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This Article is From Jan 02, 2016

बड़ा 'ऑड' रहा साल का पहला दिन

Kranti Sambhav
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 03, 2016 20:03 pm IST
    • Published On जनवरी 02, 2016 11:45 am IST
    • Last Updated On जनवरी 03, 2016 20:03 pm IST
देश के बाकी हिस्सों में नए साल का पहला दिन लोगों ने एक-दूसरे से हैप्पी न्यू ईयर बोलकर गुज़ारा। दिल्ली में हैप्पी न्यू ईयर के साथ एक सवाल भी जोड़ा 'ऑड या ईवन' और इस सवाल का मेरा जवाब था- ईवन। यानि साल का पहला दिन मेरे लिए तो बे-कार गुज़रा। और यह अचानक नहीं था, मुझे पता था कि पहली तारीख़ को मेरे पास कार नहीं होगी। इसके लिए प्लान तो नहीं किया था, लेकिन यह तय किया था कि जब तक ऑफिस से बहुत लेट नाईट ना निकलूं, मैंने तय किया था कि कैब न ली जाए। जितना हो सके पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करूं। आफिस जाते वक़्त तो लिफ़्ट मिल गई थी, संयोग से शाम में वक्त पर निकल भी पाया और मेट्रो से घर आया।

दिल्ली के लिए नया दिन-नया साल
दिल्ली शहर के लिए ये दिन ख़ास रहा। ऐसा इसलिए क्योंकि दिल्ली वाले जो अपनी आक्रामता, बदमिजाज़ी, बदज़ुबानी के लिए बदनाम हैं, उनसे बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं की जा रही थी, लेकिन मुझे उम्मीद थी कि अगर ऑड-ईवन नियम लागू करने के लिए पुलिस और एजेंसियां मुस्तैद होंगी तो फिर दिल्ली वाले इसे मानेंगे। मेरी इस उम्मीद के पीछे दिल्ली के लिए कोई रोमांस नहीं बल्कि ठोस वजह थी। वह है हेलमेट और कार सीट बेल्ट नियम का दिल्ली में लागू होना और कॉमनवेल्थ के वक़्त राइट लेन को खाली रखने में सफलता। दिल्ली में अगर एन्फॉर्समेंट अच्छा हो तो दिल्ली वाले नियम मानते हैं और ये रिकॉर्ड ऐसा है जो मुझे देश के बाक़ी शहरों से ज़्यादा बेहतर लगता रहा है।

साफ़ हवा की ज़रूरत सबको है
दिल्ली की सड़कों पर जब मैं गुज़रा तो ईवन नंबर की गाड़ियां वाकई ना के बराबर थीं। कुछ थीं ज़रूर जो सीएनजी नहीं लग रही थीं, लेकिन मोटे तौर पर कहानी ऑड ही रही। दिल्ली के मंत्री ने कहा कि जब उन्होंने डीटीसी की बस पर दौरा किया तो उन्हें खोजने पर भी सम नंबर की गाड़ी नहीं दिखी। उनके बयान को बहुत हद तक सही मान सकते हैं। लोगों ने पालन किया और मात्र डेढ़ सौ के आसपास चालान हुए। यह एक उपलब्धि है। दिल्ली सरकार ख़ुश है। दिल्लीवालों को धन्यवाद दे रही है। धन्यवाद देना ज़रूरी भी है।

भविष्य ख़ुद को लेकर चिंतित है
दिल्ली की एक जनवरी 2016 को जब भी याद किया जाएगा तो बच्चों का ज़िक्र ज़रूर होगा। स्कूली बच्चों ने साथ मिलकर ऑड-ईवन प्रयोग को नियम और क़ानून से बढ़ाकर मुहिम की शक्ल दे दी। सड़क किनारे खड़े होकर गांधीगिरी के तरीके से लोगों को समझाया और नियम का पालन करने के लिए गुज़ारिश की, कहा कि हम सबकी सेहत ख़ासकर बच्चों की सेहत से खिलवाड़ ना करें। बच्चों की बात सुनकर लोगों में कितना असर पड़ा, यह अपने सहयोगी परिमल कुमार की रिपोर्ट में दिखा। जहां एक शख़्स पहले ईवन नंबर की कार से निकले और जब बच्चों ने याद दिलाया तो वो घर वापस गए और बाइक लेकर निकले। ऐसी रिपोर्ट से उम्मीद बंधती है कि बच्चे ख़ुद अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

