विज्ञापन

यमन पर इजरायली हमला बढ़ा सकता है पश्चिम एशिया में अस्थिरता

डॉक्टर पवन चौरसिया
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 10, 2025 12:43 pm IST
    • Published On सितंबर 10, 2025 12:38 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 10, 2025 12:43 pm IST
यमन पर इजरायली हमला बढ़ा सकता है पश्चिम एशिया में अस्थिरता

पश्चिम एशिया में अशांति और गतिरोध का दुष्चक्र समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है. अक्टूबर 2023 में फिलिस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास द्वारा इजरायल पर किए गए आतंकी हमले के बाद से इस क्षेत्र में हिंसा की बयार चल पड़ी है. इससे काफी बड़ा भूराजनीतिक और मानवीय संकट खड़ा हो गया है. इसकी सबसे बड़ी बानगी हमें गाजा में देखने को मिल रही है, जहां संघर्ष के कारण न केवल वहां की करीब 90 फीसदी आबादी विस्थापित हो गई है, बल्कि लाखों लोगों को भुखमरी, कुपोषण और विस्थापन जैसी भयावह परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. 2023 से इजरायल-हमास के बीच शुरू हुए युद्ध का दायरा बढ़ता ही गया है. इसकी जद में देखते ही देखते सीरिया, लेबनान, ईरान और यमन जैसे देश भी आ गए हैं. हालिया मामला सालों से गृह युद्ध की मार झेल रहे लाल सागर से सटे देश यमन का है, जहां कुछ दिन पहले इजरायल ने राजधानी सना में एक बड़ा हमला करके यमन के हूती विद्रोहियों के नियंत्रण वाली सरकार के प्रधानमंत्री और अन्य वरिष्ठ नेताओं को मौत के घट उतार दिया. हूतियों ने इजरायल पर जवाबी कार्रवाई भी की गई है. इससे यह साफ हो गया है कि पश्चिम एशिया में शांति अभी भी दूर की कौड़ी बनी हुई है.

कौन हैं हूती?

हूती यमन के अल्पसंख्यक जैदी शिया मुसलमानों का एक सशस्त्र राजनीतिक और धार्मिक गुट है. वह स्वयं को इजरायल, अमेरिका और व्यापक पश्चिम के खिलाफ ईरान के नेतृत्व वाले 'प्रतिरोध की धुरी' (Axis of Resistance), जिसमें हमास और लेबनान के हिजबुल्लाह जैसे सशस्त्र समूह भी शामिल हैं, का हिस्सा बताता है. औपचारिक रूप से अंसार अल्लाह के नाम से जाना जाने वाला यह समूह 1990 के दशक में उभरा. इसका नाम आंदोलन के दिवंगत संस्थापक हुसैन अल- हूती के नाम पर रखा गया है. 2000 के दशक की शुरुआत में हूतियों ने यमन के लंबे समय से राष्ट्रपति रहे अली अब्दुल्ला सालेह के खिलाफ कई विद्रोह किए. वे यमन के उत्तर में स्थित अपने गृह क्षेत्र के लिए अधिक स्वायत्तता चाहते थे. 2011 के अरब स्प्रिंग के दौरान एक बगावत ने राष्ट्रपति सालेह को अपने डिप्टी अब्दराबुह मंसूर हादी को सत्ता सौंपने के लिए मजबूर कर दिया. उसके बाद भी राष्ट्रपति हादी की सरकार समस्याओं से घिरी हुई थी. इस दौरान हूतियों ने सालेह और उनके वफादार सुरक्षा बलों के साथ एक अप्रत्याशित गठबंधन बनाकर यमन की राजधानी सना पर कब्जा कर लिया. 2015 में विद्रोहियों ने पश्चिमी यमन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया और हादी को विदेश भागने पर मजबूर कर दिया. यमन के पड़ोसी सऊदी अरब को डर था कि शिया हूती यमन पर कब्जा कर लेंगे और उसे उसके प्रतिद्वंद्वी ईरान का उपनिवेश बना देंगे. इसे रोकने के लिए उसने अरब देशों का एक गठबंधन खड़ा किया. इसने यमन के गृहयुद्ध में सैन्य हस्तक्षेप किया.  2015 में सऊदी अरब के नेतृत्व में ऑपरेशन डिसीसिव स्टॉर्म नाम से शुरू हुआ यह युद्ध समुद्री नाकाबंदी के साथ शुरू हुआ. लेकिन सालों से चल रहे हवाई हमलों और जमीनी लड़ाई के बावजूद हूतियों को उनके कब्जे वाले ज्यादातर इलाकों से नहीं हटाया जा सका है. उलटे अब सऊदी अरब हूतियों के साथ शांति समझौता करने का प्रयास कर रहा है. इस गृहयुद्ध में लाखों लोग मारे जा चुके हैं. सऊदी अरब और अमेरिका का कहना है कि ईरान ने संयुक्त राष्ट्र के हथियार प्रतिबंध का उल्लंघन करते हुए यमन के गृहयुद्ध के दौरान हूतियों को ड्रोन, क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों सहित हथियारों की तस्करी की. इन मिसाइलों और ड्रोनों का इस्तेमाल सऊदी अरब के साथ-साथ उसके सहयोगी संयुक्त अरब अमीरात पर हमलों में किया गया. हालांकि ईरान ने हूतियों को हथियार देने से इनकार किया है. उसका कहना है कि वह केवल राजनीतिक रूप से उनका समर्थन करता है.

