अगला टी-20 वर्ल्ड कप जिताने के लिए 'जादू की छड़ी' द्रविड़ के पास भी नहीं

यूं तो वक्त भारतीय क्रिकेट में बहुत और कई बातों की मांग कर रहा है, लेकिन बात टी-20 के संदर्भ में ही है, तो यह सटीक समय है, जब आपको इस फॉर्मेट को सीरियस लेना होगा. BCCI कह सकता है कि वह गंभीरता से ले रहा है. वह IPL जैसी वैश्विक लीग करा रहा है, लेकिन यह गंभीरता दिख नहीं रही

अगला टी-20 वर्ल्ड कप जिताने के लिए 'जादू की छड़ी' द्रविड़ के पास भी नहीं

T20 World Cup: टीम इंडिया को बन चुकी बड़ी बीमारी का इलाज खोजना ही होगा

खास बातें

  • पिछले 14 सालों में भारत के खाते में सिर्फ एक ही खिताब
  • तीसरी बार सेमीफाइनल में पहुंचने से चूका भारत
  • आखिर इस "गंभीर बीमारी" का इलाज क्या है?

"We take Pakistan like any other team..."

यह बयान भारतीय कप्तान विराट कोहली ने मुस्कुराते हुए चिर-प्रतिद्वंद्वी के बारे में टी-20 वर्ल्ड कप के सुपर-12 राउंड दौर के अपने पहले मैच से पहले दिया था.  लेकिन आप एकदम सफेद झूठ बोले! जुबां झूठ बोल सकती है, लेकिन शारीरिक भाषा बड़े मैच के दिन सब की पोल खोल देती है. पाकिस्तान ही नहीं, न्यूजीलैंड के खिलाफ भी यह आपके झूठ की चुगली कर रही थी. बल्लेबाजों की, गेंदबाजों की, फील्डरों की शारीरिक भाषा. विश्वासहीन, निस्तेज, थोड़े घबराए हुए, थोड़े सहमे हुए, थोड़ी हिचकिचाहट, थोड़ा डर, आदि. यह सब हुआ, तो फिर सब कुछ बिगड़ गया! और खेल के मैदान पर कोई भी दिग्गज / टीम शारीरिक भाषा को नहीं छिपा सकता. कई हज़ार मेगा-पिक्सेल वाले कैमरे आपकी पोल खोल ही देते हैं. बनावटी मुस्कान और प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुतर्क वाले जवाब आपके अहम पर पर्दा डाल सकते हैं, लेकिन सच नहीं छिपा सकते. दोनों ही बड़े मैचों में सुपरस्टार बल्लेबाज औंधे मुंह जमीन पर थे, तो बुमराह एंड कंपनी को रिज़वान और बाबर ने हत्थे से उखाड़ दिया. इन सभी तत्वों का समावेश यह बताने के लिए काफी था कि आप पाकिस्तान को बाकी टीमों की तरह नहीं लेते. आप मैदान के बाहर कुछ और बोलते हैं, लेकिन जब भीतर उतरते हैं, तो दबाब आप पर साफ असर डालता है और आपकी पोल उतरते ही खुल जाती है.

बहरहाल, पाकिस्तान आपको बाकी टीमों की तरह नहीं लेता. पिछले 29 साल से विश्व कप (फिफ्टी-फिप्टी और 20-20) में बार-बार हारने की पीड़ा, ऑफिशियल ब्रॉडकास्टिंग खेल चैनल पर 'मौका-मौका' का उपहास सहित तमाम बातों का सॉलिड जवाब देने के लिए जो जुनून, जज्बा, बेहतरीन होमवर्क (उदाहरण : रोहित का विकेट), रणनीति, इस पर बहुत ही मजबूती से अमल आदि तमाम बातों के साथ पाकिस्तान मैदान पर उतरा था. तमाम पहलुओं में एक पहलू 'अमीर आदमी' बनाम 'गरीब आदमी' भी है. अक्सर 'गरीब आदमी' उस व्यक्ति को पटखनी देने में कामयाब रहता है, जिसका पेट भरा हुआ होता है! इसके उलट भारत के पास कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा, पहले मैच में! क्या किसी को कुछ दिखाई दिया? वास्तव में IPL ने हमारे बहुत नायकों के पेट ज़रूरत से ज़्यादा भर दिए हैं! कई पंडित कहते हैं कि असल भारतीय टीम वही है, जो अफगानिस्तान, स्कॉटलैंड या नामीबिया के खिलाफ खेलती दिखाई पड़ी... तो फिर पाकिस्तान, न्यूजीलैंड के खिलाफ कौन-सी भारतीय टीम थी? इन मैचों का प्रदर्शन दरअसल टीम इंडिया रूपी सिक्के का दूसरा पहलू है. यह एक चरित्र बन चुका है और कोई भी विद्वान पंडित इसकी अनदेखी कर ही नहीं सकता. कोई भी टीम समृद्ध इतिहास और 'मौका-मौका' पर ज़्यादा दिन नहीं उछल सकती. सच यह है कि आपका वर्तमान पिछले कुछ सालों से पिघल रहा है. पिछले कुछ सालों में टी-20 विश्व कप का प्रदर्शन तो यही कह रहा है.

