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Job Cuts - आज के दौर की सच्चाई

Apurva Krishna
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 27, 2025 11:59 am IST
    • Published On मार्च 27, 2025 11:58 am IST
    • Last Updated On मार्च 27, 2025 11:59 am IST
Job Cuts - आज के दौर की सच्चाई

अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के 1 महीने के अंदर 1 लाख से ज़्यादा लोगों को नौकरियों से हटा दिया और सिलसिला जारी है. ये सरकारी नौकरियाँ थीं. प्राइवेट नौकरियों का हाल और बुरा है. पिछले साल अमेरिकी कंपनियों ने साढ़े 7 लाख से ज़्यादा लोगों को नौकरी से हटा दिया - 7 लाख 61 हज़ार 358 - पिछले साल अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनियों में इतने लोगों की नौकरियां चली गईं. 

सबसे ज़्यादा छंटनी टेक कंपनियों ने की - 542 कंपनियों ने दुनियाभर में डेढ़ लाख से ज़्यादा लोगों को निकाला. दुनिया की 5 सबसे बड़ी टेक कंपनियाँ - गूगल, माइक्रोसॉफ़्ट, अमेज़न, ऐपल, मेटा - भी इनमें थीं. भारत में भी हज़ारों लोगों की नौकरियाँ गईं. टेक ही नहीं, हेल्थ, ऑटो, मीडिया, एंटरटेनमेंट, ईकॉमर्स - हर सेक्टर में ये हुआ. पिछले 15 साल में सबसे ज़्यादा जॉब कट पिछले साल हुए - एक कोविड वाले साल 2020 को छोड़ कर. 

भारत में भी जॉब कट

भारत में भी पिछले साल मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले हज़ारों लोगों की नौकरी चली गई. भारत में पिछले साल पेटीएम, फ्लिपकार्ट, ओला, बायजूस, अनऐकेडमी, स्विगी, पॉकेट एफएम, कुकु एफएम जैसी नामी कंपनियों ने भी हज़ारों लोगों को हटाया. और ये सिलसिला पहले से चल रहा है, इनमें से कई कंपनियों ने इसके पिछले साल भी छंटनी की थी.

डोनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के एक महीने के अंदर एक लाख से ज़्यादा लोगों को नौकरियां गईं.

डोनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के एक महीने के अंदर एक लाख से ज़्यादा लोगों को नौकरियां गईं.

लेकिन भारत में एक दिक्कत है. अमेरिका में कितने लोगों की नौकरी गई, इसकी निश्चित संख्या पता चल जाती है. लेकिन भारत में पता नहीं चल पाता. बड़ी कंपनियों में जब छंटनी होती है तब तो वो खुद भी बताते हैं, उसकी ख़बर भी छपती है. लेकिन बहुत सी कंपनियां और काम-धंधों सें लोगों को निकाल दिया जाता है, तब सबको पता नहीं चलता. इसलिए गिनती पूरी नहीं हो पाती.

लेकिन बड़ी तस्वीर एकदम साफ़ है - कि आज जॉब कट एक सामान्य बात हो चुकी है. पढ़ाई ख़त्म होती है, कैंपस प्लेसमेंट होता है, या अप्लाई करते हैं, फिर नौकरी मिल जाती है. ज़िंदगी शानदार हो जाती है, सब अच्छा चलता रहता है, और फिर अचानक से कंपनी एक दिन आपको टाटा-बाय बाय कर देती है. सब बिखर जाता है.

और यहीं आता है एक ब़ड़ा सवाल - कि ऐसा क्यों हो रहा है?

जॉब कट के कारण क्या हैं

इसकी दो बड़ी वजह हैं.  पहला, कंपनियों को जब तक मुनाफा हो रहा है तब तक तो सब ठीक रहता है, लेकिन अगर मंदी आ गई, कंपनी को घाटा होने लगा - तो वो कॉस्ट कम करने लगती है, लोगों को निकालना शुरू कर देती हैं. कई बार पूरी की पूरी कंपनी ही बंद हो जाती है. 

अब अमेरिका में डोनल्ड ट्रंप को लगता है कि सरकारी नौकरियों से सरकार को ही घाटा हो रहा है, तो उन्होंने टेस्ला के बॉस एलॉन मस्क को अपना एडवाइज़र बना लिया है, और उन्हें ज़िम्मेदारी दे दी है, कि जो भी नौकरी ऐसी लगती है, कि उनके बिना भी काम चल जाएगा, उन्हें ख़त्म कर दो. उनकी कोई ज़रूरत नहीं है.

