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This Article is From Nov 29, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : उपचुनावों के नतीजे पर नोटबंदी का असर?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 29, 2016 21:32 pm IST
    • Published On नवंबर 29, 2016 21:31 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 29, 2016 21:32 pm IST
नोटबंदी के राजनीतिक नफा-नुकसान की अटकलों के बीच बीजेपी ने महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है. 147 म्युनिसिपल काउंसिलों और 17 पंचायतों की 3727 सीटों के लिए 27 नवंबर को मतदान हुए थे. बीजेपी ने अपना प्रदर्शन पहले के मुकाबले काफी बेहतर किया है. कहने वाले तो यही कहेंगे कि स्थानीय निकायों के चुनाव अलग मुद्दों पर होते हैं, लेकिन अगर बीजेपी हार जाती तो यह तो कहा ही जाता कि नोटबंदी के कारण हारी है. इसलिए उसकी जीत में नोटबंदी का योगदान भले न हो लेकिन इस वक्त जब इतना राजनीतिक घमासान चल रहा है, महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन पार्टी के लिए उत्साहजनक तो है ही और विरोधियों के लिए संकेत भी. अगर नोटबंदी का असर नहीं है तो इन चुनावों में विरोधी क्यों हारे, इसका मूल्यांकन तो उन्हें करना ही चाहिए और बीजेपी की जीत को स्वीकार भी करना चाहिए क्योंकि ये मतदान नोटबंदी के 16 दिन बीत जाने के बाद 27 नवंबर को हुए हैं. इस चुनाव में कांग्रेस और एनसीपी अलग-अलग लड़े हैं. बीजेपी और शिवसेना मिलकर चुनाव लड़े हैं, मगर कहीं कहीं अलग-अलग भी रहे.

महाराष्ट्र में हुए नगर निकाय चुनावों में बीजेपी ने 3727 सीटों में से 893 सीटों पर जीत हासिल की है. नोटबंदी का विरोध करने वाली शिवसेना ने 529 सीटें जीती हैं. बीजेपी ने अपना प्रदर्शन एक तरह से तीन गुना से ज़्यादा बेहतर किया है. 2011 के चुनाव में उसे 298 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार 893 सीटें मिली हैं. वहीं शिवसेना ने 2011 के 264 सीटों के मुक़ाबले 529 सीटें जीतकर प्रदर्शन दोगुना बेहतर किया है. कांग्रेस के पास पिछले चुनाव में 771 सीटें थीं, जो घटकर 727 रह गई हैं. एनसीपी के पास 2011 में 916 सीटें थीं, जो घटकर 615 रह गई हैं. इस तरह से देखेंगे तो सबसे अधिक नुकसान एनसीपी को हुआ है और सबसे अधिक फायदा बीजेपी को हुआ है. अगर नोटबंदी कारण है, तो शिवसेना ने भी तो नोटबंदी का विरोध किया है, फिर भी उसकी सीटें डबल हो गईं.

नोटबंदी का पैमाना बनाकर देखेंगे तो इसका विरोध करने वाली शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को 3727 में से 1871 सीटें मिली हैं. नोटबंदी लागू करने वाली बीजेपी को 893 सीटें. बीजेपी ज़रूर अकेले बड़े दल के रूप में उभरी है. 3727 में से शिवसेना और बीजेपी को कुल मिलाकर 1422 सीटें मिली हैं. कांग्रेस और एनसीपी को मिला दें तो ये संख्या 1342 हो जाती है. टोटल नंबर में दोनों खेमों के बीच बहुत ज्यादा का फासला नहीं है.

