भारत-पाक पर खास-2 : क्रिकेट के बीच नुसरत की गलियों में मौसीकी

भारत-पाक पर खास-2 : क्रिकेट के बीच नुसरत की गलियों में मौसीकी

पाकिस्तान के टी-20 कप्तान शाहिद अफरीदी (फाइल फोटो)

तो लाला (शाहिद अफरीदी का निकनेम) इस बार भी वर्ल्ड कप में तुम्हारे मुल्क से नहीं हारने का रिकॉर्ड कायम रहा। वॉट्सअप पर चुटकुलों की बाढ़ आ गई। किसी पाकिस्तानी दोस्त ने कहा कि भारत में शाहिद अफरीदी को इसलिए ज्यादा प्यार मिलता है, क्योंकि हर बार वह भारत से हार जाते हैं। अब करोड़ों क्रिकेटप्रेमी यही उम्मीद कर रहे हैं कि फाइनल में एक बार फिर भारत और पाकिस्तान की टक्कर हो।

वैसे बड़े ही दिलचस्प मिज़ाज के क्रिकेटप्रेमी हैं दोनों देशों के। मैं बात कर रहा था साल 2006 की जब मैं और मेरी टीम, भारत और पाकिस्तान क्रिकेट सीरीज़ की रिपोर्टिंग के लिए पाकिस्तान गए थे। दो महीने के दौरे में हमने पाकिस्तान को देखा, जाना और समझने की कोशिश की। पिछले भाग में हमने लाहौर की यादें साझा की। आज फैसलाबाद और कराची की बातें।

फैसलाबाद : नुसरत और राहत फतेह अली खान के शहर में भारतीय फिल्म की दीवानगी
लाहौर के बाद अगला टेस्ट फैसलाबाद में था। फैसलाबाद पहुंचे तो दिल्ली से बॉस का फ़ोन आ गया कि नुसरत फ़तेह अली पर आधे घंटे का स्पेशल शो करना है। तत्कालीन बॉस नुसरत के बहुत बड़े फ़ैन थे। आए थे क्रिकेट कवर करने और कहां बॉस संगीत पर शो करवा रहे थे, लेकिन एक बार स्टोरी शुरू की तो संगीत की गहराई में गोते लगा गया।

फैसलाबाद के जंग बाजार के लसौरी शाह दरबार इलाके की वह हवेली अब खामोश है। एक जमाने में यह दरवाजा कभी बंद ही नहीं हुआ करता था। सूफियाना कव्वाली को उसी दरवाजे से एक नई रवानी मिली थी। वहीं से कभी फतेह अली खां और मुबारक अली खां-दो भाइयों ने कव्वाली को एक नया आयाम देना शुरू किया। फतेह अली के बेटे नुसरत फतेह अली खां और मुबारक अली के बेटे फराक़ अली की जोड़ी ने कव्वाली को उस रुहानी मुकाम तक पहुंचाया जहां पहुंचना हर फनकार की हसरत होती है। नुसरत की हवेली अब बिक चुकी है। लेकिन मौसीकी आज भी जिंदा है। उस हवेली में सूफियाना कलाम की गूंज आज भी सुनाई देती है। नुसरत साहब ने जब अचानक अलविदा कहा तो उनकी आवाज और संगीत का उनका कोई वारिस नही था। उनके चचेरे भाई और जोड़ीदार फराक फतेह अली खां के बेटे राहत फतेह अली खां ही अब नुसरत की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। हमने आज के बॉलीवुड के हिट गायक राहत फतेह अली खान से मुलाकात की। बड़े अदब और प्यार से मिले। बिल्कुल मामूली शख़्स की तरह।

नुसरत को हिंदुस्तान से खास लगाव रहा और उन्हें मालूम था कि सरहद के इस पार भी उनके कद्रदानों की कोई कमी नहीं है। शायद यही वजह है कि आज भी जब यहां सूफियाना संगीत का जिक्र होता है तो नुसरत फतेह अली खां का नाम ही जेहन में सबसे पहले आता है।

फैसलाबाद के फुटपाथ भारतीय फिल्म स्टार के पोस्टर्स से पटे हुए थे। उस समय शाहरुख खान और जॉन अब्राहम बेहद लोकप्रिय थे। लेकिन सबसे लोकप्रिय स्टार तो सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ही थे। उनके पोस्टर हाथों-हाथ बिक जाते थे। भारतीय फिल्मों के अलावा सास-बहू वाले सीरियल के कलाकार भी वहां काफी लोकप्रिय हैं। लोग चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा भारतीय फिल्में बड़े पर्दे पर भी रिलीज हों। क्रिकेट और कला संस्कृति के जरिए फैली खुशबू को सरहद की दीवारें भी नहीं रोक सकती।

