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This Article is From Sep 26, 2018

90,000 करोड़ की डिफॉल्टर IL&FS कंपनी डूबी तो आप भी डूबेंगे...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 26, 2018 17:57 pm IST
    • Published On सितंबर 26, 2018 17:57 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 26, 2018 17:57 pm IST
IL&FS (INFRASTRUCTURE LEASING AND FINANCIAL SERVICES) का नाम बहुत लोगों ने नहीं सुना होगा. यह एक सरकारी क्षेत्र की कंपनी है जिसकी 40 सहायक कंपनियां हैं. इसे नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी की श्रेणी में रखा जाता है जो बैंकों से लोन लेती हैं. जिसमें कंपनियां निवेश करती हैं और आम जनता जिसके शेयर ख़रीदती है. इस कंपनी को कई रेटिंग एजेंसियों से अति सुरक्षित दर्जा हासिल है. AA PLUS की रेटिंग हासिल है. यह कंपनी बैंको से लोन लेती है. लोन के लिए संपत्ति गिरवी नहीं रखती है. काग़ज़ पर गारंटी दी जाती है कि लोन चुका देंगे. चूंकि इसके पीछे भारत सरकार होती है इसलिए इसकी गारंटी पर बाज़ार को भरोसा होता है. मगर एक हफ्ते के भीतर इसकी रेटिंग को AA PLUS से घटाकर कूड़ा करकट कर दिया गया है. अंग्रेज़ी में इसे जंक स्टेटस कहते हैं. अब यह कंपनी जंक यानी कबाड़ हो चुकी है. जो कंपनी 90,000 करोड़ लोन डिफॉल्ट करने जा रही हो वो कबाड़ नहीं होगी तो क्या होगी.

ज़ाहिर है इसमें जिनका पैसा लगा है वो भी कबाड़ हो जाएंगे. प्रोविडेंड फंड और पेंशन फंड का पैसा लगा है. यह आम लोगों की मेहनत की कमाई का पैसा है. डूब गया तो सब डूबेंगे. इसमें म्यूचुअल फंड कंपनियां भी निवेश करती हैं. काग़ज़ पर लिखे वचननामे पर बैंकों ने IL&FS और उसकी सहायक कंपनियों को लोन दिए हैं. अब वो काग़ज़ रद्दी का टुकड़ा भर है. इस 27 अगस्त से जब यह ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी तय समय पर लोन नहीं चुका पाई, डेडलाइन मिस करने लगी तब शेयर मार्केट को सांप सूंघ गया. 15 सितंबर से 24 सितंबर के बीच सेंसेक्स 1785 अंक गिर गया. नॉन बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के शेयर धड़ाम बड़ाम गिरने लगे.

स्मॉल इंडस्ट्री डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (SIDBI) ने IL&FS और उसकी सहायक कंपनियों करीब 1000 करोड़ का कर्ज़ दिया है. 450 करोड़ तो सिर्फ IL&FS को दिया है. बाकी 500 करोड़ उसकी दूसरी सहायक कंपनियों को लोन दिया है. सिडबी ने इन्साल्वेंसी कोर्ट में अर्ज़ी लगाई है ताकि इसकी संपत्तियां बेचकर उसका लोन जल्दी चुकता हो. एक डूबती कंपनी के पास कोई अपना पैसा नहीं छोड़ सकता वर्ना सिडबी भी डूबेगी. दूसरी तरफ IL&FS और उसकी 40 सहायक कंपनियों ने पंचाट की शरण ली है. इस अर्ज़ी के साथ उसे अपने कर्जे के हिसाब किताब को फिर से संयोजित करने का मौका दिया जाए. इसका मतलब यह हुआ कि जब तक इसका फैसला नहीं आएगा, यह कंपनी अपना लोन नहीं चुकाएगी. तब तक सबकी सांसें अटकी रहेंगी.

अब सरकार ने इस स्थिति से बचाने के लिए भारतीय जीवन बीमा को बुलाया है. बिजनेस स्टैंडर्ड ने IL&FS को प्राइवेट कंपनी लिखा है. इसमें भारतीय जीवन बीमा, भारतीय स्टेट बैंक, सेंट्रल बैंक और यूटीआई की भी हिस्सेदारी है. हाल के दिनों में जब आईडीबीआई पर नॉन परफार्मिंग एसेट (NPA) का बोझ बढ़ा तो भारतीय जीवन बीमा को बुलाया गया. भारतीय जीवन बीमा निगम के भरोसे कितने डूबते जहाज़ों को बचाएंगे, किसी दिन अब भारतीय जीवन बीमा के डगमगाने की ख़बर न आ जाए. भारतीय जीवन बीमा निगम के चेयरमैन ने कहा है कि IL&FS को नहीं डूबने देंगे.

IL&FS ग़ैर बैंकिंग वित्तीय सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी है. इस सेक्टर पर बैंकों का लोन 496,400 करोड़ है. अगर यह सेक्टर डूबा तो बैंकों के इतने पैसे धड़ाम से डूब जाएंगे. मार्च 2017 तक लोन 3,91,000 करोड़ था. जब एक साल में लोन 27 प्रतिशत बढ़ा तो भारतीय रिज़र्व बैंक ने रोक लगाई. सवाल है कि भारतीय रिज़र्व बैंक इतने दिनों से क्या कर रहा था. जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक ही इन वित्तीय कंपनियों की निगरानी करता है. म्यूचुअल फंड का 2 लाख 65 हज़ार करोड़ लगा है. हमारे आपके पेंशन और प्रोविडेंड फंड का पैसा भी इसमें लगा है. इतना भारी भरकम कर्ज़दार डूबेगा तो क़र्ज़ देने वाले, निवेश करने वाले सब के सब डूबेंगे.

IL&FS का ज़्यादा पैसा सरकार के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में लगा है. इसके डूबने से तमाम प्रोजेक्ट अधर में लटक जाएंगे. हुआ यह है कि टोल टैक्स की वसूली का अनुमान ज़्यादा लगाया गया मगर उनकी वसूली उतनी नहीं हो पा रही है. इससे प्रोजेक्ट में पैसा लगाने वाली कंपनियां अपना लोन वापस नहीं कर पा रही हैं. इन्हें लोन देने वाली IL&FS भी अपना लोन वापस नहीं कर पा रही है. हमने इस लेख के लिए बिजनेस स्टैनडर्ड और इंडियन एक्सप्रेस की मदद ली है.

मुझे नहीं पता कि आपके हिन्दी अख़बारों में इस कंपनी के बारे में विस्तार से रिपोर्टिंग है या नहीं. पहले पन्ने पर इसे जगह मिली है या नहीं. दुनिया के किसी भी देश में सरकार की कोई कंपनी संकट में आ जाए और उसमें जनता का पैसा लगा हो तो हंगामा मच जाता है. भारत में ऐसी ख़बरों को दबा कर रखा जा रहा है. तभी बार-बार कह रहा हूं कि हिन्दी के अख़बार हिन्दी के पाठकों की हत्या कर रहे हैं. सूचना देने के नाम पर इस तरह से सूचना देते हैं कि काम भर हो जाए. बस सरकार नाराज़ न हो जाए. लेकिन आम मेहनतकशन लोगों के प्रोविडेंड फंड और पेंशन फंड का पैसा डूबने वाला हो, उसे लेकर चिन्ता हो तो क्या ऐसी ख़बरों को पहले पन्ने पर मोटे मोटे अक्षरों में नहीं छापना चाहिए था?

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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