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हालिया सालों में जब-जब बड़े मैचों में टीम इंडिया वन-डे या टी-20 में उतरी, तो हालात कमोबेश ऐसे ही रहे. कभी उन्नीस, कभी बीस. तस्वीर लगभग वैसी ही थी, जैसी साल 2019 वर्ल्ड कप में न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में थी. और जब तक इस पहलू का इलाज नहीं निकलता, तो फिर टीम के मेंटोर एम.एस. धोनी हों या कोई और बड़ी शख्सियत, विश्वास कीजिए, कुछ नहीं हो सकेगा. आप हर बार वहीं खड़े रहेंगे, जहां सालों पहले खड़े थे. मतलब जब-जब इस स्तर के मैच होंगे, हाथ-पैर फूलेंगे ही. एप्रोच वैसी नहीं ही होगी, जैसी आक्रामक और पूरी तरह स्पष्ट पाकिस्तान की थी.

नामीबिया के खिलाफ आखिरी अप्रासंगिक मुकाबले में नौ विकेट से जीत के साथ ही जारी टी-20 वर्ल्ड कप में भारत का अभियान खत्म हो गया. इसी के साथ भारत साल 2007 में शुरू हुए इस संस्करण के अब तक आयोजित हुए आठ विश्व कपों में तीसरी बार सेमीफाइनल में जगह नहीं बना सका. इन आठ संस्करणों में भारत जीत प्रतिशत के मामले में नंबर-2 (श्रीलंका से कुछ ही पीछे, 63. 51%, 39 मैचों में 24 में जीत, 14 में हार, 1 टाई) होने के बावजूद शुरुआती संस्करण के बाद अगले 7 संस्करणों में खिताब नहीं जीत सकी. क्या ऐसे ही भारत इस फॉर्मेट में विश्व में राज करेगा?

टूर्नामेंट के इतिहास में इंग्लैंड (52.57) और ऑस्ट्रेलिया (58.82) का जीत प्रतिशत भारत से कहीं कम है, लेकिन जब बात 'करो या मरो' या सबसे बड़े मुकाबले में जीत की आती है, तो शायद भारतीय टीम इन टीमों से जीत प्रतिशत ही नहीं, टेम्परामेंट (मनोदशा), मजबूत मानसिक बल, इच्छाशक्ति, जज्बा, दबाव से निपटने की क्षमता, वार-पलटवार जैसे पहलुओं में पीछे छूट जाती है. इन तत्वों को नापने का कोई मीटर भी नहीं होता और न ही कोई रिकॉर्डबुक! और इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जारी विश्व कप में उसके पाकिस्तान और न्यूजीलैंड के खिलाफ खेले गए मुकाबले. इन मैचों की मिसाल इन पहलुओं से तब तक दी जाती रहेगी, जब तक बड़े मंच पर निरंतर सफलता के रूप में परिणाम नहीं आता. यह एक तरह से टीम इंडिया का चरित्र हो चला है. और रवि शास्त्री और विराट कोहली कई साल मिलकर भी इसका तोड़ नहीं निकाल सके. क्या निकाल सके...?

