महाराष्ट्र में सीटों को बंटवारे को लेकर दोनों ब्लाॅक में मंथन चल रहा है. इंडिया ब्लाॅक और एनडीए दोनों के बीच मीटिंग चल रही हैं. एनडीए में कई दौर की बात हो चुकी है. कहानी अब दिल्ली भी जा चुकी है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शिंदे सेना और अजित पवार के संग अलग अलग बैठकें भी की हैं. इन बैठकों में क्या नंबर तय हुए हैं इस पर बात न भी करें तो ये देखना होगा कि कैसे बीजेपी इस पूरे मंथन के बाद राज्य में और मज़बूत होने जा रही है.
शिवसेना के टूटने के बाद से ये साफ है कि बीजेपी अब पुराने किसी फाॅर्मूले पर काम नहीं करने जा रही है. शिवसेना के साथ बीजेपी का पुराना फार्मूला था कि लोकसभा में बीजेपी ज्यादा सीटों पर लड़ेगी और शिवसेना कम पर. विधानसभा में इसके उलट काम होता था. वक्त के साथ साथ ये फाॅर्मूला बदलता गया. बात बराबरी पर आई. और फिर बात शिवसेना के कम सीटों पर आकर सिमट गई. सीट बंटवारे की बातचीत के बीच शिंदे सेना और अजित पवार कैंप लगातार ये बता रहे हैं कि कोई भी डील फाइनल नहीं हुई है. ये कहने की तीन बड़ी वजह हो सकती हैं. पहली तो ये कि दोनों कैंप एक फाॅर्मूला चाहते हैं. शिंदे सेना कह रही है कि उसके पास मौजूदा 13 सांसद हैं. उनको सीट दी जाएं. बीजेपी कह रही है कि आधार जीत हार हो. क्योंकि बहुत से नेता इसलिये जीते क्योंकि मोदी की ब्रांड वैल्यू थी. शिंदे सेना इस हकीकत से भी वाकिफ है कि बीजेपी की बात में दम है. बीजेपी इसमें भी बीच का रास्ता सुझा रही है. नेता शिंदे सेना का और निशान बीजेपी का अजित पवार गुट एक अलग ही डील चाहता है. वो कह रहे हैं कि जितनी सीट शिंदे सेना को मिलेंगी उतनी ही अजित पवार गुट को मिलें. वो आधार विधानसभा के प्रदर्शन को बनाना चाहते हैं. अजित पवार के साथ वैसे भी एक ही सांसद हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में वैसे भी संयुक्त एनसीपी कुछ ज्यादा नहीं कर पाई थी. अजित पवार गुट ऐसे संदेश दे रहा है जिससे वो बता सके कि राज्य में लोकसभा चुनाव में जो बलिदान दे रहे हैं उसकी राजनीतिक कीमत उन्हें विधानसभा चुनाव में मिलेगी.
शिंदे सेना बीजेपी से भरोसा चाहती है कि अगर वो लोकसभा में कम सीट पर लड़ने को तैयार होगी तो उसकी भरपाई विधानसभा चुनाव में हो. जो हालात हैं उन्हें देखकर लगता है कि बीजेपी राज्य को इस रस्साकशी से बाहर निकालना चाहती है. उसके 100 से ज्यादा विधायक हैं. अगर पार्टी एक और बड़ा ज़ोर लगाए तो अपनी दम पर राज्य में आ सकती है. वहां तक पहुंचने के लिये उसे लगातार दूसरे दलों को छोटा करना होगा.
