पार्टी में वापसी, जाति न पूछो ‘पारिवारिक दोस्त’ की

पार्टी में वापसी, जाति न पूछो ‘पारिवारिक दोस्त’ की

बेनी प्रसाद वर्मा मुलायम सिंह के साथ (फाइल फोटो)

आगरा में करीब एक महीने पहले हुए अप्रत्याशित पार्टी-परिवर्तन के दो मामलों के बारे में टिप्पणी करते हुए यह आशंका व्यक्त की गई थी कि उत्तर प्रदेश में चुनावी मौसम की दस्तक के साथ ही दल-बदल का सिलसिला शुरू हो चुका है और कुछ बड़े नेताओं के बारे में भी यह अंदाज था कि वे जल्द ही ‘घर वापसी’ के नाम पर अपना राजनीतिक हित साधने में लग जाएंगे। समाजवादी पार्टी के भूतपूर्व नेता बेनी प्रसाद वर्मा के कांग्रेस छोड़कर पुनः समाजवादी पार्टी में आने से न केवल इस परंपरा का पालन हुआ है, बल्कि कुछ अन्य बड़े नेताओं का साहस बढ़ा है कि अब समय आ गया है कि वे भी अपने पत्ते खोलें।

लखनऊ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर बाराबंकी और बहराइच जिलों में अच्छा राजनीतिक प्रभाव रखने वाले बेनी प्रसाद वर्मा पिछले कुछ सालों से पहचान के संकट के गुजर रहे थे। दो दशकों से भी ज्यादा पहले उन्होंने अपने ‘पारिवारिक मित्र’ मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर जिस समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी, उसे उन्हें वर्ष 2007 में बड़े भारी मन से छोड़ना पड़ा था। उन्होंने कांग्रेस का दमन थामा था। दो साल बाद उन्होंने लोक सभा का चुनाव जीता और केंद्र में मंत्री भी बने। इस दौरान वे एक समर्पित कांग्रेस नेता या कार्यकर्ता की तरह वह सब कहते रहे जो एक कांग्रेस कार्यकर्ता से अपेक्षित है। दिसम्बर 2013 में उन्होंने आरोप लगाया था कि सपा और भारतीय जनता पार्टी में पुरानी सांठ-गांठ है और दोनों ही दल गठबंधन भी बना सकते हैं, और यह बयान उन्होंने इटावा के सैफई में हो रहे महोत्सव की आलोचना करते हुए दिया था। मुलायम सिंह यादव को तो उन्होंने ‘डकैतों के नेता’ से लेकर अयोध्या काण्ड के लिए भी जिम्मेदार ठहराया था।

लेकिन 2014 का चुनाव न केवल और उनके पुत्र हार गए, बल्कि कांग्रेस के अन्दर भी उनके साथ असहयोग की चर्चाएं सामने आने लगीं। जुलाई 2014 में उन्होंने पहली बार कांग्रेस में अपने असहज होने को लेकर कहा था कि कुछ लोग कांग्रेस में उनके लिए समस्याएं पैदा कर रहे हैं। उन्होंने बाराबंकी से भूतपूर्व सांसद पीएल पूनिया, उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष निर्मल खत्री समेत कई लोगों पर निशाना साधा था, लेकिन यह भी कहा था कि केवल राहुल गांधी ही कांग्रेस को फिर से ऊंचाइयों पर पहुंचा सकते हैं। तभी से यह संकेत मिलने लगे थे कि बेनी प्रसाद वर्मा कांग्रेस छोड़ फिर से सपा के साथ आ सकते हैं।

गत 12 मई को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश के वाराणसी में एक बड़ी सभा को संबोधित किया और इशारा किया कि वे प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी विरोधी आवाज में अपने जनता दल (यूनाइटेड) की आवाज भी बुलंद करना चाहते हैं, तब यह सवाल उठने लगे थे कि सपा में यादव वर्ग के अलावा पिछड़ी जातियों के एक बड़े नेता की जरूरत है, क्योंकि नीतीश जद (यू) अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री होने के साथ एक कुर्मी नेता के रूप में भी जाने जाते हैं। नीतीश के पटना वापस जाते ही लखनऊ में आनन-फानन में बुलाई गई एक प्रेस कांफ्रेंस में मुलायम ने ‘पुराने दोस्त’ बेनी प्रसाद वर्मा को सपा में शामिल करने की घोषणा कर डाली।

मजेदार बात यह है कि जहां नीतीश कुमार शराब-बंदी के नाम पर उत्तर प्रदेश में एक बड़ा राजनीतिक आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं, वहीं बेनी प्रसाद वर्मा का सपा में स्वागत करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश ने कहा कि ‘पुराने दोस्त और पुरानी वाइन (शराब)’ भुलाई नहीं जा सकती। बेनी का स्वागत करते हुए मुलायम, अखिलेश समेत मोहम्मद आजम खान ने भी तारीफों के पुल बांधे और कहा कि वे पुराने दोस्त हैं, घर के सदस्य की तरह हैं और उनके सपा में आने से पार्टी मजबूत होगी। जाहिर है, उनके आने से जातिगत समीकरणों के संभालने की बात न किसी ने की, न किसी ने पूछी, अलबत्ता बाद में तमाम सपा नेता और कार्यकर्ता यह कयास लगाते नजर आए कि क्या अब पार्टी में एक और पॉवर सेंटर बन गया है। ऐसे संकेतों के बाद कि बेनी प्रसाद वर्मा को सपा राज्य सभा भेज सकती है, पार्टी के कुछ वरिष्ठ राज्य सभा के अभ्यर्थी बेचैन हैं।

जहां एक ओर सपा के वरिष्ठ नेता यह स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं कि बेनी प्रसाद वर्मा कभी दिल से कांग्रेसी थे ही नहीं, वहीं कांग्रेस यह कहकर बला टाल रही है कि कांग्रेस बहुत बड़ी पार्टी है और एक किसी के छोड़के चले जाने से कुछ बनता-बिगड़ता नहीं। यह सभी बयान पुराने और घिसे हुए हैं और किसी के भी दल-बदल पर दोनों पक्षों की ओर से दिए जाते हैं।

राज्य सभा के लिए मनोनयन को लेकर आने वाले दिनों में कुछ और दल परिवर्तन के मामले सामने आ सकते हैं। लखनऊ में कुछ ऐसी रिपोर्ट मिल रही हैं कि लखनऊ के भूतपूर्व मेयर और कुछ वर्ष पहले तक बहुजन समाज पार्टी के नेता अब सपा या भारतीय जनता पार्टी की शरण में आने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि कांग्रेस में वे पहले रह चुके हैं। यह तो मौसम की मांग है कि पत्ते ही नहीं बल्कि शाखें और पूरे-पूरे पेड़ भी रंग बदलते रहें, और लोगों को अपने प्रासंगिक होने की याद दिलाते रहें।

रतन मणिलाल वरिष्ठ पत्रकार हैं...

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