नमस्कार मैं रवीश कुमार, 1869 में ब्रिटिश भारत में पहली जनगणना का काम चल रहा था, उधर इसी साल स्विटजरलैंड में जूलियस मैगी नाम का एक शख्स अपने पिता की एक मिल का टेकओवर करता है जहां हथौड़े बनते थे। जैसे यहां अलीगढ़ में ताले बनते हैं। जूलियस मिल और उसके डॉक्टर मित्र ने इस योजना पर काम शुरू किया कि मज़दूरों के भोजन में प्रोटीन युक्त पोषण बढ़ाने के लिए कुछ बनाया जाए। दो साल की रिसर्च के बाद 1886 में रेडिमेड सूप तैयार करते हैं। 1947 में जब भारत आज़ाद हो रहा था तब स्विटज़रलैंड की नेस्ले नाम की एक मल्टीनेशनल कंपनी में जूलियस मैगी की कंपनी का विलय हो रहा था। लगभग सौ साल बाद जब 1982 में हम रंगीन टीवी पर एशियाड देखकर 21वीं सदी का सपना पाल रहे थे तब नेस्ले ने भारत के बाज़ार में मैगी नूडल्स लांच किया। 21वीं सदी के 15 साल गुज़र जाने के बाद हम मैगी से ऐसे घबराये हैं जैसे बाथरूम में सांप देख लिया हो। दो मिनट की इस चीज़ पर घंटो की इस बहस में आज हम भी अपना राष्ट्रीय योगदान देंगे।
हर नूडल्स मैगी नहीं है और चाउमिन की हर दुकान चीन की नहीं है। भारत का पहला नूडल ब्रांड होने के कारण दूसरे नूडलों ने बहुत कोशिश की, बिके भी मगर उन्हें भी लोगों ने मैगी ही पुकारा। भारत के बाज़ार में पहले इस मैगी को कामकाजी महिलाओं के लिए लांच किया गया लेकिन जल्दी ही कामकाजी महिलाओं को सुंदर सुंदर मम्मियों में बदलकर दो मिनट में बबलू और बब्ली के लिए मैगी बनाने वाली मां का रूप दे दिया गया। वो मां जो हमेशा खुश रहती है। पहली बार मैगी देखने पर आपके एंकर का भी एक संस्मरण है लेकिन वो फिर कभी। अभी सुना दिया तो हंसते हंसते आपका पेट फट जाएगा। मैगी एक ऐसा प्रोडक्ट है जिसे अमीरों ने भी खाया और ग़रीबों ने भी। गांव वालों ने भी और शहरों में भी। मज़दूरी कम बढ़ने और सस्ती होने के कारण मज़दूर बस्तियों में आपको मैगी और चाउमीन के ठेले खूब दिखेंगे। मज़दूरों ने बताया कि दस रुपये प्लेट में मैगी के नाम पर चाउमीन से पेट भरने का अहसास हो जाता है। तमाम विश्वविद्यालयों को होस्टलों, पेइंग गेस्ट हाउसों में जाकर पता कर लीजिए कोई दो बजे रात मैगी खाने के किस्से सुनायेगा तो खाना न बनाने वाला आलसी गर्व से बतायेगा कि वो कैसे पंद्रह दिनों से मैगी ही खा रहा है। मैगी अब मम्मी के हाथ की चीज़ नहीं रही। कहीं चाउमीन तो कहीं चौमीन तो कहीं चाइनीज़ होकर भारत के पारंपरिक व्यंजनों से लोहा लेती हुई आधुनिक पारंपरिक व्यंजन बन चुकी है। 1991 में सलमान ख़ान की एक फिल्म आई थी लव। इसमें अभिनेत्री रेवती का नाम मैगी पिंटो था। कई लोग मैगी को लेकर सेंटी हो रहे हैं तो कई लोग मैगी की जांच की ख़बर देख अपनी आंत की जांच करवाने की सोच रहे हैं।
20 मई से यूपी से मैगी के सैंपल में सीसा मिलने का विवाद शुरू हुआ, 3 जून को केंद्रीय खाद्यान मंत्री रामविलास पासवान ने प्रेस कांफ्रेंस कर बताया है कि मामला सीरीयस है। कोई मामला इस युग में दो हफ्ता टिक जाए उसमें सीरीयस होने के छत्तीसों गुण तो होंगे ही। वैसे इसकी शुरुआत किसी केंद्रीय या राज्यों के स्वास्थ्य मंत्री ने नहीं की।
बल्कि आप ने की है और आप हैं उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले के फूड सेफ्टी अफ़सर संजय सिंह। हमारे सहयोगी कमाल ख़ान ने संजय सिंह से बात की तो पता चला कि 10 मार्च 2014 को मैगी का सैंपल लिया गया। 26 मार्च को गोरखपुर लैब से रिपोर्ट आती है और 18 जून को नेस्ले को नोटिस जारी किया जाता है। 22 जून को नेस्ले मांग करती है कि कोलकाता के लैब से टेस्ट कराया जाए। 20 सितंबर को सैंपल कोलकाता के लिए रवाना होता है लेकिन गलती से शिमला चला गया। 25 नवंबर 2014 को फिर कोलकाता भेजा गया, लेकिन मात्रा कम थी। 22 जनवरी 2015 को पूरी मैगी कोलकाता भेजी गई और 23 अप्रैल 2015 को रिपोर्ट आई। एक साल लग गए। अगर संजय सिंह ने प्रयास जारी नहीं रखा होता तो किसी को पता ही नहीं चलता। संजय सिंह का कहना है कि जो नया फूड सेफ्टी एक्ट है वो दुनिया के मानकों के हिसाब से है और काफी प्रभावी है। संजय सिंह ने 30 मई को पांच अन्य कंपनियों के भी नमूने उठाये हैं जिनकी रिपोर्ट का इंतज़ार हो रहा है।
