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This Article is From Feb 26, 2014

चुनाव डायरी : आखिर क्या है 'मोदीत्व'...?

Akhilesh Sharma
  • Blogs,
  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:17 pm IST
    • Published On फ़रवरी 26, 2014 11:53 am IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:17 pm IST

अगर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी चुनाव में कामयाब होते हैं, तो वह देश को कैसे चलाएंगे...? बिगड़ी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का उनका नुस्खा क्या है...? महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, छुआछूत, सांप्रदायिकता, आतंकवाद जैसी समस्याओं से वह कैसे निपटेंगे...? कृषि, मजदूर, ग्रामीण, राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, शासन व्यवस्था, प्रशासनिक ढांचा, संघीय ढांचा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर उनकी क्या सोच है...?

इन तमाम विषयों पर नरेंद्र मोदी के विचारों की अभी सिर्फ झलक ही देखने को मिली हैं - देश के अलग-अलग हिस्सों में हो रही उनकी रैलियों के भाषणों में, या फिर हाल ही में दिल्ली के रामलीला मैदान पर बीजेपी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में दिए गए उनके भाषण में। करीब सवा घंटे के इस भाषण में मोदी ने तमाम विषयों पर अपनी सोच की झलक दिखाई।

हालांकि बीजेपी का घोषणापत्र आना अभी बाकी है, और घोषणापत्र या संकल्प पत्र सामान्य तौर पर किसी भी पार्टी के लिए एक पवित्र ग्रंथ होना चाहिए, क्योंकि चुनाव में जाने से पहले इसी के माध्यम से वह जनता से वादे करती है और जनता इसी के आधार पर उसे सरकार में भेजने या न भेजने का फैसला करती है। यह बात अलग है कि ज्यादातर पार्टियां अपने घोषणापत्रों में किए गए वादों को पूरा नहीं कर पातीं।

बीजेपी का घोषणापत्र जब आएगा, तब आएगा, लेकिन नरेंद्र मोदी की सोच को सिलसिलेवार ढंग से पिरोया जाना शुरू हो गया है। नरेंद्र मोदी की इसी सोच को लेकर दिल्ली में कल एक पुस्तक 'मोदीत्व' जारी की गई। व्यक्तिवादी राजनीति का विरोध करने वाली बीजेपी फिलहाल 'नमो-नमो' का जाप करने में व्यस्त है, इसीलिए उसे नरेंद्र मोदी के विचारों को 'मोदीत्व' का नाम देने से परहेज नहीं। यह नाम बीजेपी के लिए इसलिए भी अनुकूल है, क्योंकि वह हिन्दुत्व की राजनीति करती है और इसे एक राजनीतिक अवधारणा माना जाता है।

बहरहाल, पुस्तक में विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर नरेंद्र मोदी की सोच को संकलित किया गया है, और शुरुआत धर्मनिरपेक्षता से ही की गई है। मोदी ने धर्मनिरपेक्षता को अपने ढंग से परिभाषित किया है और इसका अर्थ 'पहले भारत' बताया है। सर्व-धर्म-समभाव से लेकर श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश और महात्मा गांधी से लेकर ईसा मसीह तक सबका जिक्र कर यह बताया गया है कि देश सब धर्मों से ऊपर है। पुस्तक में सम्राट अशोक का उदाहरण हैं, जिन्होंने कुएं बनाए, ताकि बौद्ध या गैर-बौद्ध सभी उनका प्रयोग कर सकें। नेपोलियन के नेपोलीओनिक कोड का जिक्र कर बताया गया है कि गुजरात में उसका पालन किया जा रहा है, जिसमें सरकारी नीतियों का लाभ बजाए किसी विशेष समुदाय को पहुंचाने के सभी नागरिकों को दिया जाता है।

'मोदीत्व' सरकार चलाने में आम लोगों की भागीदारी की बात करता है और 'न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन' का सिद्धांत प्रतिपादित करता है। दिलचस्प बात यह है कि इस पुस्तक में इसके लिए ब्राजील के पोर्टो एलेगरे शहर की नगरपालिका में सहभागी बजट का उदाहरण दिया गया है। दिल्ली में बनी आम आदमी पार्टी की सरकार भी यही उदाहरण देती थी और इसके द्वारा मोहल्ला सभाओं को अधिक अधिकार देने का विधेयक भी इसी उद्देश्य से लाया गया था। 'मोदीत्व' स्कूलों के प्रबंधन के लिए ब्रिटन के विद्यालयों के प्रबंधन को रोल मॉडल मानता है, जिसमें स्कूलों से जुड़े आम लोगों को प्रबंधन में हिस्सेदारी दी गई है। इससे मिलता-जुलता प्रयोग भी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने किया था।