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सेमीफाइनल की रेस से बाहर होने के बाद से ही पुराने, अप्रासंगिक और बासी पड़ चुके वाक्य मीडिया में सुनाई पड़ने शुरू हो गए हैं. "टीम में बदलाव करो", "युवाओं को टीम में शामिल करो" वगैरह-वगैरह.. क्या ऐसा करने से लगभग 11 महीने बाद ऑस्ट्रेलिया में होने वाला विश्व कप आप जीत जाएंगे? वास्तव में इसके लिए 'जादू की छड़ी' की ज़रूरत है! राहुल द्रविड़ जैसे दिग्गज के जल्द ही टीम का कोच बनने के बावजूद, क्योंकि द्रविड़ जैसा शख्स भी 'सारे छिद्र' तो नहीं भर सकता, क्योंकि बड़े परिवर्तनों की ज़रूरत है. खिलाड़ियों के कौशल को 11 महीने के भीतर नई ऊंचाई देने के लिए क्या BCCI के पास कोई जादू की छड़ी है? क्या कोई ठोस व्यवस्था है? बिल्कुल भी नहीं है. इस सीजन में कुछ दिन पहले ही शुरू हुआ राष्ट्रीय टी-20 सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी उन्हीं पाटा पिचों पर खेला जा रहा है, जहां बल्ले का ऊपरी किनारा लेकर गेंद थर्ड मैन या फाइन लेग के ऊपर से छक्के के लिए चली जाती है. ऐसी पिचों पर, जहां एक हाथ से बल्लेबाज छक्का आसानी से जड़ देते हैं. टीम सेलेक्शन में हर बारीक पहलू का ध्यान रखने वाला बुद्धिमान मैनेजमेंट विश्व कप में लंबी बाउंड्रियों के पहलू को कैसे भूल गया? जो पुल और लॉफ्टेड शॉट (एक हाथ से) IPL में बाउंड्री के पार चले जाते हैं, राहुल, रोहित जैसे अच्छे पुलर और हुकर माने जाने वालों सहित ज़्यादातर बल्लेबाजों के शॉट बाउंड्री से काफी पहले लपके गए. पेसरों की बात करें, तो ज़रूरत के समय वाइड फुल-लेंथ, राउंड-द विकेट वाइड फुल लेंथ क्यों नदारद रहीं? यह क्षमता का अभाव था, या कोचिंग स्टॉफ का?

राहुल द्रविड़ जल्द ही 17 नवंबर से न्यूजीलैंड के खिलाफ शुरू हो रही टी-20 सीरीज से टीम इंडिया के नए हेड कोच का कार्यभार संभालने जा रहे हैं. लेकिन बड़े / 'करो या मरो' मैचों में जीत का प्रतिशत बढ़ाने की जादुई छड़ी वास्तव में द्रविड़ के पास भी नहीं है! कारण यही है कि सिस्टम में बदलाव, पिचों में बदलाव, नीतियों में बदलाव सहित कई पहलुओं पर काम किया जाना है. विश्वास कीजिए कि जब ऐसा होगा, तभी बात बनेगी, वर्ना अगले साल 2022 में ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी-20 वर्ल्ड कप में भी 21 जैसी ही तस्वीर दिख जाए, तो चौंकिएगा बिल्कुल भी मत! लेकिन क्या इसके लिए समय बचा है? बिल्कुल भी नहीं!

दो राय नहीं कि टीम विराट ने हालिया सालों में बेहतरीन टेस्ट क्रिकेट खेली है, लेकिन बड़े वन-डे टूर्नामेंट और टी-20 मैचों में यह टीम हर बार बिखरी ही है. साल 2019 का विश्व कप हो, या अब यह टी-20 वर्ल्ड कप. ऐसा नहीं है कि बड़े टूर्नामेंट के बड़े / अहम मैचों में बिखरने का इलाज नहीं है. सवाल यह है कि BCCI ने इस बन चुकी 'गंभीर बीमारी' को हालिया सालो में या इससे पहले कभी गंभीरता से लिया? BCCI मस्त है! हाल ही में करीब 12,000 करोड़ में दो IPL टीमें बिकी हैं, तो लगभग 40,000 करोड़ रुपये IPL के मीडिया राइट्स से आने जा रहे हैं. बोर्ड का खजाना दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है. BCCI अध्यक्ष तमाम विज्ञापनों और व्यावसायिक गतिविधियों में हिस्सा ले रहे हैं. अध्यक्ष के लिए कोई हितों का टकराव नहीं है? लोढा संविधान रद्दी की टोकरी में है! अगर बड़े टूर्नामेंटों में ऐसे प्रदर्शन से भी बोर्ड की मस्ती नहीं टूटेगी, तो किस बात से टूटेगी?