सोमवार को क्या होगा?
दिल्ली जैसे अपूर्ण राज्य में जो कुछ होता है उसकी चर्चा आमतौर पर देश भर में होती है। बहुत सी बातें उत्सुकता वाली होती हैं और बहुत सी आलोचना वाली। ऐसे में कोर्ट की झाड़ पड़ने के बाद ही सही दिल्ली सरकार ने जो भी क़दम उठाए उनमें से सबसे ज़्यादा चर्चा ऑड-ईवन नंबर की गाड़ियों के लिए अलग-अलग दिन मुकर्रर करने की हुई। कई नेताओं, भाजपाई-कांग्रेसी समर्थक और जनता ने इस योजना की काफ़ी ख़ामियां निकालीं।

आलोचनाओं में पॉलिटिकल एजेंडे और पूर्वाग्रह ज़्यादा रहे, लेकिन कुछ लोगों की चिंताएं वाजिब भी थीं। एक तो इसे लागू करने के लिए हमेशा केंद्र और दिल्ली पुलिस से लड़ने वाली आम आदमी पार्टी सरकार क्या सभी ज़रूरी इंतज़ाम कर पाएगी और क्या दिल्ली की जनता इन नियमों के लिए चिंता करेगी और पालन करेगी? तो पहले दिन पार्टी करके आराम फरमाने वाली जनता और स्कूलों की छुट्टी को डिस्काउंट करें तो भी लगा कि पहला ऑड बहुत ही ईवन तरीक़े से संपन्न हुआ। इंतज़ार वीकेंड के बाद के पहले सोमवार का है, जब दिल्ली अपनी पूरी ताक़त और संख्या के साथ सड़कों पर उतरेगी और पूरी व्यवस्था की असल परीक्षा लेगी।

कुछ फ़ायदा होगा ?
ख़बरों को देखकर मेरे मित्र ने मुझे संदेश भेज पूछा, कि क्या इस नियम से फ़ायदा होगा? तो अगर केवल ऑड-ईवन फ़ार्मूले को देखें तो फिर आंकड़े तो यही कहेंगे कि कोई ज़्यादा असर नहीं होगा। जितनी कारों पर प्रतिबंध लग रहा है उससे ज़्यादा को तो छूट मिल रही है। शायद, वीवीआईपी, महिलाएं, टैक्सी और तमाम गाड़ियां इनमें शामिल हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि इस फ़ार्मूले का इतना सीमित असर होगा, इसका असर व्यापक होगा, सरकारें पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन पर सोचेंगी, बसों की संख्या बढ़ाई जाएंगी, सड़कों को अनुशासित किया जाएगा, सरकारें साइकिल पर ग़ौर करेंगी, लोग प्रदूषण के बारे में सोचेंगे, और नेता बयान देने के अलावा भी कुछ करने की कोशिश करेंगे।

उम्मीद है कि इन सबके बाद पैदल और साइकिल सवारों के लिए सरकार सोचेगी। उनके लिए अलग लेन, सुरक्षित रास्ता देने के बारे में सरकार सोचेगी। जैसे रात में मेट्रो स्टेशन जाते वक़्त मुझे ऐसा स्ट्रेच मिला जहां पूरा अंधेरा था और सार्वजनिक परिवहन को बेहतर करने का मतलब सिर्फ़ बसों और मेट्रो की बेहतरी नहीं है। उन तक पहुंचने वाले रास्तों को भी बेहतर, रौशन और सुरक्षित करना शामिल होगा।

जैसे रात के वक्त मैं ख़ुद डर रहा था। याद कर रहा था बैंगलोर में अपने भांजे के ऊपर हाल में हुए हमले को। जब एक लैपटॉप के लिए कुछ लड़कों ने उस्तरे से हमला कर दिया था। शुक्र है ज़ख़्म बहुत गहरे नहीं थे। उसे याद करते हुए मैं यह सोच रहा था कि ऑड-ईवन के चक्कर में कहीं मैं ऑड वन ऑउट ना हो जाऊं। लेकिन फिर आगे बढ़ गया, क्योंकि कान में लगे हेडफ़ोन पर रेखा भारद्वाज कुछ गुनगुना रही थीं - कैसी तेरी ख़ुदगर्ज़ी…

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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