एक वक्त पर देश के सबसे तेज़तर्रार राजनेताओं में शुमार किए जाने वाले नीतीश कुमार ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को बेहद कम कर लिया है, और वह अब ताउम्र सिर्फ मुख्यमंत्री ही बने रहना चाहते हैं.
उन्हें सोमवार को उस समय साफ-साफ काफी राहत मिली होगी, जब बिहार में उनके डिप्टी, यानी उपमुख्यमंत्री और BJP नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा कि अगले साल राज्य में होने वाले चुनाव में नीतीश कुमार ही BJP-JDU गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे. नीतीश कुमार की पार्टी JDU के साथ मिलकर राज्य में सरकार चला रही BJP के नेता की ओर से नीतीश को मिलने वाली यह स्वीकृति शर्मिन्दा करने वाले इन क्षणों के बाद आई है, जब यह पता चला कि बिहार की CID सूबे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, यानी BJP के वैचारिक संरक्षक माने जाने वाले RSS के नेताओं पर जासूसी कर रही है. अटकल थी कि ऐसा नीतीश के इशारे पर ही हो रहा है, या कम से कम उन्हें इस बात की जानकारी है.
जिस मुद्दे पर दरार पैदा हो सकती थी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने उसमें भी बीच में पड़कर उदाहरण पेश किया कि एक अहम चुनाव के लिए किसी सहयोगी को कैसे अपने साथ बनाए रखा जा सकता है. नीतीश ही गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे. समझौता तय. अब मतदान में कुछ ही महीने रह गए हैं, और यह सुनिश्चित कर लिया गया है कि सीट-बंटवारे को लेकर कम से कम तनातनी होगी.
नीतीश कुमार ही बिहार में NDA की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा होंगे...
अब इसकी तुलना कर्नाटक में जारी विश्वासमत प्रक्रिया के दौरान रोज़ाना सामने आ रहे उन हज़ारों तमाशों के साथ कीजिए, जिनके ज़रिये कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (JDS) भी मतभेदों से घिरे गठबंधन का उदाहरण पेश कर रही हैं.
रिसॉर्ट राजनीति से लेकर रोने-धोने तक के दृश्यों, विधानसभा में ही रातभर सोने से लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल होती अर्ज़ियों तक के बीच गठबंधन सरकार सत्ता के साथ चिपकी नज़र आ रही है, और स्पीकर अलग-अलग बहाने बनाकर उस विश्वासमत को टालते आ रहे हैं, जिससे साबित हो जाएगा कि कांग्रेस और JDS औंधे मुंह गिर चुके हैं.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने मुझसे कहा, "क्या कर्नाटक कभी इन जोकरों को (दोबारा) चुनना चाहेगा...?" अमित शाह ने कर्नाटक का आकलन किया और अपनी पार्टी को बताया कि सरकार अपने आप ही गिर जाएगी, सो, BJP को इसे गिराने के लिए आतुर नज़र नहीं आना चाहिए. गठबंधन सरकार से विद्रोह करने के लिए विधायकों को 25 करोड़ या उससे भी ज़्यादा रकम की पेशकश दिए जाने की कहानियां सुनने को मिल रही हैं. लेकिन अब अंत निकट है.
कांग्रेस के सामने इस समय बहुत बड़ा संकट मौजूद है - राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी का स्थान कौन लेगा - सो, उसके पास अपनी गिनी-चुनी सरकारों में से एक के गिर जाने के बारे में गंभीरता से सोचने का वक्त तक नहीं है. कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व का कर्नाटक इकाई को भेजा गया संदेश है - हमें परवाह नहीं, अगर आपकी सरकार गिर जाती है, क्योंकि जब तक हम शीर्षहीन हैं, हम राहुल गांधी की टाल-मटोल की नीति का ही पालन करते रहेंगे.
राज्यव्यापी यात्रा पर निकले हुए आदित्य ठाकरे भी इस बार महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले हैं...
इसी दौरान, महाराष्ट्र के चुनाव भी सिर्फ तीन महीने की दूरी पर हैं, और शिवसेना उसी उद्देश्य को लेकर जनता के बीच पहुंच गई है, जिसके बारे में मैंने इसी साल 18 फरवरी को सिर्फ NDTV के ज़रिये रिपोर्ट किया था - वह चाहती है, 29-वर्षीय आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री पद सौंपा जाए.
शिवसेना का यह रुख अतीत के उस रुख से कतई उलट है, जब आदित्य के दादा और शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने तय किया था कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य सरकार का हिस्सा नहीं बनेगा, और उसके स्थान पर वे महाराष्ट्र सरकार के सर्वशक्तिशाली 'रिमोट कंट्रोल' के रूप में काम करेंगे.
महत्वाकांक्षी राजनेताओं द्वारा अक्सर अपनाए जाने वाले राज्यव्यापी दौरे के मार्ग को अपनाते हुए आदित्य इस वक्त महाराष्ट्र की यात्रा पर निकले हुए हैं, और विधानसभा चुनाव भी लड़ने वाले हैं. यह भी परिवार के अतीत में किए गए फैसलों से उलट है. न कभी बालासाहेब ने चुनाव लड़ा था, और न ही शिवसेना के मौजूदा मुखिया और आदित्य के पिता उद्धव ठाकरे ने कभी चुनाव लड़ा है.
शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच पिछले 30 साल से गठबंधन बरकरार है, और सार्वजनिक रूप से सबसे ज़्यादा कहासुनी का रिकॉर्ड भी इन्हीं के नाम दर्ज है. लोकसभा चुनाव 2019 से पहले चिढ़चिढ़ी शिवसेना को मनाने के लिए अमित शाह उन्हें सम्मान देते हुए मुंबई स्थित ठाकरे आवास 'मातोश्री' में गए, और उद्धव ठाकरे मान गए. यह बेहद समझदारी का फैसला साबित हुआ, क्योंकि गठबंधन ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 41 पर जीत हासिल की.
अमित शाह और उद्धव ठाकरे के बीच केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की मदद से हुए समझौते के बारे में आदित्य ठाकरे सार्वजनिक रूप से बात करते हुए बताते हैं कि इस बार मुख्यमंत्री पद शिवसेना को ही मिलेगा. मुख्यमंत्री पद शिवसेना को दिए जाने को गठबंधन बरकरार रखने की पहली शर्त बनाने से भी ठाकरे परिवार पीछे नहीं हटेगा. अतीत में, शिवसेना की ओऱ से सूबे में दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं - मनोहर जोशी तथा नारायण राणे. वर्ष 2014 में BJP द्वारा जूनियर पार्टनर की भूमिका निभाने से इंकार कर देने की वजह से BJP और शिवसेना ने विधानसभा चुनाव अलग-अलग रहकर लड़ा था, और BJP ने शिवसेना की तुलना में लगभग दोगुनी सीटें हासिल की थीं.
ठाकरे परिवार चाहता है कि शिवसेना महाराष्ट्र की आधी सीटों पर चुनाव लड़े. मौजूदा मुख्यमंत्री और BJP नेता देवेंद्र फडणवीस ने अपनी गद्दी के लिए बड़ा खतरा महसूस करते हुए छोटा-मोटा विरोध भी कर डाला, और कहा, वह अपनी गद्दी वापस हासिल कर लेंगे. इस आलेख के लिए शिवसेना के जिन नेताओं से मैंने बात की, उन्होंने देवेंद्र फडणवीस की टिप्पणी को 'अप्रभावी शोरशराबा' करार दिया, और कहा कि अमित शाह ही फैसला करेंगे. शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "देवेंद्र फडणवीस चुने हुए नेता नहीं हैं, उन्हें शाह और मोदी ने चुना था, और उनका कोई आधार भी नहीं है, सो, उन्हें (देवेंद्र फडणवीस को) उनकी (मोदी और शाह की) बात माननी होगी..."
BJP नेताओं का कहना है कि जब ठाकरे परिवार इसमें शामिल हो गया है, तो आखिरकार BJP को मुख्यमंत्री पद के लिए रोटेशन का मार्ग ही स्वीकार करना होगा, और यह सुनिश्चित करना होगा कि सीट-बंटवारे के दौरान तनाव कम से कम रहे. और हालांकि अमित शाह महाराष्ट्र के मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का दर्द समझते हैं, लेकिन वह वास्तव में गठबंधन की चर्चाओं में कारक नहीं बनेगा.
एक तरफ शिवसेना चुनाव जीतने के लिए सड़क पर उतर चुकी है, वहीं दूसरे गठबंधन - कांग्रेस तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) - ने अभी तक बातचीत भी शुरू नहीं की है. गठबंधन को लेकर कुछ भी नहीं किए जाने से नाराज़ शरद पवार अब उद्धव ठाकरे को सलाह दे रहे हैं कि उन्हें BJP से क्या-क्या मांग करनी चाहिए.
शरद पवार ने कांग्रेस को अल्टीमेटम दे दिया है - अगले हफ्ते तक बातचीत हो, या वह गठबंधन से अलग चले जाएंगे. लेकिन कांग्रेस की महाराष्ट्र इकाई तो इस समय इस झगड़े में व्यस्त है कि राज्य में पार्टी का प्रभार किसके पास रहेगा. दंतकथाओं की तरह प्रसिद्ध कांग्रेस हाईकमान अब कहीं कमज़ोर-सा हो गया है, और गांधी परिवार के पास जो बची-खुची ताकत है, वह लगता है, नवजोत सिंह सिद्धू को सहारा देने में लग रही है, जो पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ संघर्ष जारी रखे हुए हैं. कर्नाटक तो खो ही रहे हैं, कांग्रेस अब उस एकमात्र राज्य को भी खटाई में डाल रही है, जहां लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान देशभर से विपरीत और उनके पक्ष में रुख देखने को मिला था.
सो, कामयाब जनरल के तौर पर अमित शाह का रिकॉर्ड सुरक्षित है. दूसरा पक्ष तो लड़ना चाहता ही नहीं है.
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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