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This Article is From Dec 29, 2021

2022- विदेश नीति में भारत की चुनौतियां

Kadambini Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 29, 2021 20:43 pm IST
    • Published On दिसंबर 29, 2021 20:43 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 29, 2021 20:43 pm IST

2020 और 2021 दो साल कोरोना महामारी के साये में गुज़रे हैं और इनके कारण भारत समेत दुनियाभर में जो तबाही मची है उससे कई बदलाव आए हैं- हालात में भी और नज़रिए में भी. इसके कई पहलू भी हैं जो पूरी तरह से एक-दूसरे से जुड़े हैं. भारत जितनी जल्दी अपनी आबादी का टीकाकरण करता है, उतनी जल्दी वो अंतरराष्ट्रीय यात्रा, व्यापार के लिए तैयार होगा और आगे की आर्थिक और स्वास्थ्य चुनौतियों से निबटने के लिए बेहतर स्थिति में होगा. ये अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपना महत्व बनाए रखने के लिए और आर्थिक सुरक्षा के लिए अहम है.

भारत के लिए एक बड़ी चुनौती चीन है. चीन ने जिस तरह कोरोना की उत्पति कहां से शुरू हुई, इस पर असहयोग किया इसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. कई देश उनके लिए अहम उत्पाद की खातिर चीन से अलग दूसरे देशों की तरफ रुख करना चाहते हैं, सप्लाय लाइन डायवर्सिफिकेशन की तैयारी में जुट गए हैं. साथ ही साउथ चाइना सी, हांग कांग, तिब्बत, शिनजियांग, ताइवान में चीन की गतिविधियां तो चीन की विस्तारवादी मंशा साफ करती ही हैं, भारत में घुसपैठ के सालभर बाद भी वो बाहर नहीं निकला है, ये भारत के लिए एक मुश्किल स्थिति है. कई स्तर पर बातचीत के बावजूद अप्रैल 2020 की स्थिति में एलएसी पर सेनाएं नहीं लौटी हैं. क्या 2022 में ये संभव हो पाएगा? भारत के लिए इसका जवाब ढूंढना बेहद ज़रूरी है क्योंकि ये ना सिर्फ उसकी संप्रभुता से जुड़ा है बल्कि रणनीतिक- आर्थिक सुरक्षा, क्षेत्र में उसके प्रभाव और दुनिया के सामने उसकी छवि से भी.

अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद इस देश का नाम भी भारत के लिए चुनौतियों में जुड़ गया है. लाख कोशिशों के बाद भी वहां की महिलाओं समेत एक समावेशी सरकार तालिबान ने वहां नहीं बनाई है. विदेशों से मिलने वाली आर्थिक मदद बंद है और रोज़ हालात और खराब होते जा रहे हैं, एक बड़ी आबादी भुखमरी की कगार पर है. पाकिस्तान की छाप वहां की सरकार पर साफ है. कुल मिलाकर हालात ऐसे हैं कि वहां से आतंक के खतरे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है. दूसरी तरफ तालिबान की बदले की कार्रवाई से, उनके दमनकारी शासन से निकलने की इच्छा रखने वाले अफगान जो भारत आना चाहते हैं उनके लिए सारे रास्ते बंद हैं जिसकी एक बड़ी वजह सुरक्षा है. इस पर अगला कदम क्या होगा? जिस अफगानिस्तान में भारत का दूतावास और चार कंसुलेट थे आज वहां दूतावास दोबारा खोलने तक की स्थिति नहीं है.

फिर सवाल पाकिस्तान का भी है. क्या एक बार फिर पाकिस्तान से बातचीत शुरू होगी? जनवरी 2016 में हुए पठानकोट हमले के बाद भारत ने साफ कहा कि जब तक पाकिस्तान आतंक पर लगाम नहीं लगाता तब तक बातचीत का कोई मतलब नहीं. ये हमला पाकिस्तान में गढ़ बनाए आतंकी तंज़ीम जैश ए मोहम्मद की कारस्तानी थी. पाकिस्तान ने कहा कि ये हमला खुद भारत ने ही अपने एयरबेस पर करवाया. तब से अब तक बातचीत नहीं हुई है. एलओसी से घुसपैठ अब भी जारी है. कश्मीर में आतंकी हमले भी जारी हैं. इस बीच जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने और उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद पाकिस्तान ने कहा है कि जब तक पहले की स्थिति बहाल नहीं होती वो भारत से बातचीत नहीं करेगा. पाकिस्तान से शह और मदद पाए आतंक का असर सार्क समूह पर भी पड़ा है जिसकी बैठक 2014 के बाद से नहीं हुई है क्योंकि उरी हमले का बाद 2016 में इस्लामाबाद की मेजबानी में बैठक में शामिल होने से भारत ने इनकार कर दिया था. क्या 2022 में इस हालात में कोई बदलाव भारत चाहेगा?

पड़ोस की इन बड़ी चुनौतियों के अलावा बाकी पड़ोसियों से तारतम्य बिठाना- खासकर तब जब चीन पैसे बहाने को तैयार बैठा हो, जरूरी है. श्रीलंका में निवेश हो, तमिलों का मसला हो या मछुआरों का, नेपाल से सीमा विवाद, सब पर 2022 में नज़र रहेगी. दूसरी तरफ दो बड़ी शक्तियों के - अमेरिका और रूस के साथ संबंधों का संतुलन भी ज़रूरी होगा.

हालांकि एक बेहद बड़ी चुनौती खुद घर के अंदर अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमले, हेट स्पीच, पत्रकारों, ऐक्टिविस्ट पर बेजा कार्रवाई जैसी चीज़ों पर रोक लगाने की होगी क्योंकि इनकी गूंज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनाई देती है और भारत की समावेशी छवि को चोट पहुंचाती है.

कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और सीनियर एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...

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