नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) ने इस सत्र में स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले इतिहास, विज्ञान, हिंदी जैसे विषयों के कोर्स में बदलाव किए हैं. इसे लेकर विवाद चल रहा है. हाल में कक्षा 9 और 10 के जीव विज्ञान विषय से डार्विन के विकासवादी सिद्धांत को हटा दिया गया है.
देशभर के शिक्षाविदों ने इस पर अपनी आपत्ति जताते हुए एनसीईआरटी से मांग की है कि माध्यमिक शिक्षा में डार्विन के विकासवादी सिद्धांत को बहाल किया जाए. विकास की प्रक्रिया को समझना ‘वैज्ञानिक सोच के निर्माण में महत्वपूर्ण' है और छात्रों को इससे वंचित करता ‘शिक्षा का उपहास' है. कोर्स में इस बदलाव को देख याद आती है 'पीटर ग्रे' की किताब.
एनसीईआरटी द्वारा स्कूली शिक्षा में किए जा रहे इस बदलाव का कारण समझना हो, तो हमें शिक्षा पर लिखी 'पीटर ग्रे' की लोकप्रिय किताब 'शिक्षा का अर्थ' में इसकी वजह मिलती है. इसमें लिखा है- 'जैसे-जैसे राष्ट्र जुड़ते और ज्यादा से ज्यादा केंद्रीकृत होते गए, राष्ट्रवादी नेता स्कूली शिक्षा को वफादार देशभक्त और भावी सैनिक तैयार करने के माध्यम के रूप में देखने लगे.' उनके अनुसार मातृभूमि की महान गाथाएं, हैरतअंगेज उपलब्धियां और देश के संस्थापकों व नेताओं के नैतिक उपदेश, बाहरी दुष्ट ताकतों से देशरक्षा की जरूरत जैसे पाठ बच्चों को अवश्य पढ़ाए जाने चाहिए.
तो जाहिर सी बात है कि राष्ट्रवाद के इस दौर में वैज्ञानिक सोच पर बात कम ही की जाएगी. शिक्षा कमाल करती है, शिक्षा से दूसरे धर्मों का सम्मान भी संभव है. एनसीईआरटी द्वारा हटाए गए कोर्स में मुगलों का इतिहास भी शामिल है.भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए बनाई गई 'राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005' में छात्रों के अंदर आपसी भाईचारे पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है. उसमें लिखा है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है.
इसका अर्थ है कि सभी आस्थाओं का आदर किया जाता है, लेकिन साथ ही भारतीय गणराज्य किसी आस्था विशेष को अपेक्षाकृत अधिक श्रेष्ठ नहीं मानता. आज बच्चों में सभी लोगों के प्रति चाहे वे किसी भी धर्म के हों, समान आदरभाव पोषित करने की जरूरत है. मुगलों के इतिहास का कोर्स से हटना 'राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005' के लक्ष्य प्राप्ति में रुकावट ही जान पड़ता है.
दिनेश कर्नाटक की लिखी किताब 'शिक्षा में बदलाव की चुनौतियां' की पंक्ति 'जहां 9वीं कक्षा तक सभी बच्चे आपस में घुल मिलकर रहते थे. वहीं, 10वीं में मुस्लिम बच्चे एक साथ बैठने लगते थे' यह साबित करती है कि एक दूसरे के धर्म से दूरी भारतीयों में स्कूली शिक्षा के दौरान ही बढ़ रही है.
जरूरी है शिक्षा में नवाचार
शांति के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त कोफी अन्नान का कहना था कि युवाओं को वैश्विक परिवर्तन और नवाचार की अगुवाई करनी चाहिए. उन्हें सशक्त बनाया जाए तो वे विकास और शांति के अग्रदूत बन सकते हैं. यदि उन्हें समाज के हाशिए पर छोड़ दिया जाए, तो हम सभी दरिद्र बन जाएंगे. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी युवाओं को समाज के जीवन में सहभागी बनने से हर अवसर मिले.
युवाओं को नवाचार शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करना है तो भारतीय स्कूली शिक्षा में ही नवाचार पर जोर देना होगा. बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने वाली संस्था यूनिसेफ अनुसार शिक्षा में नवाचार का अर्थ समान शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नए और सरल तरीके से वास्तविक समस्या को हल करने से है.
