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This Article is From May 26, 2019

ब्लॉग: कांग्रेस के नेता चुनाव क्षेत्र को अपनी संपत्ति न मानें, यह लोगों की संपत्ति है

Sushil Kumar Mohapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 26, 2019 13:52 pm IST
    • Published On मई 26, 2019 13:52 pm IST
    • Last Updated On मई 26, 2019 13:52 pm IST

क्रिकेट में यह कहा जाता है अगर खिलाड़ी अच्छा फॉर्म में नहीं है तो उसका चयन टीम में नहीं होना चाहिए चाहे वो कितना अनुभवी खिलाड़ी क्यों न हो. यह फार्मूला ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट में काफी लागू होता है. जब अनुभवी खिलाड़ी फॉर्म नहीं होता है उसका चयन ऑस्ट्रेलिया टीम में नहीं होता है. इसीलिए ऑस्ट्रेलिया टीम अच्छा प्रदर्शन करती है. भारत की राजनीति में भी यह फार्मूला लागू होना चाहिए. फॉर्म में जो नेता नहीं हैं उनके जगह नए नेताओं को टिकट देना चाहिए. यह जो पुराने नेता है उन्हें टेनिस की तरह नॉन प्लेइंग कप्तान बना देना चाहिए जो बाहर बैठकर सलाह देते रहे. अनुभव को देखते हुए अगर आप टिकट देंगे तो फिर यह थका हुआ नेता चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायेगा. यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि अगर बाप बड़ा नेता है तो बेटा भी चुनाव जीत जाएगा. अगर ऐसा होता तो सुनील गावस्कर के बेटा रोहन गावस्कर बड़े खिलाड़ी होते. फिल्म स्टार के बेटे भी बड़े फिल्म स्टार बन जाते. क्रिकेटर और फिल्म स्टार की तरह नेताओं को खुद प्रदर्शन करना पड़ेगा नहीं तो लोग रिजेक्ट कर देंगे.

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अब कांग्रेस पर आते हैं. कांग्रेस VIP पार्टी बनती जा रही है. कांग्रेस के कई बड़े नेता इस पार्टी को अपना संपत्ति मानते हैं. उनका लगता है वो पार्टी का ठेकेदार हैं. पार्टी उनकी वजह से चलती है. लेकिन उनको समझना चाहिए लोकतंत्र में जनता सब कुछ है. राहुल गांधी ने शनिवार को CWC की बैठक में कहा कि चिदंबरम ने कहा था कि अगर उनके बेटे को टिकट नहीं मिला तो वो पार्टी छोड़ देंगे. कमलनाथ ने कहा कि मेरा मुख्यमंत्री होने का क्या फायदा अगर मैं अपने बेटे को टिकट नहीं दिलवा सकूं. छिंदवाड़ा मेरे परिवार की सीट है. राहुल गांधी ने कहा गहलोत साहब हफ्ते तक जोधपुर में रहे. मगर बेटे को जितवा नहीं सके. जब पार्टी के कोई नेता ब्लैकमेलिंग करता है तो उसे तुरंत पार्टी से निकाल देना चाहिए. राहुल गांधी को यह कड़े कदम उठाने की जरूरत है.

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कमलनाथ कहते हैं छिंदवाड़ा उनके परिवार की सीट है. पारिवारिक सीट क्या होता है ? क्या कमलनाथ ने इस सीट को बनाया है. यह चुनाव क्षेत्र को खरीद लिया है ? ऐसे नेताओं को लोग ऐसे ही जवाब देते हैं और हराते हैं. अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री है उनको राज्य के हर जगह जाना चाहिए था लेकिन हफ्तों तक वो अपने बेटे को जिताने के लिए जोधपुर में रहे इसका मतलब गहलोत सिर्फ अपना बेटे को के लिए ज्यादा गंभीर थे ज्योतिरादित्य सिंधिया भी हार गए. अपनी सीट नहीं बचा पाए. लोग यह भी कहता है सिंधिया हमेशा राजा जैसे व्यवहार करते हैं. सिंधिया के पीछे सेल्फी लेने के लिए घूम रहा आदमी अगर सिंधिया को हरा दे तो यह बड़ी बात है. 


अमेठी से राहुल गांधी की हार भी बड़ी हार है. पार्टी के अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी ने इस बार काफी मेहनत की. राहुल गांधी ने सिर्फ अपने क्षेत्र में नहीं घूमा वो लगभग सभी राज्यों में प्रचार किया अपने उम्मीदवारों के लिए वोट मांगा. अध्यक्ष के रूप में अपना फर्ज निभाया. अशोक गहलोत की तरह राहुल गांधी अगर सिर्फ अमेठी कैम्प लगाए होते तो शायद वो जीत जाते. लेकिन जनता ने राहुल गांधी को हराया और जनता की निर्णय का सम्मान करना चाहिए. इस चुनाव कुछ ऐसे क्रिमिनल भी जीत गए हैं जिनको जीतना नहीं चाहिए था. लोकतंत्र में जनता मालिक है लेकिन जनता को हमेशा यह देखना चाहिए जिस को वोट दे रहा है उसका बैक ग्राउंड क्या है ? उस के खिलाफ कितने क्रिमिनल केस हैं लेकिन इस चीज पर कोई ध्यान नहीं देता है. फिर जब नेता काम नहीं करता है तो जनता रोती है.

