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This Article is From Sep 14, 2018

क्या माल्या को भागने से रोका जा सकता था?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 14, 2018 22:27 pm IST
    • Published On सितंबर 14, 2018 22:26 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 14, 2018 22:27 pm IST
बहुत से लोग माल्या के भारत परित्याग प्रकरण को लेकर परेशान हैं. भारत की तमाम सुरक्षा प्रक्रियाओं से गुज़रते हुए विजय माल्या ने जिस तरह से भारत का परित्याग किया है वह इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि उनके पहले और उनके बाद भी कई लोगों ने भारत का परित्याग किया है. विजय माल्या के पहले जतिन मेहता और ललित मोदी जा चुके थे. ललित मोदी दूसरे मसले में बाहर हैं. विजय माल्या के बाद नीरव मोदी और मेहुल चौकसी भारत से चले गए. इन सब पर भारतीय बैंकों से लिए गए कर्ज़ नहीं लौटाने के आरोप हैं. यह कार्यक्रम भारत के उन लाखों किसानों की याद में है जो मामूली कर्ज़े के कारण आत्महत्या कर बैठे. काश उनके पास सूटकेस होता, पासपोर्ट होता तो वे कम से कम जान न देते बल्कि और लोन लेते रहते और लोन लेते रहते. इस सरकार से लेकर उस सरकार तक और उस सरकार से इस सरकार तक. आइये सबसे पहले देखते हैं कि कर्ज़ में डूबे विजय माल्या इन दिनों क्या कर रहे हैं. जो भी है वो उनके ट्विटर हैंडल से ही पता चलता है. इसलिए यह उनकी मस्त ज़िंदगी का छोटा सा पहलू है. उनके ट्वीट औ री-ट्वीट से पता चलता है कि माल्या का ध्यान उन विवादों में कम है, जिन विवादों में हम लोगों का ज़्यादा है.

एक सच्चे इंटरनेशनल किरदार की तरह माल्या क्रिकेट और रेसिंग में व्यस्त हैं. वे खुद ट्वीट नहीं करते हैं मगर दूसरे के ट्वीट को री-ट्वीट कर रहे हैं. बारबाडोस की क्रिकेट टीम की जीत को लेकर काफी चिन्तित हैं. सीपीएल टी-20 में बारबाडोस ट्राइडेंट खेल रही थी. विजय माल्या ने अपनी टीम का खूब हौसला बढ़ाया है. जब दूसरों का हौसला बढ़ा सकते हैं तो सोचिए खुद इनका हौसला कितना बढ़ा हुआ होगा. क्रिकेट के साथ-साथ माल्या का ध्यान कार रेसिंग पर भी है. अब जब वे दिल्ली और मुंबई के जाम से निकल चुके हैं लेकिन अपनी रेसिंग टीम फोर्स वन के प्रदर्शन के ट्वीट को री-ट्विट करते रहते हैं. ये मैं इसलिए बता रहा हूं कि पता रहे कि माल्या ने 17 बैंकों को 9000 करोड़ लोन नहीं चुकाने के बाद भी कितना रिलैक्‍स हैं. भारत से भागने के बाद भी भारत के प्रति प्यार बना हुआ है. ट्वीट के बायोडेटा में लिखते हैं कि वे भारत के पूर्व सांसद हैं. यूबी ग्रुप के चेयरमैन हैं. सहारा फोर्स इंडिया फार्मूला वन के सह-स्वामी और टीम प्राचार्य हैं. 30 जून को आखिरी बार अपने केस को लेकर ट्वीट किया था कि मीडिया की रिपोर्ट है कि मैं एनफोर्समेंट डिपार्टमेंट से बारगेन कर रहा हूं. मैं मीडिया से रिक्वेस्ट करता हूं कि वे पहले ईडी की चार्जशीट पढ़ें. 30 जून से पहले उन्होंने अपने से संबंधित खबरों को भी ट्वीट किया है.

ऐसे आमोद प्रमोद प्रिय माल्या के एक बयान से भारत की राजनीति में कितना तूफ़ान है. माल्या ही नहीं उन लोगों की भी हालत कोई बहुत ख़राब नहीं है जिन पर दस लाख करोड़ के लोन की देनदारी है. इनका रुतबा अब भी इतना है कि कोई इनका नाम नहीं लेता है. नेता भी नाम नहीं ले रहे हैं. क्या कोई दस लाख करोड़ का एनपीए करने वालों के नाम ले रहा है.

