क्या हैं ये वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर? पश्चिम का मीडिया इन्हें कॉन्सन्ट्रेशन कैंप कहता है. लेकिन चीन को इस पर सख्त आपत्ति है. यहां के जानकार और अधिकारियों का एक मत है कि उइघर मुस्लिमों, जिनके खिलाफ आतंक के गंभीर मामले नहीं हैं, उन्हें इन वोकशनल सेंटर भेजना सही है. इससे उन्हें डीरैडिकलाज़ करने में आसानी होती है और वो कोई ना कोई काम सीख कर सरकार की दी आर्थिक मदद के ज़रिए एक सामान्य चीनी नागरिक के तौर पर जीवनयापन कर सकते हैं. सुनने में बुरा नहीं लगता, जब तक कि आप जाकर खुद इन सेंटरों में रह रहे लोगों से बात नहीं करते. बात करने के बाद अधिकारियों की बात सिर्फ दलील लगने लगती है. कम से कम मुझे यही लगा.
शिनजियांग के अधिकारियों ने हम पत्रकारों को दो वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर दिखाए. वहां ले गए. वहां मौजूद ट्रेनियों से, शिक्षकों से बात करने दी. हालांकि दो अहम चीज़ें जो आपको जाननी चाहिए वो है भाषा की समस्या और अधिकारियों की मौजूदगी. असल में शिनजियांग के अधिकतर उइघर, उइघर भाषा बोलते हैं. एक इंटरप्रेटर या दुभाषिया इसका मैंडेरिन भाषा में अनुवाद करता है और मैंडरिन और अंग्रेज़ी जानने वाला दुभाषिया हमारे लिए इसे अंग्रेजी में अनुवादित करता है. इसलिए इन सेंटरों में हमेशा हमने इस बात की कोशिश की कि अनुवाद ईमानदारी से हो और कहीं कुछ Lost in Translation ना हो. दूसरी बात ये कि खासकर इन सेंटरों में हमारे साथ कई चीनी अधिकारी रहे, कम से कम 12 से 15. तो क्या इनकी मौजूदगी किसी तरह से इन सेंटरों में रखे गए उइघर लोगों के बयानों को प्रभावित कर रही थी.
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जिस पहले वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर में हमें ले जाया गया उसका नाम था- वेन्सू काउंटी वोकेशनल स्किल्स ट्रेनिंग सेंटर. शहर से बाहर, बस से करीब 40 मिनट की दूरी पर एक बड़ा इलाका और चारदीवारी के अंदर कुछ बेहद सामान्य लगने वाली इमारतें. घुसते के साथ दाहिने हाथ पर बास्केटबॉल कोर्ट पर कुछ युवा बास्केटबॉल खेलते नज़र आए. मैं उनका वीडियो बनाना चाहती थी, उनसे बात करना चाहती थी लेकिन साथ में मौजूद चीनी अधिकारियों ने कहा कि ये गेम करिकुलम का हिस्सा है, बीच में नहीं रोक सकते, बाद में इनसे बात करने का मौका मिलेगा. अंदर सबसे पहले एक डांस क्लास में ले जाया गया जहां कुछ उइघर मुस्लिम युवाओं ने पारंपरिक और मॉडर्न डांस कर दिखाया. फिर हम एक क्लास में गए जहां मैंडेरिन पढ़ाया जा रहा था. हमने छात्रों से कुछ सवाल पूछने की इजाज़त मांगी. कई छात्रों से बात हुई- कैमरे पर भी और बिना कैमरे के भी, दुभाषिए के ज़रिए. इनसे हमने पूछा कि किन अपराधों के लिए इन्हें यहां लाया गया है. ये अपराध हैं कुरान पढ़ना, हिजाब पहनना, बिना लाइसेंस के निकाह करना, फोन पर जिहादी वीडियो देखना या डाउनलोड करना, अवैध जगहों पर धर्म पर जानकारी सुनना, सरकारी मदद लेने से मना करना, घरवालों को टीवी देखना गैर इस्लामिक बताना, घर की महिलाओं को गैर इस्लामिक बता कर मेकअप लगाने से मना करना वगैरह.
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इनसे और अधिकारियों से बात कर लगता है कि सभी मामलों में किसी ने किसी इनकी रिपोर्ट पुलिस को दी. लेकिन ये भी लगता है कि जब कोई अकेले, अपने फोन पर कोई वीडियो देख रहा हो, तो किसी और को कैसे पता चला? इसमें शंका ये होती है कि क्या यहां लोगों की ऑनलाइन गतिविधियां पर Electronically भी नज़र रखी जा रही है?
लेकिन सबसे बड़ी बात क्या है इस सेंटर पर? वो ये कि यहां पर 'ट्रेनिंग कर रहे कम से 99 फीसद उइघर मुस्लिम ये कहते हैं कि अब वो इस्लाम में विश्वास नहीं करते. किसी प्रकार की कोई प्रार्थना नहीं करते. किसी धर्म में विश्वास नहीं करते. तो सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि जो लोग अतिवादी इस्लाम की तरफ झुक रहे थे उन्होंने पूरी तरह धर्म ही त्याग दिया. पूछने पर ये कहते हैं कि इन्हें अपनी गलती समझ में आ गई है. लेकिन ये मेरी और वहां मौजूद कई पत्रकारों की समझ में नहीं आया. क्या डिरैडिकलाइज़ेशन पूरी तरह से धर्म का त्याग कर देना है या अतिवाद से दूर हटना है? दुनिया में कहीं और भी ऐसा होता है? आखिर यहां ऐसा क्या समझाया-बुझाया गया कि इन लोगों ने धर्म ही छोड़ दिया? हमने इनसे ये भी पूछा कि क्योंकि चीन में किसी भी स्कूल कॉलेज में किसी भी धार्मिक गतिविधि की मनाही है, तो क्या छुट्टियों में जब घर जाते हैं तो नमाज़ पढते हैं या मस्जिद जाते हैं? दो-तीन के अलावा सबका जवाब था- नहीं. एक पत्रकार ने यहां तक पूछा कि क्या आपको यातनाएं दी जाती हैं जिसपर ये हंसने लगे और कहा नहीं.
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लेकिन तब भी सवाल ये बना हुआ है कि यहां पर डिरैडिकलाइज़ेशन का मतलब क्या धर्म खत्म करना होता है? ये इन उइगर मुस्लिमों का अपना फैसला है या थोपा हुआ? और ये फैसला सच में विश्वास खत्म होने के कारण है या ज़िंदगी आसान करने का तरीका?
(कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...)
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