तो पैसा वसूल कार बनाने वाली कंपनी ने जब अपने पोर्टफोलियो को नया करने की सोची तो उसे सही तरीक़े से समझाने के लिए कंपनी ने माहौल भी वैसा ही रखने की सोची. रफ्तारप्रेमियों के लिए बनी कार बलीनो RS और उसे टेस्ट करने के लिए पहुंचे फॉर्मूला वन ट्रैक पर.
...और क्या यह कॉम्बिनेशन रोमांचक था, या नहीं था, यही जांचने के लिए, यानी हार्ट-रेट मापने के लिए फिटनेस बैंड लगाया गया था.
फिर मैं जब बलीनो को लेकर बीआईसी पर भागा, तो शुरुआत में काफी संभलकर चलाना था, जैसा कि बताया गया था, हमारे आगे लीड कार चल रही थी, जिसके पीछे एक राउंड मारकर सभी को ट्रैक और नई कार से परिचय करना था. तो उसमें हम सभी एक लाइन में जा रहे थे. बाद में हम सभी को अलग से कार भगाने का मौक़ा मिला.
...और बलीनो RS ने निराश भी नहीं किया. खासकर जिस क़ीमत में, जिस आकार के इंजन और साथ में जिस माइलेज के दावे के साथ यह आ रही है. बलीनो की एक्स शोरूम क़ीमत लगभग पौने नौ लाख रुपये है, और इसमें लगा है टर्बो-चार्ज्ड पेट्रोल इंजन, जिसकी क्षमता सिर्फ एक लिटर की है, और इन सबके साथ टेस्ट माइलेज 21 किलोमीटर प्रति लिटर से ज़्यादा बताई गई है.
...तो इन आंकड़ों के साथ मैंने कार को भगाया, तो मज़ा भी आया. नए इंजन के अलावा कंपनी ने कार के सस्पेंशन को भी बेहतर किया है, जो काफी ठोस ड्राइव देता है. बॉडी रोल भी महसूस होता है और एक वक्त के बाद लगता है कि इंजन और बड़ा होता तो कार और रोमांचक होती, पर यह ज़रूर कहूंगा कि इसका टर्बोचार्जर काफी स्मूद तरीक़े से रफ्तार को बढ़ाता है. ऐसा नहीं कि टर्बो की ताक़त आने में वक्त लगे, जिसे आमतौर पर आपने टर्बो लैग के नाम से सुना होगा. तो इन सभी पहलुओं के साथ भी ड्राइव रोमांचक है. रेस ट्रैक पर पकड़ के साथ चली, कई बार इसने और तेज़ जाने के लिए ललकारा और जब मैंने पुश किया तो मज़े से भागी भी. कई बार मैंने ज़्यादा ऐक्सेलरेट किया, गियर बदलने में अटपटाया, लेकिन एंड रिज़ल्ट मज़ेदार रहा.
ख़ैर, जब इस ड्राइव के बाद पिट लेन में आया तो पता चला कि हर ड्राइवर के लिए ड्राइव कितनी रोमांचक रही, यह बताने वाली एक तस्वीर थी. दरअसल, ट्रैक के अलग-अलग हिस्सों से फिटनेस बैंड की रीडिंग कम्प्यूटर में जा रही थी और पता चल रहा था कि ड्राइवर के दिल की धड़कन कितनी बढ़ी या घटी, यानी ड्राइव रोमांचक रही या नहीं. जो ग्राफ पहले लगे थे, उनके हिसाब से तो मेरे कुछ पत्रकार मित्रों की हार्ट-बीट 125 बीट्स प्रति मिनट तक गई थी. आमतौर पर 125 ही औसत लग रहा था. फिर कुछ देर के बाद मेरे आंकड़े को कम्प्यूटर ने पढ़कर निकाला, तो मैं चौंक गया. औसत 98 का निकला. यानी, यह ड्राइव मेरे दिमाग को तो रोमांचक लगी हो, लेकिन लगता है मेरे दिल को नहीं.
...तो जैसा कि आंकड़ों के साथ आमतौर पर होता है, एक से एक एनैलिसिस होने लगता है. तो मैं भी करने लगा. पहला तो यह लगा कि शायद कार वाकई इतनी रोमांचक नहीं थी, जितनी लग रही थी. एक ख़ुशफहमी ऐसी हुई कि एथलीट जिस फिटनेस का सपना देखते रहते हैं, शायद अनजाने में मैंने वही हासिल कर लिया है, जिससे आम लोगों की तुलना में हार्टबीट कम हो जाता है. फिर यह भी लगा कि शायद इतनी सारी तेज़-तर्रार कारें चलाने के बाद अब मिजाज़ शांत हो गया है, योगी टाइप का हो गया हूं. न हर्ष, न विषाद. तो दिल-दिमाग संतुलित हो गया है. लेकिन मुंह-हाथ धोकर वापस आ रहा था, तो लगा कि शायद घड़ी की रीडिंग ही गड़बड़ा गई होगी... :)
क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...
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