'मोदीत्व' इशारा करता है कि अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो एयर इंडिया जैसे सफेद हाथी बंद हो सकते हैं। भारतीय रेल का चरणबद्ध ढंग से निजीकरण हो सकता है। बंदरगाहों, हवाईअड्डों, सड़कों के निर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ सकती है, क्योंकि 'मोदीत्व' मानता है कि सरकार के व्यवसाय में होने का कोई मतलब नहीं है। इसके लिए मोदी के रोल मॉडल शेरशाह सूरी और ब्रिटन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर हैं। शेरशाह सूरी ने सन् 1556 में हुमायूं की मौत के बाद बिगड़ी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कई उपाय किए थे, जिनमें कारोबार में सरकार के दखल को कम करना भी शामिल था और इससे अर्थव्यवस्था सुधरी। वहीं थैचर ने '70 के दशक में 'सिक मैन ऑफ यूरोप' के नाम से बदनाम ब्रिटेन में प्रतियोगिता बढ़ाकर गैर-मुख्य क्षेत्रों से सरकार के दखल को कम किया और इस तरह अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाईं।

मजबूत संघीय ढांचे की वकालत करते हुए 'मोदीत्व' राज्यों को भी अधिक स्वायत्तता देने की बात करता है। इसके लिए मोदी के रोल मॉडल प्राचीन हिन्दू और बौद्ध ग्रंथों के साथ मुगल बादशाह जहांगीर भी हैं, जिन्होंने प्रांतों को स्वायत्तता देने के लिए कई सुधार किए थे। वोट बैंक की राजनीति खत्म करने के लिए 'मोदीत्व' बादशाह अकबर की बात करता है, जिन्होंने कहा था कि अल्लाह ने उन्हें मुसलमान या हिन्दुओं की नहीं, सारे भारतीयों की सेवा करने का निर्देश दिया है।

'मोदीत्व' के हिसाब से आतंकवाद को खत्म करने का एक तरीका पर्यटन को बढ़ाना हो सकता है। खेतों की उपज को सीधे फैक्टरी तक पहुंचाने के तरीके विकसित करना, गांवों को गांव-शहर के रूप में विकसित करना, ताकि शहरों के लिए पलायन कम हो सके, 'बूंद खेती' यानि 'ड्रॉप इरीगेशन' को मजबूत करना, आईटी उद्योग पर जोर देना, आम लोगों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए यूनिवर्सिटी को कैंपस से बाहर ले जाना जैसे सुझाव शामिल हैं।

'मोदीत्व' एक बार फिर कहता है कि गांवों में स्वच्छता के लिए जरूरी है कि देवालयों से पहले शौचालयों को तरजीह दी जाए। मंदिर बनाने के लिए लाखों रुपये खर्च होते हैं, मगर बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनके पास शौचालय बनाने के लिए भी पैसे नहीं हैं। 'मोदीत्व' कहता है कि सरकार को बड़े पैमाने पर शौचालय बनाने चाहिएं।

कम्युनिस्ट देशों की अवधारणा - जनसमूह द्वारा सामूहिक उत्पादन - की प्रशंसा 'मोदीत्व' में की गई है। इसके लिए चीन में डेंग जाइओपिंग के आर्थिक सुधारों का जिक्र भी किया गया है। 'मोदीत्व' सार्वजनिक परियोजनाओं में जनता की भागीदारी की बात भी करता है। पुस्तक में इस बात पर जोर दिया गया है कि जो भी विचार नरेंद्र मोदी ने यहां रखे हैं, उन सभी को उन्होंने सफलतापूर्वक गुजरात में लागू किया है, और इसका अर्थ यह हुआ कि अगर उन्हें मौका मिलता है तो वह पूरे देश में इसे लागू कर सकते हैं।

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