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This Article is From Jan 27, 2024

बिहार में नौकरशाहों के बीच शीतयुद्ध, माने सर्दी में भी गर्मी का एहसास!

Amaresh Saurabh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 27, 2024 12:37 pm IST
    • Published On जनवरी 27, 2024 12:37 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 27, 2024 12:37 pm IST

हाड़ कंपा देने वाले सर्द मौसम के बीच बिहार में हर तरफ गर्माहट दिख रही है. राजनीति की तो बात ही छोड़िए. इसका पारा तो सालोंभर चढ़ा रहता है. इन दिनों लोकतंत्र के एक और स्तंभ, नौकरशाही का तापमान भी नए रिकॉर्ड बना रहा है. हालात ऐसे हैं कि आजकल लोग अलाव कम जला रहे, सुलगती खबरों का मजा ज्यादा ले रहे हैं. और तो और, लोगों ने लाफ्टर शो देखना भी कम कर दिया है!

बात ही कुछ ऐसी है. रह-रहकर कुछ न कुछ अजीबोगरीब हो जाता है. कुछ दिनों पहले आपने रणजी मैच की खबर देखी होगी. मुंबई के खिलाफ बिहार की तरफ से एक नहीं, दो-दो टीमें खेलने आ गई थीं. दोनों का दावा था कि वे ही असली हैं. अंत में फ्री स्टाइल कुश्ती से दावेदारी का फैसला हुआ. खैर, गनीमत रही कि फैसला हुआ और प्रदेश की साख गिरते-गिरते बची! लेकिन नौकरशाही का पावर-गेम इससे भी ज्यादा रोचक है. हर दिन नए-नए ट्विस्ट एंड टर्न. देखिए कैसे.चर्चा में शिक्षा विभागजो सारी चर्चाओं के केंद्र में है, उसे पहले मानव संसाधन विकास विभाग कहते थे. बोलने में जुबान को ज्यादा कष्ट होता था. बहुत को समझ में भी नहीं आता था कि कहीं ये जनसंख्या बढ़ाने या इसे नियंत्रित करने वाला विभाग तो नहीं! अब इसे सीधे-सीधे शिक्षा विभाग कहते हैं. 

इस विभाग में नए-नए एक बड़े हाकिम आए. एकदम कड़क मिजाज वाले. अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. सुधी पाठक जरूर जानते होंगे. खबरनवीस भी इसी ताक में रहते हैं कि हाकिम कुछ बोलें और वे सीधा उनके नाम से खबर चला दें. खबर चलेगी नहीं, दौड़ेगी. की-वर्ड, टैग और सोशल मीडिया का जमाना है.

जब पब्लिक बोली- वाह, वाह!विभाग के कई कामों से पब्लिक भरपेट खुश हुई. लेट से स्कूल आने और स्कूल में ही लेट जाने वाले टीचरों के कान उमेठे गए. घंटी लगने पर आने वाले, लेकिन घंटा पढ़ाने वालों की तो जैसे शामत आ गई. नौकरियां भी भर-भरकर बांटी गईं. सत्ता पर काबिज दो बड़ी पार्टियों में क्रेडिट लेने की होड़ मची, लेकिन नौकरशाहों की फौज के बीच उन हाकिम का कोई जोड़ीदार नहीं. खूब तालियां बजीं. यहां तक सब ठीक था, लेकिन इस कहानी को कई घुमावदार मोड़ों से गुजरना था.फरमानों की फेहरिस्तविभाग के बड़े हाकिम की ओर से एक के बाद एक, लगातार अजीब फरमान आते रहे. पब्लिक मुंह पर रुमाल रखकर हंसती रही. एक फरमान आया कि जो बच्चे लगातार तीन दिन तक स्कूल नहीं आएं, उनके नाम रजिस्टर से काट दिए जाएं. अब तक ज्ञात इतिहास में बिलकुल अनूठी पहल. किसी ने पलटकर नहीं पूछा कि क्यों, किस कानून के तहत? आखिर बच्चे हैं. बच्चे अपने मन के शहंशाह होते हैं, नौकरशाह नहीं.एक फरमान ये कि जिस स्कूल में बच्चों की अटेंडेंस 50 फीसदी से कम पाई गई, उसके प्रधान को लाइन हाजिर किया जाएगा. कई लोगों को 'द पाइड पाइपर ऑफ हेमेलिन' की पुरानी कहानी याद आ गई. हेमेलिन शहर में एक बाजीगर ने मुरली बजाई थी, तो शहर के सारे बच्चे उसके पीछे-पीछे हो लिए थे. लगता है कि स्कूलों के प्रधानों को वही मुरली थमाने का वक्त आ गया है.एक नियम ये कि कोई भी टीचर आकस्मिक अवकाश की अर्जी समय से पहले अप्रूव कराएंगे, फिर छुट्टी पर जा सकेंगे. कोई पूछे कि इसका नाम 'आकस्मिक' पड़ा ही क्यों? ध्यान रहे कि यहां अभी मेल (Mail) कल्चर आना बाकी है. वॉट्सऐप भी इस्तेमाल नहीं कर सकते. माने लगातार ज्योतिषियों और बाबाओं के टच में रहिए. आपके साथ क्या अनहोनी होने वाली है, पहले से पता रखिए.

