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This Article is From Nov 30, 2014

क्रांति की कलम से : बेडरूम तक मत ले जाइए गाड़ी

Kranti Sambhav, Saad Bin Omer
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 30, 2014 18:09 pm IST
    • Published On नवंबर 30, 2014 18:00 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 30, 2014 18:09 pm IST

राजू कोली से फ़ोन पर जब बात हुई तो पता नहीं चल रहा था कि वह ख़ुद नेत्रहीन हैं या फिर कुछ नेत्रहीन छात्रों के नुमाइंदे। मैं दरअसल नेत्रहीन लोगों के पैदल चलने में आने वाली दिक्कतों के बारे में किसी से बात करना चाहता था। लेकिन राजू ने जब फ़ोन पर कहा कि मैं ही आपके ऑफ़िस आ जाता हूं। राजू के कॉन्फ़िडेंस से मैं संशय में पड़ गया। लेकिन फिर मैंने कहा कि नहीं मैं ही आता हूं और मैं उसके हॉस्टल के पास सादिक़ नगर पहुंचा। कुछ देर के बाद मैंने राजू कोली को एक रास्ते से बाहर निकलते देखा। तरतीब से बने बाल, शेव किया चेहरा और कंधे पर बैग और हाथ में सफ़ेद छड़ी। आत्मविश्वास के साथ रास्ते को भांपते, राजू आगे बढ़ता आ रहा था।

कई बार हम लोग बातचीत में ये जुमला इस्तेमाल करते हैं, मैं समझ सकता हूं। ख़ासकर अंग्रेज़ी में- आई अंडरस्टैंड। लेकिन कई बार ये जुमला कितना सतही होता है वह मुझे महसूस हुआ जब मैं राजू के साथ कुछ दूर चला। विकलांगों को दिक्कत आती है सड़कों पर ये मैं जानता तो था, लेकिन समझता कितना कम था तब पता चला।

मेरे कैमरापर्सन ज़ुबैर कैमरा लिए उल्टा चल रहे थे और मैं राजू के साथ बात करते हुए आगे जा रहा था। उनके साथ आधे किलोमीटर चल कर ही पता चल गया कि उन्हें कैसी दिक्कतों से दो-चार होना पड़ता है।

सड़कों के किनारे फ़ुटपाथ नहीं हैं, जहां फ़ुटपाथ हैं उन पर भी गाड़ियां खड़ी है और जहां फ़ुटपाथ ख़ाली थी वहां की ऊंचाई ऐसे ऊपर-नीचे की क्या कहें, बीच-बीच में गड्ढे और यही नहीं फ़ुटपाथ पर लगे बोर्ड जो विज्ञापनों के लिए लगाए गए हैं।

राजू ने बताया कि कैसे इन बोर्ड से टकरा कर उसका चेहरा छलनी हो गया था। कैसे इन रास्तों के डर से नेत्रहीन सड़कों पर आने से डरते हैं। और सोचिए अगर कोई व्हीलचेयर पर हो तो उसका ऐसे रास्तों पर क्या होगा? यह सब सुनकर साफ़ होता गया कि क्यों हमारी सड़कों पर हम विकलांगों को इतना कम देखते हैं। हमने उन्हें सड़कों से धकिया दिया है।

अगर आप सोच रहे हैं कि हमने केवल विकलांगों को ही धकियाया, दुत्कारा है तो आप फिर ग़लत हैं। हमने भारत की सड़कों से हरेक पैदल यात्री को बेदख़ल कर दिया है। शहरी विकास मंत्रालय के एक सर्वे के मुताबिक हर दिन देश की लगभग 30 फ़ीसदी आबादी अपने रोज़ का सफ़र पैदल तय करती है और हर साल सड़क हादसों मे मरने वाले लोगों में से 10 फ़ीसदी पैदल यात्री ही होते हैं। हालांकि यह आंकड़ा भी साल 2008 के सर्वे है। इतना खोजा लेकिन 8 साल पुराने सर्वे के अलावा कोई आधिकारिक जानकारी कहीं नहीं मिली।

पैदल और साइकिल यात्रियों को ट्रांसपोर्टेशन के टर्म में सबसे असुरक्षित रोड यूज़र कहा जाता है। इंफ़्रास्ट्रक्चर, सिग्नल फ़्री सड़कों और एक्सप्रेसवे की दीवानी सरकारें और हमारे अर्बन प्लानर ने अपनी सभी प्लानिंग में पैदल लोगों को ऐसे ग़ायब कर दिया है जैसे ये हमारे देश की आबादी हैं ही नहीं।

दिल्ली से गुड़गांव तक का एक्सप्रेस-वे इसका अच्छा उदाहरण है। 28 किलोमीटर का वर्ल्ड क्लास हाईवे, एशिया का सबसे बड़ा 32 लेन वाला टोल प्लाज़ा और पैदल लोगों के लिए? कुछ नहीं। सोचिए कि जिस रास्ते ने दर्ज़न से ज़्यादा गांवों को बांट दिया है, जिसके लोग क्या चलते नहीं होंगे?

एक रिपोर्ट बताती है कि हर दिन डेढ़ लाख लोग इसे पार करते हैं। लेकिन इससे हाईवे कंपनियों को क्या मतलब। नतीजा पिछले दो साल में इस रास्ते पर 111 पैदल लोगों की मौत।

लेकिन क्या केवल सरकारों और अर्बन प्लानर की बेरुख़ी ने पैदल यात्रियों को सड़कों से बेदख़ल किया है? नहीं। हम और आप जैसे लोगों ने भी किया है। जिनकी कार, मोटरसाइकिल किसी के लिए रुकना पसंद नहीं करती। गाड़ी के सामने कोई पैदल यात्री आ जाए तो प्रेशर हॉर्न का ऐसा चाबुक चलाते हैं कि सामने वाला बिलबिला कर रास्ता छोड़ दे। अपने घरों के सामने और कॉलनियों के रास्तों को गाड़ी से ऐसे कस देते हैं कि बड़े क्या बच्चों के चलने की जगह नहीं छोड़ी है। और फिर सड़कों पर उन्हीं गाड़ियों को लेकर आते हैं, सरकारों को, नगर निगम को, पीडब्ल्यूडी को कोसते भी हैं, पैदल लोगों को बुरा भला कहते हैं कि चलने का शऊर नहीं इन्हें।

नमक हराम फ़िल्म याद है ना, राजेश खन्ना और अमिताभ में जब लड़ाई हो चुकी होती है। जिगरी दोस्त से आमने-सामने खड़े मज़दूरों के लीडर और फ़ैक्ट्री मालिक बन चुके होते हैं। आख़िर में राजेश खन्ना अमिताभ को अपनी मजबूरी बता रहे थे कि कैसे रोज़ गाड़ी में बैठे-बैठे ग़रीबों की बस्ती से गुज़रते, ग़रीबी देखकर दुख जताना आसान था लेकिन एक बार गाड़ी से उतरकर उस बस्ती में गया तो वापस नहीं आ पाया।

कहने का मतलब वही है जो आप समझ रहे हैं। अपनी अपनी गाड़ी से उतरकर कभी पैदल भी चलिए। बेडरूम तक गाड़ी मत ले जाइए। ज़मीन पर भी क़दम रखिए और महसूस कीजिए कि जो पहिए नहीं अपने पांव चलाते हैं, वे कैसा महसूस कर रहे हैं... हमने और हमारी गाड़ियों ने कैसे उनका दम घोंट रखा है।

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