़बारों में सोनू की कहानी को कोई ख़ास तबज्जो नहीं दी गई लेकिन सोनू ने शिक्षा व्यवस्था पर जो सवाल उठाया उस पर नीतीश मौन हैं और सोशल मीडिया के सेनानी उनकी जमकर पोल खोल रहे हैं. उनके समर्थक मानते हैं कि सोनू का देरसबेर नामांकन तो हो ही जायेगा लेकिन शिक्षा व्यवस्था को लेकर आख़िर नीतीश मौन क्यों हो जाते हैं? 

विडंबना ये है कि विश्व प्रतिष्ठित 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने भी बिहार की शराबबंदी से कैसे बग़ल के राज्यों और नेपाल जैसे देश को आर्थिक लाभ हो रहा है,  इस पर बुधवार के अख़बार में विस्तृत रिपोर्ट कर एक तरह से सोनू की ओर से खोली गई नीतीश कुमार के शराबबंदी की पोल पर मुहर लगा दी. नीतीश के शराबबंदी का सच यह है कि सर्वोच्च न्यायालय बार-बार उनके क़ानून पर असंतोष ज़ाहिर कर चुका है. इसको विफल कराने में जो माफिया सक्रिय हैं उसमें पुलिस की सक्रिय भूमिका भी किसी से छिपी नहीं है और उसके मुखिया पिछले सोलह वर्षों से अधिक समय से नीतीश कुमार खुद हैं. 

सोनू के घटना के पूर्व बिहार, पूरे देश में राज्य लोकसेवा आयोग के परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने के कारण सुर्ख़ियों में था. हालांकि इसकी जांच राज्य आर्थिक अपराध इकाई कर रही है. ये उन गिने-चुने पुलिस के विभागों में से एक है जहां नीतीश काबिल अधिकारियों को पोस्ट करते हैं. लेकिन इसकी अब तक के जांच में कुछ बातें अहम हैं, पहली-एक जयवर्धन गुप्ता नामक प्रखंड विकास अधिकारी जो गिरफ़्तार हुआ, वह कुछ साल पूर्व घूस लेते रंग़े हाथों गिरफ़्तार हुआ था लेकिन चौंकाने वाली बात है कि नीतीश के शासन में उसको इस मामले में सजा दिलाने के बजाय निलंबन मुक्त कर मनमाफ़िक पोस्टिंग दी गई. दूसरी बात यह कि जब परीक्षा रविवार को थी तो नीतीश कुमार ने शनिवार को कई ज़िलों के ज़िला अधिकारियों का तबादला किया जबकि उनके अनुभव और उनके आसपास के अनुभवी भारतीय प्रशासनिक सेवा के लोगों को मालूम था कि बिहार लोकसेवा आयोग की परीक्षा का नोडल अधिकारी, ज़िला अधिकारी होते हैं. सवाल यह है कि नीतीश को आख़िर किस चीज़ की इतनी बेताबी थी और उन्होंने धैर्य रखना बेहतर क्यों नहीं समझा ? तीसरी बात यह कि एक आईएएस अधिकारी जो जांच के घेरे में हैं, उसके लिए नीतीश कुमार के मंत्रिमंडल के सदस्य जांच दल पर बचाने का इतना दबाव क्यों बना रहे हैं ?  

 जो नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के मामले में कभी समझौता न करने की दुहाई देते हैं उसका एक सच ये भी है कि उन्होंने गया में पदस्थापित एक नहीं, दो-दो भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों को भ्रष्टाचार के मामले में वहां से हटाया. फिर उन्हें पोस्टिंग के लिए प्रतीक्षा सूची में रखा और फिर पोस्टिंग भी कर दी. ये सब निर्णय नीतीश के खुद के हैं. ये बात अलग है कि उनके नज़दीकियों के अनुसार, अब उन दोनों अधिकारियों के ख़िलाफ़ विभागीय जांच के आदेश निकाले गए हैं. वैसे ही अब तो सहयोगी भाजपा के विधायक भी मानते हैं कि राजभवन के दबाव पर नीतीश कुमार ने विवादास्पद कुलपतियों के ख़िलाफ़ जांच को धीमा करवाया और इसका प्रमाण यह है कि आर्थिक अपराध इकाई की छापेमारी के बाबजूद किसी कुलपति के ख़िलाफ़ चार्जशीट आज तक दायर नहीं हुई. उत्पाद विभाग में निलंबित अधिकारी की पोस्टिंग पर भी नीतीश मौन ही रहते हैं जबकि मीडिया में ख़बर आने पर वो संज्ञान ज़रूर लेते और वरिष्ठ अधिकारियों को जवाब देने का आदेश देते.  

नीतीश की शासन व्यवस्था कितनी लचर होती जा रही है, इसका आपको इस एक घटना से अंदाज़ हो जाएगा कि जिस दिन उनकी सरकार के उद्योग विभाग का दिल्‍ली में इनवेस्‍टर मीट आयोजित था, उसी दिन नीतीश जो राज्य के मुखिया हैं, पटना में नालों का निरीक्षण कर रहे थे. ये इस बात का सूचक है कि उनके राज्य में उद्योग लगे या उद्योगपति निवेश करें, उसमें उनकी बहुत रुचि नहीं है. हालांकि उनके समर्थकों के अनुसार, राज्य में या बेगूसराय या पूर्णिया में जब नये उद्योग लगे तो नीतीश वहां खुद उपस्थित थे. इसीलिए उन पर ये आरोप ग़लत हैं. हालांकि उनके ऐसे प्रवक्ताओं के पास इस बात का जवाब नहीं होता कि डबल इंजन  की सरकार होने के बाद भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले, उस पर वे आज तक प्रधानमंत्री के पास क्यों अपने मांगपत्र के साथ फ़रियाद नहीं लगाते हैं जो शासन कितने अनमने ढंग से वो इस बार कर रहे हैं, उसका परिचायक है. 

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तीसरे सचिवालय में लगी आग का नीतीश मुआयना करने पहुंचे थे

इसके अलावा जब पटना में तीसरे सचिवालय में आग लगी तो नीतीश उसका मुआयना करने तो पहुंचे लेकिन सबको इस बात पर हैरानी हुई कि नीतीश ने बार-बार राज्य के सचिवालय में आग क्यों लगती है और भविष्य में ऐसी घटना न हो, इस पर न तो कोई समीक्षा बैठक की और न ही ऐसी कोई गाइडलाइन जारी की जिससे इस बात का अहसास हो कि वो ऐसी घटनाओं पर गंभीर हैं. सबसे ज्‍यादा हैरानी की बात यह है कि मात्र कुछ कदम के दूरी पर सभी सचिवालय स्थित हैं, इसके बावजूद नीतीश के सुशासन काल में एक फ़ायर ब्रिगेड की यूनिट तो छोड़िए, एक वाहन भी तैनात नहीं रहता जबकि राज्य सरकार निर्माण कार्य में हज़ारों करोड़ खर्च करती है. 

हालांकि नीतीश के इस कमजोर शासन का एक मुख्य कारण, उनके दल का संख्या बल कम होना बताया जाता है क्योंकि लोकतंत्र में सब कुछ उसी के आधार पर होता है. लेकिन ये भी सच है कि राष्ट्रीय जनता दल के तुलना में भाजपा कामकाज में उतना हस्तक्षेप नहीं करती लेकिन नीतीश खुद अपनी रुचि खोते जा रहे हैं. जैसे राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण आप ले लें लेकिन धीमी गति से तंग आकर आजकल पटना हाईकोर्ट को प्रमुख राजमार्गों का निर्माण की मॉनिटरिंग खुद करनी पड़ रही है. यह सब केवल यही दिखाता है कि नीतीश कुमार भले गद्दी पर बैठे हों लेकिन शासन अब लुंजपुंज होता जा रहा है. नीतीश भी इस सच को जानते हैं इसलिए अब वो पत्रकारों से दूरी बनाकर संवाददाता सम्मेलन करने की खानापूर्ति करते हैं जहां सवाल भी उनके मनमाफ़िक मतलब उनकी अनुमति से होते हैं.  ये नीतीश कुमार और आज के बिहार की सच्‍चाई है. 

(मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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