देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने मुश्किल हालातों को सुधारने के आखिरी प्रयासों के तहत उदयपुर में तीन दिनों तक चिंतन शिविर का आयोजन किया. विचार-मंथन सत्र या "चिंतन शिविर" में पार्टी में आमूलचूल बदलाव पर विचार-विमर्श किया गया, जो अपने कमजोर नेतृत्व के संकट से थक चुका है, जिसके परिणामस्वरूप वो एक के बाद एक राज्य खोती जा रही है, राजस्थान और छत्तीसगढ़ अपवाद हैं. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी को संचालित करने वालीं उनकी दो संतानें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को यह साबित करने की जरूरत है कि वो अभी राजनीतिक में पूरी तरह सक्रिय हैं और चुनौतीपूर्ण नेतृत्व के लिए सक्षम हैं. यह चर्चा तब शुरू हुई, जब राहुल गांधी नेपाल में एक आयोजन में शामिल थे, इससे बीजेपी को मौका मिला. बीजेपी ने उस वीडियो को प्रचारित कर यह साबित करने की कोशिश की कि एक ओर उनकी पार्टी लगातार गिरावट की ओर है, वहीं राहुल गांधी छुट्टी मना रहे हैं. निष्कर्ष : वो एक गंभीर राजनेता नहीं हैं.
कांग्रेस के वफादार और असंतुष्ट नेताओं (जी 23) में अभी भी यह स्पष्टता नहीं है कि क्या औऱ कब राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष के तौर पर वापसी करेंगे. इस मुद्दे पर गतिरोध के कारण अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी प्रगति नहीं हो पा रही है. उदाहरण के तौर पर पार्टी ने एक परिवार-एक टिकट के नियम को अपनाया है, लेकिन यह उस शर्त पर लागू नहीं होगा, जब उस व्यक्ति ने कम से कम पांच साल तक पार्टी में सेवा की है. ऐसे में सीधा पारिवारिक रिश्ता होने के बावजूद उसे टिकट मिल सकता है. यह गांधी परिवार के लिए अनुकूल है और उन खानदानों के लिए, जो कांग्रेस के इतिहास का हिस्सा रहे हैं. पार्टी ने कहा कि कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं. इसमें 50 साल से कम उम्र के 50 फीसदी पदाधिकारियों का चुनाव शामिल है.
यानी आधे पद और समितियां उन लोगों के लिए होंगे, जिनकी उम्र 50 साल से कम है. साथ ही यह भी कहा गया है कि एक व्यक्ति-एक पद का सिद्धांत भी लागू होगा. जिन सुझावों की समीक्षा की गई. उनमें से कुछ रणनीतिकार प्रशांत किशोर द्वारा पेश किया गया था. जब वो कांग्रेस में अपनी एक भूमिका के लिए प्रजेंटेशन दे रहे थे, एक पहल जो सबके सामने धड़ाम हो गई. प्रशांत किशोर ने इमारत को गिराने का सुझाव दिया था, लेकिन पार्टी ने धन्यवाद के साथ प्रतिक्रिया में कहा, “धन्यवाद, हम सिर्फ मुखौटा को को रंगना चाहते हैं.” ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने कैडर को थोड़ा बहुत जोश की ओर खींचने के लिए जरूरी बदलाव का दांव चला है, लेकिन किसी भी वास्तविक आमूलचूल बदलाव दायरे से बाहर है. भले ही इसके कई दोषों और गलत अनुमानों की कीमत पंजाब और गोवा जैसे राज्यों को चुकानी पड़ी हो.
दो सबसे बड़े सवाल - फिर से चुनाव कैसे जीतें (लोकतंत्र में केवल एक यही चीज मायने रखती है) और भाजपा के बहुसंख्यक हिंदुत्व के एजेंडे से कैसे निपटा जाए, इन पर मुंह मोड़ लिया गया. जब तक नेतृत्व को इन दो बड़े सवालों के ठोस जवाब नहीं मिल जाते, तब तक उदयपुर की घोषणा बिना प्रेरणा के घर को चाकचौबंद करने की तरह लगेगी. पार्टी ने घोषणा की है कि वो सड़क पर उतरेगी और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगी. तीन नए विभाग, इसमें एक जन अंतदृष्टि विभाग(डेटा के जरिये जनता का मूड भांपना), कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग के लिए राष्ट्रीय संस्थान और एक चुनाव प्रबंधन विभाग बनाया जाएगा. इस पार्टी में पहले ही तमाम कमेटियां हैं, जहां सोनिया गांधी अक्सर बिना किसी परिणाम के मुद्दों को पैनल में रखती हैं और यही उनका अंत हो जाता है. राहुल गांधी की अध्यक्ष के तौर पर वापसी उदयपुर चिंतन शिविर के तंबू के नीचे सबसे बड़ा सवाल था और राहुल गांधी ने संकेत भी दिया था कि वो गंभीर हैं.
उदयपुर चिंतन शिविर में राहुल गांधी की वापसी पूरे लाव लश्कर के साथ हुई है. राहुल गांधी ने यह संकेत भी दिया कि अब वो मुद्दों को लेकर पहले से अधिक गंभीर हैं .प्रधान मंत्री पहले ही कह चुके हैं कि उनके लिए दो कार्यकाल पर्याप्त नहीं हैं. आम चुनाव अब दो साल में होने हैं. इसलिए, अगर कांग्रेस फिर से "राहुल बनाम मोदी" अभियान के लिए तैयार हो रही है तो एक बात पर गौर करना होगा कि इतिहास उनके पक्ष में नहीं है. कॉन्क्लेव में अपने संबोधन में राहुल गांधी ने कहा कि उन्होंने अपना जीवन आरएसएस की विचारधारा और भाजपा से लड़ने के लिए समर्पित कर दिया है और वो डरते नहीं हैं क्योंकि उन्होंने "भारत माता का एक पैसा भी नहीं लिया है". लेकिन कांग्रेस का भाग्य इस बात पर निर्भर करता है कि भाजपा के मुकाबले वो कितना चतुर राजनीतिक गठजोड़ तैयार कर पाती है. हालांकि राहुल गांधी ने यह कहकर बीजेपी को राहत दे दी है कि कांग्रेस के अलावा अन्य दलों के पास बीजेपी से लड़ने के लिए विचारधारा नहीं है.
राहुल का यह बयान राष्ट्रीय महत्वकांक्षा रखने वाले वरिष्ठ विपक्षी नेताओं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, राकांपा नेता शरद पवार और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर को अच्छा नहीं लगा होगा. वैसे भी इन नेताओं के रिश्ते राहुल गांधी के साथ अच्छे नहीं रहे हैं. कुछ क्षेत्रीय दल पहले से ही कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने से इनकार करते रहे हैं. राहुल गांधी ने खुद कहा था कि बसपा प्रमुख मायावती ने यूपी चुनाव के लिए गठबंधन पर बात नहीं की थी.
यह सिर्फ अन्य दलों के लिए ही नहीं बल्कि अपने दल को भी पहले की तुलना में बेहतर तरीके से संभालना राहुल गांधी को सीखना होगा. कांग्रेस के भीतर, उन्हें सचिन पायलट की भूमिका को लेकर चल रही समस्या को हल करना होगा. जिन्हें आश्वासन दिया गया था कि वो चुनाव से पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में अशोक गहलोत की जगह लेंगे. अब जबकि चुनाव में सिर्फ एक साल का समय बचा है तो इस समस्या का जल्द समाधान करना होगा,क्योंकि सचिन पायलट भी उड़ान भरने के लिए तैयार हैं.
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.