आपस में क्यों लड़ते है इजरायल और हूती

इजरायल और हूतियों के बीच संघर्ष सात अक्टूबर, 2023 को इजरायल पर हमास के हमले और उसके बाद हुए गाजा युद्ध के बाद काफी बढ़ गया. हूतियों ने फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता दिखाते हुए इजरायल की ओर कई ड्रोन, मिसाइलें और बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं. पिछले दो सालों में हूतियों ने 200 से ज्यादा ऐसे हमले किए हैं, जिनमें से कुछ इजरायली क्षेत्र तक पहुंचे, हालांकि ज्यादातर हमलों को इजरायली सुरक्षा बलों ने नाकाम कर दिया. ये हमले अक्सर प्रतीकात्मक होते थे, लेकिन इनसे इजरायल को एक बढ़ता हुआ खतरा दिखाई देने लगा. इन हमलों के जवाब में इजरायल ने 2024 से यमन में हूती ठिकानों पर सीमित हवाई हमले किए. इसका मकसद उनकी क्षमताओं को कम करना था. इसके अलावा लाल सागर में हूती आतंकियों द्वारा अमरीका और उसके सहयोगी देशों के जहाजों को निशाना बनाए जाने पर उसने दिसंबर 2023 में ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन की घोषणा की. इसका मकसद हूतियों से निपटना था. 

इजरायल के हमले में हूतियों के नियंत्रण वाली सरकार के पीएम अहमद अल-रहावी भी मारे गए थे.

इजरायल के हमले में हूतियों के नियंत्रण वाली सरकार के पीएम अहमद अल-रहावी भी मारे गए थे.

हुतियों पर अब तक का सबसे प्रभावशाली हमला पिछले दो महीनों में देखने को मिला है. पांच मई को इजरायल ने हूतियों के नियंत्रण वाले यमन की राजधानी सना के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को निशाना बनाया. उसके बाद से इजरायल ने लगातार हमले जारी रखे. 28 अगस्त, 2025 को इज़राइली वायु सेना ने यमन की राजधानी सना में एक उच्च-स्तरीय हूती सरकार की बैठक पर सटीक हवाई हमला किया. ऑपरेशन ‘लकी ड्रॉप' के तहत हूती सरकार के सभी मंत्रियों को निशाना बनाया गया. इस हमले में मरने वालों में हूती के प्रधानमंत्री अहमद अल-रहावी, रक्षा मंत्री मोहम्मद अल-अताफी, चीफ ऑफ स्टाफ मुहम्मद अब्दुल करीम अल-गामरी और अन्य वरिष्ठ मंत्री शामिल हैं. इसरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे हूती आक्रमण रोकने के लिए एक आवश्यक कदम बताया है. यह हूती राजनीतिक नेतृत्व पर अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष हमला था, जिसने यमन गृहयुद्ध में अमेरिका और सऊदी अरब की पिछली कार्रवाइयों को पीछे छोड़ दिया है.

