विज्ञापन

कौन थे ज्योतिबा फुले, जिनका जिक्र पीएम मोदी ने लाल किले से किया, जो जीवन भर गैर-बराबरी के खिलाफ लड़ते रहे

निहाल मिश्रा
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 15, 2025 08:53 am IST
    • Published On अप्रैल 11, 2025 16:50 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 15, 2025 08:53 am IST
कौन थे ज्योतिबा फुले, जिनका जिक्र पीएम मोदी ने लाल किले से किया, जो जीवन भर गैर-बराबरी के खिलाफ लड़ते रहे

ज्योतिबा फुले के विचार तब तक प्रासंगिक रहेंगे जब तक इस पृथ्वी पर भेदभाव और शोषण जारी रहेगा. ज्योतिबा फुले यदि आज जिंदा होते तो 198 साल के होते. हालांकि मनुष्य का जीवन इतना लंबा नहीं हो सकता है, लेकिन उसके विचार अनंत काल तक जीवित रह सकते हैं. ज्योतिबा फुले ने अपना पूरा जीवन गैर-बराबरी के खिलाफ लड़ाई में गुजार दिया.उन्होंने एक समतामूलक समाज का सपना देखा था.ज्योतिबा फुले का पूरा नाम ज्योतिबा गोविंदराव फुले था.

लड़कियों के लिए पहला स्कूल 

सामाजिक दबाव की वजह से ज्योतिबा फुले अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे. लेकिन वह शिक्षा के महत्व को बखूबी जानते थे. फुले के अनुसार दलितों और महिलाओं के पिछड़ने की सबसे बड़ी वजह उनमें शिक्षा की कमी थी. वो कहते थे कि शिक्षा स्त्री और पुरुष की प्राथमिक जरूरत है.

तमाम तरह के सामाजिक विरोधों की परवाह न करते हुए ज्योतिबा फुले ने 1848 में महाराष्ट्र के पुणे के भिड़ेवाड़ा में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला. लड़कियों को पढ़ाने के लिए जब उन्हें कोई अच्छी शिक्षिका नहीं मिली तो उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को पढ़ा-लिखाकर इस लायक बनाया. ज्योतिबा ने कहा था, यदि आप एक पुरुष को शिक्षित करते हैं, तो आप एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं लेकिन यदि आप एक महिला को शिक्षित करते हैं तो आप एक पूरे परिवार को शिक्षित करते हैं.

जाति-प्रथा के खिलाफ छेड़ी लड़ाई 

ज्योतिबा फुले माली जाति के थे. उनके पिता फूलों का व्यापार करते थे. वर्ण-व्यवस्था में माली जाति शूद्र की श्रेणी में आती है. इस वजह से ज्योतिबा फुले का खूब तिरस्कार हुआ. उनको अपने ब्राह्मण मित्र की शादी में से जाति के वजह से निकाल दिया गया. इस घटना के वजह से ज्योतिबा फुले ने जाति प्रथा और भेदभाव को खत्म करने की ठानी. उनका मानना था कि भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक नहीं होगा, जब तक खान-पान और वैवाहिक संबंधों पर जातीय बंधन बने रहेंगे. उन्होंने इसलिए 24 सितंबर 1873 को महाराष्ट्र के पुणे में 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की थी. इसका उद्देश्य जाति प्रथा और भेदभाव को दूर करना था. 

हर कदम पर हुआ ज्योतिबा का विरोध

ज्योतिबा फुले ने लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल खोलकर और जाति प्रथा को चुनौती देकर एक बहुत बड़े समाज में असंतोष भर दिया था. उन पर कई बार जानलेवा हमला हुआ. उनकी जान लेने की कोशिश उस समय के तथाकथित उच्च जाति के लोगों ने की थी. लेकिन ज्योतिबा हर बार बच निकले. लोगों ने उनके पिता को डरा-धमकाकर उनको घर से निकलवा दिया. जब सावित्रीबाई पढ़ाने जाती थीं तब उन पर लोग गोबर भरी बाल्टियां फेंकते थे. इतनी प्रताड़ना और विरोध झेलकर भी ज्योतिबा झुके नहीं. 

डॉक्टर आंबेडकर मानते थे गुरु

भीमराव आंबेडकर ने अपने तीन गुरुओं में ज्योतिबा फुले को भी शामिल किया था.वो गौतम बुद्ध, कबीर और ज्योतिबा फुले को अपना गुरु मानते थे. अंबेडकर ने कहा था,''मैं गौतम बुद्ध, कबीर और महात्मा फुले का भक्त हूं और ज्ञान, आत्म-सम्मान और चरित्र का पूजक हूं." आंबेडकर ने अपनी किताब 'शूद्र कौन थे' को ज्योतिबा फुले को समर्पित किया था. 

(निहाल मिश्रा, नई दिल्ली स्थित भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे हैं. वो इन दिनों एनडीटीवी में इंटर्नशिप कर रहे हैं.)

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

ये भी पढ़ें: महिलाओं को सशक्त बनाना क्यों है जरूरी, क्या हैं रास्ते

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com