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करीब डेढ़ दशक पहले इंग्लैंड क्रिकेट एकदम ICU में थी. इंग्लिश बोर्ड ने चिंतन-मनन किया. कई बड़े फैसले लिए. एंडी फ्लॉवर को घरेलू क्रिकेट का डायरेक्टर बनाया गया. उन्हें ज़्यादा अधिकार दिए गए. बहुत ही स्पष्टता के साथ ठोस नीतियां बनाई गईं और उन पर उतनी ही मजबूत इच्छाशक्ति के साथ अमल किया गया. नतीजा रहा कि इंग्लैंड टीम ICU से बाहर ही नहीं निकली, बल्कि आज यह टीम दुनियाभर की टीमों को वन-डे और टी-20 खेलने का तरीका सिखा रही है! हार-जीत और खेलने का तरीका दो अलग बातें हैं. इंग्लैंड ने खेलने के तरीके में नए आयाम स्थापित किए हैं, और जब भारतीय मैनेजमेंट कई सालों से फलां नंबर पर यह बल्लेबाज हो, यह फिनिशर हो, वह रोटेटर हो, वगैरह-वगैरह जैसी बातों में उलझने तक सीमित रह गया, तो इंग्लैंड दुनिया को डंके की चोट पर बता रहा है - "दिस इज़ हाऊ वन-डे ऑर टी-20 क्रिकेट इज़ प्लेड..."

यूं तो वक्त भारतीय क्रिकेट में बहुत और कई बातों की मांग कर रहा है, लेकिन बात टी-20 के संदर्भ में ही है, तो यह सटीक समय है, जब आपको इस फॉर्मेट को सीरियस लेना होगा. BCCI कह सकता है कि वह गंभीरता से ले रहा है. वह IPL जैसी वैश्विक लीग करा रहा है, लेकिन यह गंभीरता दिख नहीं रही. गंभीरता दिखती है परिणामों से, टीम के खेलने के तरीके से. क्या यह दिख रही है? IPL में चौकों-छक्कों की बारिश पर चियरगर्ल्स का नृत्य और झूमते दर्शक अलग बात है, तो विश्व कप वर्तमान में खेल के स्तर के हिसाब से कई पहलुओं से 'टेस्ट' हो चला है! कई साल पहले ही इंग्लैंड इस हद तक पहुंच गया कि उसने टी-20, वन-डे और टेस्ट फॉर्मेट में अलग-अलग टीम खड़ी कीं. टी-20 टीम में चुन-चुनकर विशेषज्ञ खिलाड़ियों को फिट किया गया, जिसमें टेस्ट दिग्गज जो रूट जैसे बल्लेबाज के लिए जगह नहीं थी. क्या कोई भारत में कल्पना कर सकता है कि कभी भारत का कोई टेस्ट कप्तान टी-20 का हिस्सा न हो?

बात का सार यह है कि वक्त मांग कर रहा है कि BCCI हालात के हिसाब से कम से कम चार-वर्षीय योजना को लेकर आगे बढ़े और इस पर मजबूत इच्छाशक्ति के साथ अमल हो. टी-20 वर्ल्ड कप का आयोजन हर दो साल (इस साल कोरोनाकाल के कारण अपवाद) के भीतर होता है और दो साल के भीतर किसी बड़ी योजना को अमली जामा तो पहनाया जा सकता है, लेकिन इससे वांछित परिणाम हासिल करना बहुत-बहुत मुश्किल है. हो सकता है कि योजना के कारण एक-दो विश्व कप की बलि चढ़ जाए, लेकिन जब इस पर अमल होगा, तो इंग्लैंड वाले ट्रैक पर आने में समय नहीं लगेगा. वक्त की मांग हो चली है कि अब टी-20 टीम को विशेषज्ञों से भरा जाए. पहली ही गेंद से आक्रामक एप्रोच वाले, बेझिझक लंबे शॉट खेलने वालों और ज़्यादा से ज़्यादा ऑलराउंडरों से. लेकिन ये सब मिलेंगे कहां से? निश्चित ही, इनका जन्म व्यवस्था बदलने, मुश्किल पिचों और ठोस नीतियों से ही होगा. BCCI को सभी राज्य एसोसिएशनों को साफ-साफ अपना चार-वर्षीय प्लान बताना होगा कि उन्हें 'बड़े एजेंडे' के तहत कैसी क्रिकेट खेलनी है और कैसे खिलाड़ियों को (जिला स्तर से ही) चुनना है.

