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This Article is From May 04, 2016

किसी एक दौर के नहीं हैं 'बिग बी', हर दौर उनका दौर है...

Vivek Rastogi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    May 04, 2016 11:58 IST
    • Published On May 04, 2016 20:09 IST
    • Last Updated On May 04, 2016 20:09 IST
आमतौर पर फिल्म अभिनेताओं का एक 'ज़माना', या कहें 'दौर' होता है, जिससे पहले या जिसके बाद उन्हें याद करने वाले कम ही मिलते हैं, लेकिन कुछ विरले सितारे ऐसे होते हैं, जिन्हें दादा और पोते, दोनों से प्यार और प्रशंसा मिल पाती है... हिन्दी फिल्म जगत के ऐसे ही एक सितारे हैं, जो मेरे पिता के जवानी के दिनों में भी स्टार थे, मेरी जवानी के दिनों में भी स्टार थे, और आज मेरा बेटा जब जवानी की ओर कदम बढ़ा रहा है, तब भी स्टार ही हैं... और हां, स्टार भी ऐसे नहीं, जो सिर्फ काम करते जा रहे हैं, बल्कि ऐसे, जिनके कद और छवि के हिसाब से आज भी अलग से कहानियां लिखी जाती हैं, और वह निर्देशक त्योहार मनाता है, जिनके साथ वह काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं...

जी हां, मैं बात कर रहा हूं अमिताभ बच्चन की, जिन्हें वे लोग भी जानते हैं, जो आमतौर पर फिल्में देखना पसंद नहीं करते... मंगलवार को उन्हें पिछले साल आई उनकी फिल्म 'पीकू' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में 63वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में सम्मानित किया गया, और फिल्मी दुनिया के बहुत-से रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके बच्चन साहब ने यहां भी एक रिकॉर्ड बना डाला... वह अब सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार सबसे ज़्यादा बार जीतने वाले अभिनेता बन गए हैं...

मेरी यादों में अमिताभ बच्चन ने 'डॉन' के वक्त जगह बनाई, जब लगभग सात साल की उम्र में मैं सारा-सारा दिन 'खइके पान बनारस वाला...' गाते हुए घूमता रहता था, और स्कूल में इसी गीत को गुनगुनाने के लिए मार भी खाई थी... वह वैसे भी 'बिग बी' का सबसे कामयाब दौर कहा जाता है, सो, उसके बाद हर फिल्म दिमाग में जगह बनाती चली गई, और हर फिल्म के साथ पसंदीदा गीत भी बदलता चला गया... 'खइके पान बनारस वाला...' के बाद 'पग घुंघरू बांध...' भी बहुत लंबे अरसे तक मैंने गुनगुनाया, और फिर एक दौर आया, जब 'गोरी का साजन, साजन की गोरी...' मेरा पसंदीदा गीत बना...

कहने का मतलब यह है कि अमिताभ सिर्फ मनोरंजन का नाम नहीं रहे, रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गए थे... लगभग 11 साल का था मैं, जब वह शूटिंग के दौरान हुए हादसे के बाद अस्पताल पहुंच गए थे, और सारा मुल्क प्रार्थना कर रहा था... मैं भी ज़्यादा कुछ न समझते हुए भी इतना समझ रहा था कि हो सकता है, अमिताभ अब कभी न दिख पाएं, सो, बेहद दुःखी भी था... और जब वह ठीक होकर बाहर आए, तो पहली बार पिता से कोई फिल्म 'पहला दिन, पहला शो' दिखाने की ज़िद की, जो पूरी हुई, और मैं 'कुली' का 'पहला दिन, पहला शो' ही देखकर आया, और 'एक्सीडेंट हो गया, रब्बा रब्बा...' गुनगुनाते हुए खुश-खुश बाहर निकला...

मेरी यादों में जब तक फिल्में रहेंगी, अमिताभ बच्चन उनमें सबसे ज़्यादा जगह घेरे रहेंगे... 'ज़ंजीर', 'दीवार', 'कभी-कभी', 'शराबी', 'चुपके-चुपके', 'लावारिस' जैसी न जाने कितनी ही फिल्में हैं, जो हमेशा 'ऑल टाइम फेवरेट' की लिस्ट में लिखता रहूंगा मैं...

लेकिन मुद्दा यह है कि अमिताभ बच्चन ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने सिर्फ मेरे दिल में, यानी मेरी पीढ़ी के दिल में जगह नहीं बनाई है, बल्कि वह मुझसे पहले के दौर में भी पसंद किए जाते थे, और सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि मेरे बाद की पीढ़ी को भी पसंद आते हैं, जबकि उन्हीं के साथ के बाकी 'सुपरस्टार' आने वाली पीढ़ी को शायद याद भी नहीं होंगे...

मेरे पिता को गुज़रे ज़माने के अभिनेता सोहराब मोदी, महिपाल के अलावा 'ट्रेजेडी किंग' दिलीप कुमार, संजीव कुमार और बलराज साहनी बेहद पसंद रहे हैं, लेकिन उनके लिए यादगार रही फिल्मों में 'शोले' भी शामिल है, और 'शक्ति' और 'नमकहलाल' भी...

मेरे बचपन और जवानी के दिनों की मेरी यादों में जितनी भी ऐसी फिल्में हैं, जो सहज ही याद रहीं, उनमें ज़्यादातर अमिताभ की ही फिल्में हैं, और आज की पीढ़ी के लिए भले ही 'राहुल' और 'राज' सबसे ज़्यादा पसंद किए जाने वाले स्क्रीन नाम हैं, लेकिन मेरी पीढ़ी के लिए 'विजय' और 'अमित' ही यादगार हैं...

और इसके बाद अब आप यकीन करें या नहीं, मेरे बेटे को भी कार्टून फिल्मों के बाद जो पहली फिल्म पसंद आई, वह अमिताभ बच्चन की ही 'भूतनाथ' थी... उसने शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान को बहुत बाद में पहचानना शुरू किया, लेकिन अमिताभ बच्चन को उसने बहुत छोटी उम्र से पहचानना शुरू कर दिया था, और सच्चाई यह है कि परिवार के बाहर का पहला चेहरा अमिताभ बच्चन का ही था, जो उसने पहचाना...

तीन पीढ़ियों से हम भारतीयों का मनोरंजन करते आ रहे 'बिग बी' आज भी काम कर रहे हैं, और गौरतलब है कि पसंद किए जाने लायक काम कर रहे हैं, सो, हम तो यही दुआ करेंगे कि वह इसी तरह मेहनत करते रहें, और हम सभी को मनोरंजन के वे पल देते रहें, जिनकी यादें मेरा बेटा भी अपने बेटे के साथ बांट पाए, जिस तरह मैं करता हूं...

विवेक रस्तोगी Khabar.NDTV.com में संपादक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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