बीजेपी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. महाराष्ट्र यूपी के बाद लोकसभा सीट वाला सबसे बड़ा राज्य है. यहां का मंथन बीजेपी तब तक खत्म नहीं कर सकती जब तक कि सबसे ताकतवर नहीं बन जाती. महाराष्ट्र कई मायनों से उसके लिये पेचीदा है. अगड़े मराठाओं को संभालना, पिछड़े मराठाओं के आरक्षण की मांग और बंटा हुआ ओबीसी समुदाय. पिछले कई दशकों में बीजेपी ने छितरे और बंटे हुए ओबीसी को एक करने का काम किया था. जिसके सहारे उसकी बड़ी लीडरशिप तैयार हुई. अगड़े मराठाओं का झुकाव कई वजहों से कांग्रेस और एनसीपी की ओर था. जिस कमी को पूरा करने का काम बीजेपी अब नेताओं को आयात करया फिर एलायंस करके पूरा कर रही है. बीजेपी एक इंद्रधनुष बनाना चाहती है जिसमें सिर्फ एक समूह ही ताकतवर न हो. अगर बीजेपी तालमेल वाला ये इंद्रधनुष बनाने में कामयाब हो जाती है तो वो लंबे वक्त के लिये राज्य में शासन करेगी. विपक्ष के पास बहुत कम विकल्प होंगे.
बीजेपी के लिए सुकून की बात ये है कि चुनौती देने वाला इंडिया ब्लाॅक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है. अगर पहुंच भी जाता है तो उसके पेंच जल्दी नहीं सुलझ सकते. इंडिया ब्लाॅक चाहता है कि सबसे पहले उन घटकों को जोड़ा जाए जो दलित और मुस्लिम वोट को नुकसान पहुंचाते हैं. एआईएमआईएम और प्रकाश अंबेडकर की पार्टी ने पिछली बार खासा नुकसान पहुंचाया था. एआईएमआईएम इंडिया ब्लाॅक में नहीं आ रही है. उसे लेकर कांग्रेस और शिवसेना दोनों असहज हैं. वो नहीं चाहते है कि बीजेपी को बड़ा हमला करने का मौका मिले. प्रकाश अंबेडकर की पार्टी भी पूरा मोल भाव करना चाहती है. प्रकाश अंबेडकर के सारे बयान बता रहे हैं कि वो नुकसान पहुंचाने की ताकत को जानते हैं. जो हालात हैं उनसे लगता है कि प्रकाश अंबेडकर आखिर तक इंडिया ब्लाॅक को लटका कर रख सकते हैं. ये भी संभव है कि वो आखिर में गठबंधन का हिस्सा बने ही न.
उद्धव की सेना का दायरा बीजेपी ने वैसे भी बहुत कम कर दिया है. उसके पास विकल्प कम हैं. उद्धव की राजनीतिक पूंजी वैसे भी अब कई हिस्सों में बंट गई है. कुछ एकनाथ शिंदे ले गये. कुछ राज ठाकरे के पास है. बहुत कुछ बीजेपी के पास भी है. अब बची खुची ताकत में उन्हें अच्छे उम्मीदवार चाहिए हैं. ऐसे उम्मीदवार जो अपने साधनों पर चुनाव लड़ सकें. शरद पवार की एनसीपी अपनी राजनीतिक हकीकत को समझ रहे हैं इसलिए संभव है कि वो लंबी चौड़ी मांग न करें. उनका दायरा वैसे भी 2-4 सीटों पर ही है. इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस जरूर चाहेगी कि उसका ग्राफ बढ़े. वो शिवसेना से बड़ी पार्टनर बन सकती है. इस मामले में बीजेपी का रोल भी दिलचस्प होगा. वो चाहेगी कि कांग्रेस वाली सीटों पर उसका सीधा मुकाबला हो. ऐसे सीधे मुकाबलों में बीजेपी का पलड़ा हमेशा भारी रहता है.
महाराष्ट्र में जो मंथन शुरू हुआ है वो लोकसभा चुनाव के बाद भी जारी रहेगा. लोकसभा चुनाव के समझौते बीजेपी को विधानसभा चुनाव में कहां पहुंचाते हैं इस पर सबकी नजर होगी. ये बात साफ है कि बीजेपी आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव को लेकर अपनी बात साफ कर चुकी है. समझौते या सीट बंटवारा उसकी शर्तों पर होगा. बाकी के दलों को ये मानना ही होगा.
अभिषेक शर्मा NDTV इंडिया के मुंबई के संपादक रहे हैं... वह आपातकाल के बाद की राजनीतिक लामबंदी पर लगातार लेखन करते रहे हैं...
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