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This Article is From Apr 12, 2018

बच्ची से रेप और हत्या का मामला हिंदू-मुस्लिम कैसे हो गया?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 14, 2018 13:27 pm IST
    • Published On अप्रैल 12, 2018 22:22 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 14, 2018 13:27 pm IST
साल 2012 का दिसबंर था. एक अंग्रेज़ी अख़बार में निर्भया के साथ बलात्कार और फिर हत्या की ख़बर विस्तार से छपी थी. उसी शाम या उसके अगले दिन वो ख़बर टीवी पर सवार होती है और देखते देखते दो तीन दिनों के भीतर जैसे जैसे उस कांड की एक एक कहानी लोगों तक पहुंचनी शुरू होती है, लोग घरों से बाहर आने लगते हैं. शुरूआत लेफ्ट से जुड़े महिला संगठनों ने की थी मगर बाद में वो आंदोलन पहले दिल्ली का हुआ है, फिर देश का हो गया.

जंतर मंतर से लेकर रायसीना हिल्स और राजपथ पर हज़ारों लोगों का हुजूम उतर आया. दिल्ली की बहुत सी लड़कियां जो कभी किसी धरने में नहीं गईं थीं, पहली बार इस धरने में गईं. करनाल से एक अधिकारी ने अपनी बेटी को भेजा क्योंकि उनकी बेटी इस आंदोलन में जाना चाहती थी. कोई लड़की अपने आप को रोक नहीं सकी. लाजपत नगर से आई वो लड़कियां मुझे आज भी याद हैं. उन्होंने अपने पैसे से पोस्टर छपवाए थे, बलात्कार और स्त्री हिंसा के खिलाफ स्लोगन लिखे थे, वो अंतिम बार के लिए इस ज़ुल्म से आज़ाद होने के लिए उस हुजूम में आई थीं. उनके मां बाप भी नहीं रोक सके थे. किसी ने सोचा नहीं था कि लोगों का जत्था उस रायसीना हिल्स पर कब्ज़ा कर लेगा जिस पर अब तक वीआईपी कारें चला करती थीं या फिर 26 जनवरी के दिन टैंक चला करते थे. दिन हो या रात हो, बलात्कार के ख़िलाफ़ मज़बूत कानून, बलात्कार की मानसिकता, पुलिस की लापरवाही इन सब को लेकर आवाज़ उठ रही थी. उस वक्त की सरकार की ज़ुबान लड़खड़ाने लगी थी. जस्टिस वर्मा के नेतृत्व में कमेटी बनी, गिरफ्तारी हुई, सज़ा हुई सब हुआ.

12 अप्रैल का यह सूरज रायसीना हिल्स पर न जाने किससे मुंह छिपा कर डूब रहा है. यही रायसीना हिल्स थी जिस पर हज़ारों लोगों ने पहुंच कर सोती सरकार को जगा दिया था. नीता का कैमरा जब राजपथ की तरफ घूमता है तब सड़कें ख़ाली हैं. इक्का दुक्का कारें चुप चाप नज़रें छुपा कर उतर रही हैं. क्या लोगों ने निर्भया और कठुआ के मामले में मज़हब का कोई हिसाब किया है. क्या लोग अब अपने ही उस आंदोलन से भागने लगे हैं कि कहीं उन्हें बच्ची के लिए बाहर न निकलना पड़े या फिर उन्हें बलात्कार की घटनाओं से फर्क पड़ना बंद हो गया है. छह साल बाद दिल्ली की इन सड़कों पर पत्थर चल रहे हैं, इस सड़क पर गाड़ियां दिख रही हैं, मगर निर्भया के लिए निकले लोगों से ये जगह ख़ाली हैं. क्या हमारा देश इतना बदल गया है कि उसके लिए कठुआ की पीड़िता बेटी भी नहीं रही.

जंतर मंतर तो अब लोगों के लिए नहीं रहा इसलिए संसद मार्ग पर सीपीएम की महिला संगठन एडवा के सदस्यों ने यहां प्रदर्शन किया. पर सवाल है कि इस प्रदर्शन के लिए एडवा के ही लोग क्यों आए, क्या बाकी दलों के भीतर महिला संगठनों में मृतक बच्ची को लेकर कोई चर्चा नहीं है. क्या उन महिला संगठनों को यहां नहीं होना चाहिए था. निर्भया के वक्त भी यही संगठन था और कविता कृष्णन थी आइसा की, इन लोगों का मार्च हुआ था मगर बाद में दिल्ली के लोगों का आंदोलन बन गया था. इसमें बीजेपी के नेता भी आते थे, दूसरे दलों के नेता भी आते थे. आज सब घरों में बैठे हैं.

ऐसा नहीं था कि कठुआ के मामले में भीड़ नहीं आई. 15 फरवरी को एक रैली हुई थी जिसमें लोग तिरंगा लेकर निकले थे. यही तिरंगा कभी निर्भया के आरोपियों को सज़ा देने की मांग करने वालों के हाथ में था, मगर आप देख सकते हैं कि यहां आरोपी पुलिसकर्मी को बचाने के लिए तिरंगा लेकर भीड़ आई हुई है.

15 फरवरी का वीडियो है, जिसमें लोग आरोपी और पुलिस अधिकारी खजुरिया को बचाने के लिए नारे लगा रहे हैं. लोगों के हाथ में तिरंगा है. यही तिरंगा कभी निर्भया के आरोपियों को सज़ा देने की मांग करने वालों के हाथ में था, मगर यहां तिरंगा उनके हाथ में है जो आरोपी को सज़ा नहीं बल्कि बचाना चाहते हैं. 10 जनवरी को कठुआ की बच्ची अगवा की जाती है और उसके कुछ दिन बाद हिन्दू एकता मंच का गठन होता है. दि वायर में 17 फरवरी को मुदासिर अहमद की एक रिपोर्ट छपी थी जिसमें हिन्दू एकता मंच के प्रमुख विजय शर्मा ने कहा था कि पुलिस उत्पीड़न से बचाने के लिए हिन्दू एकता मंच का गठन किया गया है. वायर की स्टोरी के हिसाब से बीजेपी की वेबसाइट से पता चलता है कि विजय शर्मा पार्टी का राज्य सचिव है. तो क्या बीजेपी के नेता ने इस केस के आरोपियों को बचाने के लिए हिन्दू एकता मंच बनाया? विजय शर्मा हीरानगर विधानसभा के हिन्दू एकता मंच का प्रमुख भी है. इसी रैली में बीजेपी के दोनों मंत्री भी शामिल हैं. वन एवं पर्यावरण मंत्री लाल सिंह चौधरी और उद्योग व वाणिज्य मंत्री चंदर प्रकाश भी शामिल हैं. हिन्दू एकता मंच ने उस वक्त कहा था कि जब तक आरोपी छोड़े नहीं जाएंगे उनका आंदोलन चलता रहेगा.

चंद प्रकाश गंगा ने ज़रूर कहा कि बच्ची को इंसाफ मिलना चाहिए, इंसानियत का कत्ल हुआ है. लेकिन जिस तरह से वे जांच पर सवाल उठा रहे हैं उससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वे उस भीड़ को भी खुश करना चाह रहे हैं कि अफसरों की क्लास लगवाऊंगा. भीड़ ताली बजाती है. वे आरोपियों की उम्र के आधार पर सवाल करते हैं. क्या चार आरोपियों की उम्र अलग अलग नहीं होती है जो ये बात चंद प्रकाश जी को गलत लग रही है. हमारी सहयोगी नीता शर्मा ने बताया है कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती दिल्ली में गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिली हैं. महबूबा ने इन दो मंत्रियों के ख़िलाफ शिकायत की है. नीता के अनुसार मुख्यमंत्री ने कहा कि बीजेपी के नेता जम्मू कश्मीर सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं. नीता के मुताबिक गृहमंत्री ने कहा कि इस प्रदर्शन में शामिल हुए लोग बीजेपी से नहीं हैं. जबकि तमाम रिपोर्ट यह कह रही है कि हिन्दू एकता मंच की रैली में बीजेपी के दो मंत्री शामिल हुए थे. विजय शर्मा के बारे में भी दि वायर की रिपोर्ट बताती है कि वह बीजेपी का राज्य सचिव है और हीरानगर हिन्दू एकता मंच का प्रमुख भी है. पीएमओ के राज्यमंत्री जीतेंद्र सिंह का बयान 22 फरवरी के ट्रिब्यून में छपा था जिसे बाद स्क्रोल डाट इन ने भी अपने यहां छापा था. पीएमओ में राज्य मंत्री जितेंद सिंह ने कहा था कि अगर लोगों का भरोसा पुलिस और क्राइम ब्रांच की जांच में नहीं है तो यह केस सीबीआई को दे देना चाहिए. मुझे नहीं लगता कि इसमें कोई समस्या है. अगर राज्य सरकार इसका प्रस्ताव करती है तो हम ज़रूर इस पर कार्रवाई करेंगे.'

12 मार्च 2018 के मिड की ख़बर है कि बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अविनाश राय खन्ना ने भी सीबीआई जांच का समर्थन किया था. आपने 11 अप्रैल के प्राइम टाइम में हमारे सहयोगी ज़फ़र इक़बाल की रिपोर्ट में बीजेपी प्रवक्ता सुनील सेठी भी पुलिस जांच पर सवाल उठा रहे हैं.

सवाल यह होना चाहिए कि हिन्दू एकता मंच बच्ची के इंसाफ के लिए लड़ रहा है या आरोपी अधिकारियों को बचाने के लिए. बीजेपी कैसे कह सकती है कि उसके नेता हिन्दू एकता मंच के साथ नहीं हैं. जबकि उसके मंत्री हिन्दू एकता मंच की रैली में शामिल रहे हैं. उसकी मांग का समर्थन करते रहे हैं. अगर बीजेपी की सीबीआई जांच पर इतना ही भरोसा था वो गंभीर क्यों नहीं हुई. सीबीआई जांच के आदेश क्यों नहीं हुए. महबूबा मुफ्ती इस बात पर अड़ी हैं कि जांच उनकी ही पुलिस करेगी. उन्होंने ट्विट किया है कि 'ग़ैर ज़िम्मेदार बयान से कानून का काम प्रभावित नहीं होगा. सारी प्रक्रियाओं का पालन किया जा रहा है. काफी तेज़ी से जांच हो रही है. इंसाफ होगा.'

इस घटना से सिस्टम के भीतर आई दरार भी दिख रही है. क्या आरोपियों के पक्षधर को पुलिस पर इसलिए भरोसा नहीं था कि उसमें कोई मुसलमान नहीं था. अगर विश्वास का यह पैमाना है तो शर्मनाक है. एक्सप्रेस में मुजामिल जलील की खबर आपको परेशान करनी चाहिए. जम्मू कश्मीर पुलिस में हिन्दू मुस्लिम रोकने के लिए दो सिख अधिकारियों को जांच दल में शामिल किया जाएगा. पुलिस सामने से नहीं कह रही है कि सिख अधिकारियों को इसलिए रखा जा रहा है ताकि आरोपियों के पक्षधर को विश्वास हो सके.

इस केस की जांच जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की निगरानी में हो रही थी. रमेश जल्ला जो कि खुद कश्मीरी पंडित हैं और काबिल अफसर नहीं होते तो इंस्पेक्टर से एसएसपी के पद तक नहीं पहुंचते. उनकी निगरानी में एसआईटी जांच कर रही थी जिसका नेतृत्व एक और काबिल अफसर नावीद पीरज़ादा कर रहे थे. इस टीम को 90 दिनों में चार्जशीट तैयार करनी थी मगर 10 दिन पहले ही तैयार कर ली. इसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. क्या कानून में लिखा है कि 90वें दिन ही रिपोर्ट तैयार होगी, 90 दिन तो समय सीमा है. श्रनीगर के रहने वाले जाल्ला ने 1984 में बतौर पुलिस इंसपेक्टर ज्वाइन किया था. उन्होंने चार्जशीट दायर करने के बाद एशिया टाइम्स के रिपोर्टर माजिद हैदरी से कहा है कि दो महीने के बाद अब मैं चैन की नींद सो पाया हूं.

अगस्त 2016 में रमेश जाल्ला को बढ़िया काम के लिए शेर-ए-कश्मीर पुलिस मेडल दिया गया था. रमेश जाल्ला पर आतंकवादी हमला भी हुआ है और वे कई महीने तक अस्पताल में रहे हैं.

पुलिस की टीम ने अगर पुलिस के अफसरों को आरोपी बनाया है तो हिन्दू एकता मंच को क्या दिक्कत है. बीजेपी के नेताओं को क्यों शक है. अगर शक है भी तो इसमें तिरंगे का क्या काम है. अगर कल कोई मुस्लिम संगठन यह मांग करने लगे कि बच्ची की मौत की जांच के लिए हिन्दू अधिकारियों पर भरोसा नहीं है, तब इस राज्य व्यवस्था की क्या साख रह जाएगी, क्या हम यहां तक आ पहुंचे हैं कि हर समुदाय को अपनी घटना की जांच के लिए अपने समुदाय का अधिकारी चाहिए होगा.

हमारे नेताओं को बोलने की जल्दी रहती है. मध्य प्रदेश के खांडवा से सांसद और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान का कहना है कि कश्मीर में जिस मासूम के साथ बलात्कार हुआ उसके पीछे पाकिस्तान का हाथ है. उन्होंने ही भारत में फूट डालने के लिए किया था.

इन बयानों का एक ही मकसद है कि कहानी हिन्दू मुस्लिम हो जाए. फिर नेता उसके हिसाब से एक बच्ची की लाश पर अपनी रोटी सेंक लें. एनडीटीवी डाट काम पर हमारे सहयोगी नज़ीर मसूदी ने एक रिपोर्ट लिखी है. नज़ीर इस केस को 17 जनवरी के फॉलो कर रहे हैं जब बच्ची की लाश मिली थी. नज़ीर ने लिखा है कि हीरानगर पुलिस स्टेशन ने शुरू में ही कई महत्वपूर्ण सबूत नष्ट कर दिए. जिसमें बच्ची के खून से सने कपड़े थे जिसे फोरेंसिक लैब में भेजा जाना था. ज़िला अस्पताल ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने में दो महीने का समय लगाया. जिस मेडिकल सुप्रीटेंडेंट ने बलात्कार की पुष्टि की थी, उसका अचानक से तबादला कर दिया गया. फरवरी में बच्ची के परिवार ने हाईकोर्ट में निष्पक्ष जांच की गुहार लगाई थी. प्रत्येक सुनवाई में क्राइम ब्रांच ने स्टेटस रिपोर्ट जमा किया है. हाईकोर्ट ने आरोपियों को अरेस्ट करने के आदेश दिये. कोर्ट की निगरानी के बाद भी वकील और राजनीतिक दल गिरफ्तारी का विरोध कर रहे थे. क्या इसलिए वे जय श्री राम का नारा लगा सकते थे, हाथ में तिरंगा लेकर आ सकते हैं. कोर्ट में इतनी भीड़ हो गई कि छह घंटे लग गए पुलिस को मजिस्ट्रेट के हाथ में चार्जशीट सौंपने में. ये है नया इंडिया. जिसमें एक भीड़ है जो रैपिड एक्शन फोर्स की तरह हर जगह स्टैंड बाई पर है.

यह भीड़ पहले तिरंगा लेकर आती है, बार बार तिरंगे के सम्मान का सवाल उठाती है, इस तिरंगे को पहले यूनिवर्सिटी में टांगा गया ताकि वहां राष्ट्रवाद फैले मगर जल्दी ही भीड़ ने उस तिरंगे को अपना नक़ाब बना लिया. ताकि आप तिरंगे के प्रति सम्मान के कारण भीड़ का चेहरा न देख सकें. न्यूज चैनलों और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के ज़रिए हिन्दू मुस्लिम डिबेट से फैली नफ़रत इस भीड़ में भरी होती है. अब ये भीड़ हर तरफ है. इसमें शामिल हर किसी का चेहरा तिरंगे से ढंका है. आपको तिरंगा दिखता है और आप क्या हम भी उस तिरंगे का दिल से सम्मान करते हैं. मगर आप भीड़ के पांव देखिए. वह कहां जाने को तैयार है. कहां आग लगाने के तैयार है. आप पांव से देखते हुए चेहरे की तरफ बढ़िए, इस भीड़ का इरादा दिख जाएगा और आपको अफसोस होगा कि आपके प्यारे तिरंगे का इस्तमाल भीड़ बलात्कार के आरोपियों को बचाने के लिए करने लगी है.

10 जनवरी को बच्ची को अगवा किया गया था. उसके साथ मंदिर में बार बार बलात्कार हुआ. बेहोशी की दवा दी जाती रही. मरने के बाद भी बलात्कार किया गया. चार्जशीट में इसका डिटेल इतना भयानक है कि आपको तभी फर्क नहीं पड़ेगा जब आप इस भीड़ में शामिल हैं. अगर शामिल नहीं हैं तो रात भर सो नहीं पाएंगे. हमारे सहयोगी ज़फर इक़बाल उन जगहों पर गए हैं जहां बच्ची के आख़िरी क्षणों के आंसू और ख़ून के निशान हैं. निशान तो नहीं हैं मगर दास्तान है.

विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने कहा है कि हमने बच्ची के भरोसे को तोड़ा है. प्रधानमंत्री की चुप्पी के बीच वी के सिंह का यह बयान चलताऊ ही सही मगर मरहम तो है. कम से कम ईमानदारी तो है. यही बयान देने में नेताओं को इतनी देर क्यों लग जाती है. इसी 21 फरवरी को ऑस्ट्रेलिया में एक बच्ची के साथ बलात्कार की घटना हुई. वहां की सरकार ने माफी मांगी. पुलिस प्रमुख ने माफी मांगी. हम जाति और धर्म देख रहे हैं. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी प्रधानमंत्री मोदी के पुराने ट्वीट को रि ट्विट किया है. 30 अप्रैल 2014 के इस ट्वीट में नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 'निर्भया को मत भूलना. बेरोजगार युवाओं को मत भूलना. आत्महत्या कर रहे किसानों को मत भूलना. मत भूलना किस तरह हमारे जवानों के सर काटे गए.'

क्या हिन्दू मुस्लिम की राजनीति समाज और सिस्टम को यहां तक ले आएगी. अगर बीजेपी पहले से सचेत थी तो जनवरी से जम्मू में चल क्या रहा था. राम माधव ने फेसबुक पर लिखा है कि एक अप्रैल को जम्मू कश्मीर राज्य की बीजेपी कार्यकारिणी में प्रस्ताव पास हुआ था कि नाबालिग के जघन्य बलात्कार की निंदा की जाती है. ऐसे अपराध अमानवीय हैं. इनके सांप्रदायिक बनाने के किसी भी प्रयास की निंदा करने की जरूरत है. अपराध को अंजाम देने वालों को कानून के मुताबिक सज़ा देनी चाहिए और निर्दोष का उत्पीड़न नहीं करना चाहिए. क्या राम माधव ने लाल सिंह और चंद प्रकाश गंगा से पूछा था कि वे हिन्दू एकता मंच की सभा में जांच में फिर क्यों सवाल उठा रहे थे. हिन्दू एकता मंच के नेता उनकी पार्टी के हैं या नहीं. आरोपी को बचाने के लिए हिन्दू एकता मंच को आगे लाने की क्या ज़रूरत थी. कौन लाया हिन्दू एकता मंच को आगे, महबूबा मुफ्ती ही बेहतर बता सकती हैं. उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि बीजेपी के दो मंत्रियों के इशारे पर भीड़ बेकाबू हुई. उनके खिलाफ कब कार्रवाई होगी. अगर महबूबा इन दो मंत्रियों की शिकायत गृहमंत्री से करने आईं थीं तो वे कार्रवाई कब करेंगी. राहुल गांघी ने ट्विट किया है, 'ऐसे गुनाह के दोषी का बचाव कोई कैसे कर सकता है. यह मानवता के खिलाफ अपराध है. हम क्या हो गए हैं? अगर हम एक मासूम बच्ची के साथ हुई अकल्पनीय क्रूरता में राजनीति को हस्तक्षेप करने देते हैं?'

आप अपने बच्चे से ज़रूर पूछिए कि कहीं वो इस नफ़रत के साथ तो नहीं है. देर न हो जाए. वर्ना वो भी किसी दिन इस भीड़ में शामिल होकर अपराध कर बैठेगा. बिहार के रोहतास में 6 साल की एक बच्ची से बलात्कार का मामला सामने आया है. जो आरोपी गिरफ्तार हुआ है वो मुस्लिम है. कठुआ में जहां बीजेपी के नेताओं ने यह नहीं कहा कि आरोपी को मार देना चाहिए, फांसी पर लटका देना चाहिए, रोहतास में बीजेपी के सांसद किस भाषा का इस्तमाल कर रहे हैं, आप सुनिये. वो तो अपनी ही पार्टी की सरकार को निकम्मा बता रहे हैं.

कठुआ में आठ साल की बच्ची की हत्या और बलात्कार के आरोपियों का क्या इसलिए साथ दिया जा रहा है वे हिन्दू हैं. रोहतास में आरोपी को बांध कर मारने की बात बीजेपी सांसद इसलिए कर रहे हैं कि वो मुस्लिम है. हम कहां आ गए हैं. आज सोशल मीडिया में आईटी सेल रोहतास की घटना को लेकर सक्रिय है. वो उसी तरह पूछ रहा है कि कठुआ की बच्ची की बात करते हो, रोहतास की बच्ची की बात क्यों करते हो. आईटी सेल की मानसिकता इंसान को दरिंदा बना देती है. एक ही क़त्ल को धर्म के हिसाब से जायज़ और नाजायज़ बना देती है. प्रधानमंत्री बताएं कि सांसद छेदी पासवान की बात सही है या सीबीआई जांच की मांग करने वाले विधायक लाल सिंह की बात सही है.

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