कंपनियों को जब तक मुनाफा हो रहा है तब तक तो सब ठीक रहता है, लेकिन मंदी आते ही वो छंटनी करने लगती हैं.

कंपनियों को जब तक मुनाफा हो रहा है तब तक तो सब ठीक रहता है, लेकिन मंदी आते ही वो छंटनी करने लगती हैं.

छंटनी की एक दूसरी बड़ी वजह है - टेक्नोलॉजी. आज की दुनिया में टेक्नोलॉजी इतनी तेज़ी से बदल रही है कि लोगों की नौकरियां छिन रही हैं.  कुछ वैसा ही है, जैसे मोबाइल फ़ोन के आने से PCO और STD बूथ बंद होने लगे; इंटरनेट, नेटफ्लिक्स का दौर आया तो वीडियो कैसेट और सीडी-डीवीडी गुज़रे ज़माने की बात हो गए; स्मार्टफोन आया तो साइबर कैफ़े खाली होने लग. और आज, ऑटोमेशन और AI का ज़माना है. उनके आने से बहुत सारे काम मशीन कर दे रही है,  लोगों की ज़रूरत नहीं रही. 

World Economic Forum का अनुमान है कि अगले 5 साल में यानी 2030 तक AI से 9 करोड़ 20 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी. लेकिन, उसने ये भी कहा है कि 17 करोड़ नई नौकरियां भी आ सकती हैं. लेकिन ये दूसरे तरह की नौकरियाँ होंगी, और उन्हें ही मिलेंगी जो इसके लिए तैयार होंगे.

जॉब कट  के लिए कैसे तैयार रहें

और इसलिए एक दूसरा बड़ा सवाल आता है - कि Job Cuts के ज़माने में कैसे तैयार रहा जाए? दुनियाभर में जितनी भी एनालिसिस हुई है, उसका निचोड़ ये है कि इस असुरक्षा के माहौल में दो चीज़ें ज़रूरी हैं. पहला - कि जो नई चीज़ें आ रही हैं उनके हिसाब से अपना स्किल अपग्रेड करना होगा, नई चीज़ें सीखते रहना होगा.

इसे ऐसे समझा जा सकता है, कि पिछली शताब्दी के आख़िरी दौर में भारत में कंप्यूटर नया आया था. उन दिनों भारतीय मज़दूर संघ ने, जो की आरएसएस का एक बड़ा नामी ट्रेड यूनियन है, उसने 1984 को 'कंप्यूटराइजेशन विरोध दिवस' (Anti Computerisation Year) मनाने की घोषणा की थी. तब बहुत सारे लोगों को लगता था कि कंप्यूटर से लोगों की नौकरियां जा रही हैं. ऐसे लोगों ने कंप्यूटर को दुश्मन समझ लिया. लेकिन, समय बदला और इसके बाद जिन लोगों ने कंप्यूटर से दोस्ती नहीं की, उन्हें पता भी नहीं चला कि वो कब टेक्नोलॉजी की रेस में सबसे पीछे हो गए. नए-नए लोग आते गए, नौकरियां पाते गए.

सबसे ज़्यादा छंटनी टेक कंपनियों में हुई हैं. दुनिया की 542 टेक कंपनियों ने डेढ़ लाख से ज़्यादा लोगों को निकाला है.

सबसे ज़्यादा छंटनी टेक कंपनियों में हुई हैं. दुनिया की 542 टेक कंपनियों ने डेढ़ लाख से ज़्यादा लोगों को निकाला है.

ये बदलाव हर नौकरी में हुआ, और आज भी वही हो रहा है. कंपनियां भी अपने उन स्टाफ़ को ज़्यादा तरजीह देती हैं जो नई चीज़ों को सीखने के लिए उत्सुक रहते हैं, और लकीर के फ़कीर नहीं बने रहते.

Job Cuts के ज़माने में बचाव के लिए एक दूसरी चीज़ है - फाइनेंशियल प्लानिंग. जो भी पैसा मिलता है उसे स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल करना है. सेविंग करनी है, इन्वेस्ट करना है, जिससे कि कभी नौकरी पर संकट आए, तो संभलने के लिए एक ठोस ज़मीन रहे.

ये भी एक तरह की स्किल है. लेकिन, अक्सर होता ये है कि - दुनिया समझ में आई, मगर आई देर से…जो जितनी जल्दी सीख जाता है, उसे उतना फायदा होता है.आज के दौर में नौकरी छूटने की प्लानिंग, नौकरी मिलने के साथ ही शुरू हो जानी चाहिए.

(अस्वीकरण: ये लेखक के निजी विचार है. इससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.)
 

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