बेटियों को अपनी मर्जी से शादी का हक देते हैं हम?

मैं उन्हीं लोगों की बात कर रहा हूं जो खुद को राष्ट्रवादी भी कहते हैं, भारतीय भी कहते हैं मगर वही भारतीय जब बेटी से प्रेम कर लेता है या बेटी उस भारतीय से प्रेम कर लेती है तो परिवारों में छिपे संभावित हत्यारे बाहर आ जाते हैं.

करियर की च्वाइस तो है, पायलट बनने की भी च्वाइस है, डॉक्टर बनने की भी है, आज कल की लड़कियां जो हैं, ताली बजाते हुआ मां बाप खूब फोटो खिंचाते हैं, कुछ लोग स्लोगन भी लिख जाते हैं कि आज कल की लड़कियां. लेकिन जब वही आज कल की लड़कियां अपनी च्वाइस से शादी करती हैं तब जाकर पता चलता है कि जो माता पिता या भाई ताली बजा रहे थे उनके भीतर एक संभावित हत्यारा भी छिपा है. तब पता चलता है कि वे अपनी बेटी को कम अपनी जाति को ज्यादा प्यार करते हैं. तभी पता चलता है कि वे दूसरी जाति से कितनी नफरत करते हैं. मैं उन्हीं लोगों की बात कर रहा हूं जो खुद को राष्ट्रवादी भी कहते हैं, भारतीय भी कहते हैं मगर वही भारतीय जब बेटी से प्रेम कर लेता है या बेटी उस भारतीय से प्रेम कर लेती है तो परिवारों में छिपे संभावित हत्यारे बाहर आ जाते हैं. हम इतने सामान्य हो चुके हैं कि फर्क ही नहीं पड़ा कि हरकेश सिंह सोलंकी मार दिया गया.

उसके पार्थिव शरीर को देख रही औरतें आखिर किस भारत की कल्पना कर रही होंगी अभी. हत्या के एक रात पहले टीवी पर जिस भारत को उन्होंने देखा होगा, जीया होगा, जिसके लिए ताली बजाई होगी, वो अगले दिन इतना अजनबी कैसे हो गया कि हरकेश सिंह सोलंकी को उर्मिला झाला के पिता ने मार दिया. 25 साल के हरकेश ने उर्मिला से शादी की थी. हरकेश अनुसूचित जाति का है और उर्मिला अपर कास्ट की. हरकेश सिंह सोलंकी अहमदाबाद के वारमोर गांव गया था जहां उर्मिला के मां बाप उसे अपने घर ले आए थे. हरकेश ने 181 नंबर की हेल्पलाइन से मदद मांगी थी. अभयम स्कीम है. इसकी काउंसलर के साथ गया था. काउंसलर ने उर्मिला के मां बाप को समझाया भी लेकिन जैसे ही उर्मिला के पिता दशरथ सिंह को पता चला कि बाहर गाड़ी में हरकेश भी है, अपने रिश्तेदारों के साथ बाहर आ गए. उर्मिला के भाई भी थे इसमें. आठ लोगों ने कार को घेर लिया और हरकेश सिंह सोलंकी को उतारकर मार दिया. यह भी नहीं सोचा कि उर्मिला गर्भवती है. उर्मिला का पता नहीं चल पा रहा है. घटना के बाद फरार हो गए थे. कुछ की गिरफ्तारी हुई है बाकी फरार हैं.

आखिर खुद को राष्ट्रवादी और उदारवादी कहने वाला व्यापक समाज ऐसी हत्याओं के खिलाफ खड़ा क्यों नहीं होता है. साक्षी मिश्रा उर्मिला झाला की तरह नहीं थी. साक्षी ने अपने विधायक पिता राजेश मिश्रा पर भरोसा नहीं किया. संयोग से साक्षी के पिता बीजेपी के विधायक हैं. लेकिन वे कांग्रेस या सपा के भी विधायक होते या फिर बसपा के भी तो भी मुमकिन है कि वे साक्षी जैसी लड़कियों के लिए ख़तरनाक हो सकते थे. साक्षी मिश्रा को अपने पिता से खतरा दिख गया तो वीडियो बनाकर वायरल कर दिया. साक्षी बरेली की रहने वाली है और उसने अजितेश कुमार से शादी की है. अजितेश कुमार अनुसूचित जाती का है. बिजनेस करता है.

साक्षी अपने वीडियो में जो बता रही है वह उर्मिला नहीं बता सकी. उसने दुनिया को बता दिया कि उसके पिता ने गुंडे भेजे थे. वह भागते भागते थक गई है. जिस लड़के से शादी की है उसके साथ खुश है. वे अच्छे लोग हैं, वे जानवर नहीं हैं. साक्षी ने एक लड़के का भी नाम लिया है, विकी. साक्षी और अजितेश ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से पुलिस सुरक्षा की मांग की है.

साक्षी को अपने पिता पर भरोसा नहीं था. पिता और उनके जानने वाले कुछ तो कर रहे होंगे जिसके कारण दोनों भागे भागे फिर रहे थे. शादी का फैसला क्या कर लिया कि बरेली के विधायक राजीव मिश्रा जी पिता से कुछ और हो गए.

जब वीडियो वायरल हुआ और चैनलों पर चल गया तब राजेश मिश्रा ने एक बयान तैयार किया. बयान को लिखित रूप दिया गया और कहा गया कि यह सियासी साज़िश है. विधायक ने सौरव शुक्ला को फोन पर बताया कि जाति के कारण शादी से एतराज़ नहीं था. एतराज़ इसलिए था कि उम्र में अंतर था और पति की कमाई कम थी.

लेकिन बरेली में अजितेश के घर के बाहर लटका ताला बता रहा है कि परिवार पर डर का साया कितना गहरा है. किसी को पता नहीं है कि लोग कहां हैं. बरेली पुलिस का कहना है कि दोनों सामने आएंगे तो पुलिस सुरक्षा देगी. अजितेश के घर पर पुलिस तैनात कर दी गई है. बरेली के एस एस पी ने बताया है.

अजितेश के पिता की बात को ध्यान से सुनिए. आप नहीं सुनते हैं. गुजरात के हरकेश सिंह सोलंकी की हत्या पर कोई आउटरेज नहीं है. आउटरेज़ अंग्रेज़ी का शब्द है जिसका मतलब यही है कि कोई आक्रोश नहीं. कोई तीव्र प्रतिक्रिया नहीं. हमने मान लिया है कि हरकेश सिंह सोलंकी को मरना ही था. अब जब वही समाज साक्षी और अजितेश के वीडियो पर हैरान टाइप संवेदनशील है तो यकीन ही नहीं होता कि उसकी संवेदनशीलता पार्टटाइम है या आज कोई शहर में डिबेट करने के लिए कोई इंटरेस्टिंग ख़बर नहीं है. बानी बेदी ने 10 जून से 10 जुलाई के बीच अखबारों में ऐसी खबरों को सर्च किया जिनमें लड़का लड़की ने जाति से बाहर शादी की है और उनमें से किसी एक की या दोनों की हत्या हुई है तो पता चला कि 21 हत्याएं हुई हैं. एक महीने के भीतर 21 हत्याएं होती हैं इंटर कास्ट शादी के कारण. तमिलनाडु में दस दिन में पांच ऐसी हत्याएं हुई हैं. उत्तर प्रदेश में सात ऐसी हत्याएं हुई हैं.

4 जुलाई को तमिलनाडु के तूतिकोरिन में एक पिता ने धारदार हथियार से कमरे में सो रहे सुलईराज और ज्योति को काट दिया. ज्योति गर्भवती थी. सलुईराज अनुसूचित जाति का था और ज्योति पल्लर समाज की थी. 24 जून को इंदौर के रावतगांव में नाबालिग भाई ने अपनी गर्भवती बहन बुलबुल को गोली मार दी. बुलबुल ने अनुसुचित जाति के कुलदीप से शादी की थी. 28 जून को रेवाड़ी में 26 साल के जोगेंद्र ने इंटर कास्ट शादी की थी. पत्नी के भाई और पिता ने चाकू से गोद डाला. जोगेंद्र मर गया. 29 जून को चित्तूर में 23 साल की हेमावती को उसके परिवार ने अगवा कर मार दिया. हेमावती ने अनुसूचित जाति के केशवलू से शादी की थी. हेमावती नायडू थी. हेमावती और केशवलु अपने नवजात बच्चे को सरकारी अस्पताल से दिखा कर लौट रहे थे. उसी दौरान हेमावती को अगवा किया और मार कर कुएं में फेंक दिया.

इंटरनेट पर मौजूद अखबारों की खबरों से मिला है. क्या पता बहुत कुछ छूट भी गया है. पहले ऐसे आंकड़े राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो से मिल जाते थे मगर 2016 के बाद से एनसीआरबी की रिपोर्ट नहीं आई है. इस वक्त तक 2017-2018 की रिपोर्ट आ जानी चाहिए थी. 9 जुलाई को गृहमंत्रालय ने डीएमके के सांसद डी रविकुमार के एक सवाल के जवाब में कहा है कि राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो (NCRB) 2017 के लिए भारत में अपराध के आंकड़ों को अंतिम रूप नहीं दे सकता है. एनसीआरबी ने अपराध के आंकड़ों को जुटाने के तरीके और सवालों में बदलाव किया है. नए फार्मेट के हिसाब से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रशिक्षित किया गया है. इस नए फार्मेट के हिसाब से सभी राज्यों से आंकड़े नहीं मिले हैं.

ऐसी कौन सी ट्रेनिंग दी गई कि 2019 में 2017 की रिपोर्ट नहीं आ सकी है. ऐसे क्या सवाल बना दिए गए कि डिजिटल इंडिया के दौर में राज्य उस फार्म या फार्मेट को भर नहीं सके. इसलिए अंतर्जातीय विवाह के कारण कहां और कितनी हत्याएं हो रही हैं इसके अधिकृत आंकड़े नहीं हैं. 2015 की रिपोर्ट में एनसीआरबी ने ऑनर कीलिंग के आंकड़े दिए हैं. इनमें हत्या और हत्या के प्रयास दोनों शामिल हैं. 251 हत्याएं हुई थीं. 2016 में 77 हत्याएं हुई थीं. अब हम आपको एक ऐसी योजना के बारे में बताना चाहते हैं जो ऐसी शादियों को प्रोत्साहित करने के लिए बनी है. 2013 में इसे पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लांच किया गया था मगर 2015 से यह योजना स्थायी रूप से लागू हो गई है. इस योजना का नाम है. वृंदा ने इसके बारे में काफी कुछ अध्ययन किया है. इस योजना का नाम है डॉ. अंबेडकर स्कीम फॉर सोशल इंटग्रेशन थ्रू इंटर कास्ट मेरेजेज़. मकसद है कि जो लोग इंटर कास्ट शादी करने का साहसिक कदम उठाते हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाए और आर्थिक मदद दी जाए.

एक प्रगतिशील योजना कैसे किसी किनारे में पड़ी रह जाती है या दबा दी जाती है उसका यह उदाहरण है. आपने इस योजना का कितना प्रचार देखा है. ऐसी योजनाओं के बनाने के समय तो तालियां बटोर ली जाती हैं लेकिन बाद में सुनने में अच्छी लगने वाली इन योजनाओं को भुला दिया जाता है. पहले इसकी कुछ शर्तें बताता हूं. दोनों में कोई एक अनुसूचित जाति से हो और दूसरा न हो. शादी हिन्दू मैरेज एक्ट के तहत मान्य होनी चाहिए. दूसरी शादी होने पर इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा. शादी के एक साल के अंदर आवेदन किया जा सकता है. योजना का लाभ देश भर में मात्र 500 जोड़ों को ही मिलेगा. इस 500 को हर राज्य के बीच बांट दिया जाएगा. राज्यों के बीच यह बंटवारा अनुसूचित जाति की आबादी के अनुसार होगा.

भारत सरकार की इस योजना के प्रचार प्रसार के लिए काफी कुछ लिखा है. आप ambedkarfoundation.nic.in पर जाकर देखिए. इस पर लिखा है कि राज्य सरकार और ज़िला प्रशासन को ऐसी शादियों के प्रचार प्रसार के लिए क्या क्या करना है. ज़िला प्रशासन और राज्य सरकार को सपोर्ट करना चाहिए.

सामूहिक अंतर्जातीय विवाह का ज़िलेवार आयोजन कराना चाहिए. ऐसी शादियों को लोकल मीडिया में प्रचारित करना चाहिए. उसके लिए कार्यक्रम हो और महत्वपूर्ण लोग बुलाए जाएं. विधायक और सांसद ऐसे जोड़ों के नाम का अनुमोदन करें. सामूहिक विवाह में प्रति शादी के हिसाब से 25,000 रुपये मिलेंगे.

आप अपने सांसद या विधायक से पूछ सकते हैं कि उन्होंने ऐसी कितनी शादियों को भारत सरकार की योजना का लाभ दिलाया है. भारत सरकार से पूछिए. सांसदों से पूछिए कि वे इस योजना का प्रचार क्यों नहीं करते हैं. इस योजना के तहत अनुसूचित जाति के लड़के या लड़की से शादी करने पर ढाई लाख देने का प्रावधान किया गया है. इस पैसे को भी नहीं देने का इंतज़ाम देखिए. डेढ़ लाख रुपये शादी के वक्त दिए जाएंगे.बाकी का पैसा फिक्स अंबेडकर फाउंडेशन में फिक्स डिपाज़िट होगा. तीन साल बाद ब्याज़ सहित मिलेगा.

इतने बड़े देश में 500 ऐसी शादियों को सरकार आर्थिक मदद दे रही है. लेकिन दो धर्मों के बीच शादी होगी तब सरकार एक नया पैसे की मदद नहीं करेगी. इंटर कास्ट शादी की योजना भी वेबसाइट पर ही है. लोगों तक नहीं पहुंचाई गई है. पिछली लोकसभा में कांग्रेस सासंद गौरव गोगोई ने एक सवाल पूछा था जिसका जवाब तब के सामाजिक अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने 2 जनवरी 2018 को दिया था. सवाल था कि डॉ. अंबेडकर स्कीम फॉर सोशल इंटग्रेशन थ्रू इंटर कास्ट मेरेजेज़ के तहत कितने जोड़ों को आर्थिक मदद दी गई तो जवाब में सरकार ने बताया कि 2014-15 - 05, 2015-16 - 72, 2016-17 - 45, 2017-18 - 87 जोड़ों को मदद दी गई.

चार साल में 200 शादियों को भी इस योजना का लाभ नहीं मिला. जबकि इन चार सालों में 2000 जोड़ों को इसका लाभ मिलना चाहिए था. गुजरात सरकार ने आज ही विधानसभा में कहा है कि सिर्फ अहमदाबाद ज़िले से पिछले एक साल में ऐसे 175 जोड़ों की सरकार ने मदद की है. जिन्हें करीब एक करोड़ रुपये दिए गए हैं. सुशील महापात्रा ने बताया कि 2006 में यह योजना राजस्थान में लांच हुई थी. तब उस योजना का नाम था डॉ. सविताबेन अंबेडकर इंटरकास्चट मैरिज स्कीम. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्यस्क लोगों के प्रेम या विवाह के फैसले में मां बाप, समाज या खाप दखलंदाज़ी करे, हिंसा करे या अपमानित करे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए. यह अवैध है. सुप्रीम कोर्ट ने 20 दिशानिर्देश बनाए हैं ताकि ऐसी शादियों में कोई खलल पैदा न करे. सुप्रीम कोर्ट को अपने इस दिशा निर्देश पर स्टेटस रिपोर्ट मांगना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट को यह दिशानिर्देश इसलिए जारी करना पड़ा क्योंकि सात साल से इस हिंसा को रोकने का मसौदा जलेबी की तरह यहां से वहां घूमता ही जा रहा है.

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2011 में भारत के कानून आयोग ने एक कानून का मसौदा बनाया था जिसका नाम है Protection of unlawful assembly (interference with freedom of matrimonal alliance bill). इस बिल में प्रावधान किया गया है कि एक शादी को रोकने के लिए भीड़ जमा नहीं हो सकती है, 6 महीने से लेकर 7 साल की जेल हो सकती है. अगर शादी करने वाले जोड़े को चोट पहुंची या जान का नुकसान हुआ तो सात साल की सज़ा होगी. द हिन्दू अखबार ने इस बिल के बारे में मार्च 2018 में एक रिपोर्ट छापी है. इसके अनुसार राज्यों के बीच यह बिल सात साल से घूम रहा है. उस वक्त 23 राज्यों ने सुझाव के साथ प्रतिक्रिया भेजी है और 6 राज्यों ने कुछ नहीं कहा है. यह बिल कहां है पता नहीं.