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दिल्ली के लोगों ने आतिशी को हरा दिया और गौतम गंभीर को जीता दिया. मेरा मानना है जनता का यह निर्णय सही नहीं है. आतिशी कई दिनों से मेहनत कर रही हैं. दिल्ली के एजुकेशन के लिए आतिशी ने काफी अच्छा काम किया. गौतम गंभीर एक अच्छा क्रिकेटर है लेकिन राजनीति में उनका कोई अनुभव नहीं है. अगर क्रिकेट को देखते हुए आप किसी को सांसद बना रहे हैं तो जनता यहां गलत है. हंसराज हंस भी जीत गए उनका का भी राजनीति में कोई अनुभव नहीं है ना दिल्ली के लिए वो कुछ किये हैं. सिर्फ नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने के लिए लोगों को किसी को भी चुनकर संसद भेजना नहीं चाहिए क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. 


दिल्ली में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं किया और पुराने नेताओं को टिकट दे दी. अगर कांग्रेस गठबंधन कर लेती तो सभी नेताओं को टिकट नहीं मिल पाता. कांग्रेस जीतने से ज्यादा चुनाव लड़ने में विश्वास करती है. शीला दीक्षित को टिकट मिली. क्या शीला दीक्षित को टिकट मिलना चाहिए था. यह सही है कि शीला दिक्षित अच्छी नेता है लेकिन हर चीज का एक समय होता है. 81 साल के उम्र में चुनाव में खड़ा होना ठीक नहीं था. इस मामले में बीजेपी का 70 साल ज्यादा उम्र वालों को नेताओं को चुनाव में न उतारना वाला निर्णय सही है. महाबल मिश्र, अरविंद सिंह लवली, अजय माकन जैसे लोगों को टिकट मिला.

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अरविंद सिंह लवली पहले कांग्रेस थे, कांग्रेस छोड़कर बीजेपी चले गए थे फिर कांग्रेस में वापस आये तो उन्हें टिकट मिल गया. लोग यह तर्क देते हैं कि वहां सिख लोग ज्यादा है तो लवली को टिकट देकर ठीक किया. क्या पूरे कांग्रेस में सिर्फ लवली ही सिख है? क्या उस चुनाव क्षेत्र में लवली के सिवा कोई और सिख नेता नहीं है ? विकल्प के रूप में कांग्रेस दूसरे नेताओं को भी बनाना चाहिए था. ओडिशा में कांग्रेस पूरी तरह खत्म होती जा रही है. यहां भी नेता अपनी मनमानी चलाते हैं. नए लोगों को मौका नहीं मिलता है. एक समय ओडिशा में कांग्रेस ताकतवर मानी जाती थी.


2000 तक ओडिशा में ज्यादातर कांग्रेस की शासन रहा, लेकिन 2000 के बाद ओडिशा में कांग्रेस की हालत पतली होती चली गयी. वहां के नेता सिर्फ अपना फायदा देखते चले गए. लोग क्या सोचते हैं उस के बारे में नहीं सोचा. लोग जिन नेताओं को बार बार रिजेक्ट कर रहे हैं कांग्रेस को अगले चुनाव में फिर उन्हीं नेताओं को टिकट देती है. ओडिशा में कांग्रेस में परिवारवाद ज्यादा है. बाप के नाम पर बेटा या बेटियों को टिकट मिलती है. इसीलिए ओडिशा में कांग्रेस का कोर वोटर बीजेपी में शिफ्ट कर गया है. कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार कम होता जा रहा है. 2014 में को कांग्रेस ज्यादातर जगह पर दूसरे स्थान थी, लेकिन इस बार तीसरे स्थान पर आ गयी है. कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि नए लोगों को चुनाव में मौका नहीं देती है. जिन नेताओं को लोग बार-बार रिजेक्ट करते हैं उन्हें टिकट दिया जाता है.

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ओडिशा में कांग्रेस को नवीन पटनायक से सीखना चाहिए. नवीन पटनायक लगातार 19 साल से मुख्यमंत्री हैं और इस बार जीत कर आये हैं. पांच बार लगातार मुख्यमंत्री बनना कोई छोटी बात नहीं है.  नवीन की प्लानिंग के सामने ओडिशा में विपक्ष पूरी तरह फेल है. 2014 में मोदी लहर में भी नवीन ने ओडिशा में बीजेपी को रोका. इस बार भी बीजेपी को रोकने में कामयाब हुए. नवीन ने इस बार 33 प्रतिशत महिलायों को टिकट दिया है. लोकसभा मे जीतने उम्मीदवारों को नवीन ने टिकट दिया है किसी के खिलाफ क्रिमिनल केस नहीं है. कई पुराने नेताओं के टिकट भी बदल दिया.


2014 के हार से कांग्रेस कुछ नहीं सीखा. इन पांच सालों में कांग्रेस ने नए नेताओं को नहीं बना पाया या फिर नए चेहरे को मौका नहीं दिया. राहुल गांधी को भी आत्ममंथन करना चाहिए. लोगों से जुड़ने की जरूरत है लोगों से मिलने की जरूरत है. इस देश में मतदाता ही सब कुछ है. वो कभी किसी को हीरो बनाते है तो कभी किसी को जीरो. इसीलिए नेता अपने आप को हमेशा हीरो नहीं समझना चाहिए.  उसके हर प्रदर्शन को मतदाता देख रहा है. राहुल गांधी के पास एक मौका है जो नेता प्रदर्शन नही कर रहे हैं उन नेताओं नॉन प्लेइंग कप्तान बना दे जो बाहर बैठकर अपना सलाह देते रहे. नए लोगों मौका दे. युवाओं को मौका दे जो ईमानदारी से मेहनत कर रहे हैं नहीं तो फिर कांग्रेस को कांग्रेसी ही खत्म कर देगी.

सुशील मोहपात्रा NDTV इंडिया में Chief Programme Coordinator & Head-Guest Relations हैं

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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