हूतियों ने अपने शीर्ष नेतृत्व की मौतों की पुष्टि करते हुए इजरायल और उसके सहयोगियों से बदला लेने की कसम खाई है. जवाबी कार्रवाई में हूतियों ने इजरायल की ओर तीन मिसाइलें दागीं, जिन्हें या तो रोक लिया गया या वे चूक गईं. इसके इतर विद्रोहियों ने सना और होदेइदाह में संयुक्त राष्ट्र के कार्यालयों पर छापा मार कर 11 कर्मचारियों को हिरासत में ले लिया. ईरान ने इस हमले को 'राज्य आतंकवाद' बताया है. लेकिन उसने सीधे हस्तक्षेप से परहेज किया है. विश्लेषकों का मानना है कि इस घटना के बाद ईरान की ओर से हूतियों को होने वाली हथियारों की आपूर्ति में बाधा आन की संभावन है. 

इजरायल के हमले का प्रभाव क्या हो सकता है 

इस हमले ने इजरायल-हमास युद्ध की क्षेत्रीय प्रवित्ति को और गहरा कर दिया है. सनद रहे कि हूती सरकार (जिसे केवल ईरान और कुछ सहयोगियों द्वारा मान्यता प्राप्त है) का पतन दरअसल अदन में सऊदी समर्थित सरकार और दक्षिणी अलगाववादियों सहित हुतियों के प्रतिद्वंद्वी गुटों को यमन में सशक्त बना सकता है. हालांकि, इससे हूती समर्थक भी उसके समर्थन में एकजुट हो सकते हैं. इससे यमन के गृहयुद्ध में गतिरोध और बढ़ सकता है. ऐसा माना जा रहा है कि सऊदी अरब, जिसने 2022 में अपने बमबारी अभियान को समाप्त कर दिया था, उसने चुपचाप इस हमले में इज़राइल का समर्थन किया है. लेकिन इस घटना के बाद उसे अपने तेल के बुनियादी ढांचे पर हूती प्रतिशोध का भी डर है. इसके साथ-साथ यमन में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से हुआ युद्धविराम भी अब खतरे में है. इससे सऊदी-हूती संघर्ष फिर शुरू होने की आशंका है. अरब प्रायद्वीप में ईरान के प्राथमिक प्रतिनिधि के रूप में हूतियों का कमजोर होना तेहरान की इजरायल के खिलाफ असमान युद्ध (Asymmetric Warfare) की रणनीति को कमजोर कर सकता है. ऐसा माना जा रहा है कि इसको बराबर करने के लिए हिज़्बुल्लाह या हमास इजरायल पर और अधिक हमले कर सकते हैं. इसके उलट एक खंडित हूती नेतृत्व के अंदर समन्वित रूप से हमला करने की क्षमता कम हो जाएगी. इससे इजरायल को एक मोर्चे पर थोड़ी राहत मिलेगी. कुल मिलाकर, यह हमला इजरायल की दुश्मन के इलाके में अंदर तक शक्ति प्रदर्शित करने की इच्छा और क्षमता का भी संकेत है. इससे ईरान के हिज्बुल्लाह और हमास जैसे अन्य प्रॉक्सी भी इजरायल पर हमला करने के लिए हतोत्साहित हो सकते हैं. इस हमले ने कथित तौर पर हूती खेमे में खलबली मचा दी है. अब बचे हुए हूती नेता सना से भागकर सुरक्षित उत्तरी ठिकानों पर चले गए हैं. इससे उनकी कमान संरचना और जटिल हो गई है. हालांकि, जानकारों का मानना है कि अपनी विकेंद्रीकृत प्रकृति और ईरान के समर्थन की वजह से हूतियों का तरह ध्वस्त होने की संभावना कम है. 

अस्वीकरण: डॉ. पवन चौरसिया,इंडिया फाउंडेशन में रिसर्च फेलों के तौर पर काम करते हैं और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर लगातार लिखते रहते हैं. इस लेख में दिए गए विचार लेखक के निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com