शिक्षा में नवाचार तभी संभव होगा, जब ज्ञान को स्कूल के बाहर के जीवन से जोड़ा जाएगा. यह सुझाव हम राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में भी पढ़ते हैं. इस तरह अगर हम शिक्षा में नवाचार ला पाने में सफल होते हैं, तो छात्रों में एनसीआरटी द्वारा किए गए इस कोर्स बदलाव का इतना प्रभाव नही पड़ेगा.
शिक्षा में नवाचार से बढ़ता है ज्ञान सृजन
शिक्षा में नवाचार का उदाहरण हमें 'शिक्षा के अर्थ' किताब में मिलता है, जहां परम्परागत स्कूली शिक्षा के बिना सफल होते बच्चों के बारे में लिखते हुए मैसाचुसेट्स के सडबरी वैली स्कूल के बारे में लिखा गया है. वहां बच्चे पूरी तरह से निर्देशित गतिविधियों से खुद को शिक्षित करते हैं. वहां कोई परीक्षा नहीं होती, पढ़ाई को लेकर कोई जोर जबरदस्ती नहीं की जाती और ना ही कोई पास फेल होता है. स्कूल से निकलकर बच्चे कुशल कारीगर, कलाकार, रसोइये, चिकित्सक, इंजीनियर, उद्यमी, वकील, संगीतकार, वैज्ञानिक, समाजसेवी और सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनते हैं. वहां के बच्चे उन सभी पेशों में नाम कमा रहे हैं, जिन्हें हम अपने समाज में इज्जत देते हैं.
बच्चे अपने अनुभवों से स्वयं ज्ञान सृजन करते हैं और शिक्षा में नवाचार उन्हें इस बात में मदद करता है. किसी नाटक को करते हुए उन्हें दिशाओं का ज्ञान सिखाया जा सकता है, तो नाटक के जरिए उन्हें एक दूसरे के धर्म के बारे में भी समझाया जा सकता है.
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माता पिता किताबें पढ़ें, तो बच्चे भी करते हैं दोस्ती
माता पिता किसी भी छात्र की शिक्षा में नवाचार की पहली सीढ़ी होते हैं. सॉलिफाई वेबसाइट चला रहे सिद्धार्थ मस्केरी और स्मृति राज अपने बच्चे अद्वैत को बिना किसी स्कूली शिक्षा के घर पर ही बौद्धिक रूप से विकसित होने का मौका दे रहे हैं. छोटी सी उम्र में ही अद्वैत घर के सारे कार्य करते हैं और साथ ही बेहतरीन पियानो भी बजाते हैं. बच्चे अक्सर घर पर इसलिए किताबें नही पढ़ते, क्योंकि उनके माता-पिता भी किताबों से दोस्ती नही करते. सिद्धार्थ और स्मृति को किताबें पढ़ने का शौक है, तो उन्हें देख अद्वैत खुद किताबें पढ़ते हैं. अद्वैत एयरोडायनामिक पढ़ते हुए ग्लाइडर बनाना भी सीख रहे हैं.
फिल्मोत्सव में शामिल नानकमत्ता पब्लिक स्कूल के बच्चे
उत्तराखंड का नानकमत्ता पब्लिक स्कूल भी शिक्षा में नवाचार का अड्डा बनकर सामने आया है. स्कूल के विद्यार्थी किताबों की समीक्षा लिखते हैं, किताबों पर परिचर्चा करते हैं, यू-ट्यूब पर डॉक्यूमेंट्री बनाते हैं. खुद की लाइब्रेरी चलाते हैं और यह सब वह स्कूल के संस्थापक कमलेश अटवाल के मार्गदर्शन में कर रहे हैं. कमलेश उन्हें नया सीखने की प्रेरणा देते हैं. वह अपने छात्रों के लिए आईआईटी, आईआईएमसी, जेएनयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े लोगों की वर्कशॉप करवाते हैं. इसके लिए स्कूल के बच्चे रविवार को भी अपनी मर्जी से कुछ नया सीखने स्कूल चले आते हैं.
(हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.