शेल्टर होम का शैतान...

इस कांड ने कई अहम सवाल खड़े किए हैं. जैसे ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ की खराब रिपोर्ट होने के बाद भी उसे एक और महिला होम का ठेका कैसे मिला.

शेल्टर होम का शैतान...

मुजफ्फरपुर बलिका गृह रेप मामले का मुख्‍य आरोपी ब्रजेश ठाकुर (फाइल फोटो)

बिहार के मुजफ्फरपुर में ब्रजेश ठाकुर द्वारा 30 लड़कियों से रेप की पुष्टि और 48 लड़कियों के साथ घनौना व्यवहार का मामला सामने आने के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं जिससे न केवल सुशासन बाबू के नाम पर बट्टा लगा है बल्कि पूरे प्रशासन के तंत्र पर एक ऐसा सवाल खड़ा कर गया है कि आप कहेंगे कि क्या ऐसा भी हो सकता है... इस कांड ने कई अहम सवाल खड़े किए हैं. जैसे ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ की खराब रिपोर्ट होने के बाद भी उसे एक और महिला होम का ठेका कैसे मिला. दूसरा, उसका अखबार ज्यादा नहीं बिकता था मगर सर्कुलेशन के फर्जी आंकड़े देकर वह अपने अखबार के लिए राज्य सरकार से सरकारी विज्ञापन लेता रहा. तीसरा, उसने अपने एनजीओ में कभी कोई सचिव नहीं रखा मगर सरकार को कहा कि एनजीओ में एक सचिव भी है जिसकी इतनी तनख्‍वाह है. सरकार ने इस झूठ की कभी जांच नहीं की और उसे सरकारी अनुदान मिलता रहा. चौथा, ऐसा क्या था कि सब उसके साथ मिले हुए थे. किसी को कोई भनक नहीं थी या फिर भनक थी तो उसने ऐसा क्या किया था सबके लिए कि सबका मुंह बंद करवाया जा सके.

ये कुछ सवाल थे मगर अब आपको कुछ उसके बारे में बताता हूं कि वो कितना बड़ा जालसाज था. उसके कथित तौर पर तीन अखबार थे. 2012 में उसने अंग्रेजी और उर्दू में भी अखबार शुरू किया. संपादक के लिए उसे कोई छोटा या बड़ा पत्रकार नहीं चाहिए क्योंकि घरवाले किस दिन काम आते. इसलिए बेटा और बेटी को संपादक बना दिया. यही नहीं, पत्रकारिता में उसकी इतनी पैठ थी कि उसने भारत सरकार की मान्यता भी हासिल कर ली और बाद में मान्यता देने वाली कमिटी का सदस्य भी बना.

समाजसेवा के नाम पर चाइल्ड शेल्टर होम चलाने का ठेका जिसके लिए जिला बाल कल्याण कमिटी से मिलीभगत की क्योंकि यही कमिटी होम का सर्वे करती है और कामकाज पर रिपोर्ट बनाती है. सब ब्रजेश ठाकुर की जेब में रहा. ठाकुर ने राजनीति में भी दांव लगाया मगर सफल नहीं रहा. उसने आनंद मोहन की पार्टी से 1995 और 2000 में चुनाव भी लड़ा मगर हार गया. यदि दिल्ली के राजनीतिक गलियारों की मानें तो इस मामले में दिल्ली से बीजेपी नीतिश कुमार पर दबाव बना रही है. सूत्रों की मानें तो सर्मथन वापस लेने तक की धमकी दी गई. यही नहीं, दिल्ली इतनी हावी दिख रही है कि कानून मंत्री ने बिहार के चीफ जस्टिस को खत लिख दिया. देखते देखते राज्यपाल भी हरकत में आ घए. उन्होंने मुख्यमंत्री को दो खत लिख दिए. खत मुख्यमंत्री तक पहुंचे मगर वह दो किलोमीटर का फासला तय करने के पहले मीडिया तक पहुंच गए.

तो क्या यह सब दिल्ली के इशारे पर हो रहा है? यह सब दिल्ली की गॉसिप है. और अंत में सुशासन बाबू कहते हैं कि वे शर्मसार हैं. तो बताएं इसके पीछे कौन-कौन से अफसर और नेता हैं? आखिर किसकी शह थी बृजेश ठाकुर को? नीतिश कुमार की सरकार क्यों सोती रह गई? मुजफ्फरपुर प्रशासन को जरा भी इसकी भनक नहीं लगी या सारे जानबूझकर सोते रहे? ये कुछ सवाल हैं जिसका उत्तर अब सीबीआई को ढूंढना है और इस मामले में उसकी साख भी दांव पर लगी हुई है.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...

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