29 सितंबर 2016 को रिज़र्व बैंक का आदेश निकलता है तो सभी बैंकों को भेजा गया है कि 1 जुलाई 2015 का मास्टर सर्कुलर याद रखें. लोन देने वाली कुछ संस्थाएं विलफुल डिफॉल्टर का फोटो छाप रही हैं. प्रमोटर के फोटो छाप रही हैं. मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इसे बिना सोचे समझे छापने पर रोक लगाने की ज़रूरत नहीं है. इसके लिए तय प्रक्रिया का पालन होना चाहिए.

लेकिन क्या यह प्रक्रिया आम लोगों के लिए है. हरिद्वार से एक दर्शक ने हमें एक तस्वीर भेजी है. इस नोटिस बोर्ड के अनुसार सभी ग्राहकों से कहा गया है कि ऋण न चुकाने की स्थिति में किसी भी बकायदार का नाम अखबार में फोटो सहित निकलवाया जा सकता है. इसके अलावा उसका फोटो पूरे विवरण के साथ बैंक शाखा के बाहर व अन्य मुख्य स्थानों पर लगाया जा सकता है. 14 मार्च 2018 के इकोनमिक टाइम्स में खबर छपी है. सभी पब्लिक सेक्टर बैंक से कहा गया है कि सभी विलफुल डिफाल्टर के नाम वेबसाइट पर डाले जाएं. फोटो सहित.

आगे बढ़ते हैं. विजय माल्या 2 मार्च 2016 को भारत का परित्याग व पारगमन करते हैं. भारतीय स्टेट बैंक को बताना है कि वकील दुष्यंत दवे ने जब सुप्रीम कोर्ट जाकर केस फाइल करने की सलाह दी थी उस मामले में क्या हुआ. अभी तक कोई बयान नहीं आया है. इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि माल्या के भारत परित्याग के पहले 28 फरवरी 2016 की रात स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को सलाह दी गई थी इसे बाहर भागने से रोकने के लिए कुछ कीजिए. अखबार ने दावा किया है कि माल्या को सबसे अधिक लोन देने वाले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कोई एक्शन ही नहीं लिया. सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील दुष्यंत दवे ने कहा है कि उन्होंने एसबीआई प्रबंधन को सलाह दी थी कि वे 29 फरवरी को कोर्ट जाएं मगर बैंक ने कोई एक्शन नहीं लिया.

एक्सप्रेस के संवाददाताओं ने उस स्टेट बैंक और इंडिया की उस समय चेयरमैन रहीं अरुंधति भट्टाचार्य से पूछा. जो जवाब है वो बहुत क्लासिक है. वे कहती हैं कि मिस्टर दवे को जो कहना है, कह सकते हैं. मैं अब एसबीआई के साथ नहीं हूं. आप इस समय के एसबीआई प्रबंधन से जवाब के लिए संपर्क कर सकते हैं.

वैसे यह ख़बर 2016 के साल में खूब छपी थी. दवे वाली बात फिर से छप रही है. इस पर कोई कुछ नहीं बोल रहा है. 10 मार्च 2016 की एक खबर बताती है कि सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों पर सवाल उठाया है कि वे बिना किसी ठोस गारंटी के विजय माल्या को कैसे इतना लोन दे सकते हैं. इसमें मुकुल रोहतगी जो तब भारत सरकार के अटार्नी जनरल थे, कोर्ट के सामने कहते हैं कि जिस दिन माल्या भागे हैं उस दिन यानी 2 मार्च 2016 को बैंक डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (DRT) गए थे कि इनका पासपोर्ट ज़ब्त होना चाहिए. इनकी लंदन में काफी संपत्ति है तो वहां भाग सकते हैं. वे वहां से ट्वीट भी कर रहे थे कि मैं भगोड़ा नहीं हूं. रोहतगी ने कोर्ट से गुज़ारिश की थी कि माल्या को भारत आने और पासपोर्ट सरेंडर करने का आदेश दें.

इससे ज्यादा डिटेल पता नहीं चलता है. दुष्यंत दवे ने सलाह दी थी कि सुप्रीम कोर्ट जाएं. तो 2 मार्च को डीआरटी जाने का फैसला क्यों था. यह साफ नहीं है. माल्या के भागने के 8 दिन के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की तब की चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य ने शेखर गुप्ता से वॉक द टॉक में बात की थी.

