बिलावल भुट्टो ज़रदारी भारत क्यों आए? क्या जैसे पहले बहुपक्षीय मंचों से पाकिस्तान बचता रहा है वैसा क्यों नहीं किया? इस दौरे से उन्हें हासिल क्या हुआ?
बिलावल भारत तब आए जब ये बिल्कुल साफ था कि भारत से कोई द्विपक्षीय बैठक नहीं होगी. भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बार-बार ये कहा कि आतंक और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते. उधर, पाकिस्तान भी कश्मीर में 370 हटाए जाने को लगातार मुद्दा बनाए हुए है, कहता है जब तक ये वापस बहाल नहीं होता बातचीत का मतलब नहीं. तो ये तय था कि द्विपक्षीय मसलों पर दोनों में से कोई बातचीत के पक्ष में नहीं था.
और तो और बातचीत के रास्ते में दोनों देशों की घरेलू राजनीति भी फिलहाल आड़े आती है. भारत चुनाव दर चुनाव 2024 के लोकसभा चुनाव की तरफ बढ़ रहा है और ऐसे में पाकिस्तान की तरफ नरमी शायद चुनावी रणनीति के उलट हो. दूसरी तरफ पाकिस्तान की मौजूदा गठबंधन सरकार बिल्कुल भी लोकप्रिय नहीं है और ऐसे में बिना किसी शर्त के भारत से बात करना शायद और समस्या खड़ी हो.
लेकिन इस सब के बावजूद पाकिस्तान के विदेश मंत्री भारत आए, एससीओ में भाग लिया. इसकी वजह क्या रही?
शायद सबसे बड़ी वजह यह है कि क्षेत्रीय देशों के इस संगठन में वो भारत से कमतर, या अपनी जगह छोड़ते नहीं दिखना चाहता होगा. दूसरी तरफ शंघाई सहयोग संगठन में चीन की अगुवाई है. चीन चाहेगा कि पाकिस्तान इसमें हिस्सा ले और पाकिस्तान जो अपनी माली हालत के कारण अब चीन पर बेहद ज्यादा निर्भर है, तो चीन को नाराज नहीं करना चाहेगा. रूस भी इस संगठन का अहम सदस्य है और पाकिस्तान से इसके रिश्ते लगातार गहरे हो रहे हैं.
एक और वजह है कि इस संगठन में जो बाकी देश हैं जैसे कज़ाख़िस्तान, किर्गिज़स्तान, उज़्बेकिस्तान इन सबसे भी पाकिस्तान व्यापार के रिश्ते बढ़ाना चाहता है और एससीओ में बातचीत का मौका मिलता है.
लगे हाथ और तो और इस वक्त जब सबकी नज़रें भारत आए बिलावल भुट्टो पर टिकी हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ किंग चार्ल्स की ताजपोशी समारोह में हिस्सा लेने ब्रिटेन रवाना हो गए हैं. कहा ये जा रहा है कि असल में वो वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे अपने भाई नवाज़ शरीफ से सलाह मशवरा करने गए हैं.
(कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.