एक नियम ये कि किसी स्कूल के 10 फीसदी से ज्यादा टीचर एकसाथ कैजुअल लीव नहीं ले सकते. अब बच्चे मास्टरजी की मौज ले रहे हैं. क्यों? कुछ टीचर बच्चों को जान-बूझकर वैसे ही सवाल सॉल्व करने देते थे, जिनके आंसर फ्रैक्शन में आएं और बच्चे परेशान हों. अब टेन परसेंट के चक्कर में मास्टरजी की छुट्टी ही फ्रैक्शन में आ रही है!नौकरशाहों का शीतयुद्धबात ठंड से शुरू हुई थी. इसी कड़ाके की ठंड में अब शीतयुद्ध छिड़ा है. पहले इसका बैकग्राउंड समझ लीजिए. दरअसल, ठंड ज्यादा बढ़ने पर, शीतलहर के चलते कई राज्यों में छोटे बच्चों के लिए स्कूल बंद हो जाते हैं. स्कूल बंद, माने केवल छोटे बच्चे (8वीं क्लास तक के) स्कूल नहीं जाएंगे. बड़े बच्चे स्कूल जाएंगे, क्योंकि उन्हें बोर्ड के लिए तैयार होना होता है. ऐसे में बिहार के कुछ जिलों में जिलाधिकारी ने शीतलहर को देखते हुए धारा 144 लगाकर छोटे बच्चों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी.

ये बात शिक्षा विभाग के उन बड़े हाकिम को पसंद नहीं आई. विभाग मेरा, डीएम के आदेश की ऐसी-तैसी! उन्होंने सबके लिए स्कूल खोलने का आदेश जारी कर दिया. तर्क ये कि सर्दी की आड़ में स्कूल बंद करने की 'परंपरा' गलत है. बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है सो अलग, मास्साब की भी आदत बिगड़ती है, इनको अनुशासन में रखना जरूरी है.कैसी-कैसी परंपराएं!अगर गौर से देखें, तो कई परंपराएं सचमुच गलत होती हैं. गलत परंपराओं को उखाड़ फेंकने के लिए ही महामानव अवतार लेते हैं. इतिहास की किताबें ऐसी कहानियों से भरी पड़ी हैं.

एक तो आजकल दुनियाभर में बेहिसाब ठंड और बेहिसाब गर्मी पड़ने की जो नई परंपरा बनती जा रही है, इस पर रोक लगनी चाहिए. दूसरे, ज्यादा ठंड पड़ने पर गर्म जगहों पर और ज्यादा गर्मी पड़ने पर हिल स्टेशन का रुख न करने की परंपरा भी गलत है. देखिए ना, तमाम जगहों के बाजार और मॉल रंग-बिरंगे गर्म कपड़ों से भरे पड़े हैं, फिर भी अगर कोई इन्हें खरीदने से इनकार करे, तो ये फैशन भी गलत है. इसके पीछे आर्थिक तंगी को वजह बताना तो और भी गलत है.समाज के बीच नोट तो इतने भरे पड़े हैं कि उन्हें गिनने के लिए मशीनें तक मंगवानी पड़ रही हैं. ऐसे में अगर कोई भाई और बहन, दोनों एक ही पुरानी स्वेटर में गुजारा करें, एक दिन छोड़कर बारी-बारी से स्कूल जाएं, तो ऐसी परंपरा भी सरासर गलत है!

और हद तो तब हो जाती है, जब ठंड में स्कूल आते-जाते वक्त कोई बच्चा दम तोड़ दे. अखबारों की सुर्खियां बताती हैं कि बिहार में इस सीजन में ऐसे दो-तीन हादसे हो चुके हैं. लेकिन ऐसा होता हो, तो हो, इसके लिए विभाग की जिद को गलत ठहराने की परंपरा गलत है!झगड़े का क्या हुआ?अब आते हैं शीतयुद्ध के नतीजे पर. सर्दियों में छुट्टी की 'गलत परंपरा' के सवाल पर शिक्षा विभाग के उन बड़े हाकिम और जिलाधिकारी के बीच ठन गई. दोनों ओर से पत्राचार का अंतहीन सिलसिला चल पड़ा. जिलाधिकारी ने अपनी न्यायिक शक्ति का प्रयोग करके धारा 144 के तहत पाबंदी जारी रखी. लेकिन हाकिम बच्चों को स्कूल भेजने पर अड़े रहे.

झगड़ा हाईकोर्ट की दहलीज तक पहुंचते-पहुंचते बचा. बच्चे भी कन्फ्यूज, सिस्टम भी कन्फ्यूज. लेटरबाजी की भाषा ऐसी कि किसी को भी अपना नटखट बचपन याद आ जाए. ये सारे लेटर वॉट्सऐप पर आसानी से उपलब्ध हैं. तभी तो पब्लिक ठंड में अलाव जलाने की जगह केवल दांत निपोरकर हंस रही है! 

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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