विज्ञापन
This Article is From Mar 15, 2014

चुनाव डायरी : एनडीए - बहुमत के पास, फिर भी दूर?

Akhilesh Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:22 pm IST
    • Published On मार्च 15, 2014 09:47 am IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:22 pm IST

एनडीटीवी हंसा रिसर्च ग्रुप के जनमत सर्वेक्षण में संभावना व्यक्त की गई है कि भारतीय जनता पार्टी 195 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभर सकती है, जबकि सहयोगी पार्टियों के साथ वह 229 सीटें पा सकती है। वहीं कांग्रेस को इतिहास में सबसे कम 106 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है और सहयोगियों के साथ वह 129 सीटों के आंकड़े तक पहुंच सकती है।

इस जनमत सर्वेक्षण की खास बात यह है कि इसमें दो लाख लोगों की राय पूछी गई है। इसमें सीटों की संख्या की भविष्यवाणी की गई है, न कि सीटों की रेंज के बारे में अनुमान लगाया गया है।

अगर इस सर्वेक्षण की भविष्यवाणी सच साबित होती है, तो यह बीजेपी का अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन होगा। एनडीए 229 सीट पाकर सबसे बड़े चुनाव पूर्व गठबंधन के रूप में उभर सकता है। परंपरा के अनुसार राष्ट्रपति सबसे बड़े दल या सबसे बड़े चुनाव पूर्व गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते रहे हैं। ऐसे में एनडीए को तरज़ीह दी जा सकती है, लेकिन बहुमत के आंकड़े से एनडीए के 43 सीटें दूर रहने की संभावना इस सर्वेक्षण में बताई गई है। ऐसे में सरकार के स्थायित्व को लेकर राष्ट्रपति प्रश्न पूछ सकते हैं।

इस सर्वेक्षण का एक और दिलचस्प निष्कर्ष है। एनडीए और यूपीए में सौ सीटों का फासला। इसी तरह बीजेपी और कांग्रेस में करीब 90 सीटों का अंतर बताया गया है। यह अंतर इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि कांग्रेस को सौ के आसपास सीटें मिलने का मतलब होगा कांग्रेस के बाहर से समर्थन के जरिये तीसरे मोर्चे या वैकल्पिक मोर्चे की सरकार की संभावना का समाप्त होना।

सवाल यह उठता है कि अगर सर्वेक्षण सही साबित होता है, तो एनडीए सरकार बनाने के लिए जरूरी 40 सीटों की व्यवस्था कैसे करेगा? बीजेपी के रणनीतिकार वैसे भी एनडीए के बहुमत से दूर रहने पर संभावित सहयोगियों के रूप में ऐसे दलों को साथ लेना पसंद करेंगे, जो सरकार में शामिल होकर उसे स्थायित्व दे सकें।

पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए बीजेपी जयललिता की एआईएडीएमके और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से समर्थन लेने के लिए बहुत इच्छुक नहीं होगी, क्योंकि इन दोनों ही नेताओं ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के लिए कई मुश्किलें खड़ी की थीं।

हालांकि जयललिता के साथ नरेंद्र मोदी की मित्रता है। शुरुआत में तीसरे मोर्चे के साथ खड़े होने बाद जयललिता ने अपनी ओर से संबंध तोड़कर बीजेपी को चुनाव के बाद के संभावित गठबंधन के लिए संकेत दिया है। जबकि ममता बनर्जी और जयललिता दोनों के बीच बर्फ पिघली है और बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ है।

ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में जाना है। मुस्लिम मतदाताओं को ध्यान में रखकर वह शायद ही सरकार में शामिल हों। हां, सरकार को बाहर से रणनीतिक समर्थन देकर राज्य के लिए 'मोटी कीमत' जरूर वसूल सकती हैं। संभावित सहयोगियों के लिए यह एक बड़ा फैक्टर होगा। राज्यों में सरकार चला रहे क्षेत्रीय दल केंद्र की सरकार से दोस्ताना रवैया रखना चाहते हैं। उन्हें अपने राज्य के विकास के लिए केंद्र की मदद की दरकार होती है।

ओडिशा में नवीन पटनायक एक ऐसे ही संभावित सहयोगी हो सकते हैं। गैरकांग्रेसवाद के नाम पर बीजेपी पटनायक को साथ ला सकती है। वहीं आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद सीमांध्र और तेलंगाना दोनों ही राज्यों में बनने वाली सरकारों को भी विकास के लिए केंद्र सरकार की मदद चाहिए। वाईएसआर कांग्रेस या फिर टीआरएस। दोनों ही बीजेपी के संभावित सहयोगी हो सकते हैं।

जाहिर है ये बातें इसी आधार पर लिखी गई हैं कि जनमत सर्वेक्षण में की गई भविष्यवाणी सच साबित हो। 16 मई को क्या तस्वीर बनती है सारा दारोमदार इसी पर रहेगा। लेकिन जनमत सर्वेक्षण के आकलन को अगर हवा का इशारा भी मानें, तो यह अंदाजा लगाना गलत नहीं होगा कि हवा एनडीए के पक्ष में बह रही है। इसीलिए कोई हैरानी नहीं है कि हवा का रुख पहले से ही भांपने वाले क्षेत्रीय दलों ने चुनाव बाद की संभावनाओं के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Previous Article
BLOG : हिंदी में तेजी से फैल रहे इस 'वायरस' से बचना जरूरी है!
चुनाव डायरी : एनडीए - बहुमत के पास, फिर भी दूर?
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Next Article
बार-बार, हर बार और कितनी बार होगी चुनाव आयोग की अग्नि परीक्षा
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com