इस बयान से पता चलता है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ईडी गया. ईडी ने डीआरटी भेजा, वहां से हाईकोर्ट फिर भी डीआरटी तो डीआरटी ने पासपोर्ट ज़ब्त क्यों नहीं किया. माल्या के भारत से भाग जाने के कई हफ्ते बाद 19 मई को एक और खबर छपी है. इसके मुताबिक पंजाब नेशनल बैंक उसी डीआरटी के पास जाता है जिसके पास स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जा चुका था और कहता है कि 250 विलफुल डिफॉल्टर भाग न जाएं इसलिए इन पर नज़र रखी जाए. एक विवाद और है. सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीट किया है कि अक्टूबर 2015 को माल्या को गिरफ्तार करने का नोटिस जारी हुआ था. जिसे मार्च 2016 में हल्का कर दिया गया कि गिरफ्तार करने की जगह सिर्फ सूचना दी जाए.

एनएसयूआई के कार्यकर्ता माल्या के वित्त मंत्री से मुलाकात की बात आने के बाद रचनात्मक हो गए हैं. हवाई जहाज़ का कटआउट लेकर वित्त मंत्री के घर के बाहर प्रदर्शन करने चले गए. कार से माल्या और जेटली का मुखौटा निकाल कर नारेबाज़ी भी हुई. एक सवाल उठ रहा है कि सही जांच तो वो होती जब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सीएमडी को बुलाकर पूछा जाता कि 2010-11 में माल्या को लोन देने के लिए किसने फोन किया था. किसका दबाव था. यह सवाल बेहद ज़रूरी है और यह सवाल भी कि माल्या के लुकआउट नोटिस को किसके कहने पर बदल कर कमज़ोर किया गया. बैंकों ने उनका और दूसरे विलफुल डिफॉल्टर के पासपोर्ट को ज़ब्त करने के लिए भागने का इंतज़ार क्यों किया.

माल्या के बयान के बाद राजनीति गरमाई है तो इस मामले से जुड़ी अलग अलग जगहों पर कई खबरें आने लगी हैं. इकोनोमिक टाइम्स के प्रणब धाल समांता ने लिखा है कि सीबीआई ने वित्त मंत्रालय से कहा है कि माल्या मामले की जांच के संबंध में यूपीए के समय की फाइल दी जाए. 2015 से यह केस सीबीआई के पास है. अभी तक सीबीआई क्या कर रही थी. खबर में कहा गया है कि सीबीआई नए तरीके से जांच करेगी. यही नहीं दि वायर की पत्रकार रोहिणी सिंह ने 4 अप्रैल 2018 को पीयूष गोयल के मामले पर एक रिपोर्ट की थी. इस रिपोर्ट में रोहिणी ने लिखा है कि पीयूष गोयल 2004 से 2008 के दौरान स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सरकार की तरफ से मनोनित सदस्य थे. मनमोहन सरकार में एसबीआई में सदस्य रहे गोयल भी बहुत कुछ बता सकते हैं लेकिन गोयल ने अपनी प्रेस कांफ्रेस में संबित पात्रा के पत्र का हवाला दिया है. जबकि वे भी बता सकते हैं कि 100 करोड़ से अधिक के लोन दिए जाने पर पूरा प्रबंधन बोर्ड फैसला करता है.

सीबीआई ने इस बात का जवाब दिया है कि क्यों माल्या को गिरफ्तार करने का नोटिस कमज़ोर किया गया. सीबीआई का कहना है कि माल्या के खिलाफ बहुत प्रमाण नहीं थे. इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से यह खबर छापी है. 29 जुलाई 2015 को सीबीआई ने केस किया था. माल्या के खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक षडयंत्र का. एफआईआर सूत्रों की सूचना पर आधारित था. कोई बैंक ने पहल नहीं की थी. क्या यह भी अजीब नहीं है. जब सूत्रों के आधार पर मामला दर्ज हुआ 2015 में तब से लेकर मार्च 2016 तक किसी बैंक ने अप्रोच ही नहीं किया. हम अरुंधति भट्टाचार्य का पुराना इंटरव्यू का एक हिस्सा फिर से सुनाना चाहते हैं. वो जिस तरह से माल्या के प्रकरण पर बोल रही हैं, नहीं लगता कि कोई बड़ी घटना हुई है. इस जवाब को सुनकर लगता है कि कितना हल्का मामला है.

भारत के किसान जो कर्ज़ न देने के कारण खुदकुशी कर लेते हैं उन्हें बैंक से मिलना चाहिए. बैंक एक फैमिली डाक्टर है. क्या बैंक सिर्फ उद्योपतियों के लिए फैमिली डाक्टर हैं या आम किसानों के लिए भी. 2016 से 2018 आ गया. तथ्य कभी इधर से आ रहे हैं कभी उधर से आ रहे हैं.

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