इन सबके बीच हमारी नजर क्रिकेट पर भी बनी रही। फैसलाबाद में खेला गया दूसरा टेस्ट भी ड्रॉ रहा। भारत की तरफ से राहुल द्रविड़ ने फिर शतक जमाया। द्रविड़ ने 103 और महेंद्र सिंह धोनी ने 148 रनों की पारी खेली।

कराची : बिहारियों और दाऊद का शहर
अगला टेस्ट कराची में था। कराची को पाकिस्तान का मुंबई कह सकते हैं। मुंबई की तरह बंदरगाह शहर है। आवोहवा और भागती ज़िंदगी आपको मुंबई की याद दिलाती है। उस समय भी कराची को बेहद संवेदनशील माना जाता था जबकि पाकिस्तान पर आतंक का कब्ज़ा नहीं हुआ था। पत्रकार मित्रों ने बताया था कि कि कभी भी और किसी भी मसले पर शहर में तनाव हो सकता है। उन्होने हमेशा सावधान रहने की हिदायत दी। कराची में बिहारी कबाब बहुत मशहूर है। दरअसल बंटवारे के बाद बिहार से बहुत संपन्न लोग कराची में जा बसे। इन्हें मुहाजिर भी कहते हैं। मुहाजिरों की अपनी बिहारी कॉलोनी भी बना रखी है। इनकी पार्टी MQM यानी मुत्ताहित कौमी मूवमेंट पाकिस्तान की तीसरी सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी है।

कराची मार्बल के लिए बहुत प्रसिद्ध है। हमने फ्लॉवर पॉट खरीदे, जिसकी खूबसूरती आज भी हमारे घर की शोभा बढ़ा रही है। कारीगर के हाथों की सफाई देखकर हर कोई दंग रह जाता है। रंग आज भी जस के तस है। दुकानदार ने हमें खास छूट भी दी, क्योंकि हम हिंदुस्तान से आए हुए थे। कराची में पाइरेडेट डीवीडी का बहुत बड़ा मार्केट है। यहां भी बॉलीवुड छाया हुआ है। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स का बड़ा बाज़ार है। वहां मैने सोनी का एक हैंडीकॉम खरीदा। तब हमारे बाज़ार में विदेशी चीज़ें महंगी मिलती थीं।

कराची बंदरगाह के पास बना लक्ष्मीनारायण मंदिर पिछले दो सौ साल से हिंदुओं की आस्था का प्रतीक बना हुआ है। उस घाट पर सिर्फ हिंदुओं को जाने की इजाजत है। हम भी मंदिर में गए और लक्ष्मीनारायण के दर्शन किए। इससे थोड़ी ही दूर पर क्लिफ़्टन इलाका है। दाउद इब्राहिम उसी इलाके में रहता है। हमारे ड्राइवर ने दबी जुबान से इस बात की तसदीक भी की।

कराची में भी क्रिकेट का अपना एक जुनून है। इस हद तक कि हड्डियों के मशहूर पाकिस्तानी डॉक्टर सैयद मोहम्मद अली शाह ने अपना स्टेडियम बनवा रखा है। तमाम सुविधाओं से लैस। दरअसल डॉक्टर साहब को बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था, लेकिन खिलाड़ी बनने की बजाय डॉक्टरी पेशा अपनाना पड़ा। अस्पताल और घर के बीच भागदौड़ भरी जिंदगी के बावजूद डॉक्टर साहब का क्रिकेट का शौक बरकरार रहा। 1993 में इन्होंने अपने पिता असगर अली शाह के नाम खुद का स्टेडियम बना डाला। डॉक्टर साहब से मुलाकात हुई तो उनका भी भारत से नाता निकल आया। विभाजन के पहले असगर अली शाह कानपुर में जज थे और लॉन टेनिस के खिलाड़ी भी।

बहरहाल, कराची टेस्ट भारत 341 रनों से हार गया। तीन टेस्ट मैचों की सीरीज़ पर मेज़बान टीम ने कब्ज़ा कर लिया।

(अगले और आख़िरी भाग में पेशावर, रावलपिंडी और मुल्तान के अनुभव)

संजय किशोर एनडीटीवी के खेल विभाग में एसोसिएट एडिटर हैं...

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