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ऑस्ट्रेलिया में 2022 में होने वाला विश्व कप अलग तरह की पिचों पर होगा. जब UAE की पिचों पर ऐसा हाल है, तो राहुल द्रविड़ का 'प्लान ऑस्ट्रेलिया' बहुत ही ज़्यादा चुनौतीपूर्ण होने जा रहा है. वैसे बात और सवाल इससे भी ऊपर है कि क्या राहुल जैसा शख्स भी इन 11 महीनों में कुछ 'चमत्कार' कर सकता है. नहीं! वजह यह है कि यह 'जादू की छड़ी' (ठोस दीर्घकालिक नीति, टी-20 के लिए मु्श्किल पिच / ऑस्ट्रेलिया जैसीं पिचें, घरेलू क्रिकेट में सुधार वगैरह-वगैरह) कई बातों से मिलकर बनी है. और जब यह छड़ी मिल जाएगी, तो आप देखिएगा कि बड़े मौकों पर मैच जीतने की काबिलियत ही नहीं, बल्कि इस स्तर पर जीतों में निरंतरता भी आ जाएगी. यह छड़ी मिलेगी या कितनी जल्द मिलेगी या फिर मिलेगी भी?

वास्तव में यह शेखचिल्ली जैसा एक ख्वाब है, क्योंकि अगला वर्ल्ड कप जीतने का रास्ता बहुत ही ज़्यादा मुश्किल है और समय बहुत ही कम (लगभग 11 महीने). और कोरोनाकाल या बाकी पहलुओं को देखते हुए BCCI चाहकर भी कुछ स्पेशल नहीं कर सकता. बोर्ड को अपनी गाड़ी 'पुराने ट्रैक' (जारी व्यवस्था, पाटा पिचों) पर ही चलानी होगी. हां, इस प्रदर्शन के बाद वह जरूर होगा, जो होता आया है. कुछ बलि का बकरा बनेंगे! कुछ को टीम से बाहर भेज दिया जाएगा. कुछ नए चेहरे आएंगे. लेकिन क्या यह बड़े मैचों के जीतने का इलाज है? बिल्कुल भी नहीं? यह ठीक ऐसा है कि सिरदर्द के लिए बुखार की दवा दे दी जाए! वास्तव में इस मर्ज की दवा कहीं और ही है! कुल मिलाकर BCCI और टीम इंडिया की राह में अगले टी-20 विश्व कप के लिहाज से चुनौतियां ही चुनौतियां हैं. राहुल द्रविड़ बहुत ही विकट हालात में जिम्मेदारी शुरू करेंगे... तो फिलहाल आप विश्व कप के तुरंत बाद घर में न्यूजीलैंड को टी-20 और टेस्ट सीरीज में मेहमानों को पीटने (एक बार को शायद) पर और द्विपक्षीय सीरीज में घरेलू शेर बनने पर तालियां बजाने के लिए तैयार रहिए. कीवियों के खिलाफ घरेलू पिचों पर कई बार आपको एक हाथ से छक्के और टॉप एज थर्डमैन या फाइन लेग के ऊपर से जाते हुए देखने को मिलेंगे. और जब अगले साल फिर एक और टी-20 वर्ल्ड कप आएगा, तो आप ज़्यादा बड़े ख्वाब बिल्कुल मत पालिए. खुद को इससे दूर ही रखिए!

मनीष शर्मा NDTV.in में डिप्टी न्यूज एडिटर हैं...

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