नोटबंदी की क्‍या कीमत चुकाई बैंक कैशियरों ने...

नोटबंदी के दौरान सारी सीटें कैश काउंटर में बदल दी गईं. कैश गिनने और जाली नोट पकड़ने की मशीन नहीं थी. नतीजा यह हुआ कि कई ब्रांच में स्टाफ ने इनके बदले अपनी जेब से पैसे भरे.

नोटबंदी की क्‍या कीमत चुकाई बैंक कैशियरों ने...

फाइल फोटो

''नोटबंदी के दौरान 10 नवंबर को मैंने अपनी जेब से 16,000 रुपये दिए. उस दिन हमारी शाखा सुबह के चार बजे बंद हुई थी. बैंक से निकलने के बाद रेलवे प्लेटफार्म पर रात बिताई. काफी ठंड थी उस दिन. उसके बाद वहीं से नहा धो कर उसी गंदे कपड़े में सुबह 10 बजे ब्रांच चला गया. 50 दिनों तक हर दिन सुबह 10 बजे से रात के 11 बजे तक काम करता रहा. मैंने तो 16,000 ही दिए, बाकियों ने तो इससे भी ज्यादा जुर्माना भरा है. उस दिन बेहिसाब भीड़ थी. लाइन में 800 लोग लगे थे. लग रहा था कि आज दुनिया ख़त्म हो जाएगी. मैंने अकेले 5 करोड़ कैश जमा किए थे. आम दिनों में रोज़ का 70-80 लाख ही होता था. मशीन से गिनने के बाद भी 16,000 कम हो गए. 25,000 मेरी सैलरी है, 16000 एक दिन में दे आया.''

उत्तर प्रदेश के एक बैंकर ने अपनी व्यथा सुनाई है, अब शायद नोटबंदी पर प्रधानमंत्री भी बात नहीं करना चाहते हैं. मीडिया में नोटबंदी के दौरान जब बैंकरों के त्याग की तारीफ़ हो रही थी, उसी वक्त उनके सबसे बड़े त्याग की कहानी ग़ायब हो गई. न तो किसी के पास पहुंची और न किसी ने सुनाई.

प्राइम टाइम के लिए जब बैंक सीरीज़ करने लगा तो बहुत सारे मैसेजों के बीच एक न एक ऐसा मैसेज चला आता था कि हम कैशियर हैं, हमने अपनी जेब से तीन लाख भरे, ढाई लाख भरे, चालीस हज़ार भरे और पांच हज़ार भी. बैंकिंग सिस्टम को कम समझने के कारण मुझे ये बात समझ नहीं आ रही थी. मैं आश्वस्त नहीं था. प्राइम टाइम में भी बोला मगर उतनी प्रमुखता से नहीं. कुणाल कामरा के इंटरव्यू के दौरान जब मैंने यह बात कही तो कुणाल की प्रतिक्रिया थी कि इंटरव्यू देखने वाले दर्शक इस जानकारी से काफी हैरान हैं. तब मैं फिर उन नंबरों की ओर लौटा और पूछना शुरू कर दिया कि किस किस कैशियर को नोटबंदी के दौरान अपनी जेब से पैसे भरने हैं, तो जो जवाब आया है, उसे आपसे साझा करना चाहता हूं.

नोटबंदी के दौरान सारी सीटें कैश काउंटर में बदल दी गईं. कैश गिनने और जाली नोट पकड़ने की मशीन नहीं थी. नतीजा यह हुआ कि कई ब्रांच में स्टाफ ने इनके बदले अपनी जेब से पैसे भरे. मैंने काउंटर पर एक दिन 500 के 8 नकली नोट आ गए. रात को मशीन से जब चेक हुआ तो मुझे 4000 रुपये देने पड़े. इंदौर की एक महिला बैंकर ने अपनी पूरी सैलरी के बराबर जुर्माना भरा. 26,000 रुपये.

मध्य प्रदेश की एक महिला कैशियर को ज्वाइन किए हुए दो महीने ही हुए थे. 18000 सैलरी थी. एक दिन में उसे 20,000 का जुर्माना भरना पड़ गया. यानी महीने की सैलरी से ज़्यादा. एक कैशियर ने बताया कि हम लोगों ने 2 लाख 87 हज़ार का जुर्माना भरा. झांसी के एक नए बैंकर को भी 2 लाख का जुर्माना भरना पड़ गया जिसके लिए उसे लोन लेना पड़ गया. एक और कैशियर ने लिखा है कि हर ब्रांच में हर कैशियर ने हर हफ्ते पांच हज़ार रुपये तो भरे ही होंगे.

एक कैशियर से कहा कि आप अपने कैशियर मित्रों से पूछ कर एक सूची बना दीजिए तो उनका जवाब था कि सूची क्या दूं, हर कैशियर की यही कहानी है कि लोगों ने नोटबंदी के दौरान 70 से 80 हज़ार रुपये दिए हैं.

पटना के एक कैशियर ने बताया कि नोटबंदी के दौरान अपनी जेब से 13,000 रुपये दिए. काउंटर पर नोट गिनने की मशीन नहीं थी. इतना कैश आ गया कि गिनते गिनते चूक हो गई. बक्सर से एक कैशियर ने बताया कि उसे तो 37,000 रुपये अपनी जेब से भरने पड़े. जहानाबाद के एक कैशियर को 3000 देने पड़े.

कानपुर देहात के एक कैशियर ने लिखा है कि उन्होंने 10,000 रुपये अपनी जेब से भरे. तारीख थी 13 दिसंबर 2016 और उनकी सैलरी थी 17,000. गुजरात के अलारसा ब्रांच के कैशियर को 16,500 रुपये देने पड़े. गुजरात के ही एक कैशियर को 7500 देने पड़े. एक कैशियर को 2 लाख 87 हजार देने पड़े. उत्तर प्रदेश के एक कैशियर ने लिखा था कि नई नई नौकरी थी. नोट गिनने की मशीन नहीं थी. गिनने में ग़लती हुई और जाली नोट भी आ गए. जिस बैंक में नौकरी कर रहा हूं, उसी से लोन लेकर दो लाख रुपये देने पड़े.

दिल्ली से एक बैंकर ने लिखा है कि नोटबंदी के दौरान उन्होंने 10,000 का जुर्माना भरा. प्रत्येक शाखा पर 2 से 3 लाख का जुर्माना लगाया गया. मुझे तो इसमें किसी घोटाले की बू आती है. क्योंकि जिन शाखाओं में जाली नोट पकड़ने की मशीन थी, वहां से चेस्ट में जाली नोट का जाना मुमकिन नहीं था. जिस करेंसी चेस्ट से बैंक की शाखाएं पैसे लेती हैं, उनकी तरफ से 15 करोड़ का जुर्माना लगाया गया. इसका बड़ा हिस्सा ब्रांच ने दिया और कैशियरों ने भी अपनी जेब से.

नोटबंदी की ये कहानियां गुमनाम रह गईं. बैंकरों पर अचानक एक ऐसा फैसला लाद दिया गया जिसकी कोई तैयारी नहीं थी. बैंकरों ने अपना फ़र्ज़ अदा किया. दिन रात लगा दिया मगर उन्हें नहीं पता था कि इसकी कीमत वे भी चुकाने जा रहे थे. अचानक आई नोटों की बाढ़ के कारण कई नोट कम पड़ गए, कई नोट जाली आए जिसे उसी वक्त अपनी जेब से भरना पड़ा. वे यह सोच कर अपनी जेब से दे गए कि देश सेवा कर रहे हैं. सरकार बाद में इनाम देगी. पांच साल से सैलरी नहीं बढ़ रही है, बढ़ा देगी. बैंकरों को दो प्रतिशत की वृद्धि की पेशकश हुई है, वे 30 और 31 मई को हड़ताल करने वाले हैं, मगर उन्हें भी नहीं पता कि जो फैसला उनका नहीं था, जो ग़लती उनकी वजह से नहीं थी, करोड़ों रुपये कैशियरों को अपने घर से देने पड़े हैं, उसे वापस मांगा जा सकता है.

नाशिक से एक कैशियर ने लिखा है कि नोटबंदी के दौरान उन्होंने और उनके हेड कैशियर ने 56,000 रुपये दिए. छह दिन के भीतर उनके ब्रांच में साढ़े छह हज़ार कस्टमर 16 करोड़ लेकर आ गए. इतना नोट गिनना उनके बस की बात नहीं थी. रात दिन काम करते करते वे होश में नहीं थे. लिहाज़ा चूक हुई और इसकी भरपाई उन्हें अपनी जेब से करनी पड़ी.

एक कैशियर ने लिखा है कि हर दिन कभी 10 हज़ार तो कभी 5 हज़ार तो कभी 15 हज़ार तो कभी 7 हज़ार कम पड़ जाता था. समझ नहीं आता था कि क्या हो रहा है. तीन-तीन लाख तक जाली नोट आने के कारण ब्रांच के लोगों ने मिलकर अपनी जेब से भरा है.

क्या आप इन कहानियों को जानते थे? क्या बैंकों के प्रमुखों ने अपने कर्मचारियों की इस व्यथा को बिजनेस कवर करने वाले पत्रकारों को बताया या पत्रकारों ने उनसे यह सवाल पूछा या उन्हें भी यह पता नहीं चला? क्या इसका एक राष्ट्रीय सर्वे नहीं होना चाहिए कि जिन बैंकों पर अचानक नोटबंदी थोपी गई, उसकी कितनी कीमत कैशियरों ने अपनी जेब से चुकाई है? वह राशि क्या है? कई सौ करोड़ या दस बीस पचास करोड़? कोई तैयारी नहीं थी. इतनी बड़ी मात्रा में कैश गिनना किसी के बस की बात नहीं थी. गिनना ही नहीं था, उन्हें बदल कर देना था. न जाने कितनी बार गिनती करनी पड़ी होगी. उन्हें कितना काम करना पड़ा होगा. क्या भारत देश के नागरिकों को पता है कि जब नोटबंदी नाम के बेतुके फैसले और आर्थिक फ्रॉड बैंकों पर थोपा गया तो मामूली तनख्वाह पर गुज़ारा करने वाले कैशियरों को अपनी जेब से कितने करोड़ भरने पड़े? क्या इसके लिए वे ज़िम्मेदार थे जो उनसे वसूला गया? क्या यह राशि कैशियरों को वापस नहीं करनी चाहिए?

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