इस बार महाराष्ट्र के निकाय चुनाव में एक बड़ा बदलाव यह हुआ है कि अलग से नगर अध्यक्ष का चुनाव हुआ है. पहले जीते हुए पार्षद नगर अध्यक्ष चुनते थे मगर इस बार नगर अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता ने किया है. अमेरिका के प्रेसिडेंशियल फार्म की तरह. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि अपने दम पर बीजेपी के 52 नगर अध्यक्ष जीते हैं और गठजोड़ के साथ 8. इस बार ऐसा भी हुआ है कि नगर अध्यक्ष बीजेपी का, लेकिन स्थानीय निकाय में बहुमत किसी और दल का है. हर किसी को पता है कि स्थानीय निकाय के चुनावों में जीत के कारण अलग होते हैं, लेकिन जब हारने पर बीजेपी के मत्थे नोटबंदी मढ़ दी जाती तो जीतने पर सेहरा क्यों न मिले. जैसे जब नोटबंदी लागू हुई थी तब पनवेल में Agricultural Produce Market Committee (APMC) के चुनाव में बीजेपी सभी 17 सीटों पर हार गई.सबसे ज़्यादा 15 सीटें Peasants and Workers Party of India (PWP) ने हासिल कीं, जबकि उसकी गठबंधन सहयोगी शिवसेना और कांग्रेस को एक-एक सीटें मिलीं. उस वक्त बीजेपी के विरोधी दलों ने यही कहा था कि नोटबंदी के कारण हार हुई है.

कारणों को लेकर विद्वानों में असहमति हो सकती है लेकिन यह जीत बताती है कि संगठन के स्तर पर बीजेपी एक मज़बूत दल है. यह कहा जा रहा है कि बीजेपी की सीट से एनसीपी या दूसरे दलों से आए उम्मीदवार भी जीते हैं. इसकी संख्या तो अभी नहीं है लेकिन बीजेपी दूसरे दलों के जिताऊ उम्मीदवारों को अपने यहां लाने में संकोच नहीं करती है. पीछे रह जाने वाली कांग्रेस और एनसीपी को देखना चाहिए कि क्यों उनके उम्मीदवार या नेता बीजेपी में चले जाते हैं. क्यों उनका संगठन इतना लचर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जीत पर महाराष्ट्र बीजेपी के कार्यकर्ताओं और मुख्यमंत्री फडणवीस को बधाई दी है.

27 नवंबर को गुजरात में भी स्थानीय निकायों के उपचुनाव हुए थे. यहां बीजेपी ने 126 में से 109 सीटों पर जीत हासिल की है. कांग्रेस को सिर्फ 17 सीटें मिली हैं. पहले यहां बीजेपी के पास 64 सीटें थीं और कांग्रेस के पास 52 सीटें थीं. इन चुनावों में हार जीत का लोकसभा या विधानसभा के चुनावों पर भले न फर्क पड़ता हो, लेकिन पार्टी के भावी नेता तो यहीं से पैदा होते हैं. कांग्रेस की हालत बताती है कि गुजरात में उसके भीतर नेता बनाने की क्षमता समाप्त हो चुकी है.

वापी नगरपालिका उपचुनावों की 44 सीटों में से बीजेपी को 41 सीटें मिली हैं. कांग्रेस को सिर्फ तीन. वैसे यहां हमेशा से बीजेपी का दबदबा रहा है. सूरत-कनकपुर-कंसाड नगरपालिका चुनाव में 28 सीटों में से बीजेपी ने 27 सीटों पर जीत हासिल कीं. कांग्रेस ने सिर्फ़ एक सीट हासिल की. राजकोट में गोंडल तहसील पंचायत के चुनाव में बीजेपी ने 22 में से 18 सीटें हासिल कीं.

ये नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस काफी लचर हो गई है. वो अभी तक गुजरात में खड़ी नहीं हो पाई है और महाराष्ट्र में वापसी का रास्ता नहीं खोज पाई है. ये नतीजे इतना तो बताते ही हैं कि बीजेपी स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं को जिताने में सफल हो रही है. तब भी जब यह कहा जा रहा था कि पटेल आंदोलन और दलित आंदोलन के बाद से बीजेपी कमज़ोर हुई है. इस लिहाज़ से भी बीजेपी की जीत मायने रखती है. प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात की जनता को सलाम भेजा है कि बीजेपी में उनका भरोसा बना हुआ है. इस जीत को भ्रष्टाचार के ख़िलाफ उनके अभियान को मिला समर्थन भी बताया है. नोटबंदी के बाद कई राज्यों में लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनावों में बीजेपी को सफलता मिली थी. ज़ाहिर है बीजेपी इस जीत पर गर्व तो करेगी ही.

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