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This Article is From Mar 11, 2016

महेंद्र सिंह धोनी के पीछे-पीछे चलती रही है किस्मत

Sanjay Kishore
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 11, 2016 19:44 pm IST
    • Published On मार्च 11, 2016 19:38 pm IST
    • Last Updated On मार्च 11, 2016 19:44 pm IST
7 अगस्त 2007....एक खास खिलाड़ी के कारण यह तारीख खास बन गई। सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ की सलाह पर बीसीसीआई ने 26 साल के एक लंबे बालों वाले विकेटकीपर-बल्लेबाज़ को भारत की T20 टीम का कप्तान बनाने का ऐलान किया। तब कम ही लोगों ने गौर किया होगा कि इस तारीख में 7 की संख्या 2 बार आ रही है। अब इसे इत्तेफाक मानिए या उस खिलाड़ी की किस्मत का संयोग जो 7 को अपना लकी नंबर मानता है। 7 नंबर की जर्सी पहन एक छोटे शहर रांची का नौजवान महेंद्र सिंह धोनी क्रिकेट की दुनिया में धूम मचाने के लिए तैयार था।

आखिर क्यों धोनी 7 नंबर को भाग्यशाली मानते हैं। दरअसल धोनी का जन्मदिन 07/07/1981 है। इस तारीख में भी 2 जगह 7 है। बाद में धोनी ने शादी की तो सातवें महीने में। यहां तक कि उनकी बाईक और गाड़ियों के नंबर में भी 7 अंक जरूर रहता है।

लेकिन क्या सिर्फ किस्मत के बल पर एक नया इतिहास लिखा जा सकता है? "मेरे पीछे मेरी किस्मत होगी डावर साहब!," फ़िल्म "दीवार" में अमिताभ बच्चन का यह मशहूर डॉयलाग शायद आपको याद हो। धोनी ने बतौर कप्तान अगले 10 साल तक कामयाबियों की जो कहानी लिखी उसके बाद किस्मत उनके पीछे चलती नजर आई। माही का मिडास टच सफलता की गारंटी बन गया।

एक बार फिर लौटते हैं फ्लैश बैक में। कप्तान बनने के बाद महेन्द्र सिंह धोनी को सीधे आईसीसी वर्ल्ड T20 के लिए भेज दिया गया। आईसीसी वर्ल्ड T20 के पहले भारत ने सिर्फ एक T20 मैच खेला था। लेकिन तब भी जोखिम भरे फैसले को लेने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हुई। फाइनल में आखिरी ओवर में पाकिस्तान को 13 रन बनाने थे जबकि विकेट सिर्फ एक ही बचा था। धोनी ने गेंद जोगिंदर शर्मा को थमा दी। उनके इस निर्णय से जानकार हैरान रह गए। जोगिंदर ने पहली ही गेंद वाईड फेंक दी। अगली गेंद पर कोई रन नहीं बना। दूसरी गेंद पर मिस्बाह-उल-हक़ ने छक्का मार दिया। अब 4 गेंदों पर 6 रन चाहिए थे। तीसरी गेंद पर मिस्बाह आउट हो गए। कामयाबी उन्हीं के कदम चूमती है जो साहसिक निर्णय लेते हैं। धोनी के एक फैसले ने भारत को T20 का वर्ल्ड चैंपियन बना दिया।

"गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ए-जंग में
वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले"

शायद महेन्द्र सिंह धोनी का यही फलसफा रहा है। उनकी किस्मत पर रश्क करने वालों को यह भी जान लेना चाहिए कि किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है जिसमें हौसला और हिम्मत हो।

2011 में भारत 28 साल बाद दुबारा वर्ल्ड चैंपियन बना तो इसमें भी धोनी के लीक से हटकर हैरान करने वाले फैसलों का अहम योगदान रहा। धोनी ने हमेशा वही किया जो उन्हें ठीक लगा। यूसुफ पठान और सुरेश रैना के बीच जब फैसले की बारी आई तो माही ने रिकॉर्ड्स के बजाए अपने आप पर भरोसा किया। क्वार्टरफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ और उसके बाद सेमीफाइनल में पाकिस्तान के विरुद्ध भी सुरेश रैना ही खेले। नतीजा सबके सामने था। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ आशीष नेहरा का प्रदर्शन फीका रहा। लगा कि उनका करियर यहीं खत्म हो जाना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल में धोनी ने फिर जोखिम लिया और आशीष नेहरा पर ही भरोसा किया। नेहरा ने कप्तान की उम्मीदें नहीं तोड़ीं। उनका बॉलिंग फिगर रहा 10 ओवर, शून्य मेडन, 33 रन और 2 विकेट।

कप्तान का मास्टर स्ट्रोक रहा वर्ल्ड कप फाइनल में इनफ़ॉर्म बल्लेबाज़ युवराज सिंह से पहले बल्लेबाज़ी करने आना। हालांकि धोनी ने इसका सेहरा कोच गैरी कर्स्टन को दिया। लेकिन धोनी के इस फैसले और उनके इस छक्के से भारत वर्ल्ड चैंपियन बन गया।

चेन्नई सुपरकिंग्स अगर दो बार आईपीएल चैंपियन बना तो इसमें भी धोनी की कप्तानी और उनके अहम फैसलों का सबसे बड़ा योगदान रहा है। आईपीएल 2011 में धोनी ने 5 बार अश्विन के हाथों में नई गेंद दी और लगभग हर बार अश्विन कप्तान के भरोसे पर खरे उतरे। पूरे टूर्नामेंट में अश्विन को खुद पर यकीन हो न हो लेकिन धोनी का उन पर पूरा यकीन था।

दिसंबर 2009 में उनकी कप्तानी में भारतीय टीम टेस्ट में नंबर-1 टीम बनी। आईसीसी के सभी तीन वर्ल्ड खिताब जीतने वाले पहले कप्तान हैं धोनी। 2007 में आईसीसी वर्ल्ड T20, 2011 में आईसीसी वर्ल्ड कप और 2013 में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी। चैंपियंस ट्रॉफी में जीत के साथ ही धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने वो मुकाम हासिल कर लिया है जो उनसे पहले किसी भी भारतीय कप्तान के लिए एक सपना था। टेस्ट, वनडे और टी20 के फॉर्मेट में माही ने टीम इंडिया को क्रिकेट के शिखर पर लाकर रख दिया। 2010 और अब 2016 में टीम एशिया कप चैंपियन बनी। धोनी के प्रदर्शन का सम्मान आईसीसी ने उन्हें 2008 से 2011 तक लगातार 5 बार वनडे वर्ल्ड इलेवन में शामिल कर किया।

दिसंबर 2014 में अचानक टेस्ट से संन्यास लेकर उन्होंने सबको हैरान कर दिया। 2015 उनके लिए अच्छा नहीं रहा। सीमित ओवर्स में भी वह मिडास टच नज़र नहीं आया। ऑस्ट्रेलिया में ट्राई सीरीज़ में महेंद्र सिंह धोनी की टीम एक भी मैच नहीं जीत पाई। वर्ल्ड कप में कैप्टन कूल की टीम ने पाकिस्तान को हराकर ज़बरदस्त शुरुआत की। सेमीफ़ाइनल तक पहुंचते-पहुंचते वर्ल्ड कप में लगातार 11 जीत का रिकॉर्ड बन चुका था। मगर फिर ऑस्ट्रेलिया ने विजय रथ रोक दिया। 28 साल बाद जीता ख़िताब छीन गया। आाखिरी कील दक्षिण अफ्रीकी टीम ने ठोक दी। पहली बार प्रोटियाज़ ने भारतीय पिच पर वनडे सीरीज़ जीती। लेकिन इस साल ऑस्ट्रेलिया में T20 सीरीज़ और फिर बांग्लादेश में एशिया कप में जीतने के बाद धोनी का जादू लौटता नज़र आ रहा है। टीम इंडिया आईसीसी वर्ल्ड में सबसे बड़ी दावेदार मानी जा रही है।

महेन्द्र सिंह धोनी की सबसे बड़ी बात है दबाव और विपरीत हालात में भी खुद को शांत और संयमित रखते हैं। तभी उन्हें कैप्टन कूल कहा जाता है। वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फ़िनिशर माने जाते हैं। आईसीसी वर्ल्ड कप 2011 और इसी महीने एशिया कप में जीत उनके छक्के के हस्ताक्षर के साथ आई। 2007 में रांची के राजकुमार से शुरू हुआ सफर वर्ल्ड के बादशाह के रूप में खत्म हो ख़्वाहिश यही होगी 34 साल के महेंद्र सिंह धोनी की। करियर की भी फ़िनिशिंग सुपर होनी चाहिए। लेकिन क्या माही सचमुच बाय-बाय कर देंगे?

संजय किशोर एनडीटीवी के खेल विभाग में एसोसिएट एडिटर हैं...

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