देश में नूडल सिर्फ ब्रांड वाली कंपनियां ही नहीं बनाती हैं। बहुत सारे ग़ैर ब्रांड उत्पाद भी हैं। साढ़े तीन हज़ार करोड़ का कारोबार है ये। यह मैगी का राष्ट्रीय प्रसार ही था कि बाराबंकी की रिपोर्ट से देश के कई हिस्सों में हंगामा मच गया। आप जानते हैं कि सीसा खाने के लिहाज़ से हानिकारक होता है।
इंस्टेंट नूडल में 2.5 parts per million की इजाज़त होती है। बच्चों के डिब्बा बंद दूध में भी .2 parts per million सीसा हो सकता है, चाय, मसाले, बेकिंग पाउडर में भी एक खास मात्रा में सीसा हो सकता है।
हवा और पानी में प्रदूषण को भी हम parts per million में मापते हैं। रफ्तार में बोलते हुए पार्ट्स पर मिलियन के बारे में समझाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन तय मात्रा से अधिक सीसा की मात्रा किडनी भी खराब कर सकती है। यूपी के सैंपल में 7 गुणा ज़्यादा सीसा पाया गया है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बताया कि प्राथमिक रिपोर्ट में मानक से ज़्यादा सीसा पाया गया है इसलिए दिल्ली में 15 दिनों के लिए मैगी बैन की जाती है। नेस्ले कंपनी से कहा गया है कि वे अपना स्टाक दिल्ली से हटा लें। 15 दिन के बाद नया सैंपल टेस्ट होगा फिर कोई फ़ैसला होगा।
महाराष्ट्र, हरियाणा, केरल, बिहार और झारखंड में भी नमूने लिए गए हैं। केरल, गोवा और चंडीगढ़ के सैंपल सही पाए गए हैं। अखिल भारतीय खाद्य प्रसंस्करण संघ का कहना है कि किसी भी पदार्थ में मोनो सोडियम ग्लूटामेट यानी एमएसजी कुदतरतन होती है। एमएसजी से स्वाद में तेज़ी आती है। अमरीका का फूड डिपार्टमेंट मानता है कि एमएसजी नुकसानदेह नहीं है। देश भर में मैगी की बिक्री 50 फीसदी से ज़्यादा गिर गई है और शेयर की कीमतों में पिछले 9 साल में सबसे बड़ी गिरावट हुई है। नेस्ले के शेयर 10 प्रतिशत गिर गए हैं। बिग बाज़ार ने अपने स्टोर से मैगी को हटा लिया। दिल्ली के केंद्रीय भंडारों में भी मैगी की बिक्री रोक दी गई है।
हमने नेस्ले से गुज़ारिश की कि वे अपना प्रतिनिधि भेजें जिससे उनका पक्ष भी सामने आए लेकिन ऐसा कोई कंपनी करती नहीं। वो प्रेस रीलीज़ जारी कर छोड़ देती है। वैसे कंपनी ट्वीटर और फेसबुक पर अभियान की शक्ल में मैगी के ख़िलाफ़ बन रही धारणों से लड़ रही है और अपना पक्ष रख रही है।
नेस्ले ने 21 मई को ट्वीटर पर जारी एक बयान में कहा है कि
हम भारत में बेचे जाने वाले मगी नूडल्स में मोनो सोडियम ग्लूटामेट नहीं मिलाते हैं। हमने मैगी के पैकेट पर भी ये जानकारी दी है। हम हाइड्रोलाइज़्ड ग्राउंडनट प्रोटीन, अनियम पाउडर और गेंहू का आटा मिलाते हैं। इन सबमें प्राकृतिक रूप से ग्लूटामेट होता है। हमारा मानना है कि जांच में ग्लूटामेट मिला ही होगा जो कि खाद्य पदार्थों में होता ही है। इन सभी सैंपल में सीसा की मात्रा सीमा के भीतर ही है।
स्टॉक एक्सजेंच ने उससे इन मीडिया रिपोर्ट्स की सच्चाई पूछी है कि दिल्ली में मैगी जांच में फेल हो गई। स्टॉक एक्सचेंज का कहना है कि उसके लिए निवेशकों के हित सुरक्षित रखना ज़रूरी है।
नेस्ले ने एक्सचेंज को जवाब दिया है। बताया है कि अभी तक उसे अधिकारियों से इस बारे में कोई सूचना नहीं मिली है। यूपी को छोड़कर किसी राज्य या केंद्र की एजेंसी ने उनसे मैगी वापस लेने को नहीं कहा है।
नूडल्स और गूगल्स हमारे देश में काफी फेमस हैं। बाकी खाद्य पदार्थों का क्या हाल है कौन जानता है। पर इसी आधार पर अविश्वास करना भी ठीक नहीं है। जांच होनी चाहिए और उसके बाद बात होनी चाहिए। सेना और नौ सेना ने भी एडवाइज़री जारी किये है कि वे मैगी न खायें। अब तो सेना भी सामने आ गई है। मैगी को भारतीय संस्कृति के ख़िलाफ़ बताने की अभी कोई सूचना नहीं है। प्राइम टाइम
This Article is From Jun 03, 2015
मैगी में सीसे की मात्रा पर विवाद
Ravish Kumar
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Updated:जून 03, 2015 21:49 pm IST
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Published On जून 03, 2015 21:18 pm IST
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Last Updated On जून 03, 2015 21:49 pm IST
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