बीती 25 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी के सहारनपुर में विशाल रैली की। पीएम ने अपनी दो साल पुरानी सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए यूपी इसलिए चुना क्योंकि वहां अगले साल विधानसभा चुनाव हैं जोकि बीजेपी के लिए करो या मरो की लड़ाई है। अगर बीजेपी का यूपी में इतिहास देखें तो विधानसभा चुनाव में पार्टी का ग्राफ बीते 15 सालों में बुरी तरह गिरा है। 1996 में जहां बीजेपी की यूपी में 174 सीटें थी वे 2012 में घटकर 47 रह गईं। 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को महज़ 10-10 सीटें मिलीं लेकिन 2014 के चुनाव में मोदी लहर का जादू यूपी में इस कदर चला कि पार्टी को 80 में से 71 सीटें मिलीं।
सन 2014 में सपा, बसपा और कांग्रेस को धूल चटाने वाली बीजेपी की अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत की राह बेहद मुश्किल है। पार्टी की सबसे बड़ी मुश्किल है उसके मजबूत वोट बैंक ब्राह्मण, बनिया व वैश्य जाति का दूसरी पार्टियों को समर्थन करना, जो कि मिलकर प्रदेश की 15 फीसदी आबादी है। पार्टी ने केशव प्रसाद मौर्या को प्रदेश का मुखिया बनाकर लगभग 35 फीसदी ओबीसी आबादी को लुभाने की कोशिश की है फिर भी मौर्या पर पार्टी पूरी तरह निर्भर नहीं हो सकती है क्योंकि उनका कोई अपना जन आधार नहीं है। यूपी में दलितों को लुभाने के लिए भी पार्टी एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है लेकिन बीजेपी यह अच्छी तरह जानती है कि मायावती से दलित वोट काटना बेहद मुश्किल है। यूपी चुनाव में जातिवाद की राजनीति का बड़ा रोल रहता है, इसलिए पार्टी को मायावती के मजबूत दलित वोट बैंक व सत्तारूढ़ सपा के यादव व मुस्लिम वोट बैंक से टक्कर लेने के लिए सही जातिवादी समीकरण बिठाने की जरूरत है।
पार्टी की दूसरी सबसे बड़ी बाधा यह है कि वह मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़े या फिर सिर्फ मोदी जी के दम पर और अगर सीएम उम्मीदवार घोषित किया जाए तो किसे? कल्याण सिंह के राज्यपाल व राजनाथ सिंह के गृह मंत्री बनने के बाद यूपी में बीजेपी का शायद ही कोई मजबूत नेता बचा है। मीडिया में सीएम पद के लिए जिन नामों की चर्चा रहती है वह नाम हैं योगी आदित्यनाथ, स्मृति ईरानी, वरुण गांधी व महेश शर्मा। पार्टी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में यूपी में उपचुनाव लड़ चुकी है जिनके सांप्रदायिक बयानों के चलते बीजेपी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था, इसलिए उनका सीएम उम्मीदवार बनना लगभग नामुमकिन है। स्मृति ईरानी को सीएम उम्मीदवार बनाने पर पार्टी को शायद दिल्ली जैसा परिणाम देखने को मिले जब हर्षवर्धन की जगह बाहरी किरण बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया था जोकि अपनी ही सीट नहीं बचा पाई और पार्टी को 70 में से महज़ 3 सीटें मिली थीं। वरुण गांधी को अमित शाह ने पार्टी के जनरल सेक्रेटरी के पद से निष्कासित कर दिया था और वे हमेशा से ही मोदी जी को खटकते रहे हैं। इसलिए यह बेहद मुश्किल है कि पार्टी यह जिम्मेदारी वरुण को सौंपे। महेश शर्मा मंत्री व सांसद जरूर हैं लेकिन वे इतने बड़े नेता नहीं हैं कि मायावती व अखिलेश यादव को टक्कर दे पाएं। इसलिए पार्टी उन्हें भी सीएम उम्मीदवार घोषित करने से पहले सौ बार सोचेगी। वहीं बीजेपी के पास यूपी में ऐसा कोई भी नेता नहीं है जो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की तरह युवाओं को लुभा सके। पार्टी अगर बिना सीएम उम्मीदवार चुनाव में उतरती है तो बिहार की तरह यूपी में भी इसके विपरीत परिणाम हो सकते हैं। मुख्यमंत्री उम्मीदवार के मुद्दे पर भी पार्टी को बेहद सोच-समझकर कदम उठाना पड़ेगा।
तीसरा बड़ा मुद्दा यह है कि पार्टी किस एजेंडा के तहत यूपी में चुनाव लड़ेगी। अगर आपको याद हो तो बीते लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ विकास और भ्रष्टाचार का मुद्दा लेकर ही चुनाव लड़े थे और बीजेपी के 43 पन्नों के मेनिफेस्टो में राम मंदिर मुद्दा 42वें पेज पर था। मोदी जी को वोट भी विकास की लालसा में देश वासियों ने दिए थे न कि हिंदुत्व व सांप्रदायिक मुद्दों पर। बिहार चुनाव में गाय और साम्प्रदयिक मामलों को मुद्दा बनने वाली बीजेपी को बुरी हार का सामना करना पड़ा था। यूपी में बीजेपी को ध्यान में रखना होगा कि पार्टी इन बेबुनियाद मुद्दों के बजाय विकास को ज्यादा तरजीह दे, ताकि बिहार में की गई गलतियों को न दोहराया जाए। हालांकि वोट बैंक के लिए यूपी चुनाव में पार्टी का हिंदुत्व एक बड़ा मुद्दा होगा। यूपी चुनाव में आरएसएस का भी एक बड़ा रोल होगा।
कुछ भी हो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किस्मत का फैसला कुछ हद तक अगले साल होने वाले यूपी चुनाव पर कई हद तक निर्भर होगा। अगर यूपी चुनाव में बीजेपी सफल होती है तो आने वाले समय में पार्टी और प्रधानमंत्री दोनों का कद और बढ़ेगा। यूपी बीजेपी के लिए नाक और साख की लड़ाई है और यहां सत्ता में आने के लिए पार्टी गठबंधन का रास्ता भी खुला रखेगी। जैसे-जैसे यूपी चुनाव के दिन नजदीक आते जाएंगे वैसे-वैसे मोदी, अमित शाह और पार्टी हाई कमान की नींद उड़ती जाएगी।
नीलांशु शुक्ला NDTV 24x7 में ओबी कन्ट्रोलर हैं...
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This Article is From May 29, 2016
यूपी चुनाव में बीजेपी की राह बेहद मुश्किल, सोच समझकर उठाना होगा हर कदम
Nelanshu Shukla
- ब्लॉग,
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Updated:मई 29, 2016 22:53 pm IST
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Published On मई 29, 2016 22:53 pm IST
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Last Updated On मई 